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शनिवार, 27 मई 2017

About A. Solzhenytsin

सोल्झेनीत्सिन के बारे में


अलेक्सान्द्र सोल्झेनीत्सिन
(1918-2008)
--ए. चारुमति रामदास


कैंसर वार्ड, गुलाग आर्किपेलागो, प्रथम चक्र आदि प्रसिद्ध रचनाओं के रचनाकार, सन् 1970 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता  अलेक्सान्द्र सोल्झेनीत्सिन का जीवन अनेक उतार चढ़ावों और विसंगतियों से भरा हुआ रहा. वे किसी ने किसी कारण से हमेशा चर्चा में बने रहे, कहीं न कहीं आलोचित होते रहे.

अलेक्सान्द्र ईसायेविच सोल्झेनीत्सिन का जन्म 11 दिसम्बर 1918 को उत्तरी कॉकेशस के हिल स्टेशन किस्लोवोद्स्क में हुआ था. पिता, ईसाय सोल्झेनीत्सिन, जो मॉस्को विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके थे, पुत्र के जन्म से छह महीने पहले ही प्रथम विश्व युद्ध के दौरान चल बसे.
ईसाय सोल्झेनीत्सिन ने अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर सन् 1914 में फ़ौज में नाम लिखवा लिया था. वे जर्मन मोर्चे पर आर्टिलरी ऑफ़िसर के रूप में लड़े थे. ब्रेस्ट की संधि तक वे आर्टिलरी ब्रिगेड में ही रहे.

अलेक्सान्द्र की माँ थीं ताइस्या सोल्झेनीत्सिना. उनके पिता ग़रीबी से ऊपर उठे थे. धीरे धीरे उन्होंने कॉकेशस के निकट कुबान प्रांत में एक अच्छी ख़ासी जागीर बना ली थी. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ताइस्या शिक्षा के लिए मॉस्को गई थीं. यहीं उनकी मुलाक़ात ईसाय सोल्झेनीत्सिन से हुई, जो तब फ़ौज में अफ़सर थे. उनकी शादी मोर्चे पर ही ब्रिगेड के पादरी ने करवाई थी.

हालाँकि सन् 1918 में ईसाय सोल्झेनीत्सिन युद्ध से घर लौटे, परंतु शीघ्र ही एक दुर्घटना के कारण, जिसका इलाज ठीक से न हो पाया, बच नहीं पाए.
पति की मृत्यु के बाद ताइस्या ने दुबारा शादी नहीं की. वे एक पढ़ी लिखी महिला थीं, उन्हें फ्रांसीसी एवम् अंग्रेज़ी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था. वे टाइपिस्ट और स्टेनोग्राफर का काम करते हुए अपने पुत्र का लालन पालन करती रहीं. सन् 1924 में वे दोन नदी के किनारे बसे रोस्तोव शहर में रहने लगे.
अलेक्सान्द्र का बचपन आर्थिक कठिनाइयों में ही बीता. यह समय सोवियत संघ में गृह युद्ध का था. सन् 1930 के आते आते परिवार की संपत्ति को सरकार ने छीन लिया और उसे सामूहिक फ़ार्म में सम्मिलित कर लिया. माँ नौकरी कर रही थीं. पिता के शाही फ़ौज से संबंध को उन्हें गुप्त रखना पड़ा अन्यथा कठोर दंड का ख़तरा था. ताइस्या सोल्झेनीत्सिना ने बेटे का लालन पालन रूसी रूढ़िवादी चर्च की परंपराओं के अनुसार किया. वे अपने पुत्र के साहित्यिक एवम् वैज्ञानिक झुकाव को प्रोत्साहित करती रहीं.

बचपन से ही सोल्झेनीत्सिन की ख़्वाहिश थी कि वे लेखक बनें. अपनी आरंभिक रचनाओं को वे जवानी की बेवकूफ़ियाँ कहा करते थे. किशोरावस्था में कुछ कहानियाँ लिख कर ज़्नाम्यानामक साहित्यिक पत्रिका में भेजी थीं, मगर वे सब अस्वीकृत हो गईं.
सोल्झेनीत्सिन अपने पिता की भाँति मॉस्को विश्वविद्यालय में साहित्य का अध्ययन करना चाहते थे, मगर माँ के पास उन्हें मॉस्को भेजने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे अतः सन् 1937 में उन्होंने रोस्तोव विश्वविद्यालय के भौतिकी एवम् गणित विभाग में प्रवेश ले लिया.
बाद में, वह कहा करते थे, कि इस गणित की पदवी ने ही दो बार उनका जीवन बचाया – आठ वर्षों की कारावास की अवधि में चार वर्ष तक उन्होंने गणित पढ़ाया; और कारावास समाप्त होने के बाद जब उन्हें निष्कासित कर दिया गया तो जीवन यापन के लिए यही गणित की पदवी काम आई.
मगर आख़िरकार उन्होंने गणित की पढ़ाई के साथ साथ साहित्य का अध्ययन भी आरंभ कर ही दिया. सन् 1939 से 1941 के बीच वे मॉस्को के इतिहास, दर्शन एवम् साहित्यिक संस्थान के पत्राचार पाठ्यक्रम के विद्यार्थी रहे. सन् 1940 में उन्होंने रसायन शास्त्र की विद्यार्थिनी नतालिया अलेक्सेयेव्ना रिशोतोव्स्काया से शादी कर ली.
सन् 1941 में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ तक सोल्झेनीत्सिन ने मोरोज़ोव्का स्थित एक स्कूल में भौतिक शास्त्र के अध्यापक के रूप में कार्य किया. मगर युद्ध आरंभ हो जाने के कारण अक्टूबर 1941 में उन्हें लाल फ़ौज में घोड़ा-गाड़ी चलाने का काम दिया गया. क़रीब साल भर तक यह काम करने के बाद उन्हें अपनी गणित की उपाधि की बदौलत आर्टिलरी स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ आर्टिलरी ट्रेनिंग प्राप्त करने के बाद उन्हें अफ़सर बनाकर लेनिनग्राद मोर्चे पर भेज दिया गया. सन् 1945 तक वे विभिन्न मोर्चों पर ही रहे. इस दौरान कैप्टेन के पद पर उनकी पदोन्नति हुई एवम् उन्हें ऑर्डर ऑफ़ पेट्रिओटिक वार क्लास II, तथा ऑर्डर ऑफ़ रेड स्टार नामक सम्मान भी प्रदान किए गए.

युद्ध के दौरान सन् 1944-45 की अवधि में सोल्झेनीत्सिन ने अपने एक शालेय मित्र,एन. डी. उत्केविच, को लिखे एक पत्र में स्टालिन की युद्ध नीति की निंदा की थी. उन्होंने उसका उल्लेख मुच्छड़ और मास्टर नामों से किया था. यहीं से उनके दुर्भाग्य का आरंभ हुआ. कैप्टेन सोल्झेनीत्सिन को क़ैद कर लिया गया. उन्हें क़ैद करने का कारण भी बताया गया.
सोल्झेनीत्सिन को सोवियत विरोधी प्रचार का दोषी क़रार दिया गया. उनकी कहानियों कीपांडुलिपियों को सबूत के तौर पर पेश किया गया. मॉस्को की लुब्यान्का जेल में उन्हें बुरी तरह पीटा गया, और जवाब –तलब होने के बाद 7जुलै 1945 को आठ साल का कठोर दंड़ सुनाया गया. अगले पाँच महीने मॉस्को के निकट ही एक कैम्प में रखा गया, जहाँ उन्हें शहरी इमारतों से संबंधित योजनाओं में काम करने पर मजबूर किया गया. सन् 1946 में गणित विषय में उनकी पदवी के कारण सोल्झेनीत्सिन को मॉस्को के एक विशेष वैज्ञानिक शोध संस्थान में भेज दिया गया जहाँ उन्होंने चार साल बिताए. सन् 1950 में उन्हें राजनैतिक क़ैदियों के लिए बनेविशिष्ट कैम्प में भेजा गया. इस कैम्प में, जो एकिबास्तूज़(कज़ाकिस्तान) में था, उन्हें मिस्त्री का, खान कर्मचारी का, फोरमेन का काम करना पड़ा. इन्हीं अनुभवों के आधार पर लिखी गई उनकी प्रसिद्ध रचना इवान देनिसोविच के जीवन का एक दिन. इसी कैम्प में पता चला कि उन्हें कैंसर हो गया है. उनके कैंसर का ऑपरेशन किया गया मगर वे पूरी तरह ठीक नहीं हुए.
मार्च 1953 में कैम्प से रिहाई के पश्चात् उन्हें ज्ञात हुआ कि स्टालिन की मृत्यु हो चुकी है. मगर फिर भी सोल्झेनीत्सिन को दक्षिण कज़ाकिस्तान के कोक्तेरेक में निष्कासित कर दिया गया.
जीवन के अगले तीन वर्ष, अर्थात् जून 1956 तक, उन्होंने वहीं बिताए. बीच में – 1953 के अंत में – जब उनका कैंसर बहुत बढ़ गया तो ताशकंद के कैंसर क्लीनिक में उनका इलाज किया गया. ताशकंद के कैंसर अस्पताल के अनुभवों के आधार पर उन्होंने अपना उपन्यास कैंसर वार्डलिखा.

क़ैद एवम् निष्कासन के इस दशक के दौरान ही सोल्झेनीत्सिन मार्क्सिज़्म से मुँह फेर कर दार्शनिक एवँ धार्मिक सिद्धांतों की ओर आकृष्ट हुए. जेल में ही वे दार्शनिक बन चुके थे. रेड आर्मी के कप्तान के रूप में कार्य करने पर उन्हें पछतावा हुआ, जेल में वे स्वयँ की तुलना ‘गुलाग’ के कुकर्मियों से करते. उनके भीतर हो रहे इस परिवर्तन को गुलाग आर्किपेलागो में विस्तार से चित्रित किया गया है.
निष्कासन के इन वर्षों में वे स्कूल में गणित और भौतिक शास्त्र पढ़ाते रहे और चुपके चुपके कहानियाँ और नाटक भी लिखते रहे. मिलिट्री की अदालत ने दुबारा उनके ‘केस’ पर ग़ौर किया और उनका पुनर्वसन कर दिया. इस प्रकार उन्हें रूस के यूरोपीय भाग में जाने की इजाज़त मिल गई. 

यूरोपीय रूस में लौट कर पहले वे व्लादीमिर शहर में रहे, फिर र्‍याज़ान में, जो मॉस्को से केवल 100 मील दूर है.
सन् 1952 में, जब वे निष्कासित थे, तभी सोल्झेनीत्सिन ने अपनी पत्नी को तलाक़ दे दिया था ताकि उनसे संबंधित होने के कारण संभावित अत्याचारों से उसे बचा सकें. नतालिया रिशोतोव्स्काया ने सन् 1957 में दूसरी शादी कर ली, उसके दो संतानें भी हुईं, मगर सोल्झेनीत्सिन के यूरोपीय रूस में वापस लौटने पर वह उनके पास लौट आईं. र्‍याज़ान में भी जीवन यापन के लिए वे गणित पढ़ाते रहे और ख़ाली समय में सृजनात्मक कार्य करते रहे.
उनका पहला उपन्यास इवान देनिसोविच के जीवन का एक दिन प्रकाशित हुआ सन् 1962 में. यह उपन्यास सन् 1958 में ही पूरा हो चुका था, मगर सन् 1961 तक इसे साहित्यिक पत्रिका ‘नोवी मीर’ को दिया नहीं गया था. सन् 1956 में कम्य्निस्ट पार्टी की कांग्रेस के बीसवें अधिवेशन में तत्कालीन सोवियत प्रधानमंत्री  निकिता ख्रुश्चोव ने अपना ‘गुप्त भाषण’ दिया जिसमें स्टालिन की निंदा की गई थी. इस भाषण को सन् 1961 में सार्वजनिक कर दिया गया. यह वह दौर था जब देश में ‘निःस्टालिनीकरण’ पर ज़ोर दिया जा रहा था.


‘नोवी मीर’ के संपादक अलेक्सान्द्र त्वार्दोव्स्की ने सीधे ख़्रुश्चोव से अलेक्सान्द्र सोल्झेनीत्सिन के उपन्यास को प्रकाशित करने की अनुमति प्राप्त की और इस तरह सोल्झेनीत्सिन का पहला उपन्यास 44वर्ष की आयु में, सन् 1962 में प्रकाशित हुआ. उपन्यास को राजनैतिक कारणों से व्यापक प्रसिद्धी दी गई. स्टालिन के कुकृत्यों का पर्दाफ़ाश करने की दिशा में ख्रुश्चोव के हाथ में यह एक सशक्त हथियार आ गया था.
अब सोल्झेनीत्सिन एक प्रसिद्ध लेखक बन चुके थे –सोवियत संघ में भी और विदेशों में भी. उनकी कहानियाँ, मात्र्योना का घर, क्रेचेतोव्का स्टेशन की एक घटना, उद्देश्य की भलाई के लिए भी सन् 1963 के ‘नोवी मीर’ में प्रकाशित हुईं. मगर जैसे ही ख्रुश्चोव सत्ता से हटाए गए सोल्झेनीत्सिन पर भी विपत्तियाँ टूटने लगीं. उन्हें सन् 1964 के लेनिन पुरस्कार की दौड़ में पराजित कर दिया गया. उनके उपन्यास प्रथम चक्र (1964) और कैंसर वार्ड (1966) का प्रकाशन विलम्बित कर दिया गया. सोल्झेनीत्सिन की पांडुलिपियों और उनके व्यक्तिगत संग्रह को सन् 1965 में गुप्त पुलिस द्वारा ज़ब्त कर लिया गया. उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री ब्रेझनेव को सन् 1966 में विरोध-पत्र भेजा. वे लेखक संघ से भी भिड़ गए.
सन् 1968 तक कैंसर वार्ड और प्रथम चक्र के अवैध अंशों के अंग्रेज़ी अनुवाद तथा पूरे-पूरे उपन्यासों के अंग्रेज़ी अनुवाद भी इंग्लैण्ड और पश्चिमी यूरोप में छप गए. मगर उसके अगले वर्ष स्थिति यह हो गई कि सोवियत लेखक संघ सोल्झेनीत्सिन को एक ख़तरनाक और मुँहफट राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में देखने लगा था, परिणामतः उन्हें लेखक संघ से निष्कासित कर दिया गया जिससे उनका ‘सोवियत लेखक’ का दर्जा भी जाता रहा. आधिकारिक एवम् सार्वजनिक रूप से निष्कासित कर दिए जाने पर सोल्झेनीत्सिन ने लेखक संघ के इस कार्य की निंदा की. ताज्जुब की बात यह हुई कि उन्हें लगभग 70 लेखकों ने समर्थन दिया.
सोल्झेनीत्सिन के व्यक्तिगत जीवन में भी इस कालखण्ड़ में कई उतार चढ़ाव आए. वे नतालिया रिशोतोव्स्काया से अलग हो गए और 32 वर्षीया गणित की अध्यापिका नतालिया स्वेत्लोवा के साथ रहने लगे. सन् 1970 में उनका पहला पुत्र पैदा हुआ. सन् 1973 में रिशोतोव्स्काया ने, के.जी.बी. के दबाव के बावजूद उन्हें तलाक़ दे दिया, तब उन्होंने नतालिया स्वेत्लोवा से विवाह किया. आरंभ में उन्हें अपनी पत्नी के साथ रहने की इजाज़त भी नहीं दी गई थी. सोल्झेनीत्सिन के तीन पुत्र हुए, येर्मोलाइ (1970), इग्नात (1972) और स्तेपान (1973).
सन् 1970 में उन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया. सोवियत प्रेस ने इसे राजनैतिक रूप से सोवियत संघ विरोधी क़दम माना और सोल्झेनीत्सिन स्वयम् स्टॉकहोम जाकर पुरस्कार स्वीकार करने से वंचित रह गए. उन्हें भय था कि यदि वे स्टॉकहोम जाते हैं तो उन्हें सोवियत संघ वापस नहीं लौटने दिया जाएगा. सोवियत प्रेस एवँ ख़ुद ब्रेझनेव द्वारा आलोचित किए जाने के बावजूद वे लिखते रहे. अब उन्होंने अपनी उपन्यास श्रुंखला लाल चक्रआरंभ की जिसमें रूसी इतिहास की प्रथम विश्व युद्ध से संबंधित उन घटनाओं का विवरण है जो देश को अक्टूबर क्रांति तक ले गईं. इसकी पहली कड़ी है उपन्यास अगस्त 1914 जो सन् 1971 में विदेश में छपा. छोटे छोटे अंशों के रूप में लिखे गए इस उपन्यास में रूसी सेना के पूर्वी प्रशिया में हार के कारणों पर प्रकाश डाला गया है. सोल्झेनीत्सिन ने इस रचना में दस्तावेजों, कहावतों, गीतों, अख़बारों से और फ़िल्मों से लिए उद्धरणों का प्रयोग किया है.

अपना उपन्यास गुलाग आर्किपेलागो उन्होंने अधिकारियों से छिपा कर रखा था, इस डर से कि उसमें वर्णित पात्रों को अत्याचार सहने पड़ेंगे. परंतु जब उनकी भूतपूर्व सहायिका एलिज़ाबेता वोरोन्यास्काया ने के.जी.बी. द्वारा पूछताछ करने पर पांडुलिपि की एक प्रति के छिपाए जाने की जगह बता कर ख़ुद को फाँसी लगा ली, तब सोल्झेनीत्सिन ने उसे प्रकाशित करने का निर्णय कर लिया. गुलाग आर्किपेलागो का प्रथम खंड़ जो सन् 1973 में प्रकाशित हुआ था क़रीब 1800 पृष्ठों का है जिसमें सन् 1918 से सोवियत शासन द्वारा किए गए अत्याचारों का वर्णन है. यह सोल्झेनीत्सिन द्वारा किया गया प्रयत्न था एक ऐतिहासिक दस्तावेज निर्मित करने का जो सोवियत संघ के कारागारों और लेबर कैम्प्स की सत्यता को उजागर करता है.
फरवरी 1974 में के.जी.बी. ने सोल्झेनीत्सिन को गिरफ़्तार करके लेफ़ोर्तोवो जेल भेज दिया. अमानुष रूप से उनसे पूछताछ की गई. अगले दिन उन्हें सूचना दी गई कि उन्हें सोवियत नागरिकत्व से वंचित किया जाता है और उन्हें पश्चिम जर्मनी निष्कासित कर दिया गया. बाद में वे ज्यूरिच में एक मकान किराए पर लेकर रहने लगे, कुछ समय बाद उनकी पत्नी एवं तीनों पुत्र भी वहाँ आ गए. गुलाग आर्किपेलागो के शेष भाग अगले वर्ष पैरिस में प्रकाशित हुए.
पश्चिम में रहते हुए उन्होंने काफ़ी रचनाएँ प्रकाशित कीं. भग्नावशेषों के नीचे से, शाहबलूत और बछड़ा, तथा लेनिन ज्यूरिच में सन् 1975 में प्रकाशित हुईं. इसी वर्ष स्टेनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय ने उन्हें आमंत्रित किया और अमेरिका में रहने का प्रस्ताव भेजा. सन् 1976 में वे वेर्मोंत में रहने लगे, जहाँ अगले बीस वर्षों तक उन्हें रहना था. 80 के दशक में लाल चक्र की अगली कड़ियाँ अक्टूबर 1916, मार्च 1917 और अप्रैल 1917 प्रकाशित हुईं.
‘ग्लास्नोस्त’ एवम् सोवियत संघ से अमेरिका के रिश्तों के बेहतर हो जाने के परिणामस्वरूप सोल्झेनीत्सिन की रचनाएँ रूस में भी प्रकाशित की गईं. इस बदले हुए राजनैतिक वातावरण का परिणाम यह हुआ कि सन् 1990 में उनको सोवियत संघ की नागरिकता वापस लौटा दी गई और सन् 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद सन् 1995 में सोल्झेनीत्सिन वापस स्वदेश लौटे. उनके सम्मान में रूस ने सन् 1997 में सोल्झेनीत्सिन पुरस्कार की स्थापना की.
वापस लौटने पर सोल्झेनीत्सिन मॉस्को में बस गए. वे पश्चिमी भौतिकवाद एवम् रूसी अधिकार तंत्र तथा धर्मनिरपेक्षीकरण की आलोचना करते रहे. सोल्झेनीत्सिन की दृष्टि में पश्चिमी लोकतांत्रिक प्रणाली का अर्थ था आध्यात्मिक खोखलापन जिसमें  लोकतांत्रिक नियंत्रण के छद्म रूप में सामान्यता विजयी होती है. जब वे रूस की बात करते हैं तो कहते हैं पश्चिमी अनुभव की अपेक्षा हमने कहीं अधिक उन्नत आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की है. जीवन के क्लिष्ट एवम् अत्यधिक आकर्षण ने अधिक सशक्त, अधिक गहन और अधिक दिलचस्प व्यक्तित्वों को जन्म दिया है, उनके मुक़ाबले में जो एक स्टैण्डर्ड पश्चिमी ख़ुशहाली ने पैदा किए हैं (हार्वार्ड, 1978).

प्राचीन रूसी आदर्शों के दर्शन उनकी कहानी मात्र्योना के घर में होते हैं. लेखक एक महिला से मिलता है जिसका जीवन निराशाओं से परिपूर्ण था, मगर जो औरों की मदद करती रहती है. 

वर्तमान रूस में सोल्झेनीत्सिन को शीघ्र ही प्रतिक्रियावादी यूरोपियन का नाम दे दिया गया. उनका मूल मंत्र यह था कि मुक्ति का एक ही उपाय है, और वह यह कि भौतिकवादी विचार प्रणाली को त्याग कर पावन रूस के आदर्श मूल्यों को अपनाया जाए.
स्वदेश वापस आने के पश्चात् सोल्झेनीत्सिन ने कई रचनाएँ प्रकाशित कीं. मगर अब पश्चिम के लिए उनके विचार इतने दिलचस्प नहीं रहे. रूस का पुनर्निर्माण (1990)को छोड़कर किसी और रचना ने पश्चिमी जगत का ध्यान अपनी ओर आकर्षित नहीं किया. अन्य रचनाओं में जो इस कालखंड़ में प्रकाशित हुईं प्रमुख है: रूस का पतन (1998). रूस के व्यापारिक समुदायों और सरकार पर यह एक प्रहार है.
उनके तीनों पुत्र अमेरिकी नागरिक हैं. येर्मोलाइ सोल्झेनीत्सिन एक लेखक हैं और उन्होंने अपने पिता की कुछ रचनाओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है, स्तेपान सोल्झेनीत्सिन न्यूयॉर्क में अर्बन-प्लानर हैं, और इग्नात सोल्झेनीत्सिन फिलाडेल्फिया के चैम्बर ऑर्केस्ट्रा में संगीत निर्देशक हैं.

सोल्झेनीत्सिन एक ऐसे व्यक्ति थे जो जहाँ भी रहे वहाँ के होकर नहीं रह सके. जो भी, जहाँ भी उन्हें अच्छा नहीं लगता उसकी उन्होंने निन्दा की. शायद जहाँ नहीं रहते थे, उस जगह के प्रति उन्हें आकर्षण का अनुभव होता था. पश्चिम में वे जब कम्युनिस्ट आक्रमण के ख़तरे की और पश्चिम के कमज़ोर पड़ते हुए नैतिक मूल्यों के बारे में चेतावनी देते थे तो पुराणपंथियों द्वारा उसकी सराहना की जाती, मगर प्रगतिवादी और धर्मनिरपेक्षतावादी उनकी रूसी देशभक्ति तथा रूसी रूढ़िवादी धर्म को प्रधानता देने पर उनकी आलोचना करते.
जीवन के अंतिम सोपान में उनके विचार उनकी रचनाओं रूस का पुनर्निर्माण (1990) तथा रूस का पतन (1998) में दृष्टिगोचर होते हैं. उन्होंने रूसी ‘लोकतंत्र’ की अल्पतंत्रीय ज़्यादतियों की आलोचना की, सोवियत कम्युनिज़्म के प्रति भावुकता का विरोध किया. उन्होंने संयत एवम् स्व-आलोचक राष्ट्रीयता की तरफ़दारी की, बजाय चरम राष्ट्रीयता के. स्वतंत्र रूस के लिए स्थानीय स्व-शासन की आवश्यकता पर बल दिया और 250 लाख रूसियों के बारे में चिंता जताई जो भूतपूर्व सोवियत संघ के ‘निकटस्थ विदेश’ में रह रहे थे. रूस के नैतिक मूल्यों के पतन की उन्होंने निन्दा की मगर रूस को पुनर्जीवित करने के लिए राष्ट्रपति व्लादीमिर पूतिन की उन्होंने काफ़ी सराहना की. 



अलेक्सान्द्र सोल्झेनीत्सिन की रचनाओं का 30 खण्ड़ों में प्रकाशन शीघ्र ही पूरा होने वाला है. पहले तीन खण्डों का विमोचन हाल ही में मॉस्को में किया गया. 5 जून 2007 को तत्कालीन राष्ट्रपति व्लादीमिर पूतिन ने सोल्झेनीत्सिन को उनके मानवतावादी कार्यों के लिये रूस का राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया. पूतिन स्वयम् सोल्झेनीत्सिन से मिलने उनके घर गए थे.
3         अगस्त 2008 को हृदयाघात से अलेक्सान्द्र सोल्झेनीत्सिन की मृत्यु हो गई.