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गुरुवार, 25 मार्च 2010

मेरी कहानी-2

...मगर एक दिन उसकी कंपनी में एक नया प्रोग्रामर आया. जवान, देखने में ठीक ठाक, ज्ञान की कमी और शेख़ियों की भरमार. शाहरुख ख़ान जैसे बाल, सलमान जैसी अदाएँ, आमिर जैसी अकड़! आते ही अपनी ज़िन्दादिली से सब पर छा गया. दिन भर हँसता-हँसाता रहा, ठहाके लगाता रहा, हमारे नायक को (चलिए, उसका नाम रख देते हैं, नन्हे मियाँ!) बड़ी उलझन हुई! देखने में तो यह बढ़िया है, आत्मविश्वास से भरपूर, मगर काम कब करेगा?!
शाम को जब डाइरेक्टर ने जानना चाहा तो उसने डाइरेक्टर को भी इस क़दर इम्प्रेस किया कि वे काम के बारे में पूछना ही भूल गए.
नन्हे मियाँ ने हिम्मत बटोरी और बोले, " आप बहुत अच्छे हैं, मगर ज़रा सा भी काम न करते हुए भी आपने 'सर' को कैसे पटाया? 'हीरो' बोला, "यही तो जीने का गुर है, प्यारे! तुम्हारे पास कुछ भी न हो तो भी दिखाओ कि तुम करोड़पति हो. तुम बड़े नासमझ लगते हो, मैं तुम्हें सिखाऊँगा कि ज़िन्दगी कैसे जीनी चाहिए. रेडी?!"
नन्हे मियाँ के मुँह से बोल ही नहीं फूटा, शरमा कर उन्होंने बस सिर हिला दिया.....

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

मेरी कहानी

चलिए, सब मिलकर एक कहानी का आरंभ करें. मैं पाँच वाक्य लिख रहा हूँ, आगे क्या लिखूँ, यह मुझे आप बताएँ:

एक बड़े शहर में एक छोटा आदमी रहता था. छोटा उम्र में नहीं, अपने विचारों के कारण उसने अपने आप को छोटा बना लिया था. सबसे डरता रहता था, आत्मविश्वास की बेहद कमी थी, पैसा भी बस इतना ही कि गुज़ारा हो जाए. एक आइटी कंपनी में काम करता, दिन भर कम्प्यूटर के सामने बैठा रहता, रात देर से घर आकर खाना खाकर सो जाता. शादी हुई नहीं थी, डर लगता थी उसे किसी के साथ रहने में. सभी लोग उसका मज़ाक उड़ाते, मगर वह ध्यान ही नहीं देता, अपने आप में मगन रहता.
मगर एक दिन....
(आगे क्या लिखूँ?)

गुरुवार, 11 मार्च 2010

बहुत सालों बाद कुछ फुर्सत हुई है वापस लौटने की. न जाने कितना कुछ बदल गया होगा, कितने नए ब्लॉगर शामिल हो गए होंगे!
जानना चाहते हैं कि साहित्य के क्षेत्र में क्या हो रहा है, ख़ास कर रूसी साहित्य के क्षेत्र में.
यदि कोई रूसी साहित्य का विद्यार्थी कुछ कहना चाहे तो उसका स्वागत है!