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शनिवार, 28 दिसंबर 2019

Sobachii Kholad


कड़ाके की ठण्ड
लेखक: ईल्या इल्फ़, यिव्गेनी पित्रोव
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
स्केटिंग रिंक्स बन्द हैं. बच्चों को घूमने के लिए नहीं छोड़ा जा रहा है, और वे घर में बैठे-बैठे उकता रहे हैं. घुड़सवारी प्रतियोगिताएँ रोक दी गई हैं. तथाकथित “कुत्ती-ठण्ड” आ गई है.
मॉस्को में कुछ थर्मामीटर -340 दिखा रहे हैं, कुछ, न जाने क्यों, -310 , और कुछ ऐसे भी अजीब थर्मामीटर हैं, जो – 370 भी दिखा रहे हैं. और ऐसा इसलिए नहीं हो रहा है क्योंकि कुछ थर्मामीटर सेल्सियस और कुछ रियूमर में तापमान दिखाते हैं, और इसलिए भी नहीं, कि अस्तोझेन्का में अर्बात के मुकाबले ज़्यादा ठण्ड है, और राज़्गुल्याय में गोर्की स्ट्रीट के मुकाबले ज़्यादा कड़ी बर्फ है. नहीं, कारण कुछ और ही हैं. आप जानते ही हैं, कि इन नाज़ुक उपकरणों की उत्पाद गुणवत्ता हमेशा ऊँचे दर्जे की नहीं होती. संक्षेप में, जब तक संबंधित व्यवसाय संगठन, इस बात से हैरान होकर, कि बर्फ़बारी के कारण लोगों को अप्रत्याशित रूप से उसकी ख़ामियों का पता चल गया है, अपने उत्पादन में सुधार लाने की कोशिश नहीं करता, हम एक औसत आँकड़ा ले लेते हैं, -330.. ये बिल्कुल विश्वसनीय है और “कुत्ती-ठण्ड” की अवधारणा की सटीक अंकगणितीय अभिव्यक्ति है.
आँखों तक गरम कपड़ों में लिपटे हुए मॉस्कोवासी अपने स्कार्फ़ और कॉलर्स के बीच से एक दूसरे से चिल्लाकर कह रहे हैं:
“ग़ज़ब हो गया, कितनी ठण्ड है!”
“इसमें ग़ज़ब की क्या बात है? मौसम विभाग कह रहा है कि बेरिन्ट सागर से आ रही ठण्डी हवाओं के घुस आने के कारण मौसम ठण्डा हो गया है.”           
“धन्यवाद. वो लोग इतनी बारीकी से कैसे जान लेते हैं. और मैं बेवकूफ़, ये सोच रहा था कि ये ठण्ड गर्म अरबी हवाओं के घुस आने के कारण है.”
“आप हँस रहे हैं, मगर कल तो ठण्ड और भी बढ़ने वाली है.”
“ऐसा नहीं हो सकता.”
“यकीन मानिए, ऐसा ही होने वाला है. अत्यंत विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है. बस, किसी को बताना नहीं. समझ गए? हमारे यहाँ चक्रवात आने वाला है, और इसके पीछे-पीछे प्रतिचक्रवात. और इस प्रतिचक्रवात के पीछे फिर से चक्रवात, जो हमें अपनी चपेट में लेने वाला है. समझ रहे हैं? अभी तो कुछ भी नहीं है, अभी हम प्रतिचक्रवात के केन्द्र में हैं, मगर जब चक्रवात की पूँछ में पहुँचेंगे तब आप रोने लगेंगे. अप्रत्याशित बर्फबारी होगी. सिर्फ किसी से एक लब्ज़ भी न कहना.” 
“माफ़ कीजिए, वैसे ज़्यादा ठण्डा कौन होता है – चक्रवात या प्रतिचक्रवात?”
“बेशक, प्रतिचक्रवात.”
“मगर अभी-अभी आपने कहा कि चक्रवात की पूँछ में कोई अप्रत्याशित बर्फबारी होती है.”
“पूँछ वाले हिस्से में वाकई में बेहद ठण्ड होती है.”
“और प्रतिचक्रवात?”
“क्या प्रतिचक्रवात?”
“आपने ख़ुद ही कहा कि प्रतिचक्रवात ज़्यादा ठण्डा होता है.”
“और मैं कह रहा हूँ, कि ज़्यादा ठण्डा है. आपको कौन सी बात समझ में नहीं आ रही है? प्रतिचक्रवात के केन्द्र में ज़्यादा ठण्ड होती है, बनिस्बत चक्रवात की पूँछ के. लगता है, समझ में आ गया.”
“और फ़िलहाल हम कहाँ हैं?”
“प्रतिचक्रवात की पूँछ में. क्या आप देख नहीं रहे हैं?”
“इतनी ठण्ड क्यों है?”
“कहीं आपने ये तो नहीं सोच लिया कि प्रतिचक्रवात की पूँछ से याल्टा बंधा हुआ है? क्या आपके हिसाब से ऐसा है?”
आम तौर से देखा गया है कि भारी बर्फ़बारी के दौरान लोग बेवजह ही झूठ बोलने लगते हैं. बेहद ईमानदार और सत्यवादी लोग भी झूठ बोलते हैं, जिनके दिमाग़ में सामान्य मौसम में झूठ बोलने का ख़याल तक नहीं आता. और बर्फ़बारी जितनी भारी होती है, झूठ भी उतना ही भारी होता है. तो, मौजूदा ठण्डे मौसम में सरासर झूठ बोलने वाले इन्सान को ढूँढ़ना ज़रा भी मुश्किल नहीं है.
ऐसा आदमी किसी के यहाँ आता है, बड़ी देर तक अपने गरम कपड़े उतारता है; अपने मफ़लर के अलावा सफ़ेद लेडीज़ शॉल उतारता है, भारी-भरकम जूते खींचकर निकालता है और अख़बार में लिपटे साथ लाए हुए घरेलू जूते पहन लेता है और कमरे में घुसते हुए प्रसन्नता से चहकता है:
“बावन डिग्री. रियूमर के अनुसार.”
मेज़बान कहना चाहता है, कि “इतनी भारी बर्फबारी में तू क्यों लोगों के घरों में घुस रहा है? घर में ही बैठा रहता”, मगर इसके बदले वह अकस्मात् कहता है:
“क्या कह रहे हैं पावेल फ़िदरोविच, और ज़्यादा है. दिन में ही चौवन था, और अब तो और भी ज़्यादा ठण्डा है.”
तभी घंटी बजती है, और बाहर से एक नई आकृति प्रकट होती है. यह आकृति कॉरीडोर से ही ख़ुशी से चिल्लाती है:
“साठ, साठ! साँस लेने के लिए कुछ नहीं है, बिल्कुल कुछ भी नहीं.”
और तीनों ही अच्छी तरह जानते हैं, कि ज़रा भी साठ नहीं है और चौवन भी नहीं है, और बावन भी नहीं, और पैंतीस भी नहीं, बल्कि तैंतीस है, और वो रियूमर पर नहीं, बल्कि सेल्सियस स्केल पर, मगर अतिशयोक्ति से बचना असंभव था. उनकी इस छोटी-सी कमज़ोरी के लिए उन्हें माफ़ करेंगे. बोलने दो झूठ अपनी सेहत के लिए. हो सकता है, कि उन्हें ऐसा करने से कुछ गरमाहट महसूस होती हो.
जब वे बातें कर रहे होते हैं, तभी खिड़कियों से पट्टी गिर जाती है, क्योंकि वह पट्टी उतनी नहीं है, जितनी सादी मिट्टी है, जबकि माल की गुणवत्ता की सूची में इसकी गुणवत्ता उच्चतम दिखाई गई है. बर्फ-इंस्पेक्टर सब देखता है. ये भी देखता है, कि दुकानों में ख़ूबसूरत रंगीन रूई भी नहीं है, जिसकी ओर देखना अच्छा लगता है, जब वह खिड़कियों की फ्रेम्स के बीच बैठी क्वार्टर की गर्माहट की हिफ़ाज़त करती है.             
मगर बातें करने वालों का इस ओर ध्यान नहीं जाता. अलग-अलग किस्से सुनाए जा रहे हैं ठण्ड के और बर्फीले तूफ़ानों के बारे में, ठिठुरते लोगों की हिफ़ाज़त करती सुखद झपकी के बारे में, सेन्ट बर्नार्ड्स के बारे में जो गले के पट्टे पर रम की बैरल लटकाए, बर्फीले पहाड़ों में भटके हुए पर्वतारोहियों की तलाश करते हैं, हिम-युग को याद करते हैं, बर्फ़ में दब गए परिचितों को याद करते हैं (एक परिचित जैसे बर्फ के छेद में गिर गया था, बारह मिनट बर्फ़ के भीतर रहने के बाद रेंगकर बाहर आ गया था – सही-सलामत). और इसी तरह के कई किस्से.
मगर सबसे बढ़िया थी कहानी दद्दू के बारे में. दादाओं का स्वास्थ्य आम तौर से बढिया होता है. दादाओं के बारे में अक्सर दिलचस्प और वीरतापूर्ण किस्से सुनाए जाते हैं. (मिसाल के तौर पर, “मेरे दादा कृषि-दास थे”, जबकि असल में उनकी एक छोटी-सी किराने की दुकान थी). तो, भारी बर्फ़बारी के दिनों में दादा की आकृति विशाल रूप धारण कर लेती है.
हर घर में दादा की अपनी-अपनी कहानियाँ होती हैं.               
“ये, आप और हम स्केटिंग कर रहे हैं – कमज़ोर, लाड़ में पली पीढ़ी. मगर मेरे दादा जी, मुझे अभी भी उनकी याद है (यहाँ सुनाने वाला लाल हो जाता है, ज़ाहिर है ठण्ड की वजह से), सीधे सादे कृषि दास, और बेहद कड़ाके की ठण्ड में, पता है, चौसठ डिग्री में, जंगल जाते थे लकड़ियाँ तोड़ने, सिर्फ एक उजले जैकेट और टाई में. कैसे?! थे न बहादुर इन्सान?”
“दिलचस्प बात है. मेरे साथ भी ऐसा ही संयोग था. मेरे दादा जी बिल्कुल अपनी ही तरह के इन्सान थे. माइनस सत्तर डिग्री तापमान, हर ज़िंदा चीज़ अपने-अपने बिल में छुपी थी, मगर मेरा बूढ़ा सिर्फ धारियों वाली पतलून में जा रहा है, हाथ में कुल्हाड़ी लिए नदी में नहाने के लिए. अपने लिए एक छेद बनाता है, घुस कर नहाता है – और वापस घर लौटता है. फ़िर भी कहता है, कि गर्मी लग रही है, दम घुट रहा है.”
यहाँ दूसरा लाल हो जाता है, ज़ाहिर है चाय पीने के कारण.  
वार्तालाप कर रहे लोग कुछ देर तक सतर्कता से एक दूसरे की ओर देखते हैं और, ये निश्चित करके कि पौराणिक दादा जी के प्रति कोई विरोध नहीं हो रहा है, इस बारे में झूठ बोलना शुरू करते हैं कि कैसे उनके पुरखे उँगलियों से रूबल के सिक्के तोड़ देते थे, काँच खा जाते थे और जवान लड़कियों से शादी करते थे सोचो, किस उमर में? एक सौ बत्तीस साल की उमर में. बर्फ़बारी लोगों के कैसे-कैसे छुपे हुए गुणों को उजागर करती है!
अविश्वसनीय दादा चाहे जो करते हों, मगर तैंतीस डिग्री तापमान अच्छा नहीं लगता. अमुन्दसन ने कहा कि ठण्ड की आदत नहीं हो सकती. उसकी बात पर यकीन किया जा सकता है, बिना प्रमाणों की माँग किए. उसे ये बात अच्छी तरह मालूम है. तो, बर्फ, बर्फ. यकीन ही नहीं होता कि हमारे सुदूर उत्तर में ख़ुशनसीब, गर्माहट भरे स्थान हैं, जहाँ सम्माननीय मौसम विभाग के अनुसार शून्य से सिर्फ दस-पन्द्रह डिग्री नीचे तापमान है.
स्केटिंग रिंक्स बंद हैं, बच्चे घरों में बैठे हैं, मगर ज़िंदगी चल रही है – मेट्रो-रेल का काम पूरा हो रहा है, थियेटर्स भरे हैं ( शोछोड़ने की अपेक्षा ठण्ड में ठिठुरना बेहतर है), पुलिस वाले अपने दस्ताने नहीं उतारते, और, बेहद कड़ाके की ठण्ड में भी हवाई जहाज़ एक के बाद एक अपने गंतव्य की ओर उड़ रहे हैं.
(1935)         

मंगलवार, 19 नवंबर 2019

Love for Paris



पैरिस से प्यार
लेखक : सिर्गेइ नोसव
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास

धातु की छोटी-सी ट्रे में बेयरा एक सुरुचिपूर्ण फोल्डर में बिल लाया. चिल्लर और टिप का हिसाब करके बेर्ग ने फोल्डर में गोथिक ब्रिज की तस्वीर वाला हरा नोट रखा और एक मिनट में दूसरी बार घड़ी पर नज़र डाली. शायद, बेयरे ने सोचा, कि मेहमान जल्दी में है, मगर, यदि वह सचमुच ही जल्दी में होता, तो घण्टे भर तक कॉफ़ी न पीता होता. बेर्ग के चेहरे पर झुँझलाहट थी, हो सकता है, परेशानी भी हो, मगर बेसब्री ज़रा भी नहीं थी : उसे ख़ुद भी मालूम नहीं था, कि कहाँ और किसलिए जाएगा. बस, जाने का टाइम हो गया है – मुलाकात नहीं हो पाई. और ज़्यादा इंतज़ार करने में कोई तुक नहीं था.
इसी समय उसकी मेज़ के पास एक लाल बालों वाली मैडम आई – करीब बीस मिनट पहले ही बेर्ग उसे देख चुका था. उसे आकर्षित कर गया था उसके चेहरे का असाधारण भाव – जिसके कारण वह कैफ़े में उपस्थित अन्य लोगों से अलग प्रतीत हो रही थी – कुछ उल्लासपूर्ण-प्रसन्नता का, मानो कोई अत्यन्त उच्च कोटि का, प्रसन्नतापूर्ण नज़ारा देख रही हो; वह अकेली मेज़ के पीछे बैठी थी, इस तरह मुस्कुरा रही थी और लाल-वाइन से आधे भरे गिलास के किनारे पर बेमतलब ही उँगली घुमा रही थी. उसमें कोई ख़ास रूसी बात नज़र नहीं आ रही थी, मगर न जाने क्यों बेर्ग ने सोचा कि शायद वह रूसी है, और, उसके प्रति दिलचस्पी ख़त्म होने से वह मुड़ गया, जिससे उस ओर ज़्यादा न देखे और उसके बारे में न सोचे. अब “नमस्ते!” सुनकर बेर्ग कुछ तन गया, फ़ौरन ये महसूस करके, कि उस समय उसकी नज़रों ने मैडम को यूँ ही नहीं उलझाया था. बेर्ग को गुज़रे ज़माने से मुलाकातों का शौक नहीं था. कई बार उसने  कोरे पन्ने से ज़िन्दगी शुरू की थी, अपने आप को लम्बी, तफ़सीलवार याद से परेशान न करते हुए.    
“ऐसा ही सोचा था, कि पैरिस जाऊँगी और किसी से मुलाकात होगी. बैठ सकती हूँ?” वह उसकी मेज़ पे बैठ गई.
बेर्ग समझ नहीं पाया कि क्या कहना चाहिए, इसलिए उसने ऐसे कहा, जैसे यह महत्वपूर्ण था:
“मैं जाने ही वाला था.”
“बहुत अच्छे,” उसने खुलकर मुस्कुराते हुए कहा. “ कितने साल हो गए? दस, बारह?”
सुझाव दे रही थी.
हुम्...दस-बारह – ये तो एक युग होता है. दो युग. बेर्ग की समय-गणना के हिसाब से दस-बारह – पिछली से पिछली ज़िन्दगी होती है.
वह झूठ नहीं बोला : “तुम ज़रा भी नहीं बदलीं” – उसने अपने आपको संयत किया. मगर, यदि ऐसा कह देता, तो वह यकीन कर लेती. वह देख रहा था, कि उसे मालूम है, कि वह जवान दिखती है – अपनी उम्र से कम. और देख रहा था, कि उसे मालूम है, कि उसे याद न रखना असंभव है – चाहे कितना ही पहले और चाहे किसी की भी ज़िंदगी में वह न झाँकी हो.
मगर वह, ज़ाहिर है, नहीं जानती थी, और अगर जानती, तो भूल गई थी, बेर्ग की ख़ासियत को, जिसके कारण उसे कई असुविधाओं का सामना करना पड़ता था, - उसकी, जैसा वह मानता था, चेहरों को याद न रख पाने की क्षमता को. बेर्ग के कलाकार-दोस्त एक बार देखे हुए चेहरे को जीवन भर याद रख सकते थे, मगर उसके पास एक अन्य व्यावसायिक योग्यता थी (अफ़सोस, जिसने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में उसे कोई प्राथमिकता नहीं दी थी) – वह अपने दिमाग़ में पन्नों के नंबर, तारीखें, फॉर्मूले, उद्धरण सुरक्षित रख सकता था. अपने पिछले साल के लेख को वह शब्दशः दुहरा सकता था, मगर लोगों के नाम उनसे परिचय के फ़ौरन बाद ही भूल जाता था, ज़्यादा सही कहें, तो वह उन्हें याद रखने का कष्ट नहीं उठाता था. इसे आसपास के लोगों के प्रति लापरवाही कहा जा सकता था, मगर दिमाग़ की ख़ासियत भी कहा जा सकता था. उसका दिमाग़ ऐसा ही है. ग्रंथ-सूची सूचकांकों के नामों को वह आसानी से और लम्बे समय तक याद रख सकता था.
“पैरिस में एक बात बुरी है, कहीं भी इन्सान की तरह धूम्रपान नहीं कर सकतो हो. वर्ना, वैसे अच्छा है. क्या तुम यहाँ रहते हो?”            
वह दमक रही है, और आँखों में चमक है. कलाकार-महाशयों, सुखी व्यक्ति की तस्वीर बनाओ.
“मतलब, पूरी तरह नहीं,” बेर्ग ने जवाब दिया.
अपने अनुभव से वह जानता था, कि अगर नाम याद करने लगो, तो बाकी सब भी याद आ जाएगा.
“सुनो,” उसने कहा, “मैंने तुम्हें कहीं सचमुच में तो डिस्टर्ब नहीं ना किया?”
और उसे याद आ गया – नाम तो नहीं, बल्कि ये, कि उसका कोई नाम तो था – मतलब, था और है – छम्मकछल्लो जैसा, घिसापिटा नहीं. जैसे गेर्त्रूदी या फिर लुसेरिया.  
चलो, कुछ खाएँगे,” अचानक उसके रू-बरू बैठी नव-परिचिता ने सुझाव दिया, “खाएँगे और पिएँगे. यहाँ अविश्वसनीय किस्म के ऑयस्टर्स पेश किए जाते हैं. या फिर – क्या तुम्हें स्नैल्स चाहिए? बिल मैं दूँगी. बिना किसी हिचकिचाहट के, प्लीज़. मेरे पास ढेर सारे पैसे हैं, और मुझे उन्हें पैरिस में खर्च करना ही है.”
आदाब-अर्ज़ है, आ टपके – और वह उसके लिए पैसे क्यों दे? बेर्ग ने मेहमाननवाज़ी से साफ़ इनकार कर दिया.
नहीं, तुम्हें कुछ न कुछ पीना ही पड़ेगा. कोई बढ़िया किस्म की कोन्याक...”
“मैं पीता नहीं हूँ.”
“ऐसे कैसे पीते नहीं हो?”
“बिल्कुल नहीं पीता.”
“ये हुई ना बात. और काफ़ी अर्से से नहीं पीते हो?”
“करीब साल भर से.”
“वाह. कौन सोच सकता था. याद है, झरने में तैरा करते थे?”
“तालाब में”
उसने दृढ़ता से कहा:
“झरने में.”                                
उसे याद था, कि झरने में नहीं, हाँलाकि अच्छी तरह याद नहीं था, कि किसके साथ और किन परिस्थितियों में, और किस हद तक सामूहिक रूप से, अगर कहीं तैरता भी था तो, मगर झरने में तो कदापि नहीं, हालाँकि क्या फ़र्क पड़ता है, झरने में ही सही. मगर था तो तालाब ही.
उसने कहा:
तुम मेरी तरफ़ मत देखो, दिल चाहता हो तो पियो और कुछ खा लो.
ये तैरना, चाहे कहीं भी क्यों न हो, और छतों पर चलना – किसी विशेष घटना की याद नहीं दिलाते थे – जो भूल चुके हो उसमें से मुश्किल से ही कुछ याद आता है. छोटे थे, सिरफ़िरे.
“अगर तुम्हें परेशानी न हो, तो मैं एक पैग ”शैटो गिस्कोर” का लूँगी.”
उसने “शैटो गिस्कोर” का एक पैग ऑर्डर किया, पूरी तरह शुद्ध अंग्रेज़ी में नहीं, और जब बेर्ग ने दृढ़ता से (जितना संभव था) कहा, कि वह कॉफ़ी भी नहीं पियेगा, तो फिर से अंग्रेज़ी में, बेयरे की उपस्थिति में, बेर्ग से बोली कि ये सही नहीं है. फिर बोली: “ एक मिनट”, - टॉयलेट की ओर चली गई.
बेर्ग का एक अपना तरीका था, जिसे उसने ख़ुद ही सोचा था. मन ही मन वर्णाक्षरों को दुहराना और हर अक्षर पे नाम याद करना. वे, असल में बहुत नहीं हैं. नाम. (और अक्षर तो और भी कम हैं). अक्सर ये तरीका काम कर जाता है.
आ. - आन्ना, एलेना, अलीना, अरीना, आग्लाया.... बे. – ब्रोन्या, बेला...वे. – वाल्या, वा-या, वीका, और वसिलीसा... गे. – गलीना, गेन्रिएत्ता...
ई. – पर मिल गया:
ईरा, इंगा, इलोना – तभी दिमाग़ में सरसराहट हुई : इन्ना!
इन्ना. इनेस्सा.
कंधों से बोझ उतर गया.
इस नाम ने एक धुँधली सी आकृति ग्रहण कर ली. संदर्भ के विवरण भी याद आने लगे – दो-एक पात्रों के नाम उन ऐच्छिक ग्रुप्स में से एक ग्रुप के, जिनसे बेर्ग के परिचितों के मुख्य गुट का कभी-कभार संबंध हो जाता था – वो ग्रुप, जिसके केंद्र में बेर्ग स्वयम् की कल्पना करता था.
बेर्ग को कभी-कभी अचरज होता था, कि कुछ लोग उसके साथ परिचय को महत्व देते थे. इसमें उसे अपने लिए कोई ख़ुशामद की बात नहीं दिखाई देती थी. अगर उसे समय रहते ही भूल जाते, तो ज़्यादा अच्छा होता.
इनेस्सा वापस आई.
“संक्षेप में,” इनेस्सा ने कहा, “ यूरच्का के साथ सब ख़त्म हो गया है. तुम्हें, शायद, यूरच्का की याद नहीं है?”
किस-किस को, और ख़ास यूरच्का को याद रखना उसकी मजबूरी नहीं है.             
मैंने बाद में उससे शादी कर ली थी. मगर अब - सब ख़त्म. चार साल गुज़ारे एक साथ.”
बेर्ग यूरच्का के बारे में सोचना नहीं चाहता था, मगर दिमाग़ में यूरच्का की भूमिका में एक पात्र टिमटिमाने लगा. एकदम बदरंग व्यक्तित्व. बेर्ग को अचरज भी हुआ कि ऐसा बदरंग पात्र उसकी याददाश्त में रहने के काबिल है.
“बढ़िया,” इनेस्सा ने होठों से जाम हटाकर कहा, “कोई ख़ुशी सी थी, बस, वहाँ खिड़की के पास हेमिंग्वे बैठा था, उपन्यास लिख रहा था, समझ रहे हो?”
“यहाँ काफ़ी लोग आ चुके हैं,” बेर्ग ने कहा.
“मैं हर चीज़ माफ़ कर सकती थी, उसकी सभी प्रेमिकाओं को, सारी बेवफ़ाईयों को, मगर पैरिस, पैरिस के लिए मैं उसे कभी माफ़ नहीं करूँगी!...तीन साल तक वह मुझे धोखा देता रहा. पैरिस जाता, जैसे बिज़नेस ट्रिप पर जा रहा हो, कभी-कभी बिज़नेस के लिए भी जाता था, मगर हमेशा नहीं!...सबसे ज़्यादा डर उसे, पता है, किस बात का था? कि मैं पैरिस में न आ धमकूँ. और उसका डर सही था. यहाँ हम दोनों के काफ़ी परिचित हैं, फ़ौरन सारा भेद खुल जाता. और तुम ख़ुद भी उसे जानते हो.”
“मेरा ख़याल है, कि नहीं जानता,” बेर्ग ने कहा.
“चलो, मैं फ्लैट से बाहर नहीं निकलती, मैं पूरी दुनिया घूम चुकी हूँ! मैं हाँगकाँग जा चुकी हूँ. इजिप्ट गई थी. न्यूज़ीलैण्ड भी गई थी. यूरोप में ऐसी कौन सी जगह है, जहाँ नहीं गई हूँ. पूरा इटली घूम चुकी हूँ – मिलान, वेनिस. फ्लोरेन्स, रोम...मगर पैरिस कभी नहीं आई थी. बस, अभी आई हूँ. यकीन नहीं होता, कि मैं पहली बार पैरिस आई हूँ. ये उसने, उसने मुझे हमेशा पैरिस आने से रोका. उसीने पैरिस के बारे में गन्दी-गन्दी बातें कहीं. क्या तुम यकीन कर सकते हो कि मैंने उन पर विश्वास कर लिया?”  
“उस पर?” बेर्ग ने सवाल दुहराया.
“ उस पर, कि पैरिस – गन्दा, उकताहटभरा छोटा-सा शहर है?! नहीं कर सकते?”
“क्या मैं यकीन कर सकता हूँ, कि तुमने यकीन कर लिया, कि पैरिस गन्दा, उकताहटभरा छोटा सा शहर है?” बेर्ग ने सवाल को व्यवस्थित किया, ये निश्चित न कर पाने के कारण कि उससे इस सवाल पर कैसे जवाब की अपेक्षा की जा रही है.
“मैं ख़ुद भी विश्वास नहीं कर सकती, मगर मैंने विश्वास कर लिया!”
बेर्ग को ये दिलचस्प लग रहा था. उसे कहीं जाने की जल्दी भी नहीं थी.
“मुझे तो बचपन से मालूम था, कि पैरिस तो पैरिस है. कि पैरिस – हमेशा ओ हो हो! है. मगर तब – विश्वास कर लिया. सुअर है मेरा यूरच्का – मैं तुमसे कहती हूँ. तुम्हें वेरोनिका की याद है? अरे, वही, बड़ी-बड़ी आँखों वाली?...”
याददाश्त पर ज़ोर दिया.
“अरे, कैसे याद नहीं है, उसका गलानोगव के साथ...”
“ऐ ख़ुदा, मुझे तो गलवानोगव की भी याद नहीं है!” बेर्ग चीख़ा.    
“गलवानोगव नहीं, गलानोगव. ख़ैर, ये ख़ास बात नहीं है. मतलब, जब मेरा यूरच्का उसके पास से पहली बार आया, वह निचोड़े हुए नींबू की तरह था. उसने मुझसे कहा, कि पैरिस से ज़्यादा बुरी कोई और जगह नहीं है. कि घण्टे और मिनट गिनता रहा, कि कब पैरिस से वापस जाएगा. मैंने कहा, ऐसा कैसे, वो तो पैरिस है!...मगर वह बोला : कैसा पैरिस? छेद है, न कि पैरिस. अरे, टॉवर दिखाई देता है, तो वह सिर्फ तस्वीरों में टॉवर है, वर्ना वैसे – जो चाहो, समझो, मगर टॉवर नहीं है...मैंने पूछा : और नोत्र दाम?... और उसने कहा, तूने बचपन में ह्यूगो को खूब पढ़ लिया है, तुझे तो नोत्र दाम को देखना भी नहीं चाहिए. और उसके पास तस्वीरें भी कैसी भद्दी निकली थीं. तस्वीरों में सभी लोग कैसे बदसूरत थे...मैंने पूछा, क्या तूने जानबूझकर सिर्फ आवारा लोगों की तस्वीरें खींची हैं? कहाँ के आवारा, वह बोला, ये ही तो पैरिसवाले हैं!...और सड़कों पर कचरा, और इन्सान की शक्ल के डस्ट-बिन के बजाय, हैंगरों पर पॉलिथिन की थैलियाँ...
“ये आतंकवाद के कारण,” बेर्ग उठ गया.
मगर क्या तब मैं यह जानती थी? देखती हूँ ; हैंगर पर, या क्या कहते हैं...और थैली में मुड़े-तुड़े बियर के डिब्बे...एक और थैली. और एक थैली. और वह जान बूझ कर ये तस्वीरें ले रहा था, जिससे कि मुझ पर प्रभाव डाल सके. जिससे मुझे पैरिस से नफ़रत हो जाए. और घर भी किराए पर बेहद बुरे लेता था. और उसकी तस्वीरों में पैरिस एक गलीज़ शहर प्रतीत होता था. मुझे अचरज हुआ. उसने मुझसे कहा, “तुम्हें पैरिस बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा. पिछले कुछ सालों में ये मेरे लिए सबसे बड़ी निराशाजनक बात रही है”. ज़ाहिर है, मैंने यकीन कर लिया! और मैं उस पर यकीन कैसे न करती? मैं सोचती थी, कि वह वहाँ बिज़नेस के सिलसिले में जाता है, डाक्टरी उपकरण ख़रीदने...”
“दिलचस्प है,” बेर्ग ने कहा.
सैन की तरफ़, बोला, देखने से भी हँसी आती है, उसे पार कर सकते हो...और बोला, कितना फूहड़पन है : सैन – और स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी बाहर झाँक रहा है!?. तुम हँसोगे. ये उसने मुझसे इसलिए कहा, कि मैं हँसूँगी.
उसने कहा, कि उन्होंने अपनी आज़ादी से, समानता से और भाई चारे से सबको अपना लिया है. बिल्कुल बनावटी हैं.”
इनेस्सा ने मुँह बनाया. उसके चेहरे पर कई, विविध प्रकार के भाव आ रहे थे. इनेस्सा को मुँह बनाना अच्छा लग रहा था – कभी वह आँख़ें गोल-गोल घुमाती, कभी नाक सिकोड़ती, कभी मुँह के एक किनारे से मुस्कुराती. बेर्ग ने सोचा कि उसकी फ़ोटो खींचना, शायद, मुश्किल है – उसके भाव पकड़ना असंभव है.
मुझे ऑफ़िस में भी पूछते थे : तेरे वाले को पैरिस कैसा लगा? मैं ईमानदारी से जवाब देती : मेरे वाले को अच्छा नहीं लगा. मगर मुझ पर यकीन नहीं करते : ये क्या, पैरिस में अच्छा नहीं लगा, क्या कहती है?...मैं ख़ुद भी अपना एक किस्सा गढ़ लेती – उस बारे में कि हम सब कल्पना के वश में रहते हैं.. “पैरिस, पैरिस!” मगर असल में – अच्छा, पैरिस है, तो क्या? मैं उस पर यकीन करती थी, यूरच्का पर. कल्पना कर सकते हो, कैसा अधिकार था उसका मुझ पर!...ओह, बेवकूफ़ थी, ओह बेवकूफ़!...वह इस पैरिस के लिए ऐसे निकलता, मानो किसी लेबर-कैम्प में जा रहा हो. कहता, इससे बेहतर होता कलिमा जाना, वहाँ ज़्यादा अच्छा है. और मौसम बेहतर है.”
“मौसम? कलिमा में?”
“हाँ, वह पैरिस के मौसम को भी गालियाँ देता. कहता, कि पैरिस में सब ठण्डक के मारे जम जाते हैं. कि सब लोग घर गर्माने पर बचत करते हैं. और आम तौर से इस बारे में विचार नहीं कंरते, क्योंकि ऐसी आम धारणा है, कि – पैरिस गरम शहर है, वहाँ बर्फ नहीं गिरती, और, क्योंकि सभी इस धारणा के गुलाम हैं, इसलिए यहाँ घरों को गरमाया नहीं जाता. इसलिए पैरिस के घरों में हमेशा ठण्डक रहती है, गर्मियों में भी. अपना गोगल गया था पैरिस “ बेजान रूहें” लिखने के लिए, मगर ठण्ड़क के मारे इतना अकड़ गया, कि इस पैरिस से इटली भाग गया . मगर गोगल के ज़माने में तो कभी-कभार फ़ायरप्लेस गर्माए जाते थे, मगर अब तो वे भी नहीं हैं. और वाकई में, जब वह पैरिस जाता, तो मैं उसकी, यूरच्का की, बुरी सेहत के बारे में सोच-सोचकर परेशान हो जाती. कहीं उसे ज़ुकाम न हो जाए. और जब पिछले साल मैं उसके साथ आने की तैयारी कर रही थी, जिससे कि उसे पैरिस में उदास न लगे, तो उसने मुझे साथ नहीं आने दिया, कहा, फ़रमाइए, बगैर किसी परेशानी के. तुम बार्सेलोना चली जाओ. वो है शहर!”                
“बार्सेलोना अच्छा शहर है,” बेर्ग ने सहमति दर्शाई.
“और क्या पैरिस बुरा है? उसने कहा था, कि जब मैं पैरिस देखूँगी, तो मैं सपने देखना भूल जाऊँगी, मेरे भीतर की हर आशा मैली हो जाएगी, क्योंकि असली पैरिस – इन्सानियत के ख़्वाब का मज़ाक है. और मैंने उसका यकीन कर लिया! ख़ुद को भी अब अचरज होता है, कि मैं उस समय यकीन कैसे कर सकी?! बस – सुना, और कर लिया यकीन. क्योंकि उससे एक ख़याल की तरह प्यार करती थी. पैरिस...एलेन देलोन, रेनुआर, अर्तान्यान...”
“क्या तुमने किसी भी ऐसे इन्सान से बात नहीं की, जो पैरिस जा चुका हो?”
“बेशक, की थी. सिर्फ मैंने अपने दिमाग़ में ये भर लिया था, कि पैरिस एक कल्पना है और एक नरक है, क्योंकि यूरच्का पर यकीन करती थी, और कोई भी चीज़ मेरी राय नहीं बदल सकती थी...मुझसे कहते : आह, पैरिस!...और मैं कहती : ये आपके भीतर की घिसी पिटी चीज़ें बोल रही हैं. आप सिर्फ इस बात को स्वीकार करने से डरते हो, कि पैरिस कल्पना है और नरक है, अब करोगे आह, आह. आप तो बेमतलब उपकरणों के साथ टूथब्रश ख़रीदते हैं, क्योंकि उन्हें टी.वी. पर आपको दिखाया जाता है, अपनी अकल से जीना तो भूल ही गए हैं. वो मोपासाँ पैरिस से भाग गया और वह सही था, क्योंकि ये टॉवर तो राक्षस  है, और एक सामान्य व्यक्ति को, अगर वह सचमुच में सामान्य है, तो उसकी ओर घृणा के बगैर देखना अवास्तविक है, मैंने ऐसा कहा, सिर्फ हर चीज़ की, मैंने कहा, आदत हो सकती है, वैसे आजकल सभी तारीफ़ कर रहे हैं, दिखावा कर रहे हैं, कि ये कोई ख़ास चीज़ है, मगर वह तो जैसा राक्षस था, वैसा ही आज भी है. ओ! मुझसे कोई बहस नहीं कर सकता था. मुझे अपने आप पर इतना यकीन था, कि दूसरों को भी उनकी राय बदलने पर मजबूर कर देती थी, उन्हें, जो पैरिस में रह चुके थे. ऐसी बदले की भावना थी मेरे मन में पैरिस के प्रति. मैं उससे इसलिए बदला ले रही थी, क्योंकि वह वैसा नहीं था, जैसा उसे होना चाहिए था. और सब उसकी वजह से, यूरच्का की वजह से.
इनेस्सा ने एक और पैग का ऑर्डर दिया, बेर्ग ने प्रयत्नपूर्वक सी-फूड़ से इनकार किया.
“और बाद में सारा भेद खुल गया, बड़े भद्दे तरीके से खुला, कहने का मन नहीं होता. और जब मैं समझ गई, कि इस तरह से वह वेरोनिका को मुझसे छुपा रहा था – ऐसे बेशरम झूठ का सहारा लेकर, तब, मुझे गहरा धक्का पहुँचा. मुझे वेरोनिका से क्या मतलब है! सोचो, वेरोनिका...क्या तुम्हें उसकी याद नहीं है? ठीक है, थूकती हूँ उस पर. मैं उसे वेरोनिका के लिए माफ़ कर देती, अगर ये झूठ न बोला होता. मैं उसे सारी लड़कियों के लिए माफ़ कर देती. मैं उसकी हर गलती माफ़ कर देती. मगर पैरिस के लिए नहीं!...मुझसे इतना बड़ा धोखा!...मुझसे!....उससे, जो बचपन से पैरिस की इतनी दीवानी हो!...”
“वैसे तुम बेहद भरोसेमन्द हो,” बेर्ग ने कहा.
“और मेरा यूरच्का जलकुक्कड़ भी है. उसके ऐसे-ऐसे डबल-स्टैण्डर्ड हैं. मैंने फ़ैसला किया, तुम जाओ, यूरच्का, कहीं दूर और मैं तुमसे विश्वासघात करूँगी. मैं पैरिस को अपना लूँगी. मैं तुझे ऐसा धोखा दूँगी, जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते! एक साथ पूरे पैरिस को!...ख़ुदा, मैं उसकी कितनी गुनहगार हूँ!...पैरिस की...कोई भी उसका इतना बड़ा गुनहगार नहीं होगा, जितनी मैं हूँ!...पैरिस – अजूबा है. और मैं – बेवकूफ़. बेवकूफ़ थी! मगर अब नहीं. यूरच्का को ही बेवकूफ़ बने रहने दो!...”
“और तुम्हें काफ़ी पहले समझ आ गई?” बेर्ग ने पूछा.
“दो हफ़्ते पहले. सात सितम्बर को, अगर तुम्हें दिलचस्पी हो तो. मैंने क्या सोचा? ये. अगर तू ऐसा है, तो मैं भी ऐसी ही हूँ. मैंने यूरच्का की कार बेच दी, वैसे तो ये हम दोनों की है, मगर न जाने क्यों वह उसे अपनी समझता था, फोर्ड मोंडिओ, करीब-करीब नई है, और मेरे पास पॉवर ऑफ अटोर्नी है, मैंने जल्दबाज़ी में काफ़ी छूट पर बेच दी.. और कुछ और भी. मैं तो क्वार्टर भी बेच देती, अगर समय होता. यूरच्का के लिए चिट्ठी छोड़ दी कि पुलिस में शिकायत न करे. ये मैंने उससे बदला लिया है. मैं पूरे पैसे पैरिस में उड़ा दूँगी. पूरे के पूरे! मैं चाहती हूँ, कि पैरिस मुझे माफ़ कर दे. मेरा मतलब पैरिस से – व्यापक अर्थ में है. सोच रहे हो, कि उसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है? वो कौन, मैं कौन? जाने दो, तो क्या? ख़ास बात ये, कि उसके सामने मेरे दिल में वो न रहे...समझ रहे हो?”
“वो – क्या?” बेर्ग ने पूछा.
“अरे, वो, मालूम नहीं, ख़ैर, अपराध की भावना, शायद...”
“हाँ,” कोई और बढ़िया शब्द न सूझने के कारण बेर्ग ने कहा.     
“जाने दो. और मैं यहाँ अपनी ख़ुशी से रह रही हूँ. पैरिस में जीवन का हर पल मेरे लिए सुरूर जैसा है. मैं सिर्फ तीन दिन से यहाँ हूँ, अभी मैंने कुछ भी नहीं देखा है. और उसे जितना चाहे मुझ पर मुकदमा करने दो, मैं थूकती हूँ...मैं ख़ुशनसीब इन्सान हूँ. मुझे प्यार हो गया है. पैरिस से प्यार हो गया है. जब मैं क्लिशी बुलेवार्ड पर चलती हूँ और मेरे सामने बाल्कनियों वाला ये कोने का घर आता है, सीधा-सादा घर बालकनियों वाला, तो मेरा रोने को जी चाहता है...या जब मैं होटल से वेंडोम स्क्वेयर पर निकलती हूँ, और स्तम्भ की ओर देखती हूँ, तो मैं उन सब के बारे में सोचती हूँ – नेपोलियन के बारे में, और कोर्बे के बारे में, और इस बदनसीब राजकुमारी डायना के बारे में, वह भी ठीक इसी तरह होटल से निकली थी...मेरा दिल सीने से उछलकर बाहर आने लगता है...”
“रुको, तुम कौन से होटल में रुकी हो?”
“रिट्ज़. मैं रिट्ज़ होटल में ठहरी हूँ.”
“रुको. तुम्हें पता है, कि रिट्ज़ हॉटल में कमरे का किराया कितना है?”
“कैसे नहीं मालूम होगा, अगर मैं वहाँ ठहरी हूँ?”
“अच्छा, माफ़ करना,” बेर्ग बुदबुदाया.
“मेरा कमरा बहुत ख़ूबसूरत है, कम्बन स्ट्रीट दिखाई देती है. वहाँ ज़्यादा शानदार कमरे भी हैं. मैं ज़्यादा महँगा कमरा भी ले सकती थी. पैसों का कोई सवाल नहीं है, बस, मैं इतनी बुर्झुआ नहीं हूँ...इतनी बुर्झुआ नहीं हूँ, कि संगमरमर के बाथटब के, महँगे फर्नीचर, शानदार क्वीन-साइज़ पलंग के पीछे पागल हो जाऊँ...इस क्वीन-साइज़ पलंग में तो मैं डूब ही गई, सही में. मुझे, अकेली को, क्यों चाहिए ये क्वीन-साइज़ पलंग?... मेरी नज़र में ये बेईमानी है. मुझे उसमें आराम महसूस नहीं होता. मुझे बोद्लेर पसन्द है, नासपीटे कवियों को मैं पसन्द करती हूँ. और यहाँ...मैं, हो सकता है, कहीं नज़दीक , मोंटमार्ट्रे के पास कहीं चली जाऊँ....और, मैं रात पुल के नीचे भी गुज़ार सकती हूँ. आख़िर, क्यों नहीं? ये पैरिस है. वैसे, क्या तुमने कभी असली जीन डुसो पी है? मेरे कमरे में जीन डुसो की बोतल है पंद्रह साल पुरानी. चलो, हम तुम मिलकर उसका काम क्यों न तमाम कर दें?”
बेर्ग ने एकटक इन्ना की ओर देखा, - क्या वह सचमुच भूल गई है, कि वह नहीं पीता, या ये कोई खेल है?
अनजान शराबियों से दोस्ती के ग्यारह महीनों में बेर्ग ने दो बार अपना आपा खोया था.
“चाहे जो हो जाए, मैं सारे पैसे पैरिस पर खर्च कर डालूँगी. समझ लो, कि जब तक मैं सारा पैसा पैरिस पर नहीं लुटाती, यहाँ से नहीं जाऊँगी. मैं नशे में डूब जाना चाहती हूँ, पैरिस में चाहती हूँ. मैं पैरिस चाहती हूँ. मेरे पास ढेर सारे पैसे हैं. तो, पैरिसवाले, चलें?”
चष्मा ठीक करते हुए, बेर्ग अब तक नहीं जान पाया था कि वह इन्ना को क्या जवाब देगा, उसने मुँह खोला – मगर सिर्फ शुरूआत करने के लिए – उम्मीद थी, कि आगे कुछ समझदारी के शब्द कहेगा, - मगर जवाब देने की नौबत नहीं आई : माशा, उलझे बाल लिए, हाँफ़ते हुए, दरवाज़े में प्रकट हुई.    
“क्या बात है!” बेर्ग ने कहा.
बेर्ग उठ गया.
माशा ने उसे देखा और दूसरी मेज़ों से लगभग टकराते हुए उसकी ओर लपकी.
मैंने घड़ी ठीक नहीं की थी!... वैसे, मॉस्को टाईम के हिसाब से मैं ठीक वक्त पर हूँ!...”
“दो घण्टों का फ़रक है,” बेर्ग ने ख़ास इन्ना के लिए समझाया.
इन्ना ने सिर हिलाया, यह दिखाते हुए मुस्कुराई कि वह समझ गई है.
बेर्ग उनका परिचय कराने लगा.
“माशा,” उसने इनेस्सा से कहा. “इन्ना,” उसने माशा से कहा, “कभी मैं और इनेस्सा स्लबोद्स्की के पास एक ही हांडी में पकाते थे.”
“कौन से स्लबोद्स्की के यहाँ आप इनेस्सा के साथ पकाते थे?” इन्ना ने इस तरह पूछा जैसे वह माशा हो (माशा को सवाल न पूछना आता था).
“स्लबोद्स्की के स्टूडियो में,” बेर्ग ने भौंहे कुछ उठाकर पूछा, “या नहीं?”
“लेशा, मेरा नाम नाद्या है,” असल में इन्ना ने नहीं, बल्कि नाद्या ने कहा, “तुम मुझे कोई और समझ बैठे.”
“लेशा?” माशा ने दुहराया.
बेर्ग ने नाद्या की आँखों में देखा, बावजूद इसके वह साफ़ महसूस कर रहा था, कि कैसे कुछ भी न समझ पाते हुए माशा कैसे उनके चेहरों पर नज़रों के तीर मार रही है, - और वैसे तुलना करने जैसा है क्या? - दोनों को ही एक-सा अचरज हो रहा है, नाद्या को और बेर्ग को, शायद इतना ही फ़र्क था, कि बेर्ग (ऐसा उसे लगा) सब कुछ भाँप गया था.
“मैं बरीस हूँ,” बेर्ग ने कहा.
मूक दृश्य कुछ ही समय चला, - ज़ोर से “ओह, गॉड! कहकर नादेझ्दा ने अपने माथे पर हाथ मार लिया और, जैसे इस आघात से छूटकर वह ज़ोर से, काफ़ी ज़ोर से ठहाके लगाने लगी. मगर ये ठहाके नहीं थे, ये हँसी थी, मरोड़ के साथ, रुक-रुक कर, जो बीच-बीच में टूट जाती थी, - चेहरे पर काजल पुत गया.
बेर्ग भी हँस रहा था, मगर बगैर आँसुओं के.
माशा भी हँसना चाहती थी, मगर नहीं हँस पाई, - वह कृत्रिमता से मुस्कुरा रही थी, जैसे भावी कैफ़ियत के बारे में सोचकर मुस्कुराते हैं.
“कोई बात नहीं, जाने दो,” नाद्या ने आख़िरकार कहा. “ क्या फ़र्क पड़ता है. बकवास. हमें मुलाकात का जश्न मनाना चाहिए. मेरे कमरे में जीन डुसो है...या नहीं!...वो बाद में. माशेन्का आप पहली बार पैरिस आई हैं? चलो, शुरू में कहीं चलते हैं. देखो, बो-या, कताकोम्ब जा सकते हैं. या, मिसाल के तौर पर, जॉर्ज पोम्पिदू सेंटर. और शाम को – मॉलिन रूझ. पता नहीं, वहाँ क्या टिकिट बुक करनी पड़ती है या नहीं...ग्राण्ड गिनोल, अगर चाहो तो...वहाँ जाना चाहिए – ग्राण्ड गिनोल!...”
“माफ़ करना,” बेर्ग ने कहा.
बेर्ग और माशा के कुछ और प्लान्स थे.
एक दूसरे से बिदा लेकर वे चले गए.

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शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

छह जून


छह जून

लेखक : सिर्गेइ नोसव
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
मुझसे कहा गया है, कि मैं इस जगह को भूल जाऊँ – कभी भी यहाँ न आऊँ.
मगर, मैं आ गया.
काफ़ी कुछ बदल गया है, बहुत कुछ पहचान नहीं पा रहा हूँ, मगर इससे ज़्यादा भी बदल सकता था और काफ़ी बृहत् – ग्रहीय! – पैमाने पर! – तब दरवाज़े की सिटकनी तोड़कर मुझे बाथरूम में घुसना पड़ता!...
उम्मीद है, कि मुझे दस हज़ारवीं बार ये समझाने की ज़रूरत नहीं है, कि मैं क्यों बरीस निकलायेविच  को गोली मारना चाहता था.
बस हो गया. खूब समझा चुका.   
जब से मुझे आज़ाद किया गया है, मैं एक भी बार मॉस्को एवेन्यू पर नहीं गया था.
मेट्रो-स्टेशन “टेक्नोलॉजिकल इन्स्टीट्यूट” – यहाँ मैं बाहर निकला, और पैर मुझे ख़ुद-बख़ुद आगे ले चले. सब कुछ बगल में ही है. फ़न्तान्का  तक (ये नदी है) धीमी चाल से छह मिनट. अबूखव्स्की ब्रिज. मैं और तमारा कोने वाली बिल्डिंग में नहीं, बल्कि बगल में रहते थे – मॉस्को एवेन्यू पर उसका नम्बर अठारह है. वाह : रेस्टॉरेन्ट “बिर्लोगा”! (बिर्लोगाशब्द का अर्थ है – माँद – अनु.).  पहले यहाँ माँद-वाँद नहीं होती थी. पहले यहाँ सुपर मार्केट था, उसमें तमारा सेल्स-गर्ल थी. मैं “बिर्लोगा” में मेन्यू पर नज़र डालने के लिए घुसा. ख़ास कर भालू का माँस परोसा जाता है. ठीक है. 
अगर ये “माँद” है, तो “माँद” के ऊपर वाली बिल्डिंग के कमरे को, जहाँ मैं तमारा के पास रहता था, “घोसला” कहना सही होगा.
अगर सब कुछ किसी और तरह से हुआ होता तो माँद के ऊपर वाले हमारे घोसले में आज म्यूज़ियम होता. छह जून वाला म्यूज़ियम. वैसे, मैंने म्यूज़ियम्स के बारे में सोचा नहीं था.
आँगन में आता हूँ, वहाँ लिफ्ट की सहायता से, जो मज़दूर को तीसरी मंज़िल तक की ऊँचाई तक ले गई है, चिनार के वृक्ष की क्रमश: छिलाई हो रही है. मज़दूर आरा-मशीन से एक-एक करके मोटी टहनियाँ काट रहा है, उनकी छिलाई कर रहा है. मैं इस वृक्ष का सम्मान करता था. वह ऊँचा था. वह अन्य वृक्षों की अपेक्षा जल्दी बढ़ता था, क्योंकि आँगन में उसे धूप नहीं मिलती थी. सन् ’96 और ’97 में इस चिनार के नीचे ज़ंग लगे झूलों में बैठकर सिगरेट पिया करता था ( बच्चों के प्ले-ग्राउण्ड में आज ठूँठ बिखरे पड़े हैं). यहाँ मेरी मुलाकात एमिल्यानिच से हुई. एक बार वह रेत के गढ़े के किनारे पर बैठा और, दवा की शीशी का ढक्कन खोलकर नागफ़नी का टिंचर गटक गया. मुझे एकान्त चाहिए था इसलिए मैं उठकर जाने लगा, मगर उसने मुझसे मेरे राजनीतिक विचारों के बारे में पूछा – हम बातें करने लगे. हमारे विचार समान थे. बरीस निकलायेविच के बारे में, जैसा अक्सर होता है ( उस समय सभी उसके बारे में बातें करते थे) और उस बारे में कि उसे मारना चाहिए. मैंने कहा, कि मैं न सिर्फ सपना देखता हूँ, बल्कि तैयार भी हूँ. उसने भी कहा. उसने कहा कि कि वह एक अफ्रीकन देश में, जिसका नाम ज़ाहिर करने का उसके पास फ़िलहाल अधिकार नहीं है, स्काऊट्स की टुकड़ी का नेतृत्व कर चुका है, मगर जल्दी ही ज़ाहिर कर सकेगा, और तब हम सबको मालूम हो जाएगा. पहले तो मुझे उस पर विश्वास नहीं हुआ. मगर उसके पास ब्यौरा था. काफ़ी ब्यौरा था. विश्वास न करना असंभव था. मैंने कहा कि मेरे पास मकारव है (मैंने दो साल पहले ही एफीमव स्ट्रीट के पीछे ख़ाली मैदान में ख़रीदा था). कईयों के पास हथियार थे – हम, हथियारों के मालिक, उसे करीब-करीब छुपाते नहीं थे. ( ये सच है, कि तमारा को मालूम नहीं था, मैंने मकारव को सिंक के नीचे पाईप के पीछे छुपा दिया था). एमिल्यानिच ने कहा, कि मुझे मॉस्को जाना पड़ेगा, प्रमुख घटनाएँ वहीं होती हैं – वहाँ ज़्यादा संभावनाएँ हैं. मैंने कहा कि मेरी खिड़कियाँ मॉस्को एवेन्यू पर खुलती हैं. और मॉस्को एवेन्यू से अक्सर सरकारी डेलिगेशन्स गुज़रते हैं. ग़ौर तलब है, कि पिछले साल मैंने खिड़की से प्रेसिडेन्ट की कारों का काफ़िला देखा था, उस समय बरीस निकलायेविच  पीटर्सबुर्ग में आया था – चुनाव नज़दीक आ रहे थे. हम इंतज़ार करेंगे, और राह देखेंगे, वह फ़िर आएगा. मगर, एमिल्यानिच ने कहा, आख़िर तुम खिड़की से तो गोली नहीं चलाओगे, उनकी गाड़ियाँ बुलेट-प्रूफ़ होती हैं. मुझे मालूम था. मैंने, बेशक, कहा, कि नहीं चलाऊँगा. किसी और तरह से करना होगा, एमिल्यानिच ने कहा.
इस तरह मेरी उससे मुलाकात हुई.
मगर, अब तो चिनार भी नहीं रहेगा.
एमिल्यानिच गलत सोच रहा था, जब उसने ये फ़ैसला कर लिया (उसने शुरू में ऐसा सोचा था), कि मैं अपनी तमारा के साथ सिर्फ इसलिए रहता हूँ, क्योंकि यहाँ से मॉस्को एवेन्यू दिखाई देता है. इन्वेस्टिगेटर का, भी यही ख़याल था. बकवास! पहली बात, मैं ख़ुद भी समझता था, कि खिड़की से गोली चलाने में कोई तुक नहीं है, और अगर घर से निकलकर नुक्कड़ तक जाऊँ, जहाँ अक्सर सरकारी गाड़ियों का काफ़िला फन्तान्का की ओर मुड़ने से पहले रफ़्तार कम करता है, बख़्तरबन्द कार पर गोली चलाने में कोई तुक नहीं है. मैं कोई पूरा पागल, सिरफ़िरा नहीं हूँ. हाँलाकि, ये मानना पड़ेगा, कि मैं कभी-कभी अपनी कल्पना को खुली छोड़ देता था. कभी-कभी, स्वीकार करना पड़ेगा, कि मैं कल्पना करता था, कि कैसे रफ़्तार कम हुई कार के पास भागकर, गोली चला रहा हूँ, काँच की ओर निशाना साधते हुए, और मेरी गोली ठीक निशाने पर लगती है, और बस, पूरा शीशा चकनाचूर...और पूरा शीशा चकनाचूर...और पूरा शीशा चकनाचूर...
मगर, ये थी पहली बात.
और अब दूसरी.
मैं तमारा से प्यार करता था. और ये, कि खिड़कियाँ मॉस्को एवेन्यू पर खुलती हैं – ये इत्तेफ़ाक था.
वैसे, मैंने उन्हें एमिल्यानिच का नाम नहीं बताया, सब कुछ अपने ऊपर ले लिया.
मुझसे कहा गया है, कि तमारा को याद न करूँ.
नहीं करूँगा.
मेरी उससे मुलाकात हुई...मगर, वैसे, आपको इससे क्या फ़र्क पड़ता है.
उससे पहले मैं व्सेवलोझ्स्का में रहता था, ये पीटर्सबुर्ग के पास है. जब तमारा के यहाँ मॉस्को-एवेन्यू पर आ गया, तो व्सेवलोझ्स्का वाला फ्लैट बेच दिया, और उन पैसों को फ़ाइनान्शियल-पिरामिड (पोंज़ी स्कीम – अनु.) में लगा दिया. काफ़ी सारे फ़ाइनान्शियल-पिरामिड्स थे.
मैं तमारा से ख़ूबसूरती के लिए प्यार नहीं करता था, जो उसमें, ईमानदारी से कहूँ तो, दिखाई ही नहीं देती थी, और इसलिए भी नहीं, कि समागम के दौरान वह ज़ोर से मदद के लिए पुकारती थी, अपने पुराने प्रेमियों के नाम पुकारते हुए. मैं ख़ुद भी नहीं जानता कि मैं तमारा से क्यों प्यार करता था. वो भी मुझे प्रत्युत्तर देती थी. उसकी स्मरण शक्ति बेहद अच्छी थी. मैं अक्सर तमारा के साथ स्क्रेबल्स खेलता था, इस खेल का एक और नाम है “एरूडाइट” अक्षरों को खेल वाले बोर्ड पर रखकर उनसे शब्द बनाना होता था. तमारा मुझसे अच्छा खेलती थी. नहीं, मैं कभी भी हारता नहीं था. मैंने उससे कई बार कहा, कि उसे किसी साधारण डिपार्टमेन्टल स्टोअर्स के मछली-विभागमें नहीं, बल्कि नेव्स्की पर स्थित किसी किताबों की दुकान में काम करना चाहिए, जहाँ शब्दकोश और आधुनिकतम साहित्य मिलता है. ये आजकल लोग नहीं पढ़ते हैं. मगर उस समय काफ़ी पढ़ते थे.
पैर ख़ुद-ब-ख़ुद, मैंने कहा ना, यहाँ ले आए. देर-सबेर मुझे यहाँ आना ही था, चाहे मुझे इस बारे में याद करने से कितना ही क्यों न मना किया जाए, मैं यहाँ आ ही जाता.
बस उन दो सालों में, जब मैं तमारा के साथ रहता था चिनार बढ़ गया, चिनार के पेड़ जल्दी बढ़ते हैं, वे भी, जो पूरी तरह बड़े प्रतीत होते हैं. उनकी चोटी बढ़ती है, अगर मैंने सही तरह से न समझाया हो तो. अब समझ में आया? और जब देखते हो, कि कैसे तुम्हारी आँखों के सामने कोई चीज़ धीरे-धीरे बदलती है – एक या डेढ़ साल के दौरान, तब ये अंदाज़ लगाते हो, कि – इनके साथ-साथ. तुम ख़ुद भी बदल रहे हो. वो बदल रहा था, और मैं भी बदल रहा था, और चारों ओर की हर चीज़ बदल रही थी, और अच्छी दिशा में बिल्कुल नहीं, - हर चीज़, जो सिर्फ बढ़ रही थी, जैसे चिनार के पेड़ बढ़ते हैं – ख़ासकर वे, जिन्हें पर्याप्त धूप नहीं मिलती...संक्षेप में, मैं ख़ुद भी नहीं जानता था, कि चिनार मेरे दिल के करीब है, और ये बात, कि वो मेरे करीब है, मैं सिर्फ अभी समझा हूँ, जब देखा कि उसे काट रहे हैं. इतने सालों के बाद इस पते पर क्या सिर्फ यही देखने के लिए आना था, कि चिनार को कैसे काट रहे हैं! मेरे भीतर यादें जाग उठीं. वे ही, जिनके बारे में मुझे परेशान होना मना था.
उसकी तनख़्वाह काफ़ी कम थी, मेरी भी (मैं ऑर्डर पर टी.वी. सुधारता था – पुराने, सोवियत काल के, लैम्प वाले, उस समय वे बदले नहीं थे, मगर छह जून उन्नीस सौ सत्यानवें को सुधारना बंद हो गया था – ऑर्डर मिलने बन्द हो गए थे). मतलब, हम एक साथ रहते थे.
एक बार मैंने उससे पूछा (“एरूडाइट” खेलते हुए), कि क्या वह बरीस निकलायेविच  पर हमला करने के काम में भाग लेगी. तमारा ने पूछा : मॉस्को में? नहीं, जब वह सेंट-पीटर्सबुर्ग आएगा. ओ, ये कब होने वाला है! – तमारा ने कहा. फिर उसने मुझसे पूछा, कि मैं इस सबके बारे में क्या सोचता हूँ. मेरी कल्पना इस तरह की थी. मॉस्को-एवेन्यू पर काली गाड़ियाँ जा रही हैं. फ़न्तान्का पर मुड़ने से पहले, वे परम्परानुसार (आवश्यकतानुसार नहीं) ब्रेक लगाती हैं. उसकी गाड़ी के सामने तमारा भागते हुए आएगी, घुटनों के बल गिरेगी, आसमान की तरफ़ हाथ उठाएगी. प्रेसिडेन्ट की गाड़ी रुकेगी, परेशान बरीस निकलायेविच  ये पूछने के लिए बाहर आएगा, कि क्या हुआ है और वह कौन है. और तभी मैं – पिस्तौल लिए. गोली चलाता हूँ, गोली चलाता हूँ, गोली चलाता हूँ, गोली चलाता हूँ...
तमारा ने जवाब दिया, कि शुक्र है, मेरे पास पिस्तौल नहीं है, और यहाँ वह गलत थी : ख़ुशकिस्मती हो या बदकिस्मती, मगर मकारव बाथरूम में पड़ी थी, सिंक के नीचे पाइप के पीछे, वहीं पर बारह कारतूस भी थे – पॉलिथिन की बैग में, मगर तमारा उस बारे में कुछ भी नहीं जानती थी. मगर उसे इस बात का यकीन था, कम से कम मुझे तब ऐसा लगा था, कि अगर वह काफ़िले के सामने कूद जाए, तो कोई भी नहीं रुकेगा. और अगर प्रेसिडेन्ट की कार रुक भी जाए, तो भी बरीस निकलायेविच  बाहर नहीं निकलेगा. मैं भी यही सोचता था : बरीस निकलायेविच  बाहर नहीं निकलेगा.
मैं सिर्फ तमारा को आज़माना चाहता था, कि वह मेरे साथ है या नहीं.
फिर उसने मेरे चेहरे पर लैम्प की रोशनी डालते हुए पूछा : क्या मैं तमारा से प्यार करता था? न जाने क्यों बाद में इस सवाल में न सिर्फ ग्रुप के प्रमुख को, बल्कि मुझसे पूछताछ कर रहे पूरे ग्रुप को दिलचस्पी हो गई. हाँ, प्यार करता था. वर्ना इस शोरगुल वाले, गंधाते मॉस्को एवेन्यू पर दो साल नहीं खींचता, चाहे सिर्फ एक ही – बरीस निकलायेविच को मारने के, जुनून से जीता.
असल में मेरे दो जुनून थे – तमारा से प्यार और बरीस निकलायेविच से नफ़रत.
दो बेहिसाब जुनून – तमारा से प्यार और बरीस निकलायेविच  से नफ़रत.
और अगर मैं प्यार न करता, क्या वह मुझसे कहती “ईगल”, “मेरे जनरल”, “छुपा-रुस्तम”?...
उस समय कई लोग बरीस निकलायेविच  को मारना चाहते थे. और कईयों ने मार भी डाला – ख़यालों में. ख़यालों में तो सभी उसे मार रहे थे. सन् सत्तानवे. पिछले साल चुनाव हुए थे. माफ़ कीजिए, बिना इतिहास में जाए – नहीं चाहता. या किसी को मालूम नहीं है कि वोटों की गिनती किस तरह हुई थी?
मॉस्को-एवेन्यू, 18 के आँगन में, तब मैं काफ़ी लोगों से बातें करता था, और सब एक सुर से इसी बात पर ज़ोर देते थे, कि सन् उन्नीस सौ छियानवे में उन्होंने बरीस निकलायेविच  को वोट नहीं दिया था. मगर ये – हमारे आँगन में. और अगर पूरे देश को लिया जाए तो? सिर्फ मैं चुनाव में नहीं गया था. क्यों जाना है, जब इसके बिना ही काम चल जाता है?
उसका ऑपरेशन किया गया, अमेरिकन डॉक्टर ने हार्ट की बाइपास सर्जरी की थी.
ओह, मुझसे कहा गया है, कि मैं ये भूल जाऊँ.
मैं भूल गया.
मैं चुप रहता हूँ.
मैं शांत हूँ.
तो...
तो, मैं तमारा के साथ रहता था.
अख़बारों में पिछले कुछ समय से ऑपरेशन टेबल पर उसकी मृत्यु की संभावनाओं की चर्चा हो रही थी.
और मुझे ख़ुद भी याद है, कि कैसे एक अख़बार में, याद नहीं कौन से, मुझे और मेरे जैसे कई लोगों को चेतावनी दी गई थी कि जीवन की योजना को उसकी मृत्यु की उम्मीद से न जोडें.
मगर मैं अपने निर्णय के उद्देश्य से दूर नहीं हटना चाहता.
और जहाँ तक तमारा का सवाल है...
मॉस्को एवेन्यू से दो कदम पर है – सेन्नाया चौक. उस समय तक कबाड़ी बाज़ार का कुछ हिस्सा वहाँ से हटाया जा चुका था, मगर दुकानदार की ओर जाती हुई कड़ी को महसूस कर सकते थे. ये उस बात पर निर्भर करता था, कि किस दुकानदार की ज़रूरत है. यहाँ तात्पर्य है, अगर कोई अब तक नहीं समझ पाया हो तो – उस चीज़ के दुकानदार से, जिससे गोली चलाई जाती है.
उस तरह का दुकानदार मुझे उस समय मिल भी गया ख़ाली मैदान में, जहाँ एफ़ीमवा स्ट्रीट सेन्नाया चौक से मिलती है.
संक्षेप में, ये तो नहीं कह सकता कि एमिल्यानिच हर बात में मेरा समर्थन करता था, मगर हम साथ-साथ थे. सिर्फ वह पीता बहुत था, और बेहद ख़राब किस्म की शराब. वह उन्हें वितेब्स्क स्टेशन के पास वाले स्टाल से ख़रीदता था.
एक बार उसने कहा कि उसके पीछे एक पूरी ऑर्गेनाइज़ेशन है. और उसे इस ऑर्गेनाइज़ेशन में शामिल कर लिया गया है.
हमारी ऑर्गेनाइज़ेशन में वह मुझसे एक सीढ़ी ऊपर था, जिसके परिणाम स्वरूप औरों को भी जानता था - हमारी ऑर्गेनाइज़ेशन के. मगर मैं सिर्फ एमिल्यानिच को जानता था. वह पड़ोस वाली बिल्डिंग में रहता था, बिल्डिंग नं. 16 में. उसकी खिड़कियाँ चौराहे पर खुलती थीं, और यदि बरीस निकलायेविच प्रकट होता तो वह खिड़की से ज़्यादा अचूक निशाना लगा सकता था. हाँलाकि, बात ये थी, कि हमने कार पर गोली चलाने का प्लान नहीं बनाया था. अगर कार बख़्तरबन्द है, तो उस पर गोली क्यों चलाई जाए? इसमें कोई तुक नहीं है. ये आत्मघाती और पूरी योजना को नष्ट करने वाला होता. उस समय मैं ऐसा सोचता था, और एमिल्यानिच भी. मगर मैं इस बारे में, शायद, बता चुका हूँ.
और वो, जिसके बारे में मैंने अभी तक बताया नहीं है : हमारा एक अलग प्लान था.
सन् 1997 का जून प्रारंभ हुआ.
पाँच जून को, बरीस निकलायेविच के पीटर्सबुर्ग पहुँचने के एक दिन पूर्व, एमिल्यानिच ने मुझसे कहा, कि बरीस निकलायेविच कल आ रहा है. मुझे पता था. हर कोई, जिसे राजनीति में थोड़ी भी दिलचस्पी थी, जानता था.
प्रेसिडेन्ट पीटर्सबुर्ग में पूश्किन के जन्म की 198वीं जयन्ती मनाना चाहते थे.
अलेक्सान्द्र सिर्गेयेविच पूश्किन – हमारे राष्ट्र-कवि.
मैं हमला करने के लिए तत्पर था.
एमिल्यानिच ने मुझसे कहा, कि ऑर्गेनाइज़ेशन के नेतृत्व ने प्लान तैयार कर लिया है. कल शाम, याने छह जून को, प्रेसिडेन्ट मरीन्स्की थियेटर जाएँगे, जिसे पहले कीरव – ऑपेरा और बैले थियेटर कहते थे. मुझे पहले ही स्टेज के पीछे ले जाया जायेगा. बरीस निकलायेविच पहली पंक्ति में होगा. और आगे, जैसा स्तलीपिन को मारा गया था.
वो, जिससे गोली चलाते हैं, मैंने ख़रीद लिया था, मगर, अपने पैसों से, न कि ऑर्गेनाइज़ेशन के पैसों से, जिससे एमिल्यानिच, मेरी अपेक्षा, ज़्यादा गहरे जुड़ा हुआ था.
मैं करियर में तरक्की के बारे में थोड़ी न सोच रहा था!
और तमारा का क्या? उसका तो बरीस निकलायेविच  के नाम से ही जी मिचलाता था. तमारा ने मुझसे कहा था कि उसके बारे में बात न करूँ. सच बताऊँ : वह डरती थी कि बरीस निकलायेविच  के प्रति मेरी नफ़रत, हम दोनों के बीच के प्यार को कम कर देगी. और, कहीं तो वह ठीक थी. सही है, कि डरती थी. तमारा के प्रति प्यार के मुकाबले, मैं बरीस निकलायेविच  के प्रति अपनी नफ़रत को ज़्यादा शिद्दत से याद करता हूँ. और मैं सचमुच में प्यार करता था...कितना प्यार करता था मैं तमारा से!...
वैसे, मेरी याददाश्त भी अच्छी ही है.
गोशा, आर्थर, ग्रिग्रोरियान, उलीदव, कोई एक “वान्यूशा”. कुरापात्किन, सात और...
नाम, कुलनाम, उपनाम. मैंने कुछ भी नहीं छुपाया.
एमिल्यानिच का नाम मैंने नहीं लिया और खोजकर्ताओं को ऑर्गेनाइज़ेशन के बारे में भी कुछ नहीं बताया.
एमिल्यानिच तमारा का प्रेमी नहीं था.
और उन्हें – सबको. आख़िर इतना ज़ोर से चिल्लाने की ज़रूरत क्या थी? पहले तो खोजकर्ताओं ने उसे मेरा साथी समझा. उन्हें संबंधों के नेटवर्क में रुचि थी.
ख़ुद ही सुलझाने दो, अगर चाहते हैं तो.
मेरा मामला नहीं है. मगर उनका काम है.
सामने वाले छोटे-से पार्क में मैं बगल वाली बिल्डिंग में रहने वाले आदमी से मिला, इस आदमी को मुझे एमिल्यानिच ने दिखाया था, उसने कहा था कि पड़ोसी है.
एमिल्यानिच का पड़ोसी लेखक था. दाढ़ी वाला, शेर्लोक होम्स जैसी कैप में, वह अक्सर बेंच पर बैठता था.
मुझे लगता है, कि वह पागल था. मेरे इस सवाल पर कि क्या वह बरीस निकलायेविच  को मार सकता है, उसने जवाब दिया कि वह और बरीस निकलायेविच अलग-अलग दुनिया के हैं.
मैंने उससे पूछा : आप किसके साथ हो, संस्कृति के जादूगरों? वह सवाल ही नहीं समझ पाया. नहीं,
नहीं, मुझे याद आया. मुझे याद आया, कि कैसे गर्बाचोव के पेरेस्त्रोयका के अस्त पर लेखकों का एक बड़ा समूह बरीस निकलायेविच के पास क्रेमलिन गया, प्रेसिडेंट को अपना समर्थन प्रकट करने. और उनके बीच एक भी ऐसा नहीं था, जो बरीस निकलायेविच पर कम से कम काँच की ऐश-ट्रे ही फेंकता!... और वे थे कुल चालीस आदमी – ये हुई कोई संख्या! और शायद, उनके पास कोई हथियार है अथवा नहीं, इसकी जाँच नहीं की गई!...कोई भी ले जा सकता था!...और अब, इस समय, मैं पूछता हूँ : वलेरी गिओर्गिएविच, आप पिस्तौल क्यों नहीं ले गए और बरीस निकलायेविच पर गोली क्यों नहीं चलाई? कोई जवाब नहीं सुनाई देता. और मैं पूछता हूँ : व्लदीमिर कन्स्तान्तीनविच, आप पिस्तौल क्यों नहीं ले गए और बरीस निकलायेविच पर गोली क्यों नहीं चलाई? और जवाब नहीं सुनाई देता. मैं औरों से भी पूछता हूँ – वे चालीस थे! – मगर जवाब नहीं सुनाई देता! जवाब नहीं सुनाई देता! किसी के भी मुँह से जवाब नहीं सुनाई देता!
और ये, जो कैप पहने पार्क में था, वह मुझसे कहता है, कि उसे बुलाया नहीं गया था.
और अगर बुलाया जाता, तो क्या तुम बरीस निकलायेविच  पर गोली चलाते?
तू है कौन, जो तुझे बुलाया जाता? तूने ऐसा क्या लिखा है, तुझे बुलाया जाता और तू बरीस निकलायेविच  पर गोली चलाता?
आख़िर, जो तू लिखता है, उसकी ज़रूरत किसे है, अगर हर चीज़ अपने क्रम से होती है और इस क्रम को ऊपरी फ़ैसले से तय किया जाता है?
कभी-कभी मेरा भी दिल चाहता कि लेखक बन जाऊँ. आख़िर बरीस निकलायेविच  को शायद समर्थन की ज़रूरत पड़े, और शायद वह क्रेमलिन में नये लोगों को, और मैं उनमें से एक रहूँगा, पतलून में (बेल्ट के पीछे), पिस्तौल के साथ (ओ, ख़तरनाक शब्द!) – कहीं पतलून में बेल्ट के पीछे छिपी पिस्तौल के साथ, और क्या  “प्रिय रूसियों...” सुनते ही  पल भर में अपनी पिस्तौल नहीं निकालूँगा ?...क्या ऐसा नहीं करूँगा?    
, इसी की ख़ातिर मैं लिखता!... जो जी में आये, लिखता, सिर्फ इसलिए कि मुझे आमंत्रितों की सूची में स्थान मिले!      
जहाँ तक पिस्तौल का सवाल है, मैंने उसे टॉयलेट में छुपा दिया, सिंक के नीचे वाले पाइप के पीछे.
तमारा को मालूम नहीं था.
हाँलाकि मैंने कई बार कहा, कि वह पेट में गोली खाने के लायक है, और वह, जैसे मुझसे सहमत थी.
एमिल्यानिच का नाम मैंने नहीं लिया और ऑर्गेनाइज़ेशन का भी नहीं, जो उसके पीछे थी.
खोज दूसरी दिशा में जा रही थी.
गोशा, आर्थर, ग्रिगोरियान, उलीदव, कोई “वन्यूशा”, कुरापात्किन, और अन्य सात...
कैप वाले लेखक को भी मैंने जोड़ लिया.
छह जून की सुबह थी. मैं अभी घर में ही था. ख़यालों में मैं शाम के कारनामे की तैयारी कर रहा था. मगर सफ़लता के बारे में नहीं सोच रहा था.
नौ बजे फोन-कॉल करना तय हुआ था. नौ, सवा नौ, मगर वह फोन नहीं करता. एमिल्यानिच फोन क्यों नहीं कर रहा है?
साढ़े नौ बजे मैंने ख़ुद ही फ़ोन किया.
उसने बड़ी देर तक रिसीवर नहीं उठाया. आख़िरकार उठाया, सम्पर्क किया. मैंने परिचित आवाज़ सुनी और समझ गया कि वह भयानक नशे में है. मेरा दिमाग़ अपने कानों पर विश्वास नहीं करना चाहता था. ऐसा कैसे हो सकता है? बरीस निकलायेविच तो बस पहुँचने ही वाला है! तुमने हिम्मत कैसे की, तुम कर कैसे सके?...शांत हो जाओ, सब बदल गया है. ऐसे कैसे बदल गया है? क्यों बदल गया है? ‘शोही नहीं होने वाला है, एमिल्यानिच ने कहा. “सुनहरा मुर्गा” मर गया है. मतलब ऑपेरा. (या बैले?)
मैं इस विश्वासघात पर चिल्लाया.
शांत हो जाओ,” एमिल्यानिच ने मुझसे कहा, “अपने आप पर काबू रखो. फिर मौका आयेगा. मगर आज नहीं.”
पूरी सुबह मैं बेचैन रहा.
हमारे नीचे वाले डिपार्टमेंटल-स्टोअर में सफ़ाई का दिन था. सुबह से कॉक्रोच मार रहे थे, और सेल्स गर्ल्स को छुट्टी दे दी गई. तमारा आई, उससे कॉक्रोच-मार दवा की बू आ रही थी.
मॉस्को एवेन्यू पर, मैंने अभी तक नहीं बताया, काफ़ी ज़्यादा ट्रैफ़िक होता है. शोर होता रहता है. दो सालों में, जो मैंने तमारा के साथ गुज़ारे थे, मुझे इस शोर की आदत हो गई थी.
मैं कमरे में था. मुझे याद है (हाँलाकि बाद में मेरे याद करने पर पाबंदी लगा दी गई), कि मैं फूलों में पानी डाल रहा था. कैक्टस के. तमारा उस समय नहा रही थी. और तभी हमारे यहाँ बाहर से शोर आना बंद हो गया. मतलब – खिड़कियों के पीछे से. मगर बाथरूम में शोर हो रहा था – शॉवर का. मगर खिड़कियों के बाहर – ख़ामोशी : गाड़ियों का आना-जाना रुक गया.
इसका मतलब सिर्फ एक ही हो सकता था : बरीस निकलायेविच  के लिए रास्ता ख़ाली कर दिया गया. वह आ गया है और जल्दी ही हमारे चौराहे तक पहुँच जाएगा. मुझे तो मालूम था कि वह आने वाला है. और, पहले वाले प्लान के मुताबिक, मुझे आज की शाम उसे ऑपेरा में (या, याद नहीं, बैले में?) ख़त्म कर देना था...
मगर अब तो बैले (या ऑपेरा?) नहीं होगा.
“सुनहरा मुर्गा”, एमिल्यानिच ने कहा था.
मतलब, मैं खिड़की के पास हूँ. मॉस्को एवेन्यू की ख़ामोशी में. पुलिस वाले उस तरफ़ खड़े हैं. और कोई ट्रैफ़िक नहीं है. इंतज़ार कर रहे हैं. लो, पुलिस की मर्सिडीज़ आई (या, मर्सिडीज़ से बड़ी?) आई – प्रेसिडेन्ट की गाड़ी को गुज़ारने की तैयारी का जायज़ा लेने. वे हमेशा इसी तरह तैयारियों का जायज़ा लेने के लिए गाड़ी भेजा करते थे.
मगर फिर भी, पिस्तौल लेकर बाहर निकलना चाहिए. मेरी अंतरात्मा मुझसे यही कह रही थी. मगर अंतरात्मा की दूसरी आवाज़ ये कह रही थी : पिस्तौल न ले, सिर्फ बाहर निकल और देख, और पिस्तौल का, तू ख़ुद भी जानता है, कोई फ़ायदा नहीं होगा.
फिर भी मैंने पिस्तौल लेने का फ़ैसला किया. मगर तमारा शॉवर के नीचे नहा रही थी.
तमारा, जब शॉवर के नीचे होती थी, तो बोल्ट लगाकर अपने आप को मुझसे छुपा लेती थी. अप्रैल में कभी उसने ऐसा करना शुरू किया. उसका ख़याल था, कि अगर फ़व्वारा आवाज़ करता, तो मुझे उत्तेजित कर देता था – वह भी बेहद. मगर ऐसा नहीं था. हर हाल में, ऐसा था नहीं, जैसा उसे लगता था.
अप्रैल में हमारे साथ ऐसी एक घटना हुई थी जिसे समझाना लगभग असंभव है.
तबसे वह अपने आप को छुपाने लगी थी.
मगर मैं तो कुछ और कह रहा हूँ, यह फ़ालतू बाथरूम कहाँ से बीच में टपक पड़ा?
हाँ, अपनी गुप्त जगह को याद करके, मैं बाथरूम की ओर भागा और दरवाज़ा खटखटाया. मैं ज़ोर से चिल्लाया: खोलो!
“फ़िर से?” तमारा ने धमकी भरी आवाज़ में पूछा ( आवाज़ में जानबूझकर धमकी भरी थी). ये मुझसे : “रुको! शांत हो जाओ!”
“खोलो, तमारा! एक भी सेकण्ड बरबाद नहीं कर सकता!”
“रुको! नहीं खोलूँगी!”
मगर वह तो नहीं जानती थी, कि मेरी पिस्तौल वहाँ पाइप के पीछे छ्पाई गई है.
और अगर जानती होती तो?
और वैसे भी, उसे क्या मालूम था? उसके दिमाग़ में क्या चलता था? वह किस बारे में सोचती थी? उसे तो मेरे बारे में कुछ भी नहीं मालूम था! नहीं जानती थी, कि मैं बरीस निकलायेविच  को मारना चाहता हूँ. और ये, कि बाथरूम में मेरी गुप्त जगह है!
और अगर मैं सचमुच में पानी के शोर से इतना उत्तेजित हो जाता, तो क्या मैं दरवाज़ा नहीं तोड़ देता? हाँ, मैं उसे बाएँ कंधे से तोड़ देता! उस अप्रैल वाली घटना के बाद उसके इस शॉवर के दौरान बाथरूम में उसके पास घुस जाने की काफ़ी संभावनाएँ थीं! मगर मैंने कभी भी सिटकनी नहीं तोड़ी – और, तब, मैं कहाँ से उत्तेजित हुआ था?              
बल्कि, वही मुझे जानबूझ कर इस बोल्ट से उकसा रही थी (मैंने बाद में अंदाज़ लगाया).
मगर, मैं कुछ और कह रहा हूँ.
मैं बोल्ट तोड़ देता, अगर मेरे भीतर – दूसरी, न कि पहली आवाज़ न होती. रुको. बाहर जाओ और उत्तेजना प्रकट न करो. तुम्हें पिस्तौल की ज़रूरत नहीं है. प्लान बदल गया है. इसलिए बाहर जाओ और देखो. सिर्फ वहाँ मौजूद रहो. जब तक वह गुज़र नहीं जाता.
मैं वैसे ही घर की चप्पलों में भागा, जिससे कि एक भी सेकण्ड न खोऊँ.
घर से तो मैं भागते हुए निकला था, मगर आँगन में साधारण चाल पर आ गया. आराम से प्रवेश द्वार से बाहर आया. बरीस निकलायेविच  अभी तक गुज़रा नहीं था. पैदल चलने वाले फुटपाथ पर आ-जा रहे थे. वे हमेशा की ही तरह चल रहे थे. कुछेक लोग रुक कर मॉस्को एवेन्यू का नज़ारा देखने लगे. दूर, अबवोद्नी कॅनाल के उस पार तुर्की युद्ध में विजय का स्मारक, ‘विक्टरी ग़ेट नज़र आ रहा था.
अक्सर, जब कोई राजनेता गुज़रते थे, तो सड़कें करीब दस मिनट पहले बंद कर दी जाती थीं, मतलब अभी काफ़ी समय था.
फ़न्तान्का वाले किनारे की ओर ट्रैफ़िक रोक दिया गया था. वहाँ गाड़ियाँ खड़ी थीं, मगर जहाँ मैं खड़ा था, वहाँ से मैंने उन्हें नहीं देखा.
खाली एवेन्यू की ओर देखना बड़ा अजीब लगता है. एवेन्यू का खालीपन आत्मा को व्याकुल कर रहा था. एक भी पार्क की हुई गाड़ी नहीं थी. सब कुछ हटा दिया गया है.
एक और पुलिस की गाड़ी गुज़री.
और मॉस्को एवेन्यू से फ़न्तान्का की ओर, मतलब बाईं ओर मुड़ी वहाँ सब कुछ खाली था.
बरीस निकलायेविच  इसी मार्ग से गुज़रेगा, यह किसी के लिए रहस्य की बात नहीं थी. यही एक रास्ता है.
मैंने LIERT की (लेनिनग्राद इन्स्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स ऑफ रेल्वे टेलिकम्युनिकेशन्स) जिसका हाल ही नाम बदलकर PSUPC (पीटर्सबुर्ग स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ़ पाथ्स ऑफ कम्युनिकेशन्स) कर दिया गया है – छत की ओर देखा – कहीं स्नाइपर्स तो नहीं हैं?
शायद नहीं थे.
उस जगह की रचना – ऐसी थी. दाईं ओर – फ़न्तान्का से होकर गुज़रता हुआ पुल, जिसका नाम है – अबूखव्स्की ब्रिज. उस पार बाग, ट्रैफ़िक सिग्नल, पुलिस वाले का बूथ. ख़ास आकर्षण – ऊँचा मील का पत्थर संगमरमर के स्मारक स्तंभ जैसा – कहते हैं, कि अठारहवीं शताब्दी में यहाँ पर फन्तान्का से होते हुए शहर की सीमा रेखा गुज़रती थी.
इन घटनाओं का एक-एक मिनट नहीं, बल्कि एक-एक सेकंड याद है. ये – जा रहे हैं : मॉस्को एवेन्यू से के नज़दीक आ रहे हैं. प्रेसिडेन्ट की कार सबसे आगे नहीं थी, और उसने, जो सबसे आगे थी, मेरे सामने आकर गति कम कर दी  - आगे बाईं ओर उसे मुड़ना है. मैं, बेशक, प्रेसिडेन्ट की कार की ओर देख रहा हूँ – सिर्फ मैं ही नहीं, बल्कि दूसरे लोग भी देख रहे हैं, और अन्य आने-जाने वाले भी मैं देख रहा हूँ और सोच रहा हूँ, क्या ये सच है, कि वहाँ वो बैठा है, हो सकता है, वह दूसरी गाड़ी में हो, और इसमें – झूठ-मूठ का पुतला ...झूठ-मूठ का पुतला सचमुच के बख़्तरबंद काँच के पीछे? और ये, मैं देखता हूँ उसका हाथ, बेशक, उसका, मूक अभिवादन करते हुए हौले से हिलता हुआ – काँच के पीछे, जहाँ पीछे वाली सीट है, - और ये, वो किसका अभिवादन कर रहा है, कहीं मेरा तो नहीं? मेरा ही अभिवादन कर रहा है! जब वह मेरे बिल्कुल पास आ गया.                         
ब्रेक लगाते हुए. धीमी होते हुए. (आगे मोड़ है.)
मगर फिर कुछ अविश्वसनीय-सा हुआ.          
उसके रास्ते को काटती हुई किसी की परछाईं उछली. मैं फ़ौरन समझ ही नहीं पाया, कि ये कौन है – आदमी या औरत. और जब देखा, कि औरत है, तो तुरंत मेरे दिमाग में ख़याल आया, कि कहीं ये मेरी तमारा ही तो नहीं है. उसने मेरे सुझाव को मान तो नहीं लिया?
जैसे ही तमारा का ख़याल आया, दिल की धड़कन रुक गई.
मगर ये तमारा कैसे हो सकती है, जब कि उसे शॉवर के नीचे होना चाहिए? नहीं, बेशक, वो तमारा नहीं थी.
इसके बाद और भी अविश्वसनीय घटना हुई – गाड़ी रुक गई.
और उसके पीछे-पीछे दूसरी गाड़ियाँ भी – और पूरा काफ़िला. और आगे – और भी अविश्वसनीय : वह बाहर आया.
दरवाज़ा खुला और वह बाहर आया!
छह जून उन्नीस सौ सत्तानवें का दिन था.
वह मुझसे दस कदम दूर था, और वह औरत भी – करीब पन्द्रह कदम की दूरी पर थी!
इस बात की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती! मगर ऐसा हुआ था! वह बाहर आया और औरत की ओर बढ़ा!
और उसके सभी चापलूस अपनी-अपनी गाड़ियों से निकलकर एक साथ उस औरत के पास जाने लगे.   
गवर्नर! वह भी निकला!
और चुबाइस भी निकला!
ओह, आप नहीं जानते कि चुबाइस कौन है? मुझसे कहा गया है, कि इस नाम को भूल जाऊँ! मगर कैसे भूलूँ, जब याद है? आख़िर कैसे भूलूँ?
और दर्शक, आने-जाने वाले, वे भी उसके नज़दीक जाने लगे, और उनके साथ-साथ मैं भी!...मैं – अनजाने में ही – औरों के साथ – कदम-कदम – और नज़दीक, और नज़दीक – उसकी ओर!...
जैसे ये सब अभी नहीं, बल्कि इससे पहले किसी ज़माने में हुआ था!
पहले ही जैसे - कुछेक घटनाएँ तब हुई तो थीं – जब वह लोगों से बातें करता था! प्लान्ट में, रास्ते पर, कहीं और भी...
उसने निडरता से लोगों से बातें की!
मैं सुन रहा था – हम सब सुन रहे थे – उनकी बातचीत!
करीब चालीस साल की औरत. उसीने प्रेसिडेन्ट के काफ़िले को रोका था. आप यकीन नहीं करेंगे, वह लाइब्रेरियों की हालत के बारे में कह रही थी.
उसने कहा : हमारे यहाँ लाइब्रेरियों के सामने काफ़ी समस्याएँ हैं, मैं ख़ुद रूसी भाषा और साहित्य की शिक्षिका हूँ, और अच्छी तरह जानती हूँ, कि हालात क्या हैं, बरीस निकलाएविच. और, बरीस निकलाएविच, लाइब्रेरियन्स और शिक्षकों की, और साथ ही पोलिक्लिनिक्स के डॉक्टर्स की तनख़्वाह बेहद कम है.
और उसने जवाब दिया : ये सही नहीं है, इसे देखना होगा.
और सहयोगी ने उससे कहा : ज़रूर देखेंगे, बरीस निकलाएविच.
और मैं सोच रहा था : मेरी पिस्तौल कहाँ है?
मेरे पास पिस्तौल नहीं थी!
और अचानक उस औरत ने उसे अपने बारे में बताया : मेरा नाम गलीना अलेक्सान्द्र्व्ना है, मैं माक्लिन स्ट्रीट पर बिल्डिंग नंबर 9/11 में रहती हूँ, जवान बेटे के साथ, एक कमरे में...बिल्डिंग की हालत बेहद ख़स्ता है, हमारा क्वार्टर सामुदायिक है...
और वह उससे बोला : आपको नया क्वार्टर देंगे.
और सहायक ने औरत से कहा : हर समस्या सुलझा लेंगे.
और यह सब बगल में – मेरे सामने! मगर मैं पिस्तौल नहीं ले गया था!
दूसरे लोग भी पूछने लगे, मगर अस्पष्ट-सा, उलझा-सा. उनके प्रति उसने दिलचस्पी नहीं दिखाई.
मैं भी चाहता था : बरीस निकलाएविच, क्या आप, वाकई में, आज बैले (...या ऑपेरा? ) देखने नहीं जाएँगे? (मैंने अभी तक उम्मीद नहीं छोड़ी थी). मगर तभी एक चौड़ी पीठ ने प्रेसिडेन्ट को मुझसे छुपा दिया.
और अगर पूछता भी – तो वे कहते “ हेल विथ यू!”
वैसे, जाँचकर्ता इतना भला था, कि उसने बाद में मुझे अख़बार दिखाया : बरीस निकलाएविच, शायद, उस दिन पूश्किन के स्मारक पर फूल चढ़ा रहा था.        
वह धम् से कार में बैठ गया. और सारे सहायक और चमचे अपने अपने वाहनों की ओर भागे. और पूरा काफ़िला धीरे-धीरे आगे बढ़ा और मॉस्को एवेन्यू से फ़न्तान्का की ओर मुड़ गया.
शिक्षिका खड़ी थी और उन्हें जाते हुए देख रही थी. प्रेसिडेन्ट की टीम के संवाददाताओं ने उसे घेर लिया. पुलिस-लेफ्टिनेंट कर्नल ने हमें आने-जाने का रास्ता छोड़ने के लिए कहा.
जल्दी ही मॉस्को एवेन्यू पर फिर से आवागमन शुरू हो गया.
और मैं जागा.
मैं घर की चप्पलें पहने ट्रैफ़िक सिग्नल के नीचे खड़ा था और समझ रहा था कि किस्मत मुझे ऐसा मौका दुबारा नहीं देगी. मैंने बाथरूम का दरवाज़ा क्यों नहीं तोड़ा? मगर, क्या मैं सोच सकता था कि वह बख़्तरबन्द गाड़ी से बाहर आ सकता है?
आ सकता था! आ सकता था! आ सकता था! मुझे इस बात को भाँप लेना चाहिए था!
मैंने स्वयम् को प्रेसिडेन्ट पर गोली चलाते हुए देखा. मैंने देखा गिरते हुए – उसको. मैंने आने-जाने वालों के अचरज भरे चेहरे देखे, जो विश्वास ही नहीं कर सकते थे, कि तानाशाह से मुक्ति मिल गई है.
मैं अपने आप को बचा भी सकता था. मुझे वो काम नहीं दिया गया था. मगर मैं पिस्तौल फेंक कर प्रवेश द्वार में भाग सकता था.                       
मैंने बस देखा, कि मैं कैसे बिल्डिंग नं. 18 के प्रवेश द्वार के भीतर भागते हुए आँगन पार कर रहा हूँ. वे, जो, अचानक चौंक कर मेरे पीछे भाग रहे हैं, सोच रहे हैं, कि मैं बेवकूफ़ हूँ – क्योंकि सामने अंधी गली है... ये मैं बेवकूफ़ हूँ? बल्कि आप सब बेवकूफ़ हैं! और बाईं ओर वाले गलियारे का क्या? वहाँ खाली दीवार और पाँच मंज़िला इमारत के कोने के बीच एक चौड़ी झिरी है. ये, मैं चिनार की बगल से भागता हूँ, जिसे तब तक नहीं काटा गया था, और बाईं ओर को लपकता हूँ, और मैं आ गया हूँ आयताकार  आँगन में, जिसमें भूतपूर्व लॉण्ड्री के दरवाज़े को छोड़कर एक भी प्रवेश द्वार नहीं हैतो? क्या? यहाँ से दो रास्ते हैं – 110, फ़न्तान्का के आँगन को, या 108, फ़न्तान्का के आँगन को, पुराने टॉयलेट के कॉन्क्रीट के खण्डहर की बगल से. बेहतर है – 108 में. फ़न्तान्का में कोई भी मेरा इंतज़ार नहीं कर रहा है!...सीढ़ियों पर लपकते हुए छत पर जा सकता हूँ, और यहाँ छतों से होकर भागने में कितना मज़ा आता है!...छतों पर भागना बेहद आसान है, ठेठ टेक्नोलॉजी इन्स्टीट्यूट की छत तक!...या फिर ईंटों वाली नीची, खाली दीवार पर चढ़कर मिलिट्री हॉस्पिटल वाली बिल्डिंग की ढलवाँ छत पर पहुँचना भी संभव है... हॉस्पिटल के गार्डन से मैं व्वेदेन्स्की कॅनाल के प्रवेशद्वार मार्ग तक पहुँच जाऊँगा...और जाली फ़ाँदकर – ज़ागरद्नी पर, ब्लॉक के दूसरी ओर!
मैं आसानी से भाग सकता था!
और रुक भी सकता था. आत्म समर्पण कर सकता था. मैं कहता : रूस, तू बच गया!”
“ओह, वे मेरा स्मारक भी खड़ा करते! सीधे यहीं, तमारा की बिल्डिंग के सामने वाले गार्डन में! संगमरमर के मील के पत्थर की ठीक बगल में, जिस पर खुदा है, अठारहवीं शताब्दी, शिल्पकार रिनाल्दी!
मगर, मुझे बस, स्मारक नहीं चाहिए! और तमारा की बिल्डिंग पर स्मृति-फ़लक की तो बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है!     
आपको मालूम नहीं है कि मैं तमारा से कितना प्यार करता था!
आप कल्पना भी नहीं कर सकते, कि मैं बरीस निकलायेविच से कितनी नफ़रत करता था!
और ये मौका हाथ से निकल गया. मैं शहर में भटकता रहा. मैं सिन्नाया तक गया, फिर गरोखवाया तक. लकड़ी के बने गर्स्त्कीन ब्रिज को पार करके मैं फ़न्तान्का के गंदे पानी में डूब जाना चाहता था. पानी से लकड़ी के टेके बाहर निकल रहे थे (बसन्त वाली बर्फ के सामने), मैंने उनकी ओर देखा और समझ नहीं पाया कि जिऊँगा कैसे.
बेहतर होता कि तभी डूब जाता! ज़्यादा बेहतर होता...
मुझे याद नहीं, कि मैं और कहाँ गया था, मुझे याद नहीं है कि मैं किस बारे में सोच रहा था. मुझे ये भी याद नहीं है कि ज़ागरद्नी वाले बारमें गया था कि नहीं. परीक्षणों ने सिद्ध किया कि मैं होशो-हवास में था. मगर मुझे लग रहा था कि मैं अपने-आप में नहीं हूँ.  
मगर एक बात मैं निश्चित रूप से जानता हूँ, मैं जानता था, कि अपने आप को कभी माफ़ नहीं करूँगा.
इस शहर में जून में रातें श्वेत होती हैं, मगर मुझे महसूस हुआ कि अँधेरा हो रहा है, या फिर, हो सकता है, कि मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा था. याद है, कि घर आया था. याद है. तमारा टेलिविजन देख रही थी. मैं नहीं चाहता था, कि तमारा गोली की आवाज़ सुने. मैं पिछले कम्पाऊण्ड में अपने आप को गोली मार लेना चाहता था. बाथरूम में आया, पिस्तौल निकाला, उसमें गोलियाँ भरीं. पतलून के बेल्ट के पीछे उसे छुपा लिया. आईने में ख़ुद को देखा.
डरावना थोबड़ा. मगर गोली मार लूँ, तो और भी भयानक हो जाएगा.
मैंने फ़ैसला किया कि उससे बिदा नहीं लूँगा. बिदा लेने के पल मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता था. बाहर जाने के इरादे से मैं दरवाज़े की ओर लपका. और तभी वह किचन से आई, जहाँ टी.वी. देख रही थी, और मुझसे कहा.
उसने मुझसे कहा.
उसने मुझसे कहा : तुम कहाँ थे?...तुमने सब छोड़ दिया?...तुम कुछ भी नहीं जानते?...सिर्फ कल्पना करो, सारे समाचारों में दिखा रहे थे, आज ठीक हमारी खिड़कियों के सामने ऐसी घटना हुई! टीचर ने बरीस निकलायेविच की गाड़ी को रोक दिया! वह एक कमरे वाले क्वार्टर में रहती है अपने जवान बेटे के साथ और उसने उन्हें नया क्वार्टर देने का वादा किया!
मैं जम गया.
आप सब लोग बरीस निकलायेविच  को गालियाँ देते हो, तमारा ने कहा, और उसने क्वार्टर देने का वादा किया.
बेवकूफ़! बेवकूफ़! बेवकूफ़!
मैं चीख़ा.
और एक साथ पाँच गोलियाँ उस पर दाग दीं.
मैंने अपने इरादे को नहीं छुपाया और पहली ही पूछताछ में बता कर दिया, कि बरीस निकलायेविच  को मारना चाहता था.
मुझे कहीं ले गए. उच्च अधिकारियों ने मुझसे पूछताछ की. मैंने पिस्तौल के बारे में बताया, बाथरूम के पाइप के बारे में बताया. सारे नाम बताए, क्योंकि वे सोच रहे थे, कि मैंने अपनी साथी को मार डाला है. गोशा, आर्थर, ग्रिगोरिन, उलीदव, कोई “वान्यूशा”, कुरापात्किन, कोई सात और भी...और कैप वाला लेखक.
सिर्फ एमिल्यानिच का नाम मैंने नहीं लिया. और उस संगठन का भी, जो उसके पीछे था. 
पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ, कि मैं अविवाहित हूँ, और बाद में किसी भी बात पर विश्वास नहीं किया.   
अजीब बात है. विश्वास कर भी सकते थे. उस समय एक के बाद हो रही कोशिशों का पर्दाफ़ाश हो रहा था. सुरक्षा-सेवा इस बारे में सूचित कर रही थी. मुझ से भी पहले, मुझे याद है, कॉकेशस के एक गिरोह  का पर्दाफ़ाश किया गया था, मॉस्को पहुँचने से पहले ही उन्हें सोची स्टेशन पर ट्रेन से उतार लिया गया. एक संभावित हत्यारा मॉस्को की किन्हीं अटारियों में छुपा हुआ था, उसके पास चाकू था, - पूछताछ के दौरान उसने स्वीकारोक्ति दी, उसका क्या हुआ, मुझे नहीं पता. अख़बारों में लिखा था, रेडिओ पर सूचित किया जाता था.
मगर मेरे बारे में – किसी ने भी नहीं, कुछ भी नहीं.
शिक्षिका गलीना अलेक्सान्द्रव्ना के बारे में, जो माक्लिन एवेन्यू पर रहती थी और जिसने बरीस निकलायेविच  की गाड़ी रोकी थी, सबने सुना. मगर मेरे बारे में – किसी ने भी नहीं, कुछ भी नहीं.   
मुझे अभी भी पता नहीं है कि एमिल्यानविच ने किस अफ्रीकन देश में अन्तरराष्ट्रीय कर्तव्य पूरा किया.
चिकित्सा विज्ञान का डॉक्टर, प्रोफ़ेसर गे. या. मख्नाती मेरा सम्मान करता था, वह मुझसे भलमनसाहत से पेश आता था. ये आसान नहीं था, मैं बहुत सारी बातों के बारे में सोचता था. 
मुझे सलाह दी गई कि इन वर्षों को भूल जाऊँ.
मैं व्सेवलोझ्का में रहता हूँ, अपने अपंग बाप के साथ, जिसकी दूसरी बीबी की मृत्यु हो चुकी है. मेरा बाप है. वह अपंग है. 
कभी-कभी हम स्क्रैबल’, जिसे हम –“एरुडाइट” कहते हैं -  खेलते हैं. मेरा बाप करीब-करीब नहीं चलता, मगर उसकी याददाश्त मुझसे बुरी नहीं है.

सेंट पीटर्सबुर्ग में मैं काफ़ी अर्से बाद आया हूँ. मुझसे कहा गया है कि यहाँ न आऊँ.    
मुझे अफ़सोस होता है, कि ऐसा हो गया. मैं उसे मारना नहीं चाहता था. मेरा गुनाह बहुत बड़ा है.
मगर मैं किसे और कैसे समझाऊँ, कि असल में मैं तमारा से कितना प्यार करता था!? जिसने कभी किसी से प्यार किया हो, वही समझ सकता है. उसके पास बहुत सारे अच्छे गुण थे. मैं नहीं चाहता था. और वह भी नहीं. उसे नहीं करना चाहिए था. किसलिए? इतने सारे अच्छे गुण होते हुए भी ऐसी बात कहना! इतना भी परले सिरे का बेवकूफ़ नहीं होना चाहिए. कभी नहीं! बेवकूफ़. ऐसी बात कहना! नहीं, बस,   बेवकूफ़! बेवकूफ़, बेवकूफ़, तुझसे ही कह रहा हूँ!
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