पैरिस से प्यार
लेखक : सिर्गेइ
नोसव
अनुवाद : आ.
चारुमति रामदास
धातु की
छोटी-सी ट्रे में बेयरा एक सुरुचिपूर्ण फोल्डर में बिल लाया. चिल्लर और टिप का
हिसाब करके बेर्ग ने फोल्डर में गोथिक ब्रिज की तस्वीर वाला हरा नोट रखा और एक
मिनट में दूसरी बार घड़ी पर नज़र डाली. शायद, बेयरे ने सोचा, कि मेहमान जल्दी में है, मगर, यदि
वह सचमुच ही जल्दी में होता, तो घण्टे भर तक कॉफ़ी न पीता
होता. बेर्ग के चेहरे पर झुँझलाहट थी, हो सकता है, परेशानी भी हो, मगर बेसब्री ज़रा भी नहीं थी : उसे
ख़ुद भी मालूम नहीं था, कि कहाँ और किसलिए जाएगा. बस, जाने का टाइम हो गया है – मुलाकात नहीं हो पाई. और ज़्यादा इंतज़ार करने में
कोई तुक नहीं था.
इसी समय
उसकी मेज़ के पास एक लाल बालों वाली मैडम आई – करीब बीस मिनट पहले ही बेर्ग उसे देख
चुका था. उसे आकर्षित कर गया था उसके चेहरे का असाधारण भाव – जिसके कारण वह कैफ़े
में उपस्थित अन्य लोगों से अलग प्रतीत हो रही थी – कुछ उल्लासपूर्ण-प्रसन्नता का, मानो
कोई अत्यन्त उच्च कोटि का, प्रसन्नतापूर्ण नज़ारा देख रही हो;
वह अकेली मेज़ के पीछे बैठी थी, इस तरह
मुस्कुरा रही थी और लाल-वाइन से आधे भरे गिलास के किनारे पर बेमतलब ही उँगली घुमा
रही थी. उसमें कोई ख़ास रूसी बात नज़र नहीं आ रही थी, मगर न
जाने क्यों बेर्ग ने सोचा कि शायद वह रूसी है, और, उसके प्रति दिलचस्पी ख़त्म होने से वह मुड़ गया, जिससे
उस ओर ज़्यादा न देखे और उसके बारे में न सोचे. अब “नमस्ते!” सुनकर बेर्ग कुछ तन
गया, फ़ौरन ये महसूस करके, कि उस समय
उसकी नज़रों ने मैडम को यूँ ही नहीं उलझाया था. बेर्ग को गुज़रे ज़माने से मुलाकातों
का शौक नहीं था. कई बार उसने कोरे पन्ने से ज़िन्दगी शुरू की थी, अपने आप को लम्बी, तफ़सीलवार याद से परेशान न करते
हुए.
“ऐसा ही
सोचा था,
कि पैरिस जाऊँगी और किसी से मुलाकात होगी. बैठ सकती हूँ?” वह उसकी मेज़ पे बैठ गई.
बेर्ग
समझ नहीं पाया कि क्या कहना चाहिए, इसलिए उसने ऐसे कहा, जैसे यह महत्वपूर्ण था:
“मैं
जाने ही वाला था.”
“बहुत
अच्छे,”
उसने खुलकर मुस्कुराते हुए कहा. “ कितने साल हो गए? दस, बारह?”
सुझाव दे
रही थी.
हुम्...दस-बारह
– ये तो एक युग होता है. दो युग. बेर्ग की समय-गणना के हिसाब से दस-बारह – पिछली
से पिछली ज़िन्दगी होती है.
वह झूठ
नहीं बोला : “तुम ज़रा भी नहीं बदलीं” – उसने अपने आपको संयत किया. मगर, यदि
ऐसा कह देता, तो वह यकीन कर लेती. वह देख रहा था, कि उसे मालूम है, कि वह जवान दिखती है – अपनी उम्र
से कम. और देख रहा था, कि उसे मालूम है, कि उसे याद न रखना असंभव है – चाहे कितना ही पहले और चाहे किसी की भी
ज़िंदगी में वह न झाँकी हो.
मगर वह, ज़ाहिर
है, नहीं जानती थी, और अगर जानती,
तो भूल गई थी, बेर्ग की ख़ासियत को, जिसके कारण उसे कई असुविधाओं का सामना करना पड़ता था,
- उसकी, जैसा वह मानता था, चेहरों को याद
न रख पाने की क्षमता को. बेर्ग के कलाकार-दोस्त एक बार देखे हुए चेहरे को जीवन भर
याद रख सकते थे, मगर उसके पास एक अन्य व्यावसायिक योग्यता थी
(अफ़सोस, जिसने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में उसे कोई प्राथमिकता
नहीं दी थी) – वह अपने दिमाग़ में पन्नों के नंबर, तारीखें,
फॉर्मूले, उद्धरण सुरक्षित रख सकता था. अपने
पिछले साल के लेख को वह शब्दशः दुहरा सकता था, मगर लोगों के
नाम उनसे परिचय के फ़ौरन बाद ही भूल जाता था, ज़्यादा सही कहें,
तो वह उन्हें याद रखने का कष्ट नहीं उठाता था. इसे आसपास के लोगों
के प्रति लापरवाही कहा जा सकता था, मगर दिमाग़ की ख़ासियत भी
कहा जा सकता था. उसका दिमाग़ ऐसा ही है. ग्रंथ-सूची सूचकांकों के नामों को वह आसानी
से और लम्बे समय तक याद रख सकता था.
“पैरिस
में एक बात बुरी है, कहीं भी इन्सान की तरह धूम्रपान नहीं कर सकतो
हो. वर्ना, वैसे अच्छा है. क्या तुम यहाँ रहते हो?”
वह दमक
रही है,
और आँखों में चमक है. कलाकार-महाशयों, सुखी
व्यक्ति की तस्वीर बनाओ.
“मतलब, पूरी
तरह नहीं,” बेर्ग ने जवाब दिया.
अपने
अनुभव से वह जानता था, कि अगर नाम याद करने लगो, तो बाकी सब भी याद आ जाएगा.
“सुनो,” उसने कहा, “मैंने तुम्हें कहीं सचमुच में तो
डिस्टर्ब नहीं ना किया?”
और उसे
याद आ गया – नाम तो नहीं, बल्कि ये, कि
उसका कोई नाम तो था – मतलब, था और है – छम्मकछल्लो जैसा,
घिसापिटा नहीं. जैसे गेर्त्रूदी या फिर लुसेरिया.
“चलो,
कुछ खाएँगे,” अचानक उसके रू-बरू बैठी नव-परिचिता
ने सुझाव दिया, “खाएँगे और पिएँगे. यहाँ अविश्वसनीय किस्म के
ऑयस्टर्स पेश किए जाते हैं. या फिर – क्या तुम्हें स्नैल्स चाहिए? बिल मैं दूँगी. बिना किसी हिचकिचाहट के, प्लीज़. मेरे
पास ढेर सारे पैसे हैं, और मुझे उन्हें पैरिस में खर्च करना
ही है.”
आदाब-अर्ज़
है,
आ टपके – और वह उसके लिए पैसे क्यों दे? बेर्ग
ने मेहमाननवाज़ी से साफ़ इनकार कर दिया.
“नहीं,
तुम्हें कुछ न कुछ पीना ही पड़ेगा. कोई बढ़िया किस्म की कोन्याक...”
“मैं
पीता नहीं हूँ.”
“ऐसे
कैसे पीते नहीं हो?”
“बिल्कुल
नहीं पीता.”
“ये हुई
ना बात. और काफ़ी अर्से से नहीं पीते हो?”
“करीब
साल भर से.”
“वाह.
कौन सोच सकता था. याद है, झरने में तैरा करते थे?”
“तालाब
में”
उसने
दृढ़ता से कहा:
“झरने
में.”
उसे याद
था,
कि झरने में नहीं, हाँलाकि अच्छी तरह याद नहीं
था, कि किसके साथ और किन परिस्थितियों में, और किस हद तक सामूहिक रूप से, अगर कहीं तैरता भी था
तो, मगर झरने में तो कदापि नहीं, हालाँकि
क्या फ़र्क पड़ता है, झरने में ही सही. मगर था तो तालाब ही.
उसने
कहा:
“तुम
मेरी तरफ़ मत देखो, दिल चाहता हो तो पियो और कुछ खा लो.
ये तैरना, चाहे
कहीं भी क्यों न हो, और छतों पर चलना – किसी विशेष घटना की
याद नहीं दिलाते थे – जो भूल चुके हो उसमें से मुश्किल से ही कुछ याद आता है. छोटे
थे, सिरफ़िरे.
“अगर
तुम्हें परेशानी न हो, तो मैं एक पैग ”शैटो गिस्कोर” का लूँगी.”
उसने
“शैटो गिस्कोर” का एक पैग ऑर्डर किया, पूरी तरह शुद्ध अंग्रेज़ी में नहीं,
और जब बेर्ग ने दृढ़ता से (जितना संभव था) कहा, कि वह कॉफ़ी भी नहीं पियेगा, तो फिर से अंग्रेज़ी में,
बेयरे की उपस्थिति में, बेर्ग से बोली कि ये सही
नहीं है. फिर बोली: “ एक मिनट”, - टॉयलेट की ओर चली गई.
बेर्ग का
एक अपना तरीका था,
जिसे उसने ख़ुद ही सोचा था. मन ही मन वर्णाक्षरों को दुहराना और हर
अक्षर पे नाम याद करना. वे, असल में बहुत नहीं हैं. नाम. (और
अक्षर तो और भी कम हैं). अक्सर ये तरीका काम कर जाता है.
आ. - आन्ना,
एलेना, अलीना, अरीना,
आग्लाया.... बे. – ब्रोन्या, बेला...वे.
– वाल्या, वा-या, वीका, और वसिलीसा... गे. – गलीना, गेन्रिएत्ता...
ई. – पर
मिल गया:
ईरा, इंगा,
इलोना – तभी दिमाग़ में सरसराहट हुई : इन्ना!
इन्ना.
इनेस्सा.
कंधों से
बोझ उतर गया.
इस नाम
ने एक धुँधली सी आकृति ग्रहण कर ली. संदर्भ के विवरण भी याद आने लगे – दो-एक
पात्रों के नाम उन ऐच्छिक ग्रुप्स में से एक ग्रुप के, जिनसे
बेर्ग के परिचितों के मुख्य गुट का कभी-कभार संबंध हो जाता था – वो ग्रुप, जिसके केंद्र में बेर्ग स्वयम् की कल्पना करता था.
बेर्ग को
कभी-कभी अचरज होता था, कि कुछ लोग उसके साथ परिचय को महत्व देते थे.
इसमें उसे अपने लिए कोई ख़ुशामद की बात नहीं दिखाई देती थी. अगर उसे समय रहते ही
भूल जाते, तो ज़्यादा अच्छा होता.
इनेस्सा
वापस आई.
“संक्षेप
में,”
इनेस्सा ने कहा, “ यूरच्का के साथ सब ख़त्म हो
गया है. तुम्हें, शायद, यूरच्का की याद
नहीं है?”
किस-किस
को,
और ख़ास यूरच्का को याद रखना उसकी मजबूरी नहीं है.
“मैंने
बाद में उससे शादी कर ली थी. मगर अब - सब ख़त्म. चार साल गुज़ारे एक साथ.”
बेर्ग
यूरच्का के बारे में सोचना नहीं चाहता था, मगर दिमाग़ में यूरच्का की
भूमिका में एक पात्र टिमटिमाने लगा. एकदम बदरंग व्यक्तित्व. बेर्ग को अचरज भी हुआ
कि ऐसा बदरंग पात्र उसकी याददाश्त में रहने के काबिल है.
“बढ़िया,” इनेस्सा ने होठों से जाम हटाकर कहा, “कोई ख़ुशी सी थी,
बस, वहाँ खिड़की के पास हेमिंग्वे बैठा था,
उपन्यास लिख रहा था, समझ रहे हो?”
“यहाँ
काफ़ी लोग आ चुके हैं,” बेर्ग ने कहा.
“मैं हर
चीज़ माफ़ कर सकती थी, उसकी सभी प्रेमिकाओं को, सारी
बेवफ़ाईयों को, मगर पैरिस, पैरिस के लिए
मैं उसे कभी माफ़ नहीं करूँगी!...तीन साल तक वह मुझे धोखा देता रहा. पैरिस जाता,
जैसे बिज़नेस ट्रिप पर जा रहा हो, कभी-कभी
बिज़नेस के लिए भी जाता था, मगर हमेशा नहीं!...सबसे ज़्यादा डर
उसे, पता है, किस बात का था? कि मैं पैरिस में न आ धमकूँ. और उसका डर सही था. यहाँ हम दोनों के काफ़ी
परिचित हैं, फ़ौरन सारा भेद खुल जाता. और तुम ख़ुद भी उसे
जानते हो.”
“मेरा
ख़याल है,
कि नहीं जानता,” बेर्ग ने कहा.
“चलो, मैं
फ्लैट से बाहर नहीं निकलती, मैं पूरी दुनिया घूम चुकी हूँ!
मैं हाँगकाँग जा चुकी हूँ. इजिप्ट गई थी. न्यूज़ीलैण्ड भी गई थी. यूरोप में ऐसी कौन
सी जगह है, जहाँ नहीं गई हूँ. पूरा इटली घूम चुकी हूँ –
मिलान, वेनिस. फ्लोरेन्स, रोम...मगर
पैरिस कभी नहीं आई थी. बस, अभी आई हूँ. यकीन नहीं होता,
कि मैं पहली बार पैरिस आई हूँ. ये उसने, उसने
मुझे हमेशा पैरिस आने से रोका. उसीने पैरिस के बारे में गन्दी-गन्दी बातें कहीं.
क्या तुम यकीन कर सकते हो कि मैंने उन पर विश्वास कर लिया?”
“उस पर?” बेर्ग ने सवाल दुहराया.
“ उस पर, कि
पैरिस – गन्दा, उकताहटभरा छोटा-सा शहर है?! नहीं कर सकते?”
“क्या
मैं यकीन कर सकता हूँ, कि तुमने यकीन कर लिया, कि
पैरिस गन्दा, उकताहटभरा छोटा सा शहर है?” बेर्ग ने सवाल को व्यवस्थित किया, ये निश्चित न कर
पाने के कारण कि उससे इस सवाल पर कैसे जवाब की अपेक्षा की जा रही है.
“मैं ख़ुद
भी विश्वास नहीं कर सकती, मगर मैंने विश्वास कर लिया!”
बेर्ग को
ये दिलचस्प लग रहा था. उसे कहीं जाने की जल्दी भी नहीं थी.
“मुझे तो
बचपन से मालूम था,
कि पैरिस तो पैरिस है. कि पैरिस – हमेशा ओ हो हो! है. मगर तब –
विश्वास कर लिया. सुअर है मेरा यूरच्का – मैं तुमसे कहती हूँ. तुम्हें वेरोनिका की
याद है? अरे, वही, बड़ी-बड़ी आँखों वाली?...”
याददाश्त
पर ज़ोर दिया.
“अरे, कैसे
याद नहीं है, उसका गलानोगव के साथ...”
“ऐ ख़ुदा, मुझे
तो गलवानोगव की भी याद नहीं है!” बेर्ग चीख़ा.
“गलवानोगव
नहीं,
गलानोगव. ख़ैर, ये ख़ास बात नहीं है. मतलब,
जब मेरा यूरच्का उसके पास से पहली बार आया, वह
निचोड़े हुए नींबू की तरह था. उसने मुझसे कहा, कि पैरिस से
ज़्यादा बुरी कोई और जगह नहीं है. कि घण्टे और मिनट गिनता रहा, कि कब पैरिस से वापस जाएगा. मैंने कहा, ऐसा कैसे,
वो तो पैरिस है!...मगर वह बोला : कैसा पैरिस? छेद
है, न कि पैरिस. अरे, टॉवर दिखाई देता
है, तो वह सिर्फ तस्वीरों में टॉवर है, वर्ना वैसे – जो चाहो, समझो, मगर
टॉवर नहीं है...मैंने पूछा : और नोत्र दाम?... और उसने कहा,
तूने बचपन में ह्यूगो को खूब पढ़ लिया है, तुझे
तो नोत्र दाम को देखना भी नहीं चाहिए. और उसके पास तस्वीरें भी कैसी भद्दी निकली थीं.
तस्वीरों में सभी लोग कैसे बदसूरत थे...मैंने पूछा, क्या
तूने जानबूझकर सिर्फ आवारा लोगों की तस्वीरें खींची हैं? कहाँ
के आवारा, वह बोला, ये ही तो पैरिसवाले
हैं!...और सड़कों पर कचरा, और इन्सान की शक्ल के डस्ट-बिन के
बजाय, हैंगरों पर पॉलिथिन की थैलियाँ...
“ये
आतंकवाद के कारण,”
बेर्ग उठ गया.
“मगर
क्या तब मैं यह जानती थी? देखती हूँ ; हैंगर
पर, या क्या कहते हैं...और थैली में मुड़े-तुड़े बियर के
डिब्बे...एक और थैली. और एक थैली. और वह जान बूझ कर ये तस्वीरें ले रहा था,
जिससे कि मुझ पर प्रभाव डाल सके. जिससे मुझे पैरिस से नफ़रत हो जाए.
और घर भी किराए पर बेहद बुरे लेता था. और उसकी तस्वीरों में पैरिस एक गलीज़ शहर
प्रतीत होता था. मुझे अचरज हुआ. उसने मुझसे कहा, “तुम्हें
पैरिस बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा. पिछले कुछ सालों में ये मेरे लिए सबसे बड़ी
निराशाजनक बात रही है”. ज़ाहिर है, मैंने यकीन कर लिया! और
मैं उस पर यकीन कैसे न करती? मैं सोचती थी, कि वह वहाँ बिज़नेस के सिलसिले में जाता है, डाक्टरी
उपकरण ख़रीदने...”
“दिलचस्प
है,”
बेर्ग ने कहा.
“सैन
की तरफ़, बोला, देखने से भी हँसी आती है,
उसे पार कर सकते हो...और बोला, कितना फूहड़पन
है : सैन – और स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी बाहर झाँक रहा है!?. तुम
हँसोगे. ये उसने मुझसे इसलिए कहा, कि मैं हँसूँगी.
उसने कहा, कि
उन्होंने अपनी आज़ादी से, समानता से और भाई चारे से सबको अपना
लिया है. बिल्कुल बनावटी हैं.”
इनेस्सा
ने मुँह बनाया. उसके चेहरे पर कई, विविध प्रकार के भाव आ रहे थे.
इनेस्सा को मुँह बनाना अच्छा लग रहा था – कभी वह आँख़ें गोल-गोल घुमाती, कभी नाक सिकोड़ती, कभी मुँह के एक किनारे से
मुस्कुराती. बेर्ग ने सोचा कि उसकी फ़ोटो खींचना, शायद, मुश्किल है – उसके भाव पकड़ना असंभव है.
मुझे
ऑफ़िस में भी पूछते थे : तेरे वाले को पैरिस कैसा लगा? मैं
ईमानदारी से जवाब देती : मेरे वाले को अच्छा नहीं लगा. मगर मुझ पर यकीन नहीं करते
: ये क्या, पैरिस में अच्छा नहीं लगा, क्या
कहती है?...मैं ख़ुद भी अपना एक किस्सा गढ़ लेती – उस बारे में
कि हम सब कल्पना के वश में रहते हैं.. “पैरिस, पैरिस!” मगर
असल में – अच्छा, पैरिस है, तो क्या?
मैं उस पर यकीन करती थी, यूरच्का पर. कल्पना
कर सकते हो, कैसा अधिकार था उसका मुझ पर!...ओह, बेवकूफ़ थी, ओह बेवकूफ़!...वह इस पैरिस के लिए ऐसे
निकलता, मानो किसी लेबर-कैम्प में जा रहा हो. कहता, इससे बेहतर होता कलिमा जाना, वहाँ ज़्यादा अच्छा है.
और मौसम बेहतर है.”
“मौसम? कलिमा
में?”
“हाँ, वह
पैरिस के मौसम को भी गालियाँ देता. कहता, कि पैरिस में सब
ठण्डक के मारे जम जाते हैं. कि सब लोग घर गर्माने पर बचत करते हैं. और आम तौर से
इस बारे में विचार नहीं कंरते, क्योंकि ऐसी आम धारणा है,
कि – पैरिस गरम शहर है, वहाँ बर्फ नहीं गिरती,
और, क्योंकि सभी इस धारणा के गुलाम हैं,
इसलिए यहाँ घरों को गरमाया नहीं जाता. इसलिए पैरिस के घरों में
हमेशा ठण्डक रहती है, गर्मियों में भी. अपना गोगल गया था
पैरिस “ बेजान रूहें” लिखने के लिए, मगर ठण्ड़क के मारे इतना
अकड़ गया, कि इस पैरिस से इटली भाग गया . मगर गोगल के ज़माने
में तो कभी-कभार फ़ायरप्लेस गर्माए जाते थे, मगर अब तो वे भी
नहीं हैं. और वाकई में, जब वह पैरिस जाता, तो मैं उसकी, यूरच्का की, बुरी
सेहत के बारे में सोच-सोचकर परेशान हो जाती. कहीं उसे ज़ुकाम न हो जाए. और जब पिछले
साल मैं उसके साथ आने की तैयारी कर रही थी, जिससे कि उसे
पैरिस में उदास न लगे, तो उसने मुझे साथ नहीं आने दिया,
कहा, फ़रमाइए, बगैर किसी
परेशानी के. तुम बार्सेलोना चली जाओ. वो है शहर!”
“बार्सेलोना
अच्छा शहर है,”
बेर्ग ने सहमति दर्शाई.
“और क्या
पैरिस बुरा है?
उसने कहा था, कि जब मैं पैरिस देखूँगी,
तो मैं सपने देखना भूल जाऊँगी, मेरे भीतर की
हर आशा मैली हो जाएगी, क्योंकि असली पैरिस – इन्सानियत के
ख़्वाब का मज़ाक है. और मैंने उसका यकीन कर लिया! ख़ुद को भी अब अचरज होता है,
कि मैं उस समय यकीन कैसे कर सकी?! बस – सुना, और कर लिया यकीन. क्योंकि उससे एक ख़याल की तरह प्यार करती थी.
पैरिस...एलेन देलोन, रेनुआर, द’अर्तान्यान...”
“क्या
तुमने किसी भी ऐसे इन्सान से बात नहीं की, जो पैरिस जा चुका हो?”
“बेशक, की
थी. सिर्फ मैंने अपने दिमाग़ में ये भर लिया था, कि पैरिस एक
कल्पना है और एक नरक है, क्योंकि यूरच्का पर यकीन करती थी,
और कोई भी चीज़ मेरी राय नहीं बदल सकती थी...मुझसे कहते : आह,
पैरिस!...और मैं कहती : ये आपके भीतर की घिसी पिटी चीज़ें बोल रही
हैं. आप सिर्फ इस बात को स्वीकार करने से डरते हो, कि पैरिस
कल्पना है और नरक है, अब करोगे आह, आह.
आप तो बेमतलब उपकरणों के साथ टूथब्रश ख़रीदते हैं, क्योंकि
उन्हें टी.वी. पर आपको दिखाया जाता है, अपनी अकल से जीना तो
भूल ही गए हैं. वो मोपासाँ पैरिस से भाग गया और वह सही था, क्योंकि
ये टॉवर तो राक्षस है, और एक सामान्य व्यक्ति को, अगर वह सचमुच में सामान्य
है, तो उसकी ओर घृणा के बगैर देखना अवास्तविक है, मैंने ऐसा कहा, सिर्फ हर चीज़ की, मैंने कहा, आदत हो सकती है, वैसे
आजकल सभी तारीफ़ कर रहे हैं, दिखावा कर रहे हैं, कि ये कोई ख़ास चीज़ है, मगर वह तो जैसा राक्षस था,
वैसा ही आज भी है. ओ! मुझसे कोई बहस नहीं कर सकता था. मुझे अपने आप
पर इतना यकीन था, कि दूसरों को भी उनकी राय बदलने पर मजबूर
कर देती थी, उन्हें, जो पैरिस में रह
चुके थे. ऐसी बदले की भावना थी मेरे मन में पैरिस के प्रति. मैं उससे इसलिए बदला
ले रही थी, क्योंकि वह वैसा नहीं था, जैसा
उसे होना चाहिए था. और सब उसकी वजह से, यूरच्का की वजह से.
इनेस्सा
ने एक और पैग का ऑर्डर दिया, बेर्ग ने प्रयत्नपूर्वक सी-फूड़ से
इनकार किया.
“और बाद
में सारा भेद खुल गया, बड़े भद्दे तरीके से खुला, कहने का मन नहीं होता. और जब मैं समझ गई, कि इस तरह
से वह वेरोनिका को मुझसे छुपा रहा था – ऐसे बेशरम झूठ का सहारा लेकर, तब, मुझे गहरा धक्का पहुँचा. मुझे वेरोनिका से क्या
मतलब है! सोचो, वेरोनिका...क्या तुम्हें उसकी याद नहीं है?
ठीक है, थूकती हूँ उस पर. मैं उसे वेरोनिका के
लिए माफ़ कर देती, अगर ये झूठ न बोला होता. मैं उसे सारी
लड़कियों के लिए माफ़ कर देती. मैं उसकी हर गलती माफ़ कर देती. मगर पैरिस के लिए
नहीं!...मुझसे इतना बड़ा धोखा!...मुझसे!....उससे, जो बचपन से
पैरिस की इतनी दीवानी हो!...”
“वैसे
तुम बेहद भरोसेमन्द हो,” बेर्ग ने कहा.
“और मेरा
यूरच्का जलकुक्कड़ भी है. उसके ऐसे-ऐसे डबल-स्टैण्डर्ड हैं. मैंने फ़ैसला किया, तुम
जाओ, यूरच्का, कहीं दूर और मैं तुमसे
विश्वासघात करूँगी. मैं पैरिस को अपना लूँगी. मैं तुझे ऐसा धोखा दूँगी, जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते! एक साथ पूरे पैरिस को!...ख़ुदा, मैं उसकी कितनी गुनहगार हूँ!...पैरिस की...कोई भी उसका इतना बड़ा गुनहगार
नहीं होगा, जितनी मैं हूँ!...पैरिस – अजूबा है. और मैं –
बेवकूफ़. बेवकूफ़ थी! मगर अब नहीं. यूरच्का को ही बेवकूफ़ बने रहने दो!...”
“और
तुम्हें काफ़ी पहले समझ आ गई?” बेर्ग ने पूछा.
“दो
हफ़्ते पहले. सात सितम्बर को, अगर तुम्हें दिलचस्पी हो तो. मैंने
क्या सोचा? ये. अगर तू ऐसा है, तो मैं
भी ऐसी ही हूँ. मैंने यूरच्का की कार बेच दी, वैसे तो ये हम
दोनों की है, मगर न जाने क्यों वह उसे अपनी समझता था,
फोर्ड मोंडिओ, करीब-करीब नई है, और मेरे पास पॉवर ऑफ अटोर्नी है, मैंने जल्दबाज़ी में
काफ़ी छूट पर बेच दी.. और कुछ और भी. मैं तो क्वार्टर भी बेच देती, अगर समय होता. यूरच्का के लिए चिट्ठी छोड़ दी कि पुलिस में शिकायत न करे.
ये मैंने उससे बदला लिया है. मैं पूरे पैसे पैरिस में उड़ा दूँगी. पूरे के पूरे!
मैं चाहती हूँ, कि पैरिस मुझे माफ़ कर दे. मेरा मतलब पैरिस से
– व्यापक अर्थ में है. सोच रहे हो, कि उसका मुझसे कोई
लेना-देना नहीं है? वो कौन, मैं कौन?
जाने दो, तो क्या? ख़ास
बात ये, कि उसके सामने मेरे दिल में वो न रहे...समझ रहे हो?”
“वो –
क्या?”
बेर्ग ने पूछा.
“अरे, वो,
मालूम नहीं, ख़ैर, अपराध
की भावना, शायद...”
“हाँ,” कोई और बढ़िया शब्द न सूझने के कारण बेर्ग ने कहा.
“जाने
दो. और मैं यहाँ अपनी ख़ुशी से रह रही हूँ. पैरिस में जीवन का हर पल मेरे लिए सुरूर
जैसा है. मैं सिर्फ तीन दिन से यहाँ हूँ, अभी मैंने कुछ भी नहीं देखा
है. और उसे जितना चाहे मुझ पर मुकदमा करने दो, मैं थूकती
हूँ...मैं ख़ुशनसीब इन्सान हूँ. मुझे प्यार हो गया है. पैरिस से प्यार हो गया है.
जब मैं क्लिशी बुलेवार्ड पर चलती हूँ और मेरे सामने बाल्कनियों वाला ये कोने का घर
आता है, सीधा-सादा घर बालकनियों वाला, तो
मेरा रोने को जी चाहता है...या जब मैं होटल से वेंडोम स्क्वेयर पर निकलती हूँ,
और स्तम्भ की ओर देखती हूँ, तो मैं उन सब के
बारे में सोचती हूँ – नेपोलियन के बारे में, और कोर्बे के
बारे में, और इस बदनसीब राजकुमारी डायना के बारे में,
वह भी ठीक इसी तरह होटल से निकली थी...मेरा दिल सीने से उछलकर बाहर
आने लगता है...”
“रुको, तुम
कौन से होटल में रुकी हो?”
“रिट्ज़.
मैं रिट्ज़ होटल में ठहरी हूँ.”
“रुको.
तुम्हें पता है,
कि रिट्ज़ हॉटल में कमरे का किराया कितना है?”
“कैसे
नहीं मालूम होगा,
अगर मैं वहाँ ठहरी हूँ?”
“अच्छा, माफ़
करना,” बेर्ग बुदबुदाया.
“मेरा
कमरा बहुत ख़ूबसूरत है, कम्बन स्ट्रीट दिखाई देती है. वहाँ ज़्यादा
शानदार कमरे भी हैं. मैं ज़्यादा महँगा कमरा भी ले सकती थी. पैसों का कोई सवाल नहीं
है, बस, मैं इतनी बुर्झुआ नहीं
हूँ...इतनी बुर्झुआ नहीं हूँ, कि संगमरमर के बाथटब के,
महँगे फर्नीचर, शानदार क्वीन-साइज़ पलंग के
पीछे पागल हो जाऊँ...इस क्वीन-साइज़ पलंग में तो मैं डूब ही गई, सही में. मुझे, अकेली को,
क्यों चाहिए ये क्वीन-साइज़ पलंग?... मेरी नज़र में ये बेईमानी
है. मुझे उसमें आराम महसूस नहीं होता. मुझे बोद्लेर पसन्द है, नासपीटे कवियों को मैं पसन्द करती हूँ. और यहाँ...मैं, हो सकता है, कहीं नज़दीक , मोंटमार्ट्रे
के पास कहीं चली जाऊँ....और, मैं रात पुल के नीचे भी गुज़ार
सकती हूँ. आख़िर, क्यों नहीं? ये पैरिस
है. वैसे, क्या तुमने कभी असली जीन डुसो पी है? मेरे कमरे में जीन डुसो की बोतल है पंद्रह साल पुरानी. चलो, हम तुम मिलकर उसका काम क्यों न तमाम कर दें?”
बेर्ग ने
एकटक इन्ना की ओर देखा, - क्या वह सचमुच भूल गई है, कि वह नहीं पीता, या ये कोई खेल है?
अनजान
शराबियों से दोस्ती के ग्यारह महीनों में बेर्ग ने दो बार अपना आपा खोया था.
“चाहे जो
हो जाए,
मैं सारे पैसे पैरिस पर खर्च कर डालूँगी. समझ लो, कि जब तक मैं सारा पैसा पैरिस पर नहीं लुटाती, यहाँ
से नहीं जाऊँगी. मैं नशे में डूब जाना चाहती हूँ, पैरिस में
चाहती हूँ. मैं पैरिस चाहती हूँ. मेरे पास ढेर सारे पैसे हैं. तो, पैरिसवाले, चलें?”
चष्मा
ठीक करते हुए,
बेर्ग अब तक नहीं जान पाया था कि वह इन्ना को क्या जवाब देगा,
उसने मुँह खोला – मगर सिर्फ शुरूआत करने के लिए – उम्मीद थी,
कि आगे कुछ समझदारी के शब्द कहेगा, - मगर जवाब
देने की नौबत नहीं आई : माशा, उलझे बाल लिए, हाँफ़ते हुए, दरवाज़े में प्रकट हुई.
“क्या
बात है!” बेर्ग ने कहा.
बेर्ग उठ
गया.
माशा ने
उसे देखा और दूसरी मेज़ों से लगभग टकराते हुए उसकी ओर लपकी.
“मैंने
घड़ी ठीक नहीं की थी!... वैसे, मॉस्को टाईम के हिसाब से मैं
ठीक वक्त पर हूँ!...”
“दो
घण्टों का फ़रक है,”
बेर्ग ने ख़ास इन्ना के लिए समझाया.
इन्ना ने
सिर हिलाया,
यह दिखाते हुए मुस्कुराई कि वह समझ गई है.
बेर्ग
उनका परिचय कराने लगा.
“माशा,” उसने इनेस्सा से कहा. “इन्ना,” उसने माशा से कहा,
“कभी मैं और इनेस्सा स्लबोद्स्की के पास एक ही हांडी में पकाते थे.”
“कौन से
स्लबोद्स्की के यहाँ आप इनेस्सा के साथ पकाते थे?” इन्ना ने इस तरह पूछा जैसे
वह माशा हो (माशा को सवाल न पूछना आता था).
“स्लबोद्स्की
के स्टूडियो में,”
बेर्ग ने भौंहे कुछ उठाकर पूछा, “या नहीं?”
“लेशा, मेरा
नाम नाद्या है,” असल में इन्ना ने नहीं, बल्कि नाद्या ने कहा, “तुम मुझे कोई और समझ बैठे.”
“लेशा?” माशा ने दुहराया.
बेर्ग ने
नाद्या की आँखों में देखा, बावजूद इसके वह साफ़ महसूस कर रहा
था, कि कैसे कुछ भी न समझ पाते हुए माशा कैसे उनके चेहरों पर
नज़रों के तीर मार रही है, - और वैसे तुलना करने जैसा है क्या?
- दोनों को ही एक-सा अचरज हो रहा है, नाद्या
को और बेर्ग को, शायद इतना ही फ़र्क था, कि बेर्ग (ऐसा उसे लगा) सब कुछ भाँप गया था.
“मैं बरीस
हूँ,”
बेर्ग ने कहा.
मूक
दृश्य कुछ ही समय चला, - ज़ोर से “ओह, गॉड! कहकर
नादेझ्दा ने अपने माथे पर हाथ मार लिया और, जैसे इस आघात से
छूटकर वह ज़ोर से, काफ़ी ज़ोर से ठहाके लगाने लगी. मगर ये ठहाके
नहीं थे, ये हँसी थी, मरोड़ के साथ,
रुक-रुक कर, जो बीच-बीच में टूट जाती थी,
- चेहरे पर काजल पुत गया.
बेर्ग भी
हँस रहा था,
मगर बगैर आँसुओं के.
माशा भी
हँसना चाहती थी,
मगर नहीं हँस पाई, - वह कृत्रिमता से मुस्कुरा
रही थी, जैसे भावी कैफ़ियत के बारे में सोचकर मुस्कुराते हैं.
“कोई बात
नहीं,
जाने दो,” नाद्या ने आख़िरकार कहा. “ क्या फ़र्क
पड़ता है. बकवास. हमें मुलाकात का जश्न मनाना चाहिए. मेरे कमरे में जीन डुसो
है...या नहीं!...वो बाद में. माशेन्का आप पहली बार पैरिस आई हैं? चलो, शुरू में कहीं चलते हैं. देखो, बो-या, कताकोम्ब जा सकते हैं. या, मिसाल के तौर पर, जॉर्ज पोम्पिदू सेंटर. और शाम को –
मॉलिन रूझ. पता नहीं, वहाँ क्या टिकिट बुक करनी पड़ती है या
नहीं...ग्राण्ड गिनोल, अगर चाहो तो...वहाँ जाना चाहिए –
ग्राण्ड गिनोल!...”
“माफ़
करना,”
बेर्ग ने कहा.
बेर्ग और
माशा के कुछ और प्लान्स थे.
एक दूसरे
से बिदा लेकर वे चले गए.
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