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सोमवार, 15 जनवरी 2024

Ivanov

 

इवनोफ़

(चार अंकों का रुसी नाटक)

 

लेखक

अंतोन पाव्लविच चेख़फ़

 

रूसी से सीधे हिन्दी में अनुवाद

आ. चारुमति रामदास

एवं

कुँवर कांत

 

2024


 

Ivanov

(4-act play)

 

Russian original (1887):

Anton Pavlovich Chekhov

(1860-1904)

 

Direct Hindi translation (2023):

A. Charumati Ramdas

&

Kunwar Kant

 

2024


 

 

 

Title:

Ivanov (4-act play)

Author:

Anton Pavlovich Chekhov (1860-1904)

Translators:

A. Charumati Ramdas

and

Kunwar Kant

Publisher: Akella Charumati Ramdas

Publisher's address: 502 Shalina Residency,

12-5-33/1, Vijayapuri, Secunderabad-500017,

Telangana, India.

Printer: www.pothi.com

Edition details: I

ISBN: 978-93-6128-450-2

Copyright: © Akella Charumati Ramdas

 

 


 

प्रतिवेदन

 

      सुप्रसिद्ध रूसी नाटककार एवँ कथाकार अन्तोन चेख़फ़ (1860- 1904) पेशे से डॉक्टर थे और डॉक्टरी के साथ-साथ लेखन कार्य में भी व्यस्त रहते थे. कथा लेखन में अन्तोन चेख़फ़ का कोई सानी नहीं.

      कथा लेखन की विधा में अन्तोन चेख़फ़ ने काफ़ी क्रांतिकारी परिवर्तन किये. चेख़फ़ की कहानियों और नाटकों में घटनाएं तो काफ़ी कम होती हैं और वे कालक्रम के अनुसार भी नहीं होतीं, मगर पात्रों के अंतर्मन में चल रहे नाटक काफ़ी स्पष्ट होते हैं, अंतर्मन में हो रही हलचल को वे अप्रत्यक्ष रूप से किसी महत्त्वपूर्ण विवरण से प्रकट करते हैं. उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानियों में एक मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद और संक्षिप्तता दिखाई देती है.

      आरम्भ में उन्होंने अपनी लघु कथाओं पर अत्यंत लघु नाटिकाओं की रचना की. फिर स्वतन्त्र नाटकों की रचना की. उनके एकांकी तथा बड़े नाटक बेहद प्रसिद्ध थे और आज भी हैं, इनका मंचन होता ही रहता है.

      चेख़फ़ की तकनीक की विशेषता यह है कि वे अनेक ऐसे विवरण प्रस्तुत करते हैं, जो अनावश्यक प्रतीत होते हैं, जैसे कुछ दृश्य, आवाजें, गंध जो वातावरण निर्मिती में सहायक होते हैं.

      “इवनोफ़” चेख़फ़ का पहला नाटक था जो थियेटर के लिए लिखा गया था. इसकी रचना 1887 में हुई थी और यह प्रकाशित हुआ था सन 1889 में.  आरम्भ में तो यह नाटक सफल नहीं हुआ, मगर कुछ समय बाद लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ने लगा.

      चेख़फ़ ने “इवनोफ़” की रचना ‘कॉमेडी’ के रूप में की थी. अभिनव, अपरम्परागत ‘कॉमेडी’ जो आधुनिक नाटक सिद्धांतों का उल्लंघन करती थी.

युवा अंतोन चेख़फ़ बुद्धिमान, चतुर, संवेदनशील, समाजसेवक (मरीज़ों का मुफ़्त में इलाज करना) तो था ही, अब इस नाटक के ज़रिये समाजसुधारक भी बनता है.  चेख़फ़ का मक़्सद ये है कि – हम जिन लोगों को अक्सर हर तरफ़ देखते हैं उनकी ख़ामियों को, उनकी ‘होशियारी’ को, देख कर दर्शक भले ही पहले हँस पड़ें, पर उस होशियारी के पीछे छुपी मूर्खता का एहसास होने पर सोच में पड़ जाएं – कि क्या हम सचमुच ऐसे ही हैं, क्या हम सब सही कर रहे हैं – और इस तरह समाज का दिल जीत लें और अपने आप को एक महान लेखक के रूप में प्रस्तुत कर लें.  और चेख़फ़ इसमें बेहद क़ामयाब हो गया.

नाटक के प्रमुख नायक की रचना “साधारण व्यक्ति” के रूप में की गई है, न कि ‘हीरो’ के रूप में. इवनोफ़ एक “आस्थाहीन, उद्देश्यहीन, प्रेम विहीन” व्यक्ति है. इवनोफ़ सोचता है कि उसने जीवन सही तरीक़े से नहीं जिया और इसीलिये उसकी आत्मा इतनी जल्दी थक गई है, वह “टूट चुका है”.  उसके चारों ओर के लोगों में से कोई भी उसे समझने की कोशिश नहीं करता, बल्कि सभी उसे एक भयानक, हृदयहीन व्यक्ति समझ कर ठुकराते हैं, सिर्फ़ साषा ही है, जो उसकी ज़िन्दगी सुधारना चाहती है. इवनोफ़ अपने कर्ज़ के बोझ तले दबा रहता है. जब अपने सामने कोई रास्ता नहीं देखता, तो वह ख़ुद को गोली मार लेता है.

      नाटक के पात्र जाने पहचाने प्रतीत होते हैं, ऐसे व्यक्तियों को हम अपने आसपास अक्सर देखते हैं ...

      नाटक में ताश के खेल का प्रतीकात्मक उपयोग किया गया है. खिलाड़ी के पास बहुत अच्छे पत्ते होने पर भी नसीब में कई बार हार ही लिखी होती है, जैसे वास्तव में बुद्धिमान और सुयोग्य इवनोफ़ के साथ होता है. बहुत ज़्यादा सोचने के कारण, वह भी न जाने किस बारे में, इवनोफ़ अवसाद में डूब चुका है और उससे बाहर आने की इच्छा शक्ति भी उसमें नहीं है.

      नाटक को पढ़कर आप अनचाहे ही कई प्रश्नों के उत्तर ढूंढेंगे...यही है चेख़फ़ की रचनाओं की विशेषता, ऐसा लगता है कि लेखक ने सब कुछ नहीं कहा है, आपके सामने कई सवाल खड़े किये हैं.

      आशा है, आप इवनोफ़ के प्रति संवेदनशील रहेंगे.

आ. चारुमति रामदास

6 जनवरी 2024


 

 


 

अंतोन  पाव्लविच चेख़फ़

(1860 – 1904)

 


 

पात्र-परिचय

इवनोफ़ निकलाय अलिक्सेयविच, कृषि संबंधी मामलों के दफ़्तर का अनिवार्य सदस्य, उम्र 35 साल.

आन्ना पित्रोव्ना, उसकी पत्नी, शादी से पहले सारा अब्राम्सन.

षाबिल्स्की मत्वेय सिम्योनविच, काऊंट, इवनोफ़ का मामा, उम्र 62 साल.

ल्येबिद्यिफ़ पाविल किरीलिच, ज़ेम्स्त्वा काउन्सिल का अध्यक्ष.

ज़िनईदा साविष्ना, ल्येबिद्यिफ़ की पत्नी.

साषा / षूरा / अलिक्सान्द्रा पाव्लव्ना, ल्येबिद्यिफ़ दंपत्ति की पुत्री, उम्र 20 साल.

ल्वोफ़ यिव्ग्येनी कन्स्तन्तीनविच, ज़ेम्स्त्वा का नौजवान चिकित्सक.

बबाकिना मार्फ़ा इगोरव्ना, जवान विधवा, ज़मींदार, अमीर व्यापारी की पुत्री.

कसीख़ द्मीत्री निकीतिच, एक्साइज़ अधिकारी.

बोर्किन मिख़ईल मिख़ाइलविच, इवनोफ़ का दूर का रिश्तेदार जो इवनोफ़ के नाम पर उसका कार्य-भार देखता है.

अव्दोत्या नज़ारव्ना, बूढ़ी औरत जिसका व्यवसाय अज्ञात है.

इगोरुष्का, ल्येबिद्यिफ़ के खर्चों पर पलने वाला.

पहला मेहमान
दूसरा मेहमान

तीसरा मेहमान

चौथा मेहमान

प्योत्र, इवनोफ़ का नौकर.

गव्रीला, ल्येबिद्यिफ़ परिवार का नौकर.

कुछ अन्य महिला एवँ पुरुष मेहमान और नौकर.

 

घटना मध्य रूस के किसी ज़िले में हो रही है.




 

इवनोफ़

पहला अंक

(इवनोफ़ की जागीर का बगीचा. बाईं ओर छत समेत घर का दर्शनीय भाग. एक खिड़की खुली हुई. छत के सामने चौड़ा अर्धवृत्ताकार खुला मैदान जहां से सामने और दाईं तरफ़ से बगीचे की ओर जाते वृक्षपथ.  दाईं तरफ़ ही बेंचें और मेज़ें.  अंतिम मेज़ों में से एक पर लैम्प जल रहा है. शाम हो रही है. पर्दे के उठते ही सुनाई देता है कि घर के भीतर वॉयलिन और पियानो पर युगल गान का रियाज़ हो रहा है)

 

I

(इवनोफ़ और बोर्किन)

(इवनोफ़ मेज़ के उस तरफ़ बैठा किताब पढ़ रहा है. बगीचे में पीछे की ओ ऊंचे जूते पहने, हाथ में बन्दूक लिए बोर्किन दिखाई देता है; वह हल्के नशे में है; इवनोफ़ को देखकर उसके क़रीब दबे पांव आता है और उसके बराबर में रुककर उसके चेहरे पर बंदूक से निशाना लगाता है.)

 

इवनोफ़ (बोर्किन को देखते ही चौंक कर उछल पड़ता है) - मीषा,  भगवान जानता है कि...आपने तो मुझे डरा ही दिया...मैं वैसे ही परेशान हूँ और ऊपर से आपकी ये मूर्खतापूर्ण शैतानियां... (बैठ जाता है) डरा दिया और ख़ुश हो रहे हैं...

बोर्किन (ठठाकर हंसता है) - अरे, अरे...भूल हो गई, भूल हो गई. (पास बैठ जाता है) अब और नहीं करुँगा, सच कहता हूँ... (अपनी टोपी उतारता है) बड़ी गर्मी है. क्या आप यकीन करेंगे, मेरी जान, कि कोई तीन घंटे में 17 मील का चक्कर काट कर आ रहा हूँ. ...हालत ख़राब हो गई...ज़रा टटोल कर तो देखिए दिल कैसे धड़क रहा है...

इवनोफ़ (पढ़ते हुए) - ठीक है, ठीक है, बाद में...

बोर्किन - नहीं, आप अभी टटोलिए. (उसका हाथ पकड़कर सीने से सटा देता है) सुन रहे हैं? धक्-धक्-धक्-धक्-धक्-धक्. इसका मतलब हुआ कि मुझे हृदय रोग है. किसी भी समय आकस्मिक मृत्यु हो सकती है. सुनिये, यदि मैं मर गया तो क्या आपको दुख होगा?

इवनोफ़ - मैं पढ़ रहा हूँ... बाद में...

बोर्किन - नहीं, संजीदगी से, दुख तो होगा ना आपको जो मैं अचानक मर जाऊँ? निकलाय अलिक्सेयविच, क्या आपको दुख होगा, गर मैं मर जाऊँ तो?

इवनोफ़ -  तंग मत कीजिए!

बोर्किन - बताओ, प्यारे, दुख होगा न?

इवनोफ़ - मुझे अफ़सोस है कि आपके मुँह से वोद्का की गंध आ रही है. मीषा, यह मुझे बिल्कुल पसंद नहीं.

बोर्किन - (हंसता है) क्या सच में गंध आ रही है? बड़े आश्चर्य की बात है...बल्कि इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं. प्लेस्निकी में अन्वेषक बाबू मिल गए, और उनके साथ, झूठ नहीं बोलूँगा, क़रीब आठ-एक जाम टकराए होंगे. वैसे, सच कहें तो पीना ख़तरनाक है. सुनिए, क्या वाक़ई में ख़तरनाक है? हाँ? ख़तरनाक है क्या?

इवनोफ़ - अब और बर्दाश्त नहीं होगा... समझने की कोशिश कीजिये मीषा, ये बदतमीज़ी है...

बोर्किन - ठीक है, ठीक है...ग़लती हो गई, भई ग़लती हो गई! ...भगवान सलामत रखे. बैठे रहिए... (उठता है और चल पड़ता है) अजीब लोग हैं, बात करना भी मुश्किल है. (लौटता है) अरे हाँ, अभी भूल ही जाता... ज़रा 82 रुबल देने की कृपा करें!..

इवनोफ़ - कौन से 82 रुबल?

बोर्किन - कल मज़दूरों को देना होगा.

इवनोफ़ - मेरे पास नहीं हैं.

बोर्किन - नम्रता से धन्यवाद देता हूँ! (चिढ़ाता है) मेरे पास नहीं हैं... मज़दूरों को तो पगार देना ही पड़ेगा ना? ज़रूरी है ना?

इवनोफ़ - मुझे नहीं मालूम. मेरे पास आज कुछ भी नहीं. एक तारीख़ तक इंतज़ार कीजिये, जब मुझे तनख़्वाह मिलेगी.

बोर्किन - लीजिये, कर लीजिये बात ऐसे लोगों से!... मज़दूर पगार लेने एक तारीख़ को नहीं, बल्कि कल सुबह आएंगे!..

इवनोफ़ - तो अब मैं क्या करुँ? लीजिये, काट डालिए मुझे, चीर दीजिए... और ये कैसी गंदी आदत है आपकी, कि ठीक उसी समय चिपक जाते हैं, जब मैं पढ़ रहा होता हूँ या लिख रहा होता हूँ या...

बोर्किन - मैं आपसे पूछता हूँ: मज़दूरों को पगार देना ज़रुरी है या नहीं? एह, आपसे तो बात ही करना बेकार है!.. (हाथ झटकता है) ऊपर से ज़मींदार हैं, शैतान ले जाए, ज़मीन-जायदाद ठीक-ठाक ही हैं... हज़ार एकड़ ज़मीन है र जेब में आधा कोपेक भी नहीं...शराब का तहख़ाना है, मगर बोतल खोलने के लिए कॉर्क-स्क्रू नहीं... कल ही त्रोयका उठाऊंगा और बेच दूँगा!  हां-नहीं तो! ओट्स की खड़ी फ़सल बेच दी, और कल रई भी बेच दूँगा. (मंच पर चहलकदमी करता है) आपको लगता है कि मैं लिहाज़ करूंगा? हाँ? ओह, नहीं, आपका ऐसे इन्सान से पाला नहीं पड़ा है...

II

(वही लोग, षाबिल्स्की (पर्दे के पीछे) और आन्ना पित्रोव्ना)

(खिड़की के पीछे से षाबिल्स्की की आवाज़ गूंजती है) “आपके साथ गाने-बजाने की कोई गुंजाइश नहीं... भरवां पाईक से भी गई गुज़री है आपकी संगीत की समझ, और पियानो की पट्टियों को दबाने का तरीका ही मूड ख़राब कर देता है.”

आन्ना पित्रोव्ना (खुली हुई खिड़की पर दिखाई देती है) - अभी कौन यहाँ बातें कर रहा था? अच्छा, तो ये आप हैं, मीषा? ऐसे क्या चहलक़दमी कर रहे हैं?

बोर्किन - आपके निकोलस के साथ और कैसे चल सकते हैं?

आन्ना पित्रोव्ना - सुनिए मीषा, किसी से कहिए कि क्राकेट के लिए पुआल ला दें.

बोर्किन (हाथ झटकता है) - मेहेरबानी करके आप मुझे बख़्श दें...

आन्ना पित्रोव्ना - बताइये तो, यह कैसा लहज़ा है... आप पर यह लहज़ा बिल्कुल नहीं जंचता. अगर चाहते हैं कि औरतें आपको पसंद करें तो उनके सामने न तो कभी नाराज़ हों और न ही अकड़ें... (पति से) निकलाय, चलिए पुआल पर गुलाटी मारते हैं!..

इवनोफ़ - अन्यूता, खुली खिड़की के पास खड़ी होना तुम्हारे लिए बिल्कुल ठीक नहीं. जाओ, दूर हटो... (चिल्लाता है) मामा, खिड़की बंद कर दो!

(खिड़की बंद हो जाती है)

बोर्किन - भूल मत जाइयेगा, ठीक तीन दिन के बाद ल्येबिद्यिफ़ को ब्याज़ चुकाना है.

इवनोफ़ - मुझे याद है. आज मैं ल्येबिद्यिफ़ के यहां जा रहा हूँ, उससे कुछ दिन और इंतजार करने को कहूँगा... (घड़ी देखता है)

बोर्किन - आप वहां कब जा रहे हैं?

इवनोफ़ - बस निकल ही रहा हूँ.

बोर्किन - (ख़ुश होते हुए) एक मिनट, एक मिनट! मुझे लगता है आज षूरच्का का जन्मदिन है... च् च् च् च्...और मैं भूल गया था...क्या याददाश्त है, आँ? (उछलता है) जाऊंगा, जाऊंगा... (गाता है) जाऊंगा...जाकर नहाऊँगा, दो-चार पन्ने लिखूंगा, स्प्रिट की तीन बूंद मारुंगा और – कम से कम शुरू तो करूँ... प्रिय निकलाय अलिक्सेयविच, मेरे दोस्त, मेरे दिल के फ़रिश्ते, आप हमेशा तनाव में रहते हैं, हे भगवान, बिसूरते रहते हैं, लगातार उदास रहते हैं जबकि हम दोनों मिलकर, भगवान जानता है, क्या नहीं कर सकते! आपके लिए मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूँ... अगर चाहे तो आपके लिए मैं मार्फ़ूषा बबाकिना से ब्याह रचा लूँ? दहेज का आधा हिस्सा आपका... मतलब, आधा नहीं, बल्कि पूरा ही ले लीजिये, पूरा!

इवनोफ़ - आप बकवास कर रहे हैं...

बोर्किन - नहीं, संजीदगी से, ऐ भगवान, आप चाहें तो, कहिए तो, मैं मार्फ़ूष्का से ब्याह कर लूं? दहेज आधा-आधा... मगर, मैं आपसे ये बातें कर क्यों रहा हूँ? आप कभी समझ भी पाएंगे? (चिढ़ाता है) “बकवास कर रहे हैं” वैसे आप इंसान तो अच्छे हैं, बुद्धिमान हैं पर आप में वह जोश नहीं है, समझ रहे हैं ना, वो तड़प ही नहीं है. इस तरह हाथ हिला देते हैं, कि शैतान का जी भी मिचलाने लगे... आप दिमाग़ी तौर पर बीमार हैं, रोनी सूरत, और अगर आप सामान्य होते, तो साल भर बाद आपके पास दस लाख होते.  उदाहरण के तौर पर अगर मेरे पास अभी दो हज़ार तीन सौ रुबल होते तो दो हफ़्तों में उन्हें बीस हज़ार बना देता. यकीन नहीं होता? आपकी नज़र में ये बकवास है? नहीं, नहीं ये बकवास नहीं... दीजिए मुझे दो हज़ार तीन सौ रुबल और देखिए कि मैं हफ़्ते बाद ही आपको बीस हज़ार लौटाता हूँ. ठीक हमारे सामने वाले किनारे पर ज़मीन की पट्टी अफ़्स्यानफ़ दो हज़ार तीन सौ रुबल में बेच रहा है. अगर हम ये पट्टी खरीद लें तो दोनों किनारे हमारे होंगे. और अगर दोनों किनारे हमारे होंगे तो, आप समझ रहे हैं, हमें नदी पर बाँध बनाने का पूरा अधिकार होगा. ठीक है ना? हम एक पवन-चक्की बना देंगे, और फिर जैसे ही हम घोषणा करेंगे कि बाँध बनाने वाले हैं तो उन सारे लोगों में जो नदी के नीचे की तरफ़ रहते हैं हड़कम्प मच जाएगा और तब हम - “यहां आओ, - अगर चाहते हो कि बाँध न बनाया जाए तो जेब ढीली करो.” समझ रहे हैं आप? ज़ारिफ़ की फैक्ट्री से मिलेंगे पाँच हज़ार, करल्कोफ़ से तीन हज़ार, मोनेस्ट्री से पाँच हज़ार...

इवनोफ़ - ये सब, मीषा, चालें हैं... अगर मुझसे झगड़ा नहीं करना चाहते, तो ये सारी बाज़ीगरी...अपने पास ही रखें.

बोर्किन - (टेबल के पीछे बैठ जाता है) ठीक कहा!.. मुझे पहले से पता था!.. न ख़ुद कुछ करते हैं न मुझे कुछ करने देते हैं...


 

III

(वही लोग, षाबिल्स्की और ल्वोफ़)

षाबिल्स्की (ल्वोफ़ के साथ घर से बाहर निकलते हुए) - डॉक्टरों और वकीलों में कोई फ़र्क़ नहीं, फ़र्क़ सिर्फ़ इतना ही होता है कि वकील सिर्फ़ लूटते हैं जबकि डॉक्टर लोग लूटते तो हैं ही और फिर जान भी ले लेते हैं... मैं यहाँ उपस्थित लोगों की बात नहीं कर रहा. (सोफ़े पर बैठ जाता है) पक्के ठग होते हैं, चूस लेते हैं... हो सकता है कि कहीं किसी अर्कादिया में इस आम नियम का कोई अपवाद मिल जाए पर... अपने ही जीवन में मैंने बीस एक हजार तो खर्च किए ही होंगे इलाज पर, मगर एक भी ऐसे डॉक्टर से मुलाक़ात नहीं हुई जो मुझे पेटेन्टेड धोखेबाज़ न लगा हो.

बोर्किन (इवनोफ़ से) - अरे, ख़ुद तो कुछ करते नहीं, न मुझे कुछ करने देते हैं. इसीलिये तो हमारे पास नगद नहीं है...

षाबिल्स्की - मैं एक बार फिर दोहराता हूँ कि मैं यहां उपस्थित लोगों की बात नहीं कर रहा... हो सकता है कि अपवाद हों, हालांकि, ख़ैर... (उबासी लेता है)

इवनोफ़ (किताब बन्द करते हुए) - आप क्या कहते हैं, डॉक्टर?

ल्वोफ़ (खिड़की की ओर देखते हुए) - वही जो सुबह कह चुका हूँ: उन्हे फ़ौरन क्रिमिया ले जाने की ज़रुरत है. (मंच पर चहलकदमी करता है)

षाबिल्स्की (ठहाका मारता है) - क्रिमिया ले जाने की!.. मीषा, हम तुम मिलकर इलाज क्यों नहीं करते? कितना आसान है... उकताहट के मारे कभी किसी मैडम आंगो या अफ़ेलिया को ज़ुकाम या खांसी हो गया हो तो फ़ौरन कागज़ लेकर विज्ञान के नियमों के अनुसार पुर्जा लिख दो: पहले तो एक नौजवान डॉक्टर रख लें, फिर क्रिमिया की यात्रा, क्रिमिया में एक ततार...

इवनोफ़ (काऊंट से) - उफ़, बेज़ार मत करो, बोरिंग इंसान! (ल्वोफ़ से) क्रिमिया जाने के लिए रकम की ज़रुरत है. चलो, मान लो, कि रकम कहीं से मिल भी जाए, पर वह तो इस यात्रा से ही साफ़ इन्कार कर रही है...

ल्वोफ़ - हाँ, इन्कार तो कर रही है.

अंतराल

बोर्किन - सुनिए, डॉक्टर, क्या सच में आन्ना पित्रोव्ना इतनी गंभीर रुप से बीमार हैं कि क्रिमिया जाना ज़रुरी है?..

ल्वोफ़ (खिड़की की तरफ़ देखता है) - हाँ, यह टी.बी. है...

बोर्किन – ओफ़!.. बहुत बुरा हुआ... मैं ख़ुद चेहरा देख कर बहुत पहले ही समझ गया था कि वो ज़्यादा दिन खींच नहीं पाएंगी.

ल्वोफ़ - अरे... धीरे बोलिए... घर में सुनाई दे रहा है...

अंतराल

बोर्किन (गहरी सांस छोड़ते हुए) - हमारी ज़िंदगी... इंसान की ज़िंदगी कहीं खेत में ठाठ से खिले फूल की तरह हैः तभी बकरा आया, खा गया और – फूल गायब...

षाबिल्स्की - सब बकवास है, बकवास, निरी बकवास... (उबासी लेता है) बकवास और चालबाज़ी...

अन्तराल

बोर्किन - महानुभावों, मैं यहां निकलाय अलिक्सेयविच को धन कमाना सिखा रहा हूँ. इन्हें एक बड़ी ही लाजवाब तरक़ीब बताई है पर आदत के अनुसार मेरी बारुद गीली ज़मीन पर ही गिर पड़ी. इनकी समझ में नहीं आ रहा... ज़रा देखिए कैसे दिख रहे हैः उदासी, निराशा, दुःख, बेचैनी, अफ़सोस...

षाबिल्स्की (उठता है और अंगड़ाई लेता है) - अक्ल के पुतले, सबके लिए तुम कोई न कोई आविष्कार करते रहते हो, ज्ञान देते रहते हो, कैसे जीना है, अरे कम से कम एक ही बार मुझे भी कुछ ज्ञान देते...सिखाओ न अक्लमंद इंसान, कोई तो रास्ता दिखाओ...

बोर्किन (उठता है) - मैं तो चला नहाने... अलविदा महानुभावों... (काऊंट से) बीसियों रास्ते हैं आपके पास... आपकी जगह अगर मैं होता तो हफ़्ते भर के भीतर बीस एक हज़ार का मालिक बन जाता. (चला जाता है)

षाबिल्स्की (उसके पीछे जाता है) - वो किस तरह भाई? ज़रा, मुझे भी बताओ.

बोर्किन - इसमें बताने को क्या है. साधारण सी बात है... (लौटता है) निकलाय अलिक्सेयविच, एक रुबल दीजिए मुझे!

(इवनोफ़ चुपचाप उसे एक रुबल देता है)

दुहाई हो! (काऊंट से) आपके हाथों में अभी बहुत सारे तुरुप के पत्ते हैं.

षाबिल्स्की (पीछे-पीछे जाते हुए) - कौन से हैं भई?

बोर्किन - आपकी जगह मैं होता तो हफ़्ते भर में कम से कम तीस हज़ार बनाता. (काऊंट के साथ बाहर चला जाता है)

इवनोफ़  - (थोड़ी चुप्पी के बाद) फ़ालतू लोग और फ़िजूल की बातें, इनके मूर्खतापूर्ण सवालों के जवाब देते रहो – इन सब ने मिलकर मुझे बीमार करने की हद तक क्लांत कर दिया है. मैं इस हद तक चिड़चिड़ा, तेज़ मिजाज़, ग़ुस्सैल और उदास हो गया हूँ कि ख़ुद को ही नहीं पहचान पा रहा हूँ. पूरे दिन सिर में दर्द रहता है, रात को नींद नहीं आती, कानों में अजीब सा शोर होता रहता है... और, वाक़ई में कोई ऐसी जगह नहीं जहां जा सकूँ...वाक़ई में ...

ल्वोफ़ - निकलाय अलिक्सेयविच, मुझे आपसे कुछ गंभीर बातें करनी है.

इवनोफ़ - कहिए.

ल्वोफ़ - मैं आन्ना पित्रोव्ना को लेकर चिंतित हूँ. (बैठता है) वह क्रिमिया जाने को तैयार नहीं हैं पर हो सकता है आपके साथ जाने को तैयार हो जाएं.

इवनोफ़ - (कुछ सोच कर) दो लोगों के सफर के लिए नक़द भी तो चाहिए. ऊपर से मुझे लम्बी छुट्टी नहीं मिलेगी. इस साल मैं पहले ही एक बार छुट्टी ले चुका हूँ...

ल्वोफ़ - चलिए मानते हैं कि जो आपने कहा वो सच है. अब आगे. टी.बी. के लिए सबसे ज़रुरी दवा है – पूरी तरह शांत वातावरण, जबकि आपकी पत्नी को एक पल भी चैन नसीब नहीं. उनके प्रति आपका व्यवहार उन्हें निरंतर परेशान कर रहा है. माफ़ कीजिए, पर मैं सीधे-सीधे कहूंगा. आपका व्यवहार उन्हें तिल-तिल कर मार रहा है.

(अंतराल)

निकलाय अलिक्सेयविच, मुझे आपके बारे में कुछ अच्छा सोचने दें.

इवनोफ़ - यह सब सच है, सच... शायद, मैं ख़तरनाक रूप से कुसूरवार हूँ, मगर मेरे ख़याल उलझ गए हैं, आत्मा को जैसे किसी आलसीपन ने जकड़ लिया है और मुझमें ख़ुद को समझ पाने की शक्ति नहीं है. ना दूसरों को समझ पा रहा हूँ ना ख़ुद को... (खिड़की की ओर देखता है) कोई हमारी बातें सुन न लें, आइये आगे बढ़ते हैं.

(उठ खड़े होते हैं)

मैं, प्यारे दोस्त, आपको सब कुछ एकदम शुरुआत से बताता पर ये कहानी इतनी लम्बी और उलझी हुई है कि सुबह तक पूरी न कर पाऊंगा.

(चलते रहते हैं)

अन्यूता एक असाधारण, अनुपम स्त्री है... मेरी ख़ातिर उसने अपना धर्म बदल लिया, माता-पिता को त्याग दिया, धन-दौलत सब छोड़ दिया और अगर मैंने ऐसी ही और सैकड़ों क़ुर्बानियां मांगी होतीं तो बिना पलक झपकाए उन्हें भी दे देती. क्या बताऊँ, मैं उसके सामने तुच्छ हूँ, और मैंने कोई क़ुर्बानी नहीं दी. ख़ैर, यह एक लम्बी कहानी है... सारी बात का सार यह है, प्यारे डॉक्टर (हिचकिचाता है) कि...संक्षेप में कहूँ, तो शादी मैं ने इसलिए की कि मैं उससे पागलों की तरह प्यार करता था और हमेशा प्यार करते रहने की कसम ली थी, पर... पाँच साल बीत गए, वह तो अभी भी मुझसे प्यार करती है, जबकि मैं... (हाथ झटकता है) देखिए, आप कह रहे हैं कि वो चंद दिनों की मेहमान है और मैं न तो प्यार महसूस कर रहा हूँ, न दया, एक अजीब सा ख़ालीपन है, अजीब सी थकान. अगर एक तरफ़ से मुझे देखें तो...शायद, ये सब भयानक है; ख़ुद मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मेरी आत्मा में क्या हो रहा है...

(वृक्षपथ से होते हुए बाहर निकल जाते हैं)

 

IV

(षाबिल्स्की, और उसके बाद आन्ना पित्रोव्ना)

षाबिल्स्की (प्रवेश करता है और ठठा कर हंसता है) - ईमानदारी से कहता हूँ, यह कोई लफंगा नहीं बल्कि किसी चिंतक, कलाविज्ञ के समान है! इसका तो स्मारक बनाना चाहिए. अपने आप में हर तरह के आधुनिक मवाद को समेट लिया है : वकील भी, डॉक्टर भी, कुकूयेफ़ भी, कैशियर भी. (बरामदे की सबसे निचली सीढ़ी पर बैठ जाता है) और, शायद, कहीं से भी इसने कोई कोर्स नहीं किया. ये बड़े अचरज की बात है... कैसा प्रतिभावान क़मीना साबित होता यह अगर सिर्फ़ थोड़ी सभ्यता होती और इसे मानविकी के विषयों की भी जानकारी होती! कहता है “आप हफ़्ते भर के अंदर बीस एक हज़ार के मालिक बन सकते हैं.” कि “आपके पास अभी भी तुरुप का इक्का – काऊंट की पदवी है.” (ठठा कर हँसता है) “आपसे कोई भी कन्या दहेज के साथ शादी कर लेगी.”

(आन्ना पित्रोव्ना खिड़की खोलती है और नीचे देखती है)

कहता है, “अगर आप कहें तो आपकी ख़ातिर मार्फ़ूशा से शादी की बात चलाऊँ?” कौन है यह मार्फ़ूशा? आह, ये वो बलाबाल्किना... बबाकाल्किना... जो धोबिन जैसी दिखती है.

आन्ना पित्रोव्ना - काऊंट, ये आप हैं क्या?

षाबिल्स्की - क्या हुआ?

(आन्ना पित्रोव्ना हँसती है)

(यहूदियों जैसे लहज़े में कहता है) आप हँस क्यों रही हैं?

आन्ना पित्रोव्ना - मुझे आपका एक वाक्य याद आ गया. याद है, वही जो आपने दोपहर के भोजन के समय कहा था? माफ़ किया हुआ चोर... क्या है वो?

षाबिल्स्की - बप्तिज़्मा किया हुआ यहूदी, माफ़ किया हुआ चोर, इलाज किया गया घोड़ा – सबका एक ही दाम.

आन्ना पित्रोव्ना (हँसती है) - एक साधारण-सा श्लेष भी आप बिना कड़वाहट के नहीं कह सकते. बुरे आदमी हैं आप. (गंभीरता से) मज़ाक नहीं काऊंट, आप बहुत बुरे हैं. आपके साथ रहना उकताहट भरा और घुटनभरा है. हमेशा आप बड़बड़ाते और भुनभुनाते रहते हैं, आपके लिए सब लुच्चे और बदमाश हैं. काऊंट, बस एक बात साफ़-साफ़ बताइएः क्या आपने कभी, किसी के बारे में अच्छी बात कही है?

षाबिल्स्की - ये क्या इम्तिहान है?

आन्ना पित्रोव्ना - पांच साल से हम एक ही छत के नीचे रह रहे हैं. पर एक बार भी मैंने आपको लोगों के बारे में शान्ति से, बिना कड़वाहट के और मज़ाक बनाए बिना बोलते हुए नहीं सुना. लोगों ने आपके साथ ऐसा क्या बुरा किया है? कहीं आप ऐसा तो नहीं सोचते, कि आप सबसे अच्छे हैं?

षाबिल्स्की - मैं ऐसा बिल्कुल नहीं सोचता. मैं वैसा ही गोल टोपी पहना नीच और सूअर हूँ, जैसे सब हैं. बुरा और पुराना जूता. मैं ख़ुद को सदैव गालियाँ देता रहता हूँ. कौन हूँ मैं? क्या हूँ? कभी रईस था, आज़ाद था, थोड़ा ख़ुश था पर अब... एक टुकड़तोड़, दूसरों की दया पर पलने वाला, व्यक्तित्वविहीन भांड़ बन कर रह गया हूँ. मैं ग़ुस्सा होता हूँ, घृणा करता हूँ तो जवाब में लोग हँसते हैं; मैं हँसता हूँ, तो दुःख से मेरी तरफ़ देखकर सिर हिलाते हैं, और कहते हैं - बूढ़ा सठिया गया है... अक्सर लोग मेरी बात नहीं सुनते और मेरी तरफ़ ध्यान ही नहीं देते...

आन्ना पित्रोव्ना - (धीरे से) फिर चीखने लगा...

षाबिल्स्की - कौन चीख रहा है?

आन्ना पित्रोव्ना - उल्लू. हर शाम चीखता है.

षाबिल्स्की - चीखे अपनी बला से. जो हालत है, उससे बुरा और क्या हो सकता है. (अंगड़ाई लेता है) प्यारी सारा, काश लाख दो लाख कहीं से जीत लेता तब फिर मैं आपको मज़ा चखाता!... अगर आप मुझे देख सकतीं. दूर चला जाता मैं इस गर्त से, मुफ़्त की रोटी से, और क़यामत के दिन तक यहां पैर न रखता...

आन्ना पित्रोव्ना - ऐसा क्या करते आप अगर जीत जाते तो?

षाबिल्स्की (थोड़ा सोच कर) - सबसे पहले तो मैं मॉस्को जाता और वहां बंजारों के गीत सुनता. उसके बाद... उसके बाद पैरिस की सैर करता. वहां एक कमरा किराए पर लेकर रुसी गिरजाघरों में जाता...

आन्ना पित्रोव्ना - और क्या करते?

शाबेल्सकी - सारे-सारे दिन बीवी के मक़बरे के पास बैठा रहता और सोचता रहता. बीवी के मक़बरे के पास तब तक बैठा रहता कि जब तक ख़त्म न हो जाता. पत्नी पैरिस में दफ़नाई गई है...

(अंतराल)

आन्ना पित्रोव्ना - कैसी ख़ौफ़नाक बोरियत है. युगलबन्दी करें क्या?

षाबिल्स्की - ठीक है, चलिए आप नोट्स तैयार कीजिए.

(आन्ना पित्रोव्ना चली जाती है)


 

V

(षाबिल्स्की, इवनोफ़ और ल्वोफ़)

इवनोफ़ (ल्वोफ़ के साथ वृक्षपथ पर दिखाई देता है) - मेरे प्रिय मित्र, आपने अभी पिछले ही साल पढ़ाई ख़त्म की है, आप जवान और फुर्तीले हैं जबकि मैं पैंतीस का हूँ. आपको सलाह देने का हक तो मुझे है. तुम कभी यहूदी लड़की से शादी मत करना, न किसी चिड़चिड़ी से, न नीली स्टाकिंग्स वालियों से, बल्कि कोई बिल्कुल साधारण सी चुनना अपने लिए, थोड़ी फीकी ही सही, बिना किसी तड़क-भड़क के, शान्त सी. समूचा जीवन एक पैटर्न पर ढालना. पृष्ठभूमि जितनी धूसर और नीरस होगी उतना अच्छा है. दोस्त, कभी अकेले हज़ारों से युद्ध ना करना, पवनचक्कियों से न जूझना, दीवार से सिर न फोड़ना... भगवान आपकी हर तरह के तर्कसंगत असाधारण स्कूलों और जोशीले भाषणों से रक्षा करें... ख़ुद को अपने कोष में बंद कर लेना और भगवान का दिया हुआ छोटा काम करना... यह ज़्यादा सुखद, ईमानदार और स्वस्थ बात होगी. और जो जीवन मैंने जिया है, – कितना थकाने वाला है!... आह, कितना थकाने वाला!.. कितनी गलतियाँ, नाइंसाफ़ियाँ, कितनी बेहूदगी... (काऊंट को देखकर चिडचिडाते हुए) मामा, तुम हमेशा आँखों के सामने नाचते रहते हो, अकेले में कुछ बातें भी नहीं करने देते!

षाबिल्स्की (रोनी आवाज में) - शैतान मुझे उठा ले, कहीं कोई आसरा नहीं है! (पाँव पटकते हुए घर के अन्दर चला जाता है)

इवनोफ़ (पीछे से चीखता है) - ओह, कुसूरवार हूँ, कुसूर हो गया! (ल्वोफ़ से) मैंने क्यों उनका अपमान किया? नहीं, वाक़ई में मेरा स्क्रू ढीला हो गया है. अपना कुछ करना होगा. ज़रूरी है...

ल्वोफ़ (परेशान होते हुए) - निकलाय अलिक्सेयविच, मैंने आपकी बात सुन ली और..और, माफ़ कीजिए, पर मैं साफ़-साफ़ बात करुंगा, बिना किसी लाग लपेट के. आप की आवाज़ में, आपके लहज़े में - शब्दों की बात तो छोड़ ही दीजिये - इतना खोखला अहंकार है, इतनी ठंडी निर्ममता है... आपका क़रीबी व्यक्ति मर रहा है, इसलिए कि वह आपका क़रीबी है, उसके पास गिने चुने दिन हैं, और आप... आप प्यार नहीं कर सकते, चल सकते हैं, सलाह दे सकते हैं, दिखावा कर सकते हैं... मैं आपको बता नहीं सकता, शब्द नहीं हैं मेरे पास, मगर...मगर मुझे आप बिल्कुल पसंद नहीं हैं!

इवनोफ़ - हो सकता है, हो सकता है... आपको दूर से साफ़ दिख रहा हो... बहुत संभव है कि आप मुझे समझते हैं... शायद, मैं बेहद, बेहद कुसूरवार हूँ... (ग़ौर से सुनता है) लगता है घोड़े तैयार कर दिए गए हैं. चलता हूँ, मैं कपड़े बदल लूँ... (घर की तरफ़ जाता है और ठहर जाता है) डॉक्टर, आप मुझे पसंद नहीं करते और यह बात आप छिपाते भी नहीं. यह आपकी इज़्ज़त बढ़ाता है... (घर में चला जाता है)

ल्वोफ़ (अकेला) - लानत है...फिर मौका चूक गया और उससे जैसे चाहिए वैसे बात नहीं कर सका... ठंडेपन से उससे बात कर ही नहीं सकता! मुश्किल से मुँह खोलकर एक शब्द कहता हूँ, कि मुझे यहाँ (सीने की ओर इशारा करता है) घुटन होने लगती है, उथल-पुथल मच जाती है, जीभ गले से चिपकने लगती है. नफ़रत करता हूँ मैं इस बगुलाभगत से, उच्च कोटि के धोखेबाज़ से... देखो जा रहा है... अभागिन पत्नी का सुख बस इसी में है की यह उसके समीप रहता, उसकी सांस है यह, मिन्नतें करती है कि कम से कम एक शाम उसके साथ बिताए, पर यह... यह नहीं बिता सकता... देख रहे हैं, इसका घर पर दम घुटता है, घिच-पिच लगती है. अगर एक शाम भी इसने घर पर बिता ली, तो बेचैनी से भेजे में गोली मार लेगा. बेचारा... इसे खुलापन चाहिए, ताकि कोई नया कमीनापन शुरु कर सके... अरे, मुझे ख़ूब पता है तुम हर शाम ल्येबिद्यिफ़ परिवार के यहां क्यों जाते हो! मालूम है!

VI

(ल्वोफ़, इवनोफ़ (टोपी और ओवरकोट पहने हुए), षाबिल्स्की और आन्ना पित्रोव्ना)

षाबिल्स्की (इवनोफ़ और आन्ना पित्रोव्ना के साथ घर से बाहर निकलते हुए) - निकोलस, आख़िर यह अमानवीय है!.. हर शाम ख़ुद तो चले जाते हो और हम अकेले रह जाते हैं. बोर होकर आठ बजे ही बिस्तर पकड़ लेते हैं. यह जीवन नहीं बल्कि बेहूदगी है! और ऐसा क्यों है कि तुम जा सकते हो और हम नहीं. आख़िर क्यों?

आन्ना पित्रोव्ना - काऊंट, छोड़ दीजिए इन्हें! जाने दीजिए...

इवनोफ़ (पत्नी से) - कहाँ जाओगी तुम, इस बिमारी की हालत में. तुम बीमार हो और सूरज ढलने के बाद खुली हवा में निकलना तुम्हारे लिए ठीक नहीं... डॉक्टर से पूछ लो. अन्यूता, तुम बच्ची नहीं हो, थोड़ी तो समझदारी से काम लो... (काऊंट से) और तुम्हें वहाँ जाने की क्या पड़ी है?

षाबिल्स्की - मुझे शैतान के पास नरक की आग में भेज दो, चाहे तो मगरमच्छ के मुँह में, सिर्फ़ यहाँ से बाहर निकलना है मुझे. मैं बोर हो चुका हूँ! उदासी मेरी बुद्धि कुंद कर चुकी है! मैं सबको बेज़ार कर चुका हूँ. तुम मुझे घर पर छोड़ते हो ताकि इन्हें अकेला न रहना पड़े और मैं इन्हें चबा चुका हूँ, इनका सिर खाता रहता हूँ!

आन्ना पित्रोव्ना - छोड़ दीजिए, काऊंट, छोड़ दीजिए! अगर इन्हें वहाँ जाने से ख़ुशी मिलती है, तो जाएँ, चले जाएँ.

इवनोफ़ - आन्या, इस लहज़े का क्या मतलब है? तुम्हे मालूम है कि मैं वहाँ मस्ती करने नहीं जाता हूँ! हुंडी के बारे में बात करना बेहद ज़रुरी है.

आन्ना पित्रोव्ना - मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि तुम सफ़ाई क्यों दे रहे हो? जाओ न! तुम्हें रोका किसने है?

इवनोफ़ - बेहतर होगा अगर एक दूसरे की जान न खाएं हम! क्या यह सब इतना ज़रुरी हो गया है?!

षाबिल्स्की (रोनी आवाज़ में) - निकोलस, मेरे प्यारे, मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ, ले चलो मुझे अपने साथ! वहां कुछ कमीनों और मूर्खों को देखकर हो सकता है थोड़ा दिल बहल जाए. और फिर ईस्टर के बाद मैं कहीं गया भी तो नहीं.

इवनोफ़ - ठीक है, साथ आ जाओ! तुम लोगों ने मुझे कितना बेज़ार कर दिया है!

षाबिल्स्की - सच? आह, शुक्रिया, शुक्रिया... (ख़ुशी से उसका हाथ पकड़ कर एक तरफ़ ले जाता है) क्या तुम्हारी स्ट्रा-हैट पहन सकता हूँ?

इवनोफ़ - ठीक है, मगर सिर्फ़ जल्दी, प्लीज़!

(काऊंट घर के भीतर भागता है)

तुम सब लोगों ने मुझे कितना बोर कर दिया है! मगर, भगवान, ये क्या कह रहा हूँ मैं? आन्या, मैं तुमसे बिल्कुल अजीब तरह से पेश आ रहा हूँ. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ मेरे साथ. उफ़, अच्छा मैं चलता हूँ, आन्या, मैं एक बजे तक लौट आऊंगा.

आन्ना पित्रोव्ना - कोल्या, मेरे प्यारे, घर पर ही रुक जाओ!

इवनोफ़ (परेशान होते हुए) - मेरी प्यारी, मेरी अपनी, अभागन, विनती करता हूँ मैं तुमसे, मुझे शाम को घर से बाहर जाने से मत रोको. मानता हूँ कि यह क्रूरता है, अन्याय है पर मुझे यह अन्याय करने की छूट दे दो! घर पर रुकना मेरे लिए बेहद तकलीफ़देह है! सूरज के ढलते ही मेरी रूह को गहरी उदासी दबोचने लगती है! कैसी उदासी! यह न पूछना कि ऐसा क्यों होता है. मुझे ख़ुद को भी नहीं मालूम. भगवान की क़सम खाता हूँ, कि नहीं मालूम! यहाँ तो उदासी है और ल्येबिद्यिवों के यहाँ जाओ, तो वहाँ हालत इससे भी बद्तर होती है; वहां से लौटता हूँ और यहाँ फिर वही उदासी, और ऐसे ही सारी रात गुज़रती है...सिर्फ़ मायूसी और मायूसी!..

आन्ना पित्रोव्ना - कोल्या... रुक ही जाते! हम पहले की तरह बातें करेंगे ... साथ खाना खाएंगे, कुछ पढ़ेंगे... मैंने और इस बड़बड़िये ने तुम्हारे लिए ढेर सारी युगलबंदियां कंठस्थ की हैं... (उसे गले लगा लेती है) रुक जाओ!..

(अंतराल)

मैं तुम्हें समझ नहीं पा रही हूँ. ये पूरे साल भर से चल रहा है. आख़िर तुम बदल क्यों गए?

इवनोफ़ - नहीं जानता, नहीं जानता...

आन्ना पित्रोव्ना - तुम मुझे अपने साथ शाम को क्यों नहीं ले जाना चाहते?

इवनोफ़ - अगर तुम यही चाहती हो तो बताऊँगा. मेरे लिए यह कहना क्रूरता होगी, पर बेहतर होगा कि कह ही दूं... जब उदासी मेरा दम घोंटती है तो मैं... मुझे तुमसे चिढ़ होने लगती है. ऐसे समय मैं तुमसे दूर भागता हूँ. एक लब्ज़ में, मैं घर से दूर चला जाना चाहता हूँ.

आन्ना पित्रोव्ना - उदासी? समझती हूँ, समझती हूँ... पता है, कोल्या? तुम पहले की तरह कोशिश करो गाने की, हँसने की, ग़ुस्सा होने की... रुक जाओ, साथ हँसेंगे, थोड़ी ब्रांडी पिएंगे और तुम्हारी उदासी मिनटों में छू-मन्तर कर देंगे. अगर कहो तो मैं गाना गाऊँ? या फिर चलो, तुम्हारे केबिन में बैठते हैं, पहले की तरह, अंधेरे में और तुम मुझे अपनी उदासी के बारे में बतलाना... कितनी दर्द भरी आँखें हैं तुम्हारी! मैं उनमें देखूँगी और रोऊँगी, हम दोनों हल्का महसूस करेंगे... (हँसती है और फिर रोती है) या फिर, कोल्या, कैसे? फूल तो हर बसंत में लौट आते हैं, क्या ख़ुशियाँ नहीं लौटेंगी? बोलो? अच्छा जाओ, चले जाओ...

इवनोफ़ - आन्या, तुम मेरे लिए भगवान से दुआ करो! (जाता है फिर रुकता है और सोचता है) नहीं, नहीं रुक सकता! (चला जाता है)

आन्ना पित्रोव्ना - चले जाओ... (टेबल के पास बैठ जाती है)

ल्वोफ़ (मंच पर चहलकदमी करता है) - आन्ना पित्रोव्ना, आप नियमों का पालन करें: छह बजते ही आपको कमरे में चले जाना चाहिए और सुबह तक बाहर नहीं निकलना चाहिए. शाम की नमी आपके लिए हानिकारक है.

आन्ना पित्रोव्ना - सुन रही हूँ.

ल्वोफ़ - क्या “सुन रही हूँ”! मैं संजीदगी से कह रहा हूँ.

आन्ना पित्रोव्ना - मगर मैं संजीदा नहीं होना चाहती. (खांसती है)

ल्वोफ़ - ये देखिए, - आप खांसने भी लगीं...

VII

(ल्वोफ़, आन्ना पित्रोव्ना और षाबिल्स्की)

षाबिल्स्की (टोपी और जैकेट पहने घर से बाहर निकलता है) - अरे... निकलाय कहां हैं? घोड़े तैयार हो गए क्या? (तेज़ी से आकर आन्ना पित्रोव्ना का हाथ चूमता है) शुभ रात्रि, डियर! सावधान! माफ़ कीजिये, प्लीज़! (तेज़ी से निकल जाता है)

ल्वोफ़ - जोकर!

(अंतराल ; दूर से आते हार्मोनियम के सुर सुनाई देते हैं)

आन्ना पित्रोव्ना - कैसी बोरियत है!.. वहां गाड़ीवान और बावर्चिनें नृत्य समारोह आयोजित कर रहे हैं, और मैं... मैं – किसी परित्यक्ता की तरह... यिव्ग्येनी कन्स्तन्तीनिच, वहाँ क्यों घूम रहे हैं आप? इधर आइए, बैठिए!..

ल्वोफ़ - नहीं बैठ सकता मैं.

(अंतराल)

आन्ना पित्रोव्ना - रसोई में “चीझिक” का खेल चल रहा है. (गाती है) “चीझिक, चीझिक, कहाँ था तू ? पी रहा था वोद्का पहाड़ के नीचे.”

(अंतराल)

डॉक्टर, क्या आपके माता-पिता हैं?

ल्वोफ़ - पिता मर चुके हैं, माँ है.

आन्ना पित्रोव्ना - क्या माँ की याद सताती है?

ल्वोफ़ - मेरे पास इतना समय नहीं है.

आन्ना पित्रोव्ना (हँसती है) - फूल तो हर बसंत में फिर खिलते हैं पर ख़ुशियां – नहीं लौटतीं. किसने कही थी मुझसे ये पंक्तियां? भगवान याददाश्त सलामत रखे... लगता है ख़ुद निकलाय ने कही थी. (ध्यान लगाकर सुनती है) फिर उल्लू चीखने लगा!

ल्वोफ़ - चीखे अपनी बला से.

आन्ना पित्रोव्ना - डॉक्टर, कभी कभी मैं सोचती हूँ कि क़िस्मत ने मुझे धोखा दिया है. बहुत सारे लोग, जो हो सकता है कि मुझसे बेहतर न हों, ख़ुशनसीब होते हैं और अपनी ख़ुशियों के बदले कोई क़ीमत नहीं चुकाते. मैंने तो हर चीज़ की क़ीमत अदा की है, निश्चयपूर्वक अदा की है!.. और कितना महंगा पड़ा सब कुछ! और फिर किसलिए मुझसे ऐसे सूद वसूले जा रहे हैं?.. मेरे प्रिय दोस्त, आप कितनी सावधानी बरतते है मेरे साथ, शिष्टता के साथ पेश आते हैं, सच कहने से डरते हैं, आपको क्या लगता है कि मुझे मालूम नहीं है अपनी बीमारी के बारे में? ख़ूब अच्छी तरह जानती हूँ. उल्टे इसके बारे में बात करने से ऊब होती है... (यहूदियों वाले लहज़े में कहती है) माफ़ कीजिये, आपको कुछ मज़ेदार चुटकुले सुनाने आते हैं?

ल्वोफ़ - नहीं आते.

आन्ना पित्रोव्ना - निकलाय को आते हैं. लोगों के द्वारा किए अन्याय को देख मुझे आश्चर्य होने लगता हैः क्यों प्यार का जवाब प्यार से नहीं देते लोग और सच के बदले झूठ देते हैं? बोलिएः आख़िर कब तक माता-पिता मुझसे नफ़रत करते रहेंगे? वे यहां से पचास मील की दूरी पर रहते हैं और मैं दिन-रात, यहां तक कि सपने में भी उनकी नफ़रत को महसूस करती हूँ. निकलाय की उदासी को कैसे समझूं? वो कहता है कि सिर्फ़ शाम को वह मुझसे प्यार नहीं करता, जब उदासी उसे खाती है. मैं समझ सकती हूँ और अनदेखा भी कर सकती हूँ, मगर कल्पना कीजिये कि वह मुझसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करता! बेशक, यह मुमकिन नहीं है. मगर ---अचानक? नहीं, नहीं इसके बारे में सोचने की भी ज़रुरत नहीं है. (गाती है) “चीझिक चीझिक, कहाँ था तू?...” (थरथराती है) कैसे भयानक ख़याल हैं मेरे!.. डॉक्टर, आप इस परिवार का हिस्सा नहीं हैं इसीलिए बहुत सारी चीज़ें आप समझ नहीं पाएंगे...

ल्वोफ़ - आपको आश्चर्य हो रहा है... (पास बैठ जाता है) नहीं, बिल्कुल नहीं बल्कि मुझे...मुझे तो आप पर आश्चर्य हो रहा है! आप समझाइये मुझे, स्पष्ट कीजिए कि आख़िर कैसे, आप जैसी बुद्धिमान, ईमानदार, क़रीब-क़रीब संत व्यक्ति ने ख़ुद को इतनी निर्लज्जता से धोखा खाने और इस उल्लू के घोंसले में घसीटे जाने की इजाज़त दी? आप यहाँ किसलिए हैं? क्या समानता है आप में और इस ठंडे, निष्ठुर...चलिए आप के पति को छोड़ते हैं! – क्या समानता है आप में और इस नीरस, तुच्छ वातावरण में? ओह, मेरे मालिक, भगवान!... यह निरंतर बड़बड़ाता, ज़ंग खाया हुआ, पागल काऊंट, यह कमीना, धोखेबाज़ों का भी धोखेबाज़, मीषा, अपने घिनौने व्यक्तित्व के साथ... आप समझाइये मुझे, आप यहाँ किस कारण से हैं? आख़िर आप यहाँ आईं कैसे?

आन्ना पित्रोव्ना (हँसती है) - ठीक इसी तरह वह भी कभी बोला करता था......बिलकुल ऐसे ही... पर उसकी आँखें थोड़ी बड़ी हैं, और जब वह किसी चीज़ के बारे में जोश से बोलना शुरु करता, तो वे जैसे कि अंगारे... बोलिए, बोलिए!..

ल्वोफ़ (उठता है और हाथ झटकता है) - मुझे क्या कहना है? चलिए कमरे में जाइए...

आन्ना पित्रोव्ना - आप कहते हैं कि निकलाय बस ऐसा ही है, ये है, वो है... आप कैसे जानते हैं उसे? क्या 6 महीनें पर्याप्त हैं किसी इंसान को जानने के लिए? डॉक्टर, वह एक अद्भुत इंसान है और मुझे दुख है कि आप उससे दो-तीन साल पहले नहीं मिले. अब वह उदास रहता है, चुप रहता है, कुछ करता नहीं पर पहले... कैसा आकर्षण था!.. पहली नज़र में ही मैं उसे अपना दिल दे बैठी थी. (हँसती है) बस देखा भर था और जैसे मैं चूहेदानी में फँस चुकी थी! उसने कहाः चलो चलते हैं... और मैंने ख़ुद से बंधी हर चीज़ को काट फेंका, जैसे कैंची से गली हुई पत्तियां काट फेंकते हैं, और चल पड़ी...

(अंतराल)

पर अब वो बात नहीं... अब वह दूसरी औरतों के साथ दिल बहलाने ल्येबिद्यिफ़ परिवार के यहाँ जाता है, और मैं... बाग़ में बैठी उल्लू की चीख सुनती रहती हूँ...

(चौकीदार आवाज़ लगाता है)

डॉक्टर, आपके कोई भाई नहीं हैं?

ल्वोफ़ - नहीं.

(आन्ना पित्रोव्ना फूट-फूट कर रो पड़ती है)

अब और क्या हुआ? क्या चाहिए आपको?

आन्ना पित्रोव्ना (उठ खड़ी होती है) - मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती, डॉक्टर, मैं वहाँ जाऊँगी...

ल्वोफ़ - कहाँ?

आन्ना पित्रोव्ना - वहीं, जहाँ वह है.... मैं जाऊंगी...बग्घी तैयार करने के लिए कहिए. (दौड़ कर घर की ओर जाती है)

ल्वोफ़ - आपको नहीं जाना चाहिए...

आन्ना पित्रोव्ना - मुझे छोडिये, आपको इससे कोई मतलब नहीं है...मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती, जाऊंगी...घोड़े देने के लिए कहिये... (घर के भीतर भागती है)

ल्वोफ़ - नहीं, ऐसी स्थिति में मैं आपका इलाज करने से पूर्णतः इंकार करता हूँ! यही क्या कम है कि माल मुद्रा तो कुछ देते नहीं और ऊपर से जान सांसत में डाल रखी है!.. नहीं, मैं इंकार करता हूँ! बस बहुत हुआ! (घर के भीतर जाता है)

(पर्दा गिरता है)

 


 

दूसरा अंक

I

(ल्येबिद्यिफ़ परिवार के घर का हॉल, बगीचे को जाता सीधा रास्ता, दायीं और बायीं तरफ़ दरवाज़े. पुराने फ़ैशन का महंगा फ़र्नीचर, झाड़-फ़ानूस, कैंडल स्टैंड और पेंटिंग्स – ये सब कवर से ढके हुए.)

(ज़िनईदा साविष्ना, कसीख़ दंपत्ति, अव्दोत्या नजारव्ना, इगोरुष्का, गव्रीला, चेंबरमेड, बूढ़ी मेहमान औरतें, कुछ कुलीन लड़कियाँ और बबाकिना.)

(ज़िनईदा साविष्ना सोफ़े पर बैठी है. उसके दोनों तरफ़ आराम कुर्सियों पर बूढ़ी मेहमान औरतें हैं. दूसरी कुर्सियों पर नौजवान लोग. भीतर, बाहर बगीचे को जाते रास्ते के समीप कुछ लोग ताश खेल रहे हैं. ताश खेलने वालों में हैं - कसीख़, अव्दोत्या नज़ारव्ना और इगोरुष्का. गव्रीला दाएं दरवाज़े के पास खड़ा है. चेंबरमेड थाली में मिठाई लिए घूम रही है. पूरे अंक के दौरान मेहमान बगीचे से दाएं दरवाज़े की ओर तथा वापस घूमते रहते हैं. बबाकिना दायें दरवाज़े से निकलकर ज़िनईदा साविष्ना के पास जाते हुए...)

ज़िनईदा साविष्ना (ख़ुश होते हुए) - प्यारी, मार्फ़ा इगोरव्ना ...

बबाकिना - अभिवंदन, ज़िनईदा साविष्ना! बेटी के जन्मदिन पर बधाई स्वीकार करें...

(दोनों एक दूसरे को चूमती हैं)

भगवान करे, कि...

ज़िनईदा साविष्ना - धन्यवाद, प्यारी, मैं इतनी ख़ुश हूँ... तो, आपकी तबीयत कैसी है?...

बबाकिना – धन्यवाद, ठीक है. (पास में ही सोफ़े पर बैठ जाती है) सभी नौजवानों को अभिवादन!..

(मेहमान उठकर झुकते हैं)

पहला मेहमान (हँसता है) - नौजवान … तो क्या आप बूढी हैं?

बबाकिना (सांस लेते हुए) - अरे, अब हमें कहां जगह मिलेगी नौजवानों के बीच...

पहला मेहमान (अदब से हँसते हुए) - भगवान भला करे, आप भी बस... विधवा होने का बस नाम ही भर है वैसे तो आप किसी भी कुँआरी लड़की के कान काट लें.

(बबाकिना को गव्रीला चाय लाकर देता है)

ज़िनईदा साविष्ना (गव्रीला से) - ऐसे कैसे दे रहे हो तुम? कोई मुरब्बा ही ले आते. वो गूज़बेरी वाला...

बबाकिना - परेशान न हों, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...

(अंतराल)

पहला मेहमान - मार्फ़ा इगोरव्ना, आप मूष्किनो से होकर आईं थी क्या?

बबाकिना - नहीं, ज़ाइमिश्शे से! स तरफ़ रास्ता बेहतर है.

पहला मेहमान - जी हाँ.

कसीख़ - दो हुकु.

इगोरुष्का - पास.

अव्दोत्या नज़ारव्ना - पास.

दूसरा मेहमान - पास.

बबाकिना - सौ रूबल के लॅाटरी टिकट, प्यारी ज़िनईदा साविष्ना, फिर से आसमान को छू रहे हैं. ऐसा कहीं देखा है : पहला जिताने वाला 270 का है और दूसरा लगभग 250 का हो गया... ऐसा पहले कभी नहीं हुआ...

ज़िनईदा साविष्ना (सांस छोड़ते हुए) - ठीक है, किसके पास ये अधिक हैं...

बबाकिना - कुछ न कहो, प्यारी; हालांकि उनकी क़ीमत ज़्यादा है, मगर उन पर पूंजी लगाना फ़ायदे का सौदा नहीं. एक बीमा ही जीना हराम कर देता है.

ज़िनईदा साविष्ना - ऐसा है, तो ऐसा ही सही, मगर फिर भी उम्मीद रखो... (सांस छोड़ती है) भगवान मेहेरबान है...

तीसरा मेहमान - मेरे मुताबिक तो, मोहतरमाओं, मेरा मानना है कि आज के समय में पूंजी अपने पास रखना कहीं से भी फ़ायदेमंद नहीं. सेक्यूरिटीज़ से कुछ ख़ास लाभांश नहीं मिलता और रेकरिंग में पैसा डालना तो ख़तरे से ख़ाली नहीं. मैं तो ऐसा समझता हूँ कि आज के समय में जिसके पास पूंजी है उसकी स्थिति ज़्यादा नाज़ुक है, मोहतरमाओं, बजाय उसके जो ...

बबाकिना - (सांस छोड़ते हुए) यह बात बिल्कुल ठीक है!

(पहला मेहमान उबासी लेता है)

क्या महिलाओं के सामने ऐसे उबासी लेते हैं?

पहला मेहमान - माफ़ी चाहूँगा, मैडम, ये बस अचानक हो गया.

(ज़िनईदा साविष्ना उठकर दायें दरवाज़े से बाहर चली जाती है;

देर तक चुप्पी कायम रहती है)

इगोरुष्का - दो ईंट.

अव्दोत्या नज़ारव्ना - पास.

दूसरा मेहमान - पास.

कसीख़ - पास.

बबाकिना (एक तरफ़) - हे भगवान, कितनी बोरियत है, आदमी मर ही जाए!

II

(वही लोग, ज़िनईदा साविष्ना और ल्येबिद्यिफ़)

ज़िनईदा साविष्ना (दाएं दरवाज़े से ल्येबिद्यिफ़ के साथ बाहर निकलते हुए, आहिस्ते से) - वहां क्या बैठे थे? प्रमुख गायिका की तरह! मेहमानों के साथ बैठो! (पहले वाले स्थान पर बैठ जाती है)

ल्येबिद्यिफ़ (जम्हाई लेता है) - ओह, बड़े गंभीर हैं हमारे पाप! (बबाकिना को देखकर) मेहेरबानों, यहां तो मुरब्बा बैठा है! तुर्की मिठाई!.. (अभिवादन करता है) कैसी हैं आप, अनमोल फ़रिश्ते?...

बबाकिना - आपका बहुत धन्यवाद.

ल्येबिद्यिफ़ - ओह, भगवान की महिमा है. (आरामकुर्सी में बैठ जाता है) अच्छा, अच्छा...गव्रीला!

(गव्रीला उसके लिए वोद्का का जाम और पानी का गिलास लेकर आता है; वह वोद्का पीकर ऊपर से पानी पीता है)

 

पहला मेहमान - अच्छी सेहत के नाम!..

ल्येबिद्यिफ़ - अरे काहे की अच्छी सेहत... बस, ज़िंदा हैं, उसी के लिए शुक्रगुज़ार हैं. (पत्नी से) ज़्यूज़्यूष्का, हमारी लाडली कहाँ है?

कसीख़  (रुआँसा होकर) - मुझे बताइयेः हमारे पास काटने वाले पत्ते क्यों नहीं आये? (उछलता है) आख़िर हम क्यों हार गए, मुझ पर शैतान सवार था?

अव्दोत्या नज़ारव्ना (उछलकर ग़ुस्से से) - वो इसलिए, जनाब, कि अगर खेलना न आता हो तो बैठना नहीं चाहिए. दूसरों के पत्तों में झांकने का हक़ तुम्हें कैसे मिल गया?  लो, अब तुम्हारे इक्के का अचार डल गया!

(दोनों मेज़ के पीछे से निकलकर आगे की तरफ़ भागते हैं)

कसीख़ (रोनी आवाज़ में) - ग़ौर फ़रमाइए, मेहेरबान... मेरे पास ईंट का इक्का, बादशाह, बेगम, अठ्ठी एक ही तरह के पत्ते हैं, एक छोटा पान का पत्ता है, जबकि वह पता नहीं क्यों एक छोटा शो नहीं करा पाई!.. मैंने कहा “बिना तुरुफ के” ...

अव्दोत्या नज़ारव्ना (बीच में टोकते हुए) - ये मैंने कहा था: “बिना तुरुफ के”! तुमने कहा: “दो बिना तुरुफ के”...

कसीख़ - यह बेहद अपमानजनक है! बताइए... आपके पास...मेरे पास... आपके पास (ल्येबिद्यिफ़ से) पाविल किरीलिच, आप ही फ़ैसला कीजिए... मेरे पास ईंट का इक्का, बादशाह, बेगम, अठ्ठी एक ही रंग के पत्ते हैं...

ल्येबिद्यिफ़ - (कानों में उँगलियाँ डाल लेता है) रुको, मेहेरबानी करो... रुको...

अव्दोत्या नज़ारव्ना (चिल्लाती है) - ये मैंने कहा था: “बिना तुरुफ के”!

कसीख़ (खूंखार होते हुए) - अगर कभी इस स्टर्जन के साथ मैं दुबारा खेलने बैठा तो मैं कमीना और बहिष्कृत कहलाऊँ! (तेज़ी से बगीचे में चला जाता है)

दूसरा मेहमान उसके पीछे चला जाता है, मेज़ के पास सिर्फ़ इगोरुष्का बचता है.

अव्दोत्या नज़ारव्ना - उफ़!.. उससे कितनी गर्मी निकल रही थी...स्टर्जन!...तू ख़ुद स्टर्जन!...

बबाकिना - आप भी ना, ग़ुस्सैल दादी...

अव्दोत्या नज़ारव्ना (बबाकिना को देख कर हाथ हिलाती है) - मेरी प्यारी, सुंदरी!.. तुम यहां हो और मुझे रतौंधी हुई है जो देख नहीं रही हूँ... प्यारी... (उसके कंधे को चूमती है और पास बैठ जाती है) कितनी ख़ुशी हो रही है! वाह! देखूँ तो ज़रा मैं तुझे, सफ़ेद हंसिनी! फू, फू, फू... नजर न लग जाए!..

ल्येबिद्यिफ़ - बहुत हो गया... इसके लिए एक अच्छा वर भी ढूँढ़ देतीं...

अव्दोत्या नज़ारव्ना - ज़रुर  ढूंढूंगी. मैं पापिन ताबूत में नहीं लेटूँगी, बल्कि इसकी और सानेच्का की शादी करवाऊंगी...ताबूत में नहीं लेटूँगी... (गहरी साँस लेती है) यही तो मुश्किल है कि योग्य वर मिलेगा कहाँ? ये हैं हमारे दूल्हे, सिकुड़ कर बैठे हैं, गीले मुर्गों जैसे!...

तीसरा मेहमान - बिल्कुल गलत उदाहरण. मेरा तो यह मानना है, मोहतरमा, कि अगर आज के नौजवान कुँआरा रहना पसंद कर रहे हैं तो इसके लिए सामाजिक परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार हैं...

ल्येबिद्यिफ़ - बस, बस फ़िलॉसफ़ी मत बघारो!.. मुझे बिल्कुल पसंद नहीं!..

 

III

(वही लोग और साषा)

साषा (अंदर आती है और पिता के पास जाती है) - कैसा सुहावना मौसम है और आप लोग यहां उमस में बैठे हुए हैं.

ज़िनईदा साविष्ना - साशेन्का, क्या तुम देख नहीं रही कि हमारे यहाँ मार्फ़ा इगोरव्ना भी आई हैं.

साषा - माफ़ी चाहूंगी. (बबाकिना के पास जाती है और अभिवादन करती है)

बबाकिना - बड़ी ख़ुशी होती जो कम से कम एक बार मेरे यहाँ आती. (चूमती है) बधाई हो, बेटी...

साषा - शुक्रिया. (पिता के समीप बैठ जाती है)

ल्येबिद्यिफ़ - ठीक कहती हैं आप, अवदोत्या नज़ारव्ना, आज-कल अच्छे वर का मिलना बड़ा मुश्किल है. वर तो फिर भी एक बात है – अच्छे बेस्टमैन का मिलना भी उतना ही कठिन है. आजकल के नौजवान, शर्म आती है बोलते हुए भी, भगवान ही मालिक है, बेदिल, उबले हुए से...न नाचने का शौक, न बात-चीत का, न सलीक़े से पीने-पिलाने का....

अवदोत्या नज़ारव्ना - अरे... पीने में तो सभी उस्ताद हैं, सिर्फ़ देने की ज़रुरत है...

ल्येबिद्यिफ़ - पीना तो कोई बड़ी बात नहीं, पीना तो घोड़ा भी जानता है. नहीं, तुम वाक़ई में पियो!... हमारे ज़माने में ऐसा होता था कि, पूरे-पूरे दिन तो लेक्चरों में दिमाग़ खपाए रहते, और जैसे ही शाम होती, कि सीधे कहीं अलाव के पास, और सुबह होने तक लट्टू की तरह घूमते रहते... नाचते थे, महिलाओं का दिल बहलाते थे, और ये चीज़. (अपनी गर्दन थपथपाता है) शेखी भी मारते, फ़लसफ़ा भी बघारते, जब तक ज़ुबान थक न जाए बोलते थे...और आजकल के... (हाथ झटकता है) समझ नहीं पाता... किसी काम के नहीं. पूरे इलाके में बस एक लायक नौजवान है और वह भी शादी-शुदा. (सांस छोड़ता है) पर लगता है वह भी आजकल ग़ुस्सा करने लगा है...

बबाकिना - कौन है वो?

ल्येबिद्यिफ़ - निकलाषा इवनोफ़.

बबाकिना - हाँ, वह अच्छा आदमी है. (मुँह बनाती है) बस अभागा है!..

ज़िनईदा साविष्ना - ये भी ख़ूब कहा, प्यारी, वह कैसे सुखी होगा! (गहरी सांस लेती है) बेचारा, ग़लती हो गई उससे!.. अपनी यहूदिन से शादी कर ली और उसे लगा कि उसके माँ-बाप सोने के पहाड़ देंगे, मगर हुआ इसके ठीक विपरीत... जब से बेटी ने धर्म बदला, माँ-बाप ने तो उसे पहचानने से भी इनकार कर दिया, बद्दुआएँ दीं... एक कोपेक तक नहीं मिला. अब पछता रहा है, मगर अब देर हो चुकी है...

साषा - मम्मा, यह झूठ है.

बबाकिना (तेज़ी से) - षूरच्का, झूठ कैसे है? सभी यह बात जानते हैं. अगर कोई स्वार्थ न होता, तो उसे एक यहूदी से शादी करने की क्या ज़रुरत थी? क्या रुसी लड़कियां कम हैं? ग़लती कर बैठा, प्यारी, ग़लती कर बैठा... (जोश से) अब वह उसकी झिड़कियाँ सुनती रहती है! मज़ाक बना कर रख दिया है. कहीं से घूम-फिर कर आता है, और फ़ौरन शुरू हो जाता है, “तुम्हारे माँ-बाप ने मुझे धोखा दिया! निकल जाओ मेरे घर से!” और वो कहाँ जाए? माँ-बाप तो वापस रखेंगे नहीं, कहीं परिचारिका का काम भी कर ले तो वो भी करना नहीं सीखा...और वह तब तक सुनाता रहता है जब तक कि काऊंट बीच-बचाव नहीं करता. अगर काऊंट नहीं होता तो वह उसे कब का दुनिया से उठा देता...

अवदोत्या नज़ारव्ना - वर्ना, ऐसा भी होता है, कि उसे तहख़ाने में बंद कर देता और – “खा, तू, लहसुन खा”... खाती रहती, खाती रहती, जब तक कि रूह फ़ना न हो जाती.

(हँसी)

साषा - पापा, यह सब झूठ है!

ल्येबिद्यिफ़ - अरे... अब क्या कहा जाए? चलो, उनको जी भर के कूटने-पीसने दो... (चिल्लाता है) गव्रीला!

(गव्रीला उसे वोद्का और पानी लाकर देता है)

ज़िनईदा साविष्ना - इन्हीं सब बातों ने तो बेचारे को बर्बाद किया है. स्थिति बड़ी नाज़ुक हो गई है, प्यारी, अगर खेती-बारी का काम बोर्किन न देखता तो उसे उस यहूदिन के साथ दो वक़्त की रोटी भी न मिलती. (गहरी सांस लेती है) मेरी लाडली, उसकी वजह से हमें कितनी परेशानी हुई है!... इतनी परेशानी उठाई है कि सिर्फ़ भगवान ही देखता है! विश्वास करोगी, प्यारी, कि तीन साल हो गए और उसने हमारे नौ हज़ार अभी तक नहीं लौटाए!

बबाकिना (हैरान होते हुए) - नौ हज़ार!..

ज़िनईदा साविष्ना - हाँ...मेरे भोले पाशेन्का को अच्छी सूझी उसे उधार देने की. समझ में ही नहीं आता इनके कि किसे देना चाहिए और किसे नहीं. मूल की तो मैं बात ही नहीं करती, भगवान सलामत रखे, मगर, कम से कम सूद तो समय से चुकाता रहता!..

साषा - माँ, तुमने हज़ारों बार यह बात कही होगी!

ज़िनईदा साविष्ना - तुझे क्या करना है? तू क्यों बीच-बचाव कर रही है?

साषा (उठ खड़ी होती है) - आपका दिल कैसे किसी आदमी के बारे में यह सब कहने से रुकता नहीं, जिसने आप लोगों का कभी कोई बुरा नहीं किया? आख़िर उसने ऐसा क्या कर दिया है आपके साथ?

तीसरा मेहमान - अलिक्सान्द्रा पाव्लव्ना, आप मुझे दो शब्द कहने की इजाज़त दें! मैं निकलाय अलेक्सेइच की इज़्ज़त करता हूँ और उन्हें हमेशा सम्मान की दृष्टि से देखता हूँ पर यह बात हमारे बीच ही रहे कि वह मुझे कुछ दुःसाहसी लगते हैं.

 

साषा - बधाई देती हूँ, अगर आपको ऐसा लगता है.

तीसरा मेहमान - प्रमाण के तौर पर मैं एक तथ्य प्रस्तुत करता हूँ, जिसके बारे में मुझे उसके सलाहकार बोर्किन ने बताया था. दो साल पहले जब जानवरों की महामारी फैली थी तो उसने उन्हे ख़रीद कर उनका बीमा करवा लिया...

ज़िनईदा साविष्ना - हाँ, हाँ, हाँ! मुझे इस घटना की याद है. किसी ने बताया था.

तीसरा मेहमान - उनका बीमा करा लिया और आप समझ सकते हैं. उसके बाद उन्हें संक्रमित कर दिया! और बीमा की राशि ले ली.

साषा - आह, बकवास है यह सब! एकदम बकवास! न किसी ने जानवरों को ख़रीदा था और न ही संक्रमित किया था! यह सब बोर्किन के दिमाग़ की उपज थी और फिर चारों तरफ़ शेखी मारता रहा. जब इवनोफ़ को इसकी ख़बर लगी, तो बोर्किन दो हफ़्तों तक उससे माफ़ी मांगता रहा था. इवनोफ़ की ग़लती सिर्फ़ यह है कि वह सीधा-सादा है और उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि वह इस बोर्किन को ख़ुद से दूर भगा सकें, उसकी ग़लती यह है कि वह लोगों पर हद से ज़्यादा विश्वास कर लेता है! जो कुछ भी उसके पास था चुरा लिया, लूट-खसोट लिया. उनके उदार उपक्रमों की आड़ में जिसने भी चाहा, वह मालामाल हो गया.

ल्येबिद्यिफ़ - षूरा – तुम्हारी तबीयत ख़राब हो जाएगी!

साषा - तो ये लोग बकवास क्यों कर रहे हैं? ओह, यह सब कुछ कितना बोरियत भरा है! इवनोफ़, इवनोफ़, इवनोफ़ – और कोई बात है ही नहीं इनके पास.

(दरवाज़े तक जाती है और फिर लौट आती है)

आश्चर्य होता है मुझे! (नौजवान लोगों से) महानुभावों, आपकी सहन-शक्ति को देख सुखद आश्चर्य होता है मुझे! क्या आप लोग ऐसे बैठे-बैठे बोर नहीं हो जाते? उदासी के मारे हवा तक थम गई है! कुछ कहिए आप लोग, महिलाओं का मनोरंजन कीजिए, अपनी जगह से हिलिए! क्या इवनोफ़ के अलावा और कोई विषय है ही नहीं आपके पास...अगर नहीं तो कम से कम हँसिए, गाइए, नाचिए...

ल्येबिद्यिफ़ - करो खिंचाई, अच्छी तरह से खिंचाई करो इनकी!

साषा - तो, सुनिए, एक एहसान कीजिए मुझ पर! अगर नाचना, हँसना, गाना नहीं चाहते आप, अगर इन सब से आपका मन भर गया है तो एक अनुरोध है, प्रार्थना है कि ज़िंदगी में कम से कम एक बार ही सही, जिज्ञासा की ख़ातिर, हिम्मत बटोरिए और एक साथ कोई बुद्धिमत्तापूर्ण, ज़बरदस्त, कल्पना कीजिए, चाहे धृष्ठतापूर्ण, या ओछी ही सही, मगर नई और मज़ाकिया! या तो फिर सब मिल कर कुछ छोटा सा काम ही कर दीजिए, मुश्किल से ध्यान देने योग्य, मगर किसी करतब जैसा, ताकि महिलाएं आपकी तरफ़ देख कर जीवन में एक बार ही सही, मगर कह सकेः “वाह!” बताइए, आप यह तो चाहते हैं कि लोग आपको पसंद करें पर पसंद किए जाने के लिए कुछ प्रयास क्यों नहीं करते? आह, महानुभावों! आप वो नहीं, वो नहीं, वो नहीं! आपकी ओर देखकर मक्खियाँ मर जायेंगी, लैम्प धुआँ छोड़ने लगेंगे. वो नहीं, वो नहीं!... हज़ारों बार मैंने आपको कहा है और हमेशा कहती रहूँगी, कि आप सब लोगों में कहीं कुछ कमी है, कुछ कमी है!...

 

IV

(वही लोग, इवनोफ़ और षाबिल्स्की)

षाबिल्स्की (इवनोफ़ के साथ दायीं तरफ़ के दरवाज़े से अन्दर आता हुआ) - यहाँ कौन घोषणा कर रहा है? आप, षूरच्का? (ठहाका लगाता है और हाथ मिलाता है) जन्मदिन की बधाईयाँ, मेरी प्यारी परी, ईश्वर आपको लम्बी उम्र दें और फिर दुबारा आपको जन्म न लेना पड़े...

ज़िनईदा साविष्ना (ख़ुश होते हुए) - निकलाय अलिक्सेयविच, काऊंट!...

ल्येबिद्यिफ़ - ब्बा! किसे देख रहा हूँ मैं...काऊंट! (मिलने के लिए आगे बढ़ता है)

षाबिल्स्की (ज़िनईदा साविष्ना और बबाकिना को देख, उनकी तरफ़ हाथ बढ़ाता है) - एक ही सोफे पर दो-दो बैंक!.. देखने में अच्छा लगता है! (ज़िनईदा साविष्ना को अभिवादन करता है) अभिवंदन ज़्यूज़्यूष्का! (बबाकिना को) अभिवंदन पम्पोंचिक!...

ज़िनईदा साविष्ना - मैं बहुत ख़ुश हूँ. काऊंट, आप हमारे विशेष मेहमान हैं! (चिल्लाती है) गव्रीला, चाय ले आओ! कृपया बैठिए!

(उठती है, दाएँ दरवाज़े से बाहर जाती है और फ़ौरन वापस आती है; चेहरे पर फ़िक्र के भाव हैं. साषा पहले वाली जगह पर बैठती है. इवनोफ़ चुपचाप सबका अभिवादन करता है)

ल्येबिद्यिफ़ (षाबिल्स्की से) - तुम कैसे टपक पड़े? कौन सी ताकत तुम्हे यहाँ तक खींच लायी? ये है अजूबा, भगवान मुझे सज़ा दें...(उसे चूमता है) काऊंट, डाकू हो तुम! शरीफ़ लोग ऐसा नहीं करते! (उसे लेकर रैम्प की ओर जाता है) आते क्यों नहीं हमारे यहाँ? नाराज़ हो क्या?

षाबिल्स्की - कैसे आऊँ मैं तुम्हारे यहाँ? डंडे पर आसमान में उड़ता हुआ...? अपने घोड़े मेरे पास हैं नहीं और निकलाय अपने साथ लाते नहीं, कहते हैं सारा के साथ बैठो – उसका दिल बहला रहेगा... तुम अपने घोड़े भेज दिया करो, आ जाया करुंगा...

ल्येबिद्यिफ़ (हाथ चमकाता है) - ख़ूब कहा!...ज़्यूज़्यूष्का घोड़े देने से पहले ही सिर फोड़ देगी. मेरे प्यारे, दुलारे, तुम मेरे सबसे प्रिय और क़रीबी हो! पुराने लोगों में सिर्फ़ मैं और तुम ही तो बचे हैं! तुममें मैं अपनी पुरानी पीड़ाएं और फ़ना हो चुकी जवानी देखता हूँ...मज़ाक की बात नहीं, बस रो ही पडूंगा मैं. (काऊंट को चूमता है)

षाबिल्स्की - छोड़ो, छोड़ो! शराब के गोदाम की सी गंध आ रही है तुमसे...

ल्येबिद्यिफ़ - मेरे दिल के टुकड़े, तुम सोच भी नहीं सकते कि अपने दोस्तों के बिना कितना बोर होता हूँ! उदासी के मारे फांसी लगाने को तैयार हूँ... (हौले से) ज़्यूज़्यूष्का ने अपने ऋण-फंड के चक्कर में सारे इज़्ज़तदार लोगों की छुट्टी कर दी और बच गए हैं, जैसा कि देख ही रहे हो, सिर्फ़ ज़ुलु लोग ...ये दूद्किन, बूद्किन... ख़ैर छोड़ो, तुम चाय लो...

(गव्रीला काऊंट के लिए चाय लाता है)

ज़िनईदा साविष्ना (दुलार से गव्रीला को) - अरे, तू भी क्या दे रहा है? कोई मुरब्बा ही ले आता... करौंदे का ही सही...

षाबिल्स्की (ठहाका मारता है; इवनोफ़  से) - देखा, कहा था न मैंने? (ल्येबिद्यिफ़ से) रास्ते में मैंने इसके साथ शर्त लगाई थी, जैसे ही पहुँचेंगे, ज़्यूज़्यूष्का हमारा स्वागत करौंदे के मुरब्बे से करेगी...

ज़िनईदा साविष्ना - काऊंट, आप मसख़रे के मसख़रे ही रहे... (बैठ जाती है)

ल्येबिद्यिफ़ - बीस पीपे तैयार कर रखे हैं, क्या करेगी उनका?

षाबिल्स्की (मेज़ के समीप बैठते हुए) - ख़ूब जमा किये जा रही हो, ज़्यूज़्यूष्का? लखपति तो हो गई होगी, हाँ?

ज़िनईदा साविष्ना (गहरी सांस लेते हुए) - दूर से देख कर तो यही लगता होगा कि हमसे अमीर कोई और है ही नहीं, पर दौलत कहाँ से आई? सिर्फ़ बाते हैं और कुछ नहीं...

षाबिल्स्की - बस, बस!...सब मालूम है!...मालूम है कि तुम ‘चेकर्स’ कितना बुरा खेलती हो... (ल्येबिद्यिफ़ से) पाषा, ईमान से बताना, दस लाख जमा कर लिए?

ल्येबिद्यिफ़ - मुझे इस विषय में कुछ नहीं मालूम. इसके बारे में तो तुम ज़्यूज़्यूष्का से ही पूछो...

षाबिल्स्की - (बबाकिना से) और इस चर्बीदार मोटी के पास भी जल्दी ही दस लाख हो जाएंगे! ये तो दिन के हिसाब से नहीं बल्कि घंटों के हिसाब से लुभावनी और मुटाती जा रही है! इसका मतलब काफी दौलत जमा कर ली है इसने...

बबाकिना - आपकी बड़ी कृपा है, महोदय, पर कहे देती हूँ कि मज़ाक मुझे बिल्कुल पसंद नहीं.

षाबिल्स्की - मेरी प्यारी बैंक, क्या यह मज़ाक है? ये तो हृदय का उद्गार है, भावनाओं की प्रचुरता के कारण होंठ कहे जा रहे हैं... बेहद चाहता हूँ मैं आपको और ज़्यूज़्यूष्का को... (ख़ुश होकर) उमंग!.. हर्षोन्माद!.. आप लोगों की उपेक्षा मैं कर ही नहीं सकता...

ज़िनईदा साविष्ना - आप वैसे ही रह गए जैसे थे. (इगोरुष्का से) इगोरुष्का, मोमबत्तियाँ बुझा दो! क्यों बेकार में जला रहे हो, अगर खेल नहीं रहे तो?

(इगोरुष्का चौंक जाता है; मोमबत्तियां बुझा कर बैठ जाता है)

(इवनोफ़ से) निकलाय अलिक्सेयविच, आपकी पत्नी की तबीयत कैसी है?

इवनोफ़ - ठीक नहीं है. आज तो डॉक्टर ने साफ़ कह दिया कि उसे टी.बी. है...

ज़िनईदा साविष्ना - क्या ... वाक़ई में? कितने दुख की बात है!.. (गहरी सांस) हम सब उसे कितना चाहते हैं...

षाबिल्स्की - बकवास, बकवास, निरी बकवास!.. कोई टी.बी. नहीं है, ये डॉक्टर की नीमहक़ीमी है, उसकी चालबाज़ी है.  डॉक्टर आसपास मंडराना चाहता है, इसलिए टी.बी. कह दिया. शुक्र है कि पति ईर्ष्यालु नहीं है.

(इवनोफ़ बेचैनी से कसमसाता है)

जहाँ तक सारा का सवाल है मुझे उसके एक भी लब्ज़ पर और एक भी हरकत पर कोई ऐतबार नहीं. अपने जीवन में मैने डॉक्टरों, वकीलों और औरतों का कभी विश्वास नहीं किया. बकवास करते हैं, सिर्फ़ बकवास, नीमहक़ीमी और चालबाज़ियाँ!

ल्येबिद्यिफ़ (षाबिल्स्की से) - अजीब चीज़ हो तुम, मत्वेय!... मानवद्रोह का बीड़ा उठा लिया है और बेवकूफ़ों की तरह बात को पकड़ कर बैठ जाते हो. अच्छे ख़ासे इंसान हो, मगर बात यूँ करते हो, जैसे ज़ुबान पर कोई फोड़ा हुआ हो, या बुरी तरह नज़ला हुआ हो...सच, भगवान कसम!

षाबिल्स्की - तो क्या मैं लुच्चे और लफ़ंगों को चूमता फिरुँ?

ल्येबिद्यिफ़ - तुम्हें लुच्चे और लफ़ंगे कहाँ दिखाई दे रहे हैं?

षाबिल्स्की - मैं, बेशक, यहाँ मौजूद लोगों की बात नहीं कर रहा, लेकिन...

ल्येबिद्यिफ़ - यही है तुम्हारा ‘लेकिन’...सब दिखावा है.

षाबिल्स्की - दिखावा... अच्छा है कि तुम्हारा अपना कोई जीवन-दर्शन नहीं.

ल्येबिद्यिफ़ - मेरा क्या जीवन-दर्शन होगा? यहां बैठा पल-पल किसी न किसी की राह देखता रहता हूँ. यही मेरा जीवन-दर्शन है. भाई मेरे, ये हमारे जीवन-दर्शन के विचार करने का समय नहीं. ऐसे तो... गव्रीला!

षाबिल्स्की - तुम वैसे ही बहुत बोल चुके... देखो ज़रा, नाक कैसे लाल हो रही है!

ल्येबिद्यिफ़ - (पीता है) कोई बात नहीं मेरी जान, कोई सेहरा नहीं बांधना है अब मुझे.

ज़िनईदा साविष्ना - काफी समय से डॉक्टर ल्वोफ़ नहीं आए हमारे यहाँ. बिल्कुल ही भूल गए हैं.

साषा - मुझे चिढ़ है. चलती-फिरती ईमानदारी. पानी नहीं मांगता, सिगरेट नहीं लेता पर अपनी शानदार ईमानदारी का प्रदर्शन ज़रुर करता है. चलते-फिरते, बोलते-सुनते जैसे उसके माथे पर लिखा रहता हैः मैं ईमानदार व्यक्ति हूँ! बोरियत होती है उसके साथ.

षाबिल्स्की - संकुचित, सीधी राह पर चलने वाला डॉक्टर! (चिढ़ाता है) “ईमानदारी की राह पर”. हर कदम पर तोते की तरह चिल्लाता है, और सोचता है, कि वह वाक़ई में दूसरा दब्राल्यूबव है. जो चिल्लाता नहीं है वह कमीना होता है. उसके विचार आश्चर्यजनक रूप से गहरे हैं. अगर कोई आदमी संभ्रांत है और इंसानों की तरह जी रहा है तो, मतलब, वह कमीना है और कुलाक है. अगर मैं मख़मली कोट पहनता हूँ और नौकर मुझे कपड़े पहनाता है – तो मैं कमीना और ज़मींदार हो गया. इतना ईमानदार है, इतना ईमानदार कि ईमानदारी फूटी पड़ती है उसके शरीर से. अपने लायक उसे कोई जगह नहीं मिल रही. मुझे तो उससे डर लगता है... ओय-ओय! देखते रहना, कर्तव्य की भावना से या तो वह थोबड़े पर जड देगा या बदमाश को छोड़ देगा.

इवनोफ़ - मुझे तो वह बुरी तरह बोर कर चुका है, पर फिर भी वह मुझे प्रिय है; उसमें काफी ईमानदारी है.

षाबिल्स्की - अच्छी ईमानदारी है! कल शाम मेरे पास आया और बिना किसी बात के कहने लगाः “आप, काऊंट, मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते!” दिल की गहराई से धन्यवाद देता हूँ! और ये सीधे-सादे ढ़ंग से नहीं कहा, बल्कि एक पूर्वाग्रह था उसमें - आवाज़ काँप रही थी, आँखे लाल-लाल, जिस्म थरथरा रहा था... भाड़ में जाए ऐसी काठ जैसी ईमानदारी! ख़ैर, मैं तो उसे बुरा लगता हूँ, नीच हूँ, ये सही है...मैं तो ख़ुद ही ये जानता हूँ, मगर मुंह पर कहने की क्या ज़रुरत है? मैं बुरा आदमी हूँ, पर कम से कम मेरे सफ़ेद बालों का तो लिहाज़ करता... लानत है ऐसी फूहड़ और बेरहम ईमानदारी पर!

ल्येबिद्यिफ़ - अच्छा, अच्छा!.. तुम भी कभी जवान थे और समझ सकते हो.

षाबिल्स्की - हाँ, मैं जवान था और मूर्ख भी, अपने समय में चात्स्की का अभिनय करता था, कमीनों और नीच लोगों की निंदा करता था, पर कभी भी किसी चोर को मैंने उसके मुँह पर चोर नहीं कहा, न ही फाँसी पर लटकाए गए व्यक्ति के घर में कभी भी रस्सी का ज़िक्र किया. मेरा अच्छी तरह पालन-पोषण किया गया था. जबकि आपका यह बेवकूफ़ डॉंक्टर, अपने आप को धन्य महसूस करता, सातवें आसमान पर पाता, यदि क़िस्मत ने उसे उसूलों और सार्वभौमिक आदर्शों के नाम पर मुझे सरेआम पकड़कर थोबड़े और पसलियों के नीचे घूंसे लगाने का मौका दिया होता.

ल्येबिद्यिफ़ - सारे नौजवान तेज़-तर्रार तो होते ही हैं. मिसाल के तौर पर मेरे चाचा हेगेलियन थे... तो ऐसा होता था कि अपने घर पर बहुत सारे मेहमान बुलाते, जी भर के पीते, कुर्सी पर खड़े हो जाते और शुरु हो जाते: “तुम सब गँवार हो! मनहूस हो! नए जीवन का सूरज!” ता-ता, ता-ता, ता-ता... डांटते रहते, डांटते रहते...

साषा - और मेहमान?

ल्येबिद्यिफ़ - कुछ नहीं... सुनते रहते और पीते रहते. एक बार, मैंने उन्हे द्वंद्व युद्ध के लिए ललकारा था... अपने सगे चाचा को. ये बेकन की वजह से हुआ था. भगवान मेरी याददाश्त सलामत रखे, मुझे अच्छी तरह याद है कि मैं ऐसे, मत्वेइ की तरह बैठा था और चाचा स्वर्गवासी गिरासिम नीलिच के साथ क़रीब-क़रीब, वहाँ खड़े थे जहाँ निकलाषा ... तो, मेरे भाई, गिरासिम नीलिच सवाल पूछते हैं...

(बोर्किन आता है)

V

((वही लोग और बोर्किन (सजा-धजा बाँका छैला, हाथों में एक पैकेट, थोड़ा फुदकते और कुछ मुँह ही मुँह में गुनगुनाते हुए दाएँ दरवाज़े से अन्दर आता है) सराहना का शोर))

(महिलाएं, ल्येबिद्यिफ़, षाबिल्स्की एक साथ)

भद्र महिलाएं - मिख़ईल मिख़ाइलविच!..

ल्येबिद्यिफ़ - मिशेल मिशेलिच! वाह-वाह!

षाबिल्स्की - सोसायटी की जान!

बोर्किन - लीजिए मैं आ गया! (साषा की ओर भाग कर जाता है) शानदार सिनोरीटा, ख़ूबसूरत फूल सी महिला, के जन्मदिन पर सारे जहान को बधाई देने की ग़ुस्ताख़ी कर रहा हूँ.  अपने उत्साह की भेंट स्वरूप मैं आपको (पैकेट देता है) मेरे द्वारा तैयार की गईं आतिशबाजियाँ और बंगाल के पटाखे प्रदान करता हूँ. ये रात को उसी तरह रोशन कर देंगे जैसे आप इस काले साम्राज्य के अंधेरे को प्रकाशित कर रही हैं. (नाटकीय ढंग से झुकता है)

साषा - बहुत-बहुत शुक्रिया...

ल्येबिद्यिफ़ (ठहाका लगाता है, इवनोफ़ से) - तुम इस जूड़ा को भगा क्यों नहीं देते?

बोर्किन (ल्येबिद्यिफ़ से) - पाविल किरीलिच को! (इवनोफ़ से) गृह-स्वामी को... (गाता है) “निकोलस-वुअला, ला-ला-ला!” (सबके चारों ओर घूमता है) परम आदरणीय ज़िनईदा साविष्ना को..., दिव्य मार्फ़ा इगोरव्ना को भी..., सबसे प्राचीन अव्दोत्या नज़ारव्ना को... और शानदार काऊंट को...

षाबिल्स्की (ठठा कर हँसता है) - कहा था न, सोसायटी की जान हैं ये... बस घुसने की देर थी, माहौल ख़ुशनुमा हो गया. आप लोगों ने ग़ौर किया?

बोर्किन - उफ़, थक गया... लगता है सबका अभिवादन कर लिया मैंने. तो, महानुभावों, क्या ख़बर है? कोई चौंकाने वाली ख़बर तो नहीं है? (जोश से, ज़िनईदा साविष्ना से) आह, ममाशा, सुनिये... अभी आपकी तरफ़ आ रहा था... (गव्रीला से) इधर चाय देना, गव्र्यूशा प्यारे, सिर्फ़ गूज़बेरी का मुरब्बा मत देना! (ज़िनईदा  साविष्ना से) अभी आपकी तरफ़ आ रहा था तो क्या देखता हूँ नदी के किनारे आपके किसान विलो की झाड़ियों से छाल निकाल रहे थे. आप विलो की झाड़ियों को ठेके पर क्यों नहीं दे देतीं!

ल्येबिद्यिफ़ (इवनोफ़ से) - तुम इस जूड़ा को भगा क्यों नहीं देते?

ज़िनईदा साविष्ना (सहमते हुए) - बात तो बिल्कुल सही कही है, मेरे दिमाग़ में ही नहीं आई!..

बोर्किन (हाथों की कसरत करता है) - बिना हरकत किये रह ही नहीं सकता... ममाशा, कौन सी ख़ास बात की जाए? मार्फ़ा इगोरव्ना, मैं तो बड़े जोश में हूँ.... सातवें आसमान पर हूँ! (गाता है) “मैं फिर हूँ तेरे सामने...”

ज़िनईदा साविष्ना - अरे, कुछ इंतज़ाम कीजिए, वरना तो सब बोर हो रहे हैं.

बोर्किन - यूँ महाशय, वाक़ई में आप लोग यूँ सिर लटकाए क्यों बैठे हैं? बिलकुल ज्यूरी मेम्बर्स की तरह बैठे हैं! चलिए कुछ करते हैं. क्या चाहते हैं? फोर्फिट, स्किपिंग, पकड़ा-पकड़ी, कुछ नाच-गाना या फिर आतिशबाजी?

भद्र महिलाएँ (ताली बजाती हैं) - आतिशबाजी, आतिशबाजी! (बगीचे की तरफ़ दौड़ती हैं)

साषा (इवनोफ़ से) - आप आज इतने उदास क्यों हैं?...

इवनोफ़ - सिर में दर्द हो रहा है, षूरच्का, और थोड़ा उदास तो हूँ ही...

साषा - आइये, मेहमानों वाले कमरे में चलते हैं.

दाईं तरफ़ के दरवाज़े से जाते हैं; ज़िनईदा साविष्ना और ल्येबिद्यिफ़ को छोड़ बाक़ी सारे बगीचे में चले जाते हैं.

ज़िनईदा साविष्ना - मैं समझ सकती हूँ – नौजवान आदमी हैः मिनट भर नहीं बीते होंगे और सबको ख़ुश कर दिया. (बड़े लैम्प की लौ धीमा करती है) जब तक सारे बगीचे में हैं क्या ज़रुरत है कि लैम्प बिना मतलब जलते रहें. (मोमबत्तियाँ बुझा देती है)

ल्येबिद्यिफ़ - (उसके पीछे-पीछे जाते हुए) ज़्यूज़्यूष्का, मेहमानों को कुछ खाने के लिए देना चाहिए...

ज़िनईदा साविष्ना - ओह! कितनी सारी मोमबत्तियाँ, लोग ऐसे ही नहीं हमें अमीर कहते हैं. (बुझा देती है)

ल्येबिद्यिफ़ (उसके पीछे-पीछे जाते हुए) - ज़्यूज़्यूष्का, लोगों को कुछ खाने के लिए दे देती... नौजवान लोग हैं, भूख लगी होगी बेचारों को... ज़्यूज़्यूष्का...

ज़िनईदा साविष्ना - काऊंट ने अपनी वोद्का पूरी नहीं पी. बेकार ही इतनी चीनी डाल दी. (बायें दरवाज़े से जाती है)

ल्येबिद्यिफ़ - फ़ू!... (बगीचे में चला जाता है)

 

VI

(इवनोफ़ और साषा)

साषा (दाहिनी ओर के दरवाज़े से इवनोफ़ के साथ अन्दर आते हुए) - सारे बगीचे में चले गए.

इवनोफ़ - यही तो हाल है, षूरच्का. पहले मैं कितना काम करता था, और कभी थकता नहीं था; अब तो न कुछ करता हूँ, न ही किसी चीज़ के बारे में सोचता ही हूँ, पर आत्मा और शरीर दोनों ही से थक चुका हूँ. अंतरात्मा दिन-रात रोती रहती है, ऐसा लगता है जैसे कोई बड़ी भारी ग़लती हुई है मुझसे, पर क्या ग़लती की है मैंने - समझ नहीं आता. ऊपर से पत्नी की बीमारी, नक़द की कमी, कभी न ख़त्म होने वाली तक़रार, अफ़वाहें, बिना मतलब की बातें, मूर्ख बोर्किन ... तंग आ गया हूँ मैं अपने घर से, वहाँ रहना घोर शारीरिक यंत्रणा से भी बद्तर है. मैं बिल्कुल साफ़-साफ़ कह रहा हूँ आपसे, षूरच्का, मेरे लिए अपनी पत्नी का साथ भी बर्दाश्त के बाहर हो चला है, जो मुझे प्यार करती है. आप – मेरी पुरानी दोस्त हैं, मेरी सच्चाई पर नाराज़ नहीं होंगी. मैं आपके पास थोड़ा दिल बहलाने चला आया था पर मैं आपके पास भी बोरियत ही महसूस कर रहा हूँ, और घर फिर से मुझे वापस खींच रहा है. माफ़ कीजिये, मैं अभी चुपचाप निकल जाऊँगा.

साषा - निकलाय अलिक्सेयविच, मैं आपको समझती हूँ. आपकी बदनसीबी यही है कि आप अकेले हैं. ज़रुरत इस बात की है कि आपके समीप कोई ऐसा हो जिससे आप प्यार करते हों और जो आपको समझ सके. सिर्फ़ प्रेम ही आपको जीवंत बना सकता है.

इवनोफ़ - अब यही बाकी है, षूरच्का! मुझ बूढ़े, भीगे हुए मुर्गे को नया रोमांस शोभा नहीं देगा! भगवान बचाए मुझे ऐसी बदनसीबी से! नहीं, मेरी होशियार बच्ची, बात रोमांस की नहीं है. भगवान गवाह है, मैं सब कुछ बर्दाश्त कर लूंगा - उदासी, मनोविकार, दिवालियापन, पत्नी को खोना, अपना असमय बुढ़ापा, और अकेलापन - पर अपने ही सामने अपना मज़ाक बन जाना नहीं सह सकूंगा, नहीं बर्दाश्त कर सकूंगा मैं. मैं यह सोच कर ही शर्म से मरा जा रहा हूँ कि मैं एक तंदुरुस्त, ताकतवर इंसान, हैमलेट या मनफ्रेद या फ़ालतू लोगों में तबदील हो गया हूँ, ख़ुद शैतान भी नहीं समझ पायेगा! ऐसे दयनीय लोग भी होते हैं, जो हैमलेट या फ़ालतू लोग कहे जाने पर ख़ुश होते हैं, मगर मेरे लिए तो यह किसी कलंक से कम नहीं! इससे मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुँचती है, यह कलंक मुझे घोर पीड़ा देता है और मैं तड़पता रहता हूँ...

साषा (मज़ाक करते हुए, आंसुओं के बीच) – निकलाय अलिक्सेयविच, चलिए, अमेरिका भाग जाएँ.

इवनोफ़ - मुझे तो इस देहलीज़ तक जाने में ही आलस लगता है, और आप अमेरिका जाने की बात कर रही हैं.

(बगीचे को जाने वाले दरवाज़े के पास आते हैं)

सच पूछो तो, षूरा, आपको यहाँ रहने में बड़ी तक़लीफ़ होती होगी! जब मैं आपके आस-पास रहने वाले लोगों को देखता हूँ तो मुझे डर सा लगने लगता हैः आख़िर किसके साथ आप शादी करेंगी? आस की सिर्फ़ एक किरण है कि कभी कोई अधिकारी या फिर विद्यार्थी घूमता हुआ इधर आये और आपको चुराकर ले जाए...


 

VII

 

(वे ही और साविष्ना)

 

ज़िनईदा साविष्ना (बाएँ दरवाज़े से मुरब्बों का जार लिए निकलती है)

इवनोफ़ - माफ़ करना, षूरच्का, आप चलिए, मैं अभी आपसे मिलता हूँ...

(साषा बगीचे में चली जाती है)

ज़िनईदा साविष्ना, एक गुज़ारिश थी आपसे...

ज़िनईदा साविष्ना - क्या बात है, निकलाय अलिक्सेयविच?

इवनोफ़ - आप तो समझ सकती हैं, बात कुछ ऐसी है कि परसों मेरे बिल की मियाद पूरी हो जाएगी. मैं आपका बड़ा आभारी रहूँगा अगर आप मुझे थोड़ी मोहलत और देतीं या फिर मूल धन में ही ब्याज़ की राशि भी जोड़ लेतीं. इस समय मेरे पास बिल्कुल नक़दी नहीं है...

ज़िनईदा साविष्ना (घबरा कर) – निकलाय अलिक्सेयविच, यह कैसे संभव है? यह बात बिल्कुल ठीक नहीं. नहीं, यह संभव नहीं, भगवान के लिए आप इसके बारे में सोचिए भी मत, मुझ अभागन को और परेशान मत कीजिए...

इवनोफ़ - माफ़ कीजिएगा... (बगीचे में चला जाता है)

ज़िनईदा साविष्ना - फू, हे मेरे ईश्वर, तंग कर दिया इसने!...पूरा शरीर काँप रहा है मेरा...पूरा शरीर... (दाहिने दरवाज़े से बाहर निकल जाती है)

 

VIII

कसीख़ (बाएँ दरवाज़े से बाहर निकलता है और स्टेज पर चलता है) - मेरे पास हैं ईंट का इक्का, बादशाह, बेगम, अट्ठी, इसके अलावा हुकुम का इक्का है और एक छोटा पान का पत्ता है, और इसके बावजूद, कुफ़्र पड़े उस पर, वह एक छोटा शो नहीं करा पाई! (दाहिने दरवाज़े से बाहर निकल जाता है)

 

IX

(अवदोत्या नज़ारव्ना और पहला मेहमान)

अवदोत्या नज़ारव्ना (पहले मेहमान के साथ बगीचे से बाहर निकलते हुए) - मैं तो इस मक्खीचूस को चीर डालूं...ज़रुर ही फाड़ डालूं! मज़ाक है, पाँच बजे से बैठी हुई हूँ, कम से कम तली हुई हैरिंग ही पेश की होती!... क्या घर है!... क्या इंतज़ाम है!...

पहला मेहमान (बाएँ दरवाज़े से बाहर निकलते हुए) - ऐसी बोरियत है कि सीधा दौड़कर दीवार से सिर दे मारुँ! अरे, लोगों, भगवान, मेहेरबानी कर!... बोरियत और भूख से भेड़िये की तरह बिसूरने लगो और लोगों को ही चबाना शुरु कर दो.

अवदोत्या नज़ारव्ना - मैं भी उसके टुकडे-टुकडे कर देती, पापिन कहीं की.

पहला मेहमान - पी लूँगा, बुढ़िया, और – चल दूँगा घर! तुम्हारी दुल्हनों की कोई ज़रुरत नहीं है. गंदे लोगों के लिए कहाँ का प्यार, जब लंच से अब तक एक गिलास भी नहीं मिला?

अवदोत्या नज़ारव्ना - चलो, कुछ ढूँढें क्या...

पहला मेहमान - श्श्श!..धीरे! लगता है, वोद्का डाइनिंग रुम में, बर्तनों की अल्मारी में है. हम इगोरुष्का के पीछे से निकलते हैं... श्श्श!.. (बाएँ दरवाज़े से बाहर निकल जाते हैं)

 

X

आन्ना पित्रोव्ना और ल्वोफ़ (दाएँ दरवाज़े से बाहर निकलते हैं)

आन्ना पित्रोव्ना - कोई नहीं, हमें देख कर ज़रुर ख़ुश होंगे वे. यहाँ कोई भी नहीं. ज़रुर बगीचे में होंगे.

ल्वोफ़ - मैं पूछता हूँ, आख़िर क्यों आप मुझे इन चीलों के बीच खींच ले आईं? यहाँ कोई जगह नहीं हमारे लिए! ईमानदार लोगों का ऐसे माहौल से परिचय न हो तो ही अच्छा है!

आन्ना पित्रोव्ना - ईमानदार महाशय, ज़रा मेरी भी सुन लीजिए! किसी भद्र महिला को अगर साथ ले जा रहे हों तो उसके सामने पूरे रास्ते अपनी ईमानदारी का बखान करना शालीनता की बात नहीं. हो सकता है, बात निष्कपट हो, पर हर तरह से उबाऊ है. औरतों के साथ कभी अपनी सद्गुणों की चर्चा स्वयं नहीं करनी चाहिए. बेहतर होगा कि उन्हें ख़ुद इस बात को समझने दिया जाए. मेरा निकलाय जब आपके जैसा था, तो औरतों की संगत में वह या तो गाने गाता या इधर-उधर की क़िस्से-कहानियाँ सुनाता रहता, जब कि हर औरत जानती थी कि वह कैसा हीरा आदमी है.

ल्वोफ़ - बस बस, अपने निकलाय के बारे में आप मुझे न सुनाइये, मैं उन्हें ख़ूब अच्छी तरह जानता हूँ!

आन्ना पित्रोव्ना - आप इंसान अच्छे हैं पर कुछ समझते नहीं. चलिए बगीचे में चलते हैं. उसने ख़ुद कभी ऐसा नहीं कहा होगाः “मैं ईमानदार हूँ! मेरा इस माहौल में दम घुटता है! चीलें! उल्लू का घोंसला! मगरमच्छ!” जानवरों को वह शान्ति से जीने देता था, और अगर कभी परेशान होता तो हमेशा उसके मुँह से मैंने यही बात सुनीः “ओह, आज मैंने बड़ी ग़लती की!” या: “अन्यूता, दया आती है मुझे इस इंसान पर!” ऐसा है, और आप...

(बाहर चले जाते हैं)

 


 

XI

(अव्दोत्या नज़ारव्ना और पहला मेहमान)

पहला मेहमान (बाएं दरवाज़े से बाहर निकलते हुए) - डाइनिंग रुम में तो नहीं है, हो सकता है स्टोर रूम में कहीं हो. लगता है इगोरूश्का को टटोलना पड़ेगा. चलिए मेहमानख़ाने से होकर चलते हैं. ऐसे.

अवदोत्या नजारव्ना - मैं उसके ऐसे टुकडे-टुकडे करती!..

 

XII

(बबाकिना, बोर्किन और षाबिल्स्की)

(बबाकिना और बोर्किन, हँसते हुए बगीचे से बाहर भागते हैं; उनके पीछे-पीछे हँसते हुए और हाथ पोंछते हुए छोटे-छोटे डग भरता षाबिल्स्की)

बबाकिना - कैसी बोरियत है! (ठठा कर हँसती है) कैसी बोरियत है! सब चलते हैं, और बैठ जाते हैं, मानो लकड़ी का गज़ निगल गए हों. बोरियत के मारे हड्डियां अकड़ गई हैं. (उछलती है) कुछ हाथ-पाँव चलाने की ज़रुरत है!..

(बोर्किन उसकी कमर पकड़ता है और गाल चूमता है)

षाबिल्स्की (ठहाका लगाता है और उंगलियाँ चटखाता है) - शैतान ले जाए! (कराहता है) किसी तरह...

बबाकिना - छोडिये, हा छोडिये, बेशरम, वरना पता है काऊंट क्या सोचेंगे! रुक जाइए!...

बोर्किन - मेरे दिल के फ़रिश्ते, मेरे क़ीमती हीरे!...(चूमता है) मुझे दो हज़ार तीन सौ रूबल्स उधार दीजिये!...

बबाकिना - न-न-नहीं...जो चाहे ले लीजिए, मगर पैसों के बारे में – आपका बहुत-बहुत शुक्रिया...नहीं, नहीं, नहीं!...आह, छोडिये भी हाथ!...

षाबिल्स्की (पास ही छोटे-छोटे डग भरते हुए चलता है) - मुटल्ली... इसकी अपनी ख़ूबसूरती है...

बोर्किन (गंभीरता से) - बहुत हो गया. कुछ काम की बात करते हैं. एकदम व्यापारिक संदर्भों में विचार करेंगे. मेरी बात का जवाब बिल्कुल सीधा बिना किसी लाग-लपेट अथवा दांव-पेंच के दीजिए: हाँ या ना? मेरी बात सुनिए! (काऊंट की ओर इशारा करता है) इन्हे पैसा चाहिए, तीन हज़ार की सालाना आमदनी. आपको पति चाहिए. आप काउंटेस बनना पसंद करेंगी?

षाबिल्स्की (ठठा कर हँसता है) - ग़ज़ब का बेशरम आदमी है!

बोर्किन - काउंटेस बनना पसंद करेंगी? हाँ या ना?

बबाकिना - (उत्तेजित है) बातें बना रहे हैं आप, मीषा, सच... ऐसे काम इस तरह, आनन्-फानन में, नहीं किए जाते,...अगर काऊंट की इच्छा है तो वह स्वयं कहेंगे... और मुझे नहीं मालूम ये अचानक, एकदम से...

बोर्किन - ठीक है, ठीक है, अनजान न बनिए, बात सौदे की है... हाँ या ना?

षाबिल्स्की (हँसते हुए और हाथ पोंछते हुए) - क्या बात सच है, बोलो? क्या यह क़मीनी हरकत की जा सकती है? हाँ? मुटल्ली... (बबाकिना को गाल पर चूम लेता है) वाह! शानदार! ककड़ी!

बबाकिना - रुकिए, रुकिए...आपने मुझे एकदम चिंता में डाल दिया...दूर हटिए, दूर हटिए!.. नहीं, मत जाइये!..

बोर्किन - जल्दी! हाँ या ना? हमारे पास कभी इतना समय...

बबाकिना - एक बात बोलूं, काऊंट? आप मेरे यहाँ दो-तीन दिन के लिए मेहमान स्वरुप आएं... मेरे यहाँ माहौल ख़ुशनुमा है, यहाँ की तरह नहीं है... कल ही आइए... (बोर्किन  से) मुझे लगता है आप मज़ाक कर रहे हैं?

बोर्किन (नाराज़ होते हुए) - ऐसी गंभीर विषयों में भी भला कोई मज़ाक करता है?

बबाकिना - एक मिनट, एक मिनट... ओह मैं मतवाली हो जाऊँगी! मतवाली! काउंटेस... पागल हो जाऊँगी!.. मुझे संभालिए...

(बोर्किन और ग्राफ हँसते हुए उसे हाथों पर ले लेते हैं, और गालों का चुम्बन लेते हुए दाहिने दरवाज़े से बाहर निकल जाते हैं)

XIII

(इवनोफ़, साषा, कुछ देर बाद आन्ना पित्रोव्ना)

(इवनोफ़ और साषा बगीचे में से भागते हुए आते हैं)

इवनोफ़ (बदहवासी से सिर थामे हुए) - ऐसा नहीं हो सकता! नहीं, ऐसा करने की ज़रुरत नहीं, बिल्कुल ज़रुरत नहीं, षूरच्का!... ओह, ऐसा मत करना!..

साषा (जोश में) - मैं आपसे पागलपन की हद तक प्यार करती हूँ... आपके बिना मेरे जीवन का कोई मतलब नहीं, न कोई ख़ुशी है न आनन्द! आप मेरा सर्वस्व हैं...

इवनोफ़ - क्या कह रही हो? नहीं! ऐ भगवान, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा... षूरच्का, इसकी ज़रुरत नहीं!

साषा - बचपन से ही आप मेरे लिए आनन्द के एकमात्र स्रोत हैं; मैं आपसे और आपकी रुह से ख़ुद की तरह प्यार करती रही हूँ और अब... मैं आपसे प्यार करती हूँ, निकलाय अलिक्सेयविच... आपके साथ मैं संसार के छोर तो क्या जहाँ कहिए, कहें तो क़ब्र में, सिर्फ़, भगवान के लिए, जल्दी करें, वर्ना मेरा दम घुट जाएगा...

इवनोफ़ (आनंदमय हँसी में लोट-पोट होता हुआ) - क्या मायने हैं इन बातों के? तो क्या, जीवन एक बार फिर से आरंभ करना पड़ेगा? हाँ, षूरच्का? मेरे सौभाग्य! (उसे अपने समीप खींच लेता है) मेरी जवानी, मेरी ताज़गी...

(आन्ना पित्रोव्ना बगीचे में से अन्दर आती है, और,

पति तथा साषा को देखकर स्तब्ध रह जाती है)

तो क्या, जीना पड़ेगा? हाँ? क्या एक बार फिर काम पर लौटना पड़ेगा?

(चुम्बन. चुम्बन के बाद इवनोफ़ और साषा मुड़ते हैं तो

आन्ना पित्रोव्ना नज़र आती है)

(भय से) सारा!

(पर्दा गिरता है)


 

तीसरा अंक

 

(इवनोफ़ का अध्ययन कक्ष, मेज़ पर अव्यवस्थित ढंग से कागज़, किताबें, सरकारी लिफाफ़े, बेकार की चीजें, रिवॉल्वर्स पड़े हैं; कागज़ों के पास लैम्प, वोद्का की सुराही, मछली रखी प्लेट, ब्रेड के टुकड़े और खट्टे खीरे, दीवारों पर लैण्डस्केप तस्वीरें, हथियार, पिस्तौलें, हसिये, चाबुक आदि – दोपहर)

I

(षाबिल्स्की, ल्येबिद्यिफ़, बोर्किन, प्योत्र)

 

(षाबिल्स्की और ल्येबिद्यिफ़ लिखने की मेज़ के दोनों ओर बैठे हैं.

बोर्किन स्टेज के बीच में कुर्सी पर.

प्योत्र दरवाज़े के पास खड़ा है)

ल्येबिद्यिफ़ – फ्रांस की पॉलिसी साफ़ और स्पष्ट है... फ्रांसीसी जानते हैं कि वे क्या चाहते हैं.... उन्हें बस अपने सॉसेज साफ़ करने दो, और इसके अलावा कुछ नहीं, मगर जर्मनी में, भाई, वैसी बीन नहीं बजती. जर्मनी में, फ्रांस के अलावा, बहुत सारी मुसीबतें हैं...

षाबिल्स्की – बकवास!... मेरी राय में तो जर्मन कायर हैं और फ्रांसीसी भी कायर हैं... वे सिर्फ़ एक-दूसरे को मुक्के ही दिखाते हैं. यकीन करो, सिर्फ़ मुक्कों तक ही बात सीमित रहती है. लड़ाई वे नहीं करेंगे.

बोर्किन – और मेरे ख़याल में, लड़ाई क्यों करनी है? ये सारे हथियार, मीटिंग, खर्चे? मैं होता तो क्या करता? पूरे राज्य से कुत्तों को इकट्ठा करता, उन्हें अच्छा-ख़ासा ज़हर खिलाकर दुश्मन के देश में छोड़ देता. एक महीने बाद तो सारे दुश्मन पागल हो जाते.

ल्येबिद्यिफ़ (हँसता है) – सिर देखते हो, छोटा-सा है मगर उसमें महान विचार ठूँस-ठूँसकर भरे हैं, जैसे समुन्दर में मछलियाँ.

षाबिल्स्की – उस्ताद है!

ल्येबिद्यिफ़ – भगवान बचाए तुझे, हँसाते हो तुम, मिशेल मिशेलिच!

(हँसना बंद करता है) तो क्या, महाशय, बस बातें ही किये जाएँगे, और वोद्का के बारे में एक लफ्ज़ भी नहीं दुहराएँगे! (तीनों जामों में डालता है) तन्दुरुस्ती के लिए... (पीते हैं और खाते हैं)

हैरिंग, प्यारी, अल्पाहार के लिए सबसे बढ़िया है.

षाबिल्स्की – ओह, नहीं, नमकीन खीरा ज़्यादा बेहतर है... वैज्ञानिक लोग सृष्टि के आरंभ से सोच रहे हैं, मगर नमकीन खीरे से बेहतर कोई और चीज नहीं सोच पाए. (प्योत्र से) प्योत्र, जाओ और कुछ नमकीन खीरे ले आओ. हाँ, किचन में बोलो कि प्याज़ डालकर चार पैटीज़ तल दें. गरम-गरम लाना.

(प्योत्र जाता है)

ल्येबिद्यिफ़ – वोदका भी कैवियर के साथ पीने में अच्छी लगती है. मगर कैसी अक्लमंदी से करना चाहिए... प्रेस्ड कैवियर चौथाई हिस्सा लेकर, दो हरी प्याज़ के गट्टे डालो, आलिव आइल प्रोवान्स का मक्खन, यह सब अच्छी तरह मिलाओ, और मालूम है, ऐसे... उसके ऊपर नींबू... मर जाऊँ! ख़ुशबू से ही मुँह में पानी आ जाएगा.

बोर्किन – वोद्का के बाद तली हुई छोटी-छोटी गजन मछलियाँ खाना भी अच्छा है. मगर उन्हें अच्छी तरह तलना चाहिए. साफ़ करके, ब्रेड के चूरे में लपेटो और पूरा सूखा होने तक तलो, जिससे कि दाँतों में कुर-कुर करें... ख्रू-ख्रू-ख्रू...

षाबिल्स्की – कल बबाकिना के यहाँ बढ़िया चीज़ थी – सफ़ेद मशरूम.

ल्येबिद्यिफ़ – क्या बात है...

षाबिल्स्की – बस उन्हें किसी ख़ास तरह से बनाया गया था. मालूम है, प्याज़ के साथ तेजपत्ता, कई सारे मसाले डले थे. जैसे ही भगौना खोला, और उसमें से भाप, ख़ुशबू... बस, मज़ा आ गया!

ल्येबिद्यिफ़ – तो? दुहराएँ, महाशय!

(पीते हैं)

तंदुरुस्ती के लिए... (घड़ी की ओर देखता है) शायद निकलाषा के आने तक न रुक पाऊँ. मुझे जाना चाहिये. तुम कहते हो कि बबाकिना के यहाँ मशरूम थे, और हमारे यहाँ तो अभी तक मशरूम्स के दर्शन भी नहीं हुए. बताओ, प्लीज़, तुम ये किस भूत के कारण मार्फूत्का के यहाँ अक्सर जाने लगे हो?

षाबिल्स्की(बोर्किन की ओर इशारा करता है) – ये रहा वो, मेरी उससे शादी करवाना चाहता है...

ल्येबिद्यिफ़ – शादी? तुम्हारी उम्र क्या है?

षाबिल्स्की – बासठ साल.

ल्येबिद्यिफ़ – बिल्कुल सही समय है शादी करने का. और मार्फूत्का तुम्हारे लिये एकदम सही है.

बोर्किन – यहाँ बात मार्फूत्का की नहीं, बल्कि मार्फूत्का के पाऊँड्स की है.

ल्येबिद्यिफ़ – तुमने भी क्या ख़्वाहिश की : मार्फूत्का के पाऊँड्स... और हर्बल चाय नहीं चाहिये?

बोर्किन – और जब कोई आदमी शादी करता है तो अपनी जेब ठूँस-ठूँसकर भर लेता है. तब ही देखोगे हर्बल चाय, होंठ चाटते रह जाओगे...

षाबिल्स्की – हाँ, यह तो संजीदगी से कह रहा है. इस जीनियस को यक़ीन है कि मैं इसकी बात मान लूँगा और शादी कर लूँगा...

बोर्किन – और नहीं तो क्या? और क्या आपको अब तक यक़ीन नहीं हो गया है?

षाबिल्स्की – आह, तुम पागल हो गए हो... मैंने कब यक़ीन किया था? स् स् स्...

बोर्किन – थैंक्यू... बहुत-बहुत थैंक्यू! मतलब ये कि आप मेरी खिंचाई करना चाहते हैं? कभी – शादी करूँगा, कभी – नहीं करूँगा... ख़ुद शैतान भी समझ नहीं पायेगा, मगर मैंने तो वादा कर दिया है! तो आप शादी नहीं करेंगे?

षाबिल्स्की (कंधे उचकाता है) – यह तो संजीदगी से... अजीब आश्चर्यजनक आदमी है! विचित्र जीव!

बोर्किन (ग़ुस्से से) – तो उस हालत में उस ईमानदार औरत को धोखे में रखने की क्या ज़रूरत थी? वह काऊँट के ओहदे से जुड़ गई है, न सोती है, न खाती है... क्या कोई इस तरह का मज़ाक करता है? क्या यह ईमान की बात है?

षाबिल्स्की (उँगलियाँ चटखाता है) – और, क्यों न सचमुच में ओछा काम कर लिया जाए? हाँ, शरारत ही सही! उठूँगा और कर डालूँगा. प्रॉमिस... दिल बहल जाएगा!

(ल्वोफ़ प्रवेश करता है)

II

ल्येबिद्यिफ़ – हमारे आरोग्य देवता एस्कुलापस... (ल्वोफ़ की ओर हाथ बढ़ाते हुए गाता है) “डॉक्टर बाबू, बचाइये मौत से, डरता हूँ मौत की तरह...”

ल्वोफ़ – क्या निकलाय अलेक्सेयेविच अभी तक नहीं लौटे?

ल्येबिद्यिफ़ – नहीं, मैं भी घंटे भर से ज़्यादा उनका इंतजार कर रहा हूँ.

(ल्वोफ़ बेसब्री से स्टेज पर चक्कर लगाता है)

डियर, बोलो, कैसी तबीयत है आन्ना पित्रोव्ना की?

ल्वोफ़ – बुरा हाल है.

ल्येबिद्यिफ़ (गहरी साँस लेते हुए) – क्या मैं जाकर अभिवादन प्रदर्शित कर सकता हूँ?

ल्वोफ़ – नहीं, प्लीज़, न जाइये. वह शायद सो रही हैं...

(थोड़ी देर ख़ामोशी)

ल्येबिद्यिफ़ – बड़ी प्यारी, बड़ी बढ़िया... (गहरी साँस). षूरच्का के जन्मदिन पर, जब वह हमारे यहाँ बेहोश हो गई थी, मैंने उसके चेहरे की ओर देखा और तभी समझ गया कि उस बेचारी के पास ज़्यादा दिन नहीं बचे हैं. समझ नहीं पाता हूँ कि उसकी तबीयत उस समय क्यों बिगड़ गई? दौड़कर आता हूँ, देखता हूँ : वह फ़क चेहरे से फ़र्श पर पड़ी है. उसके पास निकलाषा, घुटनों पर, वह भी बेरंग, षूरच्का जार-जार आँसुओं में डूबी. मैं और षूरच्का इसके बाद एक हफ्ते तक पागलों की तरह घूमते रहे.

षाबिल्स्की (ल्वोफ़ से) – मुझे बताइये, विज्ञान के सम्माननीय प्रीस्ट, किस वैज्ञानिक ने यह आविष्कार किया है कि स्तनों की बीमारियों में महिलाओं के लिए युवा डॉक्टरों की विज़िट्स फायदेमन्द होती हैं? बड़ा महान आविष्कारक है! महान! यह किससे संबंधित है : एलोपैथी से या होमियोपैथी से?

(ल्वोफ़ जवाब देना चाहता है, मगर नफ़रत से हाथ झटक कर चला जाता है)

कैसी मारक नज़र...

ल्येबिद्यिफ़ – और तुम्हारी ज़बान को फिसलने की आदत है! तुमने उसका अपमान क्यों किया?

षाबिल्स्की (ग़ुस्से से) – और वह क्यों झूठ बोलता है? टी.बी., कोई उम्मीद नहीं, मर जाएगी... झूठ बोलता है वह! मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता!

ल्येबिद्यिफ़ – तुम ऐसा क्यों सोचते हो कि वह झूठ बोलता है?

षाबिल्स्की (उठकर घूमने लगता है) – मैं इस ख़याल को मन में आने ही नहीं दे सकता कि एक ज़िन्दा आदमी – अचानक, यूँ ही मर जाए. इस बात-चीत को यहीं ख़त्म करें!

III

(ल्येबिद्यिफ़, षाबिल्स्की, बोर्किन और कसीख़)

कसीख़ (भागकर आता है, साँस फूली है) – क्या निकलाय अलेक्सेयेविच घर पर हैं? अभिवंदन! (जल्दी-जल्दी सबसे हाथ मिलाता है) घर पर हैं?

बोर्किन – नहीं हैं.

कसीख़ (बैठ जाता है और उछलकर खड़ा हो जाता है) – तो फिर बाय-बाय! (वोद्का का एक जाम पीकर फट् से मुँह में कुछ डाल लेता है) आगे जाऊँगा... काम पड़े हैं... परेशान हो गया... मुश्किल से पैरों पर खड़ा हूँ...

ल्येबिद्यिफ़ये तुम कहाँ से टपक पड़े?

कसीख़ – बराबानफ़ के यहाँ से. पूरी रात ताश खेलते रहे और अभी-अभी खेल ख़त्म किया है... पूरी तरह हार गया... ये बराबानफ़ मोची की तरह खेलता है! (रोनी आवाज़ में) आप सुनिये : पूरे टाइम पान है मेरे पास... (बोर्किन से मुख़ातिब होता है, जो उससे दूर उछलता है) वो ईंट चलता है, मैं फिर से पान, वो ईंट... मगर बिना हाथ के. (ल्येबिद्यिफ़ से) चिड़ी के चार चलने हैं. मेरे पास इक्का, रानी, इक्का, दस्सी हुकुम की...

ल्येबिद्यिफ़ (कान बन्द कर लेता है) – भाग, भाग, क्राइस्ट की ख़ातिर भाग यहाँ से!

कसीख़ (काऊंट से) – समझ रहे हैं : इक्का, चिड़ी की बेगम, इक्का, दस्सी हुकुम की...

षाबिल्स्की (उसे हाथों से दूर करता है) – चले जाइये, मैं यह सब सुनना नहीं चाहता.

कसीख़ – और अचानक बदक़िस्मती : हुकुम के इक्के को पहली ही चाल में हरा देते हैं...

षाबिल्स्की (मेज़ से रिवाल्वर उठाता है) – हटिये, गोली मार दूँगा!...

कसीख़ (हाथ झटकते हुए) – शैतान जाने... क्या वाक़ई में किसी से बात भी नहीं कर सकता? रहते हैं ऐसे जैसे ऑस्ट्रेलिया में हों : कोई भी एक-सी दिलचस्पी नहीं, कोई एकता नहीं... हर कोई बस अपनी-अपनी अलग ज़िन्दगी जीता है... मगर, मुझे जाना होगा... टाइम हो गया. (टोपी उठाता है) समय क़ीमती है... (ल्येबिद्यिफ़ की ओर हाथ बढ़ाता है) पास!...

(हँसी)

(कसीख़ जाने लगता है और दरवाज़े में अव्दोत्या नज़ारव्ना से टकराता है)

 

IV

अव्दोत्या नज़ारव्ना (चिल्लाती है)तेरा सत्यनाश हो, तू ने तो मुझे गिरा ही दिया था!

सभी – आ-आ-आ!... सर्वत्र विद्यमान!...

अव्दोत्या नज़ारव्ना – ये सब यहाँ हैं, और मैं पूरे घर में ढूँढ़ रही हूँ. अभिवंदन, बहादुरबाज़ों, स्वागत है... (अभिवादन करती है)

ल्येबिद्यिफ़ – किसलिए आई हो?

अव्दोत्या नज़ारव्ना – काम से आई हूँ, मालिक! (काऊंट से) काम आपसे ताल्लुक रखता है, हुजूर! (झुककर अभिवादन करती है) हुक्म दिया है कि आपको झुककर अभिवादन करूँ और तबीयत के बारे में पूछूँ... उसने, मेरी नन्हीं-सी गुड़िया ने, हुक्म दिया है ये कहने का कि अगर आप आज शाम को नहीं आए तो वह रो-रोकर अपनी आँखें फोड़ लेगी. तो कहती है मेरी लाडो कि उसे एक किनारे बुलाकर, कान में फुसफुसाकर कहना – राज़ की बात. मगर राज़ की बात क्यों? यहाँ तो सब अपने ही हैं... और बात ये है कि हम कोई मुर्गियाँ तो नहीं चुरा रहे हैं, बल्कि कानूनन और प्यार की वजह से, एक-दूसरे की रज़ामन्दी से. मैं गुनहगार, पीती तो कभी नहीं, मगर इस मौके पर पी लूँगी!

ल्येबिद्यिफ़ – और मैं भी पीऊँगा. (जाम भरता है) और तू, बूढ़ी स्टार्लिंग, तू तो बिल्कुल वैसी की वैसी ही है. तीस साल से मैं तुझे बूढ़ी की बूढ़ी ही देख रहा हूँ...

अव्दोत्या नज़ारव्ना – मैं तो सालों की गिनती ही भूल गई हूँ... दो शौहरों को दफ़ना चुकी हूँ. तीसरी शादी भी कर लेती, मगर बग़ैर दहेज के कौन करेगा? बच्चे आठ थे... (जाम उठाती है) ठीक है, हमने अच्छा ही काम शुरू किया, भगवान करे, पूरा भी हो जाए! वे भरपूर ज़िन्दगी जियें, और हम उन्हें देख-देखकर ख़ुश होंगे. सलाह देंगे और प्यार देंगे... (पीती है) कड़क है वोद्का!

षाबिल्स्की (ठहाका मारते हुए ल्येबिद्यिफ़ से) – देखा, समझ रहे हो न, कि सबसे अजीब बात ये है कि वे पूरी तरह से संजीदा हैं, सोचते हैं कि मैं... ग़ज़ब की बात! (उठता है) और पाषा, वाक़ई में ये नीच काम क्यों न कर डालूँ? सताने के लिए... तो चल, बूढ़ी कुतिया, खा! पाषा, हाँ? ऐ, भगवान...

ल्येबिद्यिफ़ – बकवास कर रहे हो, काऊंट. हमारा-तुम्हारा काम तो अब दूसरी दुनिया के बारे में सोचने का है, और मार्फूत्का और उसके पाऊण्ड्स कब के पीछे रह गए... हमारा वक़्त गुज़र चुका है, काऊंट.

षाबिल्स्की – नहीं, मैं करूँगा! प्रॉमिस, ज़रूर करूँगा!

(इवनोफ़ और ल्वोफ़ आते हैं)

 

V

ल्वोफ़ – कृपया मुझे सिर्फ़ पाँच मिनट दीजिए.

ल्येबिद्यिफ़ – निकलाषा! (इवनोफ़ के निकट जाकर उसका चुंबन लेता है) अभिवंदन, दोस्त... मैं पूरे घंटे भर से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ.

अव्दोत्या नज़ारव्ना (झुककर अभिवादन करती है) – अभिवंदन, मालिक!

इवनोफ़ (तैश में) – महाशय, फिर से मेरे अध्ययन कक्ष को शराबख़ाना बना दिया!... हज़ारों बार मैं हरेक से और सबसे कह चुका हूँ कि ऐसा न करें... (मेज़ के निकट जाता है) ये देखो, कागज़ पर वोद्का गिरा दी... ब्रेड के टुकड़े... खीरे... आह, कितना घिनौना है!

ल्येबिद्यिफ़ – कुसूरवार हूँ, निकलाषा, कुसूरवार... माफ़ करना मुझे, दोस्त, तुमसे एक ज़रूरी बात करनी है.

बोर्किन – और मुझे भी.

ल्वोफ़ – निकलाय अलेक्सेयेविच, क्या मैं आपसे बात कर सकता हूँ?

इवनोफ़ (ल्येबिद्यिफ़ की ओर इशारा करता है) – उसे भी मेरी ज़रूरत है. रुकिये, आप बाद में... (ल्येबिद्यिफ़ से) तुम्हें क्या चाहिए?

ल्येबिद्यिफ़ – महाशय, मुझे अकेले में बात करनी है. कृपया...

(काऊंट अव्दोत्या नज़ारव्ना के साथ जाता है. उसके पीछे बोर्किन, फिर ल्वोफ़)

इवनोफ़ – पाषा, तुम ख़ुद तो पी सकते हो, जितनी चाहो, ये तो तुम्हारा रोग है. मगर प्लीज़, मामा को न पिलाओ. पहले उसने मेरे यहाँ कभी नहीं पी. उसे नुक़सान होता है.

ल्येबिद्यिफ़ (भयभीत होकर) – प्यारे, मुझे मालूम नहीं था... मैंने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया...

इवनोफ़ – भगवान न करे, ये बूढ़ा बच्चा अगर मर गया तो नुक़सान तो मेरा होगा न, आपका नहीं... तुम्हें क्या चाहिये?

(अंतराल)

ल्येबिद्यिफ़ – देखो, प्यारे दोस्त... समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे शुरू करूँ, जिससे कि उतना बेरहम न लगे, निकलाषा, मुझे शर्म आ रही है, लाल हो रहा हूँ, ज़बान लड़खड़ा रही है, मगर प्यारे, मेरी जगह ख़ुद को रखकर देखो, समझने की कोशिश करो कि मैं ग़ुलाम आदमी हूँ, नीग्रो हूँ, चीथड़ा हूँ... मुझे माफ़ करना...

इवनोफ़ – क्या बात है?

ल्येबिद्यिफ़ – बीबी ने भेजा है... मेहेरबानी करो, दोस्त बने रहो, उसका ब्याज़ चुका दो! यक़ीन करो, ज़िन्दगी नर्क बना दी, पीछे पड़ गई, बहुत सताया! दुनिया वालों की ख़ातिर तुम उससे आज़ाद हो जाओ!...

इवनोफ़ – पाषा, तुम जानते हो कि इस समय मेरे पास नक़द नहीं हैं.

ल्येबिद्यिफ़ – जानता हूँ, जानता हूँ, मगर मैं क्या करूँ? इंतज़ार वो करना नहीं चाहती. अगर प्रोमिसरी नोट को चुनौती दी तो मैं और षूरच्का तुम्हें क्या मुँह दिखाएँगे?

इवनोफ़ – मैं ख़ुद भी शर्मिन्दा हूँ, पाषा, ज़मीन फट जाए तो उसमें समा जाना बेहतर होगा, मगर... मगर कहाँ से लाऊँ? बताओ : कहाँ से? बस एक ही रास्ता है : पतझड़ का इंतज़ार करूँ, जब मैं गेहूँ बेचूँगा!

ल्येबिद्यिफ़ (चिल्लाता है) – वह रुकना नहीं चाहती!

(अंतराल)

इवनोफ़ – तुम्हारी हालत नाख़ुशगवार है, अटपटी है, मगर मेरी उससे भी बुरी है. (चलता है और सोचता है) और कुछ भी नहीं सोच पा रहा... बेचने के लिए कुछ है ही नहीं...

ल्येबिद्यिफ़ – तुम मीलबाख़ के पास चले जाते, पूछ लेते, उस पर तो तुम्हारा सोलह हज़ार उधार है.

(इवनोफ़ नाउम्मीदी से हाथ हिलाता है)

ये बात सुनो, निकलाषा ... मुझे मालूम है कि तुम गालियाँ दोगे... बूढ़े पियक्कड़ की इज्ज़त करो! दोस्ती में... मुझे दोस्त समझो... हम-तुम तो विद्यार्थी, लिबरल्स... विचार और दिलचस्पियाँ एक-सी... मॉस्को यूनिवर्सिटी में दोनों पढ़े हैं... अल्मा मतेर... (कागज़ का लिफाफ़ा निकालता है) मेरे पास ये चुपचाप बचाए हुए हैं, इनके बारे में घर में कोई भी नहीं जानता. उधार ले लो... (लिफ़ाफ़े से नोट निकालता है और मेज़ पर रखता है) आत्मसम्मान छोड़ो और दोस्ताना अंदाज़ से देखो... मैं होता तो तुमसे ले लेता, सच कहता हूँ...

(अंतराल)

ये मेज़ पर रखे हैं : ग्यारह सौ. तुम आज ही उसके पास जाओ और अपने हाथों से दे दो. बोलो, ज़िनाईदा साविष्ना, ये लो और घोंट लो अपना गला! बस, इतना ध्यान रहे, ये ज़ाहिर न होने देना कि मुझसे लिए हैं, भगवान तुम्हारी हिफ़ाज़त करे! वर्ना मेरी शामत आ जाएगी! (इवनोफ़ के चेहरे को ग़ौर से देखता है) ओह, ओह, कोई ज़रूरत नहीं! (जल्दी से मेज़ से नोट उठाकर जेब में छिपा लेता है) ज़रूरत नहीं! मैं तो मज़ाक कर रहा था... माफ़ करना, येशू की ख़ातिर!

(अंतराल)

रूह बेचैन है?

(इवनोफ़ हाथ झटकता है)

हाँ, हालात... (गहरी साँस लेता है) तुम्हारे लिए दुःख और अपमान का वक़्त है. आदमी, मेरे भाई, समोवार की तरह होता है. न सिर्फ़ वह ठंड में शेल्फ में खड़ा रहता है, बल्कि ऐसा भी होता है कि उसमें कोयले ठूँसे जाते हैं : प्श्... प्श्! ये मिसाल बड़ी वाहियात तो है, मगर इससे बेहतर मैं कुछ और सोच नहीं सकता... (गहरी साँस लेता है) दुर्भाग्य आत्मा को मजबूत बनाते हैं. मुझे तुम पर दया नहीं आती. निकलाषा, तुम इस दुःख से बाहर निकलोगे, चक्की में ज़्यादा पिसोगे – तो आटा बनेगा, मगर मुझे अपमान लगता है, भाई, और लोगों पर ग़ुस्सा आता है... मेहरबानी करके बताओ, ये अफ़वाहें कहाँ से फैल रही हैं! कस्बे में, भाई मेरे, तुम्हारे बारे में कितनी अफ़वाहें फैल रही हैं ... कि जब देखो तुम्हारे पास पब्लिक प्रोसेक्यूटर चला आता है... तुम हत्यारे हो, ख़ून पीने वाले हो, और लोगों की जायदाद हड़पने वाले हो, और विश्वासघाती हो ...

इवनोफ़ – ये सब बकवास है. मेरा सिर दुख रहा है.

ल्येबिद्यिफ़ – सिर्फ़ इसलिए कि तुम बहुत सोचते हो.

इवनोफ़ – कुछ भी नहीं सोचता मैं.

ल्येबिद्यिफ़ – और तुम, निकलाषा, इन सब पर थूको और हमारे यहाँ आ जाओ. षूरच्का तुमसे प्यार करती है, तुम्हें समझती है और तुम्हारा सम्मान करती है. वो, निकलाषा, ईमानदार, अच्छी इन्सान है. न तो माँ पर गई है, न बाप पर, मगर शायद किसी आते-जाते नौजवान पर... देख रहा हूँ, भाई, कभी-कभी तो मुझे यक़ीन ही नहीं होता कि मेरे, मोटी नाक वाले पियक्कड़ के यहाँ, ऐसा हीरा है. चले आओ, उसके साथ कुछ अक्लमंदी की बात करो और दिल बहल जाएगा. यह यक़ीन के लायक, ईमानदार इन्सान है...

(अंतराल)

इवनोफ़ – पाषा, प्यारे, मुझे अकेला छोड़ दो...

ल्येबिद्यिफ़ – समझ रहा हूँ, समझ रहा हूँ... (जल्दी से घड़ी की ओर देखता है) मैं समझ रहा हूँ. (इवनोफ़ को चूमता है) अलविदा. मुझे अभी स्कूल में बच्चों के आशीर्वाद समारोह में जाना है. (दरवाज़े की ओर जाता है और रुक जाता है) अक्लमंद है... कल हम षूरा के साथ अफ़वाहों के बारे में बहस कर रहे थे. (हँसता है) और वह कहावत में बोली : “पापा, कहते हैं कि जुगनू रात को सिर्फ़ इसलिये चमकते हैं कि रात के पंछी उन्हें आसानी से देख सकें और खा जाएँ, और अच्छे आदमी होते ही इसलिये हैं कि निन्दा और अफ़वाहें जन्म ले सकें.” कैसी रही? जीनियस! जॉर्ज सैण्ड!...

इवनोफ़ – पाषा! (उसे रोकता है) मुझे क्या हो गया है?

ल्येबिद्यिफ़ – मैं ख़ुद भी तुमसे इस बारे में पूछना चाहता था. हाँ, मगर स्वीकार करता हूँ कि हिचकिचा रहा था. नहीं जानता, भाई! एक तरफ़ से तो मुझे ऐसा लगा कि बहुत सारी विपदाओं ने तुम्हें पराजित कर दिया है. दूसरी ओर से मैं यह भी जानता हूँ कि तुम ऐसे हो कि उससे... दुःख तुम्हें हरा नहीं सकता. निकलाषा, बात कुछ और ही है, मगर क्या – ये मैं नहीं समझ पा रहा!

इवनोफ़ – मैं ख़ुद भी नहीं समझ रहा. मुझे ऐसा लगता है, या... मगर, नहीं!

(अंतराल)

देखो, मैं यह कहना चाहता था, मेरे यहाँ एक मज़दूर था – सिम्योन, तुम्हें याद है उसकी? एक बार, थ्रेशिंग के समय उसने जवान लड़कियों के सामने अपनी ताक़त की शेखी बघारनी चाही, पीठ पर रई के दो बोरे लादे और चरमरा गया, जल्दी ही मर गया. मुझे ऐसा लगता है कि मैं भी चरमरा गया हूँ. स्कूल, यूनिवर्सिटी, फिर कारोबार, स्कूल्स, प्रोजेक्ट्स... विश्वास मैंने वैसा नहीं किया जैसा सब करते हैं, शादी वैसे नहीं की जैसा सब करते हैं, जोश में आ गया, ख़तरे उठाए, अपना धन, तुम ख़ुद ही जानते हो, दायें-बायें फेंकता रहा, भाग्यशाली रहा और दुःख उठाता रहा, जैसा कि इस कस्बे में किसी ने नहीं उठाया. ये सब, पाषा, मेरी पीठ पर लदे बोरे हैं. पीठ पर बोझ लाद लिया, मगर पीठ तो चरमरा गई. बीस साल की उम्र में लोग हीरो बन जाते हैं, सब कुछ करने लगते हैं, सब कुछ कर सकते हैं, और तीस साल में थक जाते हैं, किसी काम के नहीं रह जाते. इस थकान की वजह कैसे समझा सकते हो? ख़ैर, शायद हो सकता है, ये वो नहीं है... वो नहीं, वो नहीं!... जाओ, पाषा, भगवान साथ रहे, मैंने तुम्हें बेज़ार कर दिया.

ल्येबिद्यिफ़ (ज़िन्दादिली से) – जानते हो? परिवेश तुम्हें खा गया है!

इवनोफ़ – बेवकूफ़ी, पाषा, और पुरानी बात है. जाओ!

ल्येबिद्यिफ़ – वाक़ई में बेवकूफ़ी है. अब मैं ख़ुद भी देख रहा हूँ कि बेवकूफ़ी है. जाता हूँ, जाता हूँ!... (जाता है)

 

VI

इवनोफ़ (अकेला) – बुरा हूँ मैं, दयनीय और कमीना इन्सान हूँ. अभी भी मुझसे प्यार करने के लिए, मेरी इज़्ज़त करने के लिए पाषा जैसा दयनीय, पस्त, बदहाल ही होना पड़ता है. हे भगवान, कितनी नफ़रत करता हूँ मैं अपने आप से! कितनी नफ़रत है मुझे अपनी आवाज़ से, अपने कदमों से, अपने हाथों से, इस ड्रेस से, अपने विचारों से. ओह, क्या ये हास्यास्पद नहीं है, अपमानजनक नहीं है? अभी साल भर भी तो नहीं हुआ, जब मैं तन्दुरुस्त और ताकतवर था, उत्साहपूर्ण था, थकता नहीं था, जोशीला था, इन्हीं हाथों से काम करता था, बोलता ऐसे था कि अपढ़, मूर्ख की आँखों में भी आँसू आ जाएँ, दुःख देखकर रोता था, बुराई देखकर क्रोधित हो जाता था. मैं जानता था कि प्रेरणा क्या होती है, ख़ामोश रातों के आकर्षण और उनके काव्य को जानता था, जब सुबह से शाम के झुटपुटे तक अपनी मेज़ पर बैठकर काम कर रहे हो, या सपनों से अपने दिमाग़ को सुकून पहुँचा रहे हो. मैं कितना विश्वास करता था, भविष्य की ओर ऐसे देखता था जैसे माँ की आँखों में देख रहा हूँ... मगर अब, हे भगवान! थककर चूर हो गया हूँ, विश्वास नहीं करता, निठल्लेपन में रात-दिन गुज़ारता हूँ. मेरा दिमाग़, मेरे हाथ-पैर साथ नहीं दे रहे. जायदाद बरबाद हो रही है, जंगल कुल्हाड़ियों के वार से चरमरा रहे हैं. (रोता है) मेरे खेत मेरी ओर ऐसे देखते हैं, जैसे मैं कोई अनाथ हूँ. किसी भी चीज़ का इंतज़ार नहीं है मुझे, किसी चीज़ का अफ़सोस नहीं, कल के खौफ़ से रूह काँपती है... और सारा का किस्सा? चिरंतन प्रेम की क़समें खाई थीं, सुख की भविष्यवाणी की थी, उसकी आँखों के सामने ऐसे भविष्य की तस्वीर खींची थी, जिसकी उसने सपने में भी कल्पना नहीं की थी. उसने यक़ीन कर लिया, पूरे पाँच साल में बस यही देखता रहा कि अपने बलिदानों के बोझ तले वह कैसे बुझती रही, अंतरात्मा से जूझते हुए कैसे पस्त होती रही, मगर भगवान देखता है, कभी मेरी ओर क्रोध भरी दृष्टि नहीं, उलाहने का कोई शब्द नहीं!... और क्या? मैं उससे नफ़रत करने लगा... कैसे? किसलिये? क्यों? समझ नहीं पाता. वो तड़प रही है, उसके दिन गिने-चुने हैं, मगर मैं, दुनिया के अंतिम कायर की तरह, उसके बेरंग चेहरे से, लटकते सीने से, चिरौरी करती आँखों से दूर भागता हूँ... शर्मनाक, शर्मनाक!

(अंतराल)

मेरा दुर्भाग्य, बच्ची साषा के मन को छू लेता है. वह मेरे, लगभग बूढ़े के, प्रेम की क़समें खाती है, और मुझ पर सुरूर छा जाता है, दुनिया की हर चीज़ के बारे में भूल जाता हूँ, सम्मोहित होकर, जैसे संगीत से, मैं चिल्लाता हूँ : “नई ज़िन्दगी! ख़ुशी!” और दूसरे दिन इस ज़िन्दगी और इस सौभाग्य में उतना ही कम विश्वास करता हूँ जितना भूत में... मुझे हुआ क्या है? किस खाई में मैं अपने आपको धकेल रहा हूँ? ये कमज़ोरी मुझमें कहाँ से आई? मेरी मानसिकता को क्या हो गया? बस, बीमार बीबी के मेरे आत्मसम्मान को कुरेदने की देर है, या नौकर ठीक से काम नहीं कर रहा, या बंदूक का खटका काम नहीं कर रहा, मैं कठोर, ग़ुस्सैल हो जाता हूँ, बिल्कुल अपने आप में नहीं रहता.

(अंतराल)

समझ नहीं पाता, समझ नहीं पाता, नहीं समझ पाता! चाहे तो माथे पे गोली मार दो!...

ल्वोफ़ (अंदर आता है) – मुझे आपसे बात करनी है, निकलाय अलेक्सेयेविच!

इवनोफ़ – डॉक्टर, अगर हम हर रोज़ बातें करते रहे, सफ़ाई देते रहे तो मेरे पास इतनी शक्ति नहीं है.

ल्वोफ़ – क्या आप मेरी बात सुनेंगे?

इवनोफ़ – आपकी बात हर रोज़ सुनता हूँ और आज तक समझ नहीं पाया कि आपको आख़िर मुझसे चाहिये क्या?

ल्वोफ़ – मैं अपनी बात साफ़-साफ़ और स्पष्टता से कहता हूँ और मेरी बात सिर्फ़ वही आदमी नहीं समझ सकता जिसके पास दिल ही न हो...

इवनोफ़ – कि मेरी पत्नी मरने वाली है – मैं जानता हूँ कि मैं उसका बहुत बड़ा गुनहगार हूँ – ये भी जानता हूँ कि आप ईमानदार और स्पष्टवक्ता इन्सान हैं – ये भी मुझे मालूम है! इसके अलावा और क्या चाहिए आपको?

ल्वोफ़ – आदमी की निर्दयता से मुझे ग़ुस्सा आ जाता है... एक औरत मर रही है. उसके माता-पिता हैं, जिन्हें वह प्यार करती है और मरने से पहले जिनसे मिलना चाहती है; उन्हें भी यह बात अच्छी तरह मालूम है कि वह जल्दी ही मरने वाली है और ये भी कि वह अब तक उनसे प्यार करती है, मगर यह नासपीटी निर्दयता, वे अपनी धार्मिक कट्टरता से जैसे हैरान करना चाहते हैं : अभी भी उसे शाप देते हैं! आप वो आदमी हैं जिसकी ख़ातिर उसने हर चीज़ का बलिदान कर दिया – अपना पैदाइशी नीड़ और अंतरात्मा की शांति – और आप खुल्लमखुल्ला और बड़े ज़ाहिर मक़सद से हर रोज़ इन लेबेद्येवों के यहाँ जाते हैं!

इवनोफ़ – मैं वहाँ पिछले दो हफ्तों से नहीं गया हूँ...

ल्वोफ़ (उसकी बात सुने बग़ैर) – ऐसे लोगों से, जैसे कि आप हैं, साफ़-साफ़ बात करनी चाहिए, बिना लाग-लपेट के, और अगर आप मेरी बात सुनना नहीं चाहते हैं, तो न सुनिये! मैं चीज़ों को साफ़-साफ़ उनके नाम से पुकारने का आदी हूँ... आपको इस मौत की आवश्यकता है, नई जीत हासिल करने के लिए : चलिए, ऐसा ही सही, मगर क्या आप थोड़ा इंतज़ार नहीं कर सकते? अगर आप उसे स्वाभाविक मौत मरने देंगे, अपनी खुल्लमखुल्ला सनक से उस पर बार-बार वार न करेंगे तो क्या लेबेद्येवा, अपने दहेज समेत आपसे दूर चली जाएगी? यदि अभी नहीं, तो एक साल बाद, दो साल बाद, आप तो शानदार तरत्यूफ़[1] हैं, उस बच्ची का दिमाग़ ख़राब करने और उसका दहेज हड़पने में कामयाब हो ही जाएँगे, जैसे अभी कर रहे हैं... जल्दी क्यों मचा रहे हैं? आप ऐसा क्यों चाहते हैं कि आपकी बीबी अभी मर जाए, न एक महीने बाद, न साल भर बाद?

इवनोफ़ – पीड़ा... डॉक्टर, आप बड़े बुरे डॉक्टर हैं. अगर आप ऐसा समझते हैं कि आदमी स्वयं को हमेशा के लिए बचा सकता है, आपके अपमानजनक आरोपों का उत्तर न देने के लिए मुझे बड़ी कोशिश करनी पड़ रही है.

ल्वोफ़ – बस, बहुत हो गया. आप किसे बेवकूफ़ बनाना चाहते हैं? ये नक़ाब उतार फेंकिये.

इवनोफ़ – अक्लमन्द आदमी, ज़रा सोचो : आपके हिसाब से मुझे समझना सबसे ज़्यादा आसान है! हाँ? मैंने आन्ना से शादी की, इसलिये कि ख़ूब सारा दहेज मिल सके... दहेज मुझे दिया नहीं गया, मैं धोखा खा गया और अब उसे धीरे-धीरे मारे डाल रहा हूँ, जिससे दूसरी बार शादी करके दहेज ले सकूँ... हाँ? कितना साफ़ और आसान है... इन्सान इतनी सीधी-सीधी और बेअक्ल मशीन है... नहीं, डॉक्टर, हममें से हरेक के भीतर कई सारे पहिये हैं, स्क्रू हैं और वॉल्व्स हैं, जिससे हमें एक-दूसरे के बारे में पहले प्रभाव को, या दो-तीन बाह्य लक्षणों को देखकर राय क़ायम कर सकें. मैं आपको नहीं समझ सकता और आप मुझे नहीं समझ पाते. एक अच्छा डॉक्टर होना संभव है – और साथ ही यह भी संभव है कि आप लोगों को न जानें. अति आत्मविश्वास न रखें और इस बात से सहमत हो जाएँ.

ल्वोफ़ – कहीं आप ऐसा तो नहीं सोच रहे हैं कि आप इतने अपारदर्शी हैं और मेरे पास बिल्कुल दिमाग़ नहीं है, ताकि मैं कमीनेपन और ईमानदारी में फ़र्क़ न महसूस कर सकूँ?

इवनोफ़ – ज़ाहिर है, हमारी-आपकी पटरी कभी बैठ ही नहीं सकती... आख़िरी बार मैं पूछ रहा हूँ और आप मुझे जवाब दीजिए, बिना किसी भूमिका के : आपको मुझसे क्या चाहिये? आप क्या हासिल करने वाले हैं? (थरथराते हुए) और मैं किससे बात करने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा हूँ : क्या मेरे प्रोसेक्यूटर से या मेरी बीबी के डॉक्टर से?

ल्वोफ़ – मैं डॉक्टर हूँ, और डॉक्टर की हैसियत से यह माँग करता हूँ कि आप अपने आचरण को बदलें... वो आन्ना पित्रोव्ना को मारे डाल रहा है!

इवनोफ़ – तो मैं क्या करूँ? क्या? अगर आप मुझे बेहतर समझते हैं, उससे भी ज़्यादा जितना मैं अपने आपको समझता हूँ, तो ठीक-ठीक बताइये : मुझे क्या करना चाहिये?

ल्वोफ़ – कम से कम इतना खुल्लमखुल्ला व्यवहार तो न करें.

इवनोफ़ – आह, मेरे भगवान! क्या आप स्वयं को पहचानते हैं? (पानी पीता है) मुझे छोड़ दीजिए. मैं हज़ार बार गुनहगार हूँ, भगवान के सामने जवाब दूँगा, और आपको किसी ने यह अधिकार नहीं दिया है कि हर रोज़ मुझे सताते रहें...

ल्वोफ़ – और आपको किसने यह हक़ दिया है कि आप मेरी सच्चाई का अपमान करें? आपने मेरी रूह को बहुत दुःख दिया है, उसे ज़हरीला बना दिया है. जब तक मैं इस कस्बे में नहीं आया था, मैं बेवकूफ़, सिरफिरे, मनचले लोगों के अस्तित्व में तो विश्वास करता था, मगर मुझे इस बात पर कभी भी यक़ीन नहीं था कि ऐसे लोग भी होते हैं जो वैचारिक रूप से अपराधी होते हैं, जो जान-बूझकर अपनी इच्छा को बुराई की ओर मोड़ते हैं... मैं लोगों की इज़्ज़त करता था, उन्हें प्यार करता था, मगर जब आपको देखा...

इवनोफ़ – यह मैं पहले ही सुन चुका हूँ!

ल्वोफ़ – सुन चुके हैं? (भीतर आती हुई साषा को देखकर; वह घुड़सवारी की ड्रेस में है) अब तो उम्मीद करता हूँ हम एक-दूसरे को बड़ी अच्छी तरह पहचान गए हैं! (कंधे उचकाता है और चला जाता है)


 

VII

इवनोफ़ (भयभीत होकर) – षूरा, तुम?

साषा – हाँ, मैं. अभिवंदन! उम्मीद नहीं थी? तुम इतने दिनों से हमारे यहाँ क्यों नहीं आए?

इवनोफ़ – षूरा, भगवान के लिए, ये बिल्कुल ग़ैर-ज़िम्मेदाराना है! तुम्हारे आने से मेरी बीबी पर ख़तरनाक असर पड़ सकता है.

साषा – वह मुझे नहीं देख पाएगी. मैं पीछे के दरवाज़े से आई हूँ, अभी चली जाऊँगी.  मैं परेशान हो रही हूँ : तुम ठीक तो हो? इतने दिनों से क्यों नहीं आए?

इवनोफ़ – बीबी तो वैसे भी अपमानित हो चुकी है, क़रीब-क़रीब मरने ही वाली है, और ऊपर से तुम यहाँ आती हो. षूरा, षूरा, यह बड़ी ओछी बात है और एकदम अमानवीय!

साषा – मैं क्या कर सकती थी? तुम दो हफ़्तों से हमारे यहाँ नहीं आए, ख़तों का जवाब नहीं दिया. मैं परेशान हो गई. मुझे ऐसा लगा जैसे तुम यहाँ असहनीय पीड़ा उठा रहे हो, बीमार हो, मर गए हो. एक भी रात मैं चैन से न सो पाई... अभी चली जाऊँगी... कम से कम इतना तो बताओ : तुम ठीक हो?

इवनोफ़ – नहीं, बहुत तकलीफ़ है मुझे. लोग मुझे लगातार सताते रहते हैं... मुझमें बिल्कुल शक्ति नहीं है! और ऊपर से तुम! ये कितना बुरा, कितना अस्वाभाविक है! षूरा, मैं कितना बड़ा गुनहगार हूँ, कितना बड़ा गुनहगार!

साषा – तुम्हें कितना अच्छा लगता है भयानक और दयनीय शब्द कहना! तुम गुनहगार? गुनहगार? बताओ तो : क्या गुनाह किया है तुमने?

इवनोफ़ – नहीं जानता, नहीं जानता...

साषा – ये कोई जवाब नहीं हुआ. हर पापी को जानना ही चाहिए कि उसने कौन-सा पाप किया है. नक़ली कागज़ात बनाए हैं?

इवनोफ़ – बकवास!

साषा – क्या ये गुनाह किया है कि बीबी से नफ़रत करने लगे हो? हो सकता है, मगर इन्सान का अपनी भावनाओं पर कोई वश नहीं चलता, तुम नफ़रत करना नहीं चाहते थे. क्या तुमने यह गुनाह किया है कि जब मैं तुमसे अपने प्यार का इज़हार कर रही थी तब उसने देख लिया? नहीं, तुमने तो नहीं चाहा था कि वह देख ले...

इवनोफ़ (बात काटते हुए) – वगैरह, वगैरह. प्यार किया, नफ़रत की, अपनी भावनाओं का मालिक नहीं – ये सब बड़ी आम चीज़ें हैं, पुराने वाक्य हैं, जिनसे कोई फ़ायदा नहीं...

साषा – थका देता है तुमसे बात करना. (तस्वीर की ओर देखती है) कितना अच्छा कुत्ता बनाया है! ये नेचर से है?

इवनोफ़ – ‘नेचर’ से. और हमारा यह पूरा रोमान्स – आम, पुरानी बात है : उसकी रूह मर चुकी और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई है. वह आई, स्वभाव से बहादुर, सुदृढ़ और उसकी ओर मदद का हाथ बढ़ाया. ये बड़ा ख़ूबसूरत है और सच्चाई के समान है, केवल उपन्यासों में, मगर जीवन में...

साषा – जीवन में भी वैसा ही है.

इवनोफ़ – देख रहा हूं कि तुम बड़ी बारीकी से जीवन को समझती हो! मेरा विलाप तुम्हारे भीतर ख़ौफ़ भर देता है, तुम कल्पना करती हो कि मुझमें दूसरे हैमलेट को ढूँढ़ लिया है, और मेरी राय में ये मेरी मानसिक बीमारी, अपने पूरे ताम-झाम के साथ, केवल हँसने-हँसाने का बढ़िया बहाना बन सकती है, और कुछ भी नहीं! मेरे इस स्वाँग पर तो हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाना चाहिये, मगर तुम – चौकीदार हो! गार्ड हो! रक्षा करना, जीत हासिल करना. आह, आज मैं अपने आप पर कितना ग़ुस्सा कर रहा हूँ. महसूस कर रहा हूँ कि मेरे आज के तनाव का कुछ न कुछ बुरा परिणाम होने वाला है... या तो मैं कोई चीज़ तोड़ दूँगा, या...

साषा – ये, ये, यही, इसी की तो ज़रूरत है. कुछ तोड़ दो, फोड़ दो या चिल्लाओ. तुम मुझ पर ग़ुस्सा हो. मैंने बेवकूफ़ी की जो यहाँ आने का निर्णय कर डाला. तो, तैश में आओ, मुझ पर चिल्लाओ, पैर पटको, हाँ? ग़ुस्सा करना शुरू करो...

(अंतराल)

तो?

इवनोफ़ – पागल!

साषा – एक्सेलेंट! हम, शायद मुस्कुरा रहे हैं! प्लीज़, एक बार और मुस्कुराने की ज़हमत उठाइये!

इवनोफ़ (हँसता है) – मैंने ग़ौर किया है : जब तुम मुझे बचाने की कोशिश करने लगती हो और ज्ञान की, समझदारी की, बातें सिखाने लगती हो, तो तुम्हारा चेहरा बड़ा मासूम हो जाता है, और आँखों की पुतलियाँ बड़ी-बड़ी, जैसे तुम किसी धूमकेतु की ओर देख रही हो. रुको, तुम्हारे कंधे पर धूल लगी है. (उसके कंधे से धूल झटकता है) मासूम आदमी – बेवकूफ़ होता है. मगर आप – औरतें, इतनी अक्लमंदी से मासूमियत पर उतर आती हो कि यह बड़ा प्यारा, और अच्छा, और स्नेहपूर्ण लगता है, न कि इतना बेवकूफ़ी भरा, जितना प्रतीत होता है. मगर तुम्हारी, तुममें से हरेक की, यह क्या अदा है? जब तक मर्द तन्दुरुस्त है, हट्टा-कट्टा है और ख़ुशमिजाज़ है, तुम लोग उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देतीं, मगर जैसे ही वह फिसलने लगता है, उसका पतन होने लगता है, वह क़िस्मत का रोना रोने लगता है, तुम लोग उसके गले से लटक जाती हो.

क्या किसी रोते-अभागे की नर्स बनने से ज़्यादा बुरा है एक सुदृढ़ और बहादुर आदमी की बीबी बनना?

साषा – ज़्यादा बुरा!

इवनोफ़ – आख़िर क्यों? (हँसता है) इसके बारे में डार्विन नहीं जानता, वरना वह आपको अच्छी सीख देता! आप तो मानव जाति को बिगाड़ रही हैं. आपकी मेहरबानी से जल्दी ही दुनिया में सिर्फ़ क़िस्मत पर रोने वाले और मानसिक रोगी ही पैदा होंगे.

साषा – मर्द लोग बहुत सारी बातें नहीं समझते. हर लड़की को सफल व्यक्ति की अपेक्षा अभागे, असफल ज़्यादा पसंद आते हैं, क्योंकि हर लड़की को उस प्यार का मोह होता है, जिसमें वह ख़ुद कुछ कर सकें... समझ रहे हो? कामकाजी मर्द अपने काम में मशगूल रहते हैं, और इसलिये उनकी नज़र में प्यार तीसरे स्थान पर होता है. बीबी से बातें करना, उसके साथ बगीचे में घूमना, प्रसन्नता से समय बिताना, उसकी कब्र पर थोड़ा-सा रो लेना – बस, यही सब कुछ है. मगर हमारे लिये प्यार – ज़िन्दगी है. मैं तुमसे प्यार करती हूँ, इसका मतलब यह हुआ कि मैं सपना देखती हूँ कि कैसे तुम्हें दुःख से उबारूँगी, कैसे तुम्हारे साथ दुनिया के छोर तक जाऊँगी... तुम पहाड़ पर तो मैं भी पहाड़ पर, तुम गड्ढे में तो मैं भी गड्ढे में, मेरे लिए, मिसाल के तौर पर, बड़े सुख की बात होगी पूरी रात तुम्हारे कागज़ों को दुबारा लिखना, या पूरी रात पहरा देते रहना ताकि तुम्हें कोई जगा न दे, तुम्हारे साथ पैदल सौ मील चलना, याद है मुझे, तीन साल पहले, तुम एक बार गाहने के समय हमारे यहाँ आए, धूल में पूरी तरह सने हुए, धूप से काले पड़ चुके, थके हुए और तुमने पीने के लिए पानी माँगा. मैं तुम्हारे लिए गिलास लाई, मगर तब तक तो तुम दीवान पर लेटकर मुर्दे की तरह सो चुके थे. तुम आधा दिन हमारे यहाँ सोते रहे, और मैं पूरे वक़्त दरवाज़े के पीछे खड़ी-खड़ी इस बात का ध्यान रखती रही कि कोई भीतर न चला जाए, और मुझे इतना अच्छा लग रहा था! जितनी ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है, प्यार उतना ही बेहतर होता जाता है, मतलब वह ज़्यादा शिद्दत से महसूस होता है.

इवनोफ़ – कामकाजी प्यार... हुम्... ये तो क्षति है, लड़कियों की फिलॉसफ़ी, या हो सकता है, यह ऐसे ही होना चाहिये... (कंधे उचकाता है) शैतान ही जाने! (प्रसन्नता से) षूरा, ईमानदारी से कहता हूँ, मैं सलीक़ेदार आदमी हूँ!... तुम ही इन्साफ़ करो; मुझे हमेशा फ़लसफ़ा झाड़ना अच्छा लगता था, मगर मैंने ज़िन्दगी में ऐसा कभी नहीं कहा : “हमारी औरतें बिगड़ी हुई हैं”, या “औरत ग़लत रास्ते पर चल रही है”. मैं बस आभारी रहा, बस, और कुछ नहीं! इससे ज़्यादा कुछ नहीं! मेरी बच्ची, अच्छी बच्ची, कितनी दिलचस्प हो तुम! मगर मैं तो, कितना हास्यास्पद, मूरख! आर्थोडॉक्स लोगों को शर्मिन्दा करता हूँ, पूरे दिन क़िस्मत का रोना रोता हूँ. (हँसता है) बू-ऊ! बू-ऊ! (जल्दी से दूर हटता है) मगर, जाओ तुम, साषा! हम भटक गए...

साषा – हाँ, समय हो गया जाने का. अलविदा! मुझे डर है कि कहीं तुम्हारा ईमानदार डॉक्टर कर्तव्य की भावनावश आन्ना पित्रोव्ना से कह न दे कि मैं यहाँ हूँ. सुनो मेरी बात : अब तुम आन्ना पित्रोव्ना पास जाओ और बैठो, बैठो, बैठो... एक साल बैठना पड़े – साल भर बैठो. दस साल बैठना पड़े – दस साल बैठो. अपना कर्तव्य पूरा करो. और पछताओ, अफ़सोस करो और उससे माफ़ी माँगो, और रोओ – ये सब इसी तरह होना चाहिये. और ख़ास बात, अपना काम न भूलो.

इवनोफ़ – फिर से मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मैंने ज़हरीला कुकुरमुत्ता खा लिया है, फिर से!

साषा – तो दुनिया बनाने वाला तुम्हारी हिफ़ाज़त करे! मेरे बारे में बिल्कुल मत सोचो! हफ़्ते, दो हफ़्ते बाद एक लाइन लिख देना – उसी के लिए धन्यवाद. मगर मैं तुम्हें लिखती रहूँगी...

(बोर्किन दरवाज़े से देखता है)

VIII

बोर्किन – निकलाय अलेक्सेयेविच, मैं अन्दर आ सकता हूँ? (साषा को देखकर) कुसूरवार हूँ, मैंने देखा ही नहीं... (अन्दर आता है) बोन्झूर! (झुककर अभिवादन करता है)

साषा (परेशानी से) – अभिवंदन...

बोर्किन – आप कुछ मोटी हो गई हैं, अच्छी हो गई हैं.

साषा (इवनोफ़ से) – तो मैं चलती हूँ, निकलाय अलेक्सेयेविच. मैं जाती हूँ (चली जाती है)

बोर्किन – शानदार नज़ारा! मैं तो गद्य की तलाश में निकला था, और टकरा गया कविता से... (गाता है) “ऐसे आए तुम, जैसे पंछी रोशनी की ओर...”

(इवनोफ़ परेशानी से स्टेज पर घूमता है)

(बैठ जाता है) मगर उसमें, निकोलस, कुछ तो बात है, कुछ ऐसी बात, जो औरों में नहीं है. सच है न? कोई ख़ास बात... अद्भुत... (गहरी साँस लेता है) वाक़ई में, पूरे कस्बे में सबसे अमीर मंगेतर है, मगर माँ ऐसी कड़वी मूली है कि कोई भी संबंध जोड़ना नहीं चाहता. उसकी मृत्यु के बाद सब कुछ षूरच्का को ही मिलेगा, और मृत्यु से पहले दस हज़ार, और पैर पकड़ने का भी हुक्म देगी. (जेबें टटोलता है) कश लगाऊँ तंबाकू की सिगरेट का. आप लेंगे? (पोर्टसिगार बढ़ाता है) बढ़िया है... कश लगा सकते हैं.

इवनोफ़ (बोर्किन के पास आता है, ग़ुस्से से हांफते हुए) – इसी समय दफ़ा हो जाओ, तुम्हारे पैर मेरे घर में न रहें! इसी पल!

(बोर्किन उठता है और सिगरेट गिरा देता है)

दफ़ा हो जाओ, इसी पल!

बोर्किन – निकोलस, इसका क्या मतलब है? ग़ुस्सा क्यों हो रहे हो?

इवनोफ़ – क्यों? तुम्हारे पास ये सिगरेटें कहाँ से आईं? और आप यह सोचते हैं, जैसे कि मैं जानता ही नहीं हूँ कि आप हर रोज़ बुढ़ऊ को कहाँ और किसलिए ले जाते हैं?

बोर्किन (कंधे उचकाता है) – मगर आपको इसकी क्या ज़रूरत पड़ गई?

इवनोफ़ – स्काउन्ड्रेल हो तुम! आपके कमीने प्रोजेक्ट्स ने, जो आप पूरे कस्बे में छिड़कते फिरते हैं, लोगों की नज़रों में मुझे बेईमान बना दिया है! हमारे-आपके बीच कोई भी एक-सी बात नहीं है, और मैं विनती करता हूँ कि इसी पल आप मेरा घर छोड़ दें! (जल्दी-जल्दी घूमता है)

बोर्किन – मुझे मालूम है कि यह सब आप चिड़चिड़ाहट में कर रहे हैं, और इसलिये मैं आप पर ग़ुस्सा नहीं होऊँगा, चाहे जितना अपमान कर लीजिए... (पड़ी हुई सिगरेट उठाता है) मगर निराशा को दूर फेंकने का वक़्त आ गया है. आप कोई स्कूली बच्चे तो नहीं हैं...

इवनोफ़ – मैंने आपसे क्या कहा? (थरथराते हुए) आप मुझसे खेल रहे हैं?

(आन्ना पित्रोव्ना प्रवेश करती है)

 

IX

बोर्किन – लीजिये, आन्ना पित्रोव्ना आ गई... मैं निकलता हूँ. (चला जाता है)

(इवनोफ़ मेज़ के पास जाता है और सिर झुकाए खड़ा रहता है)

आन्ना पित्रोव्ना (कुछ अंतराल के बाद) – इस समय वो यहाँ क्यों आई थी?

(अंतराल)

मैं तुमसे पूछ रही हूँ: वह यहाँ क्यों आई थी?

इवनोफ़ – मत पूछो, अन्यूता...

(अंतराल)

मैं बड़ा कुसूरवार हूँ. जो चाहे सज़ा दे दो, मैं बर्दाश्त कर लूँगा, मगर... न पूछो... बात करने की ताक़त नहीं है मुझमें.

आन्ना पित्रोव्ना (ग़ुस्से में) – वह यहाँ क्यों थी?

(अंतराल)

आह, तो तुम ऐसे हो! अब मैं तुम्हें समझ रही हूँ. आख़िरकार मैंने देख ही लिया कि तुम कैसे इन्सान हो. बेईमान, नीच... याद है, तुम आए और मुझसे झूठ बोले कि तुम मुझसे प्यार करते हो... मैंने यक़ीन कर लिया और माँ को, बाप को, अपने धर्म को छोड़कर तुम्हारे पास आ गई... तुमने मुझसे झूठ बोला सच के बारे में, अच्छाई के बारे में, अपनी ईमानदारी और योजनाओं के बारे में, मैंने हर शब्द पर विश्वास कर लिया.

इवनोफ़ – अन्यूता, मैंने तुमसे कभी भी झूठ नहीं बोला.

आन्ना पित्रोव्ना – तुम्हारे साथ मैं पाँच साल रही, थकती रही और बीमार होती रही, मगर तुमसे प्यार करती रही और एक भी मिनट के लिए तुम्हें नहीं छोड़ा... तुम मेरे आदर्श थे... मगर क्या हुआ? इस पूरे समय तुम मुझे बड़ी निर्लज्जता से धोखा देते रहे...

इवनोफ़ – अन्यूता, झूठ मत बोलो. मैंने ग़लती की, हाँ, मगर ज़िन्दगी में एक भी बार झूठ नहीं बोला... इस बारे में तुम मुझे दोष नहीं दे सकती...

आन्ना पित्रोव्ना – अब सब समझ में आ गया है... तुमने मुझसे शादी की और सोचा कि मेरे माँ-बाप तुम्हें माफ़ कर देंगे, मुझे अच्छी खासी दौलत देंगे... तुमने यही सोचा था...

इवनोफ़ – हे भगवान! अन्यूता, मेरे सब्र का इस तरह इम्तिहान लेना... (रोता है)

आन्ना पित्रोव्ना – चुप रहो! जब तुमने देखा कि दहेज नहीं है, तो नया खेल शुरू कर दिया... अब मुझे सब याद आ रहा है और मैं सब समझ रही हूँ. तुमने मुझसे कभी प्यार ही नहीं किया और मेरे प्रति वफ़ादार भी नहीं रहे... कभी नहीं!...

इवनोफ़ – सारा, ये झूठ है!... जो चाहे कर लो, मगर झूठ कहकर मेरा अपमान न करो...

आन्ना पित्रोव्ना – बेईमान, कमीने इन्सान... तुम ल्येबिद्यिफ़ के कर्ज़दार हो, और अब इस कर्ज़ से मुक्ति पाने के लिए उसकी बेटी का दिमाग़ ख़राब कर रहे हो, उसे उसी तरह धोखा दे रहे हो जैसे मुझे दिया था. क्या ये सच नहीं?

इवनोफ़ (रुँधे गले से) – चुप रहो, भगवान के लिए! मैं अपने बारे में गारंटी नहीं दे सकता. मेरा कोई भरोसा नहीं... ग़ुस्से से मेरा दम घुट रहा है, और मैं... मैं तुम्हारा अपमान कर सकता हूँ...

आन्ना पित्रोव्ना – तुमने हमेशा बेशर्मी से मेरा अपमान ही किया है, और न सिर्फ़ मेरा... अपने सारे बेईमानी भरे कामों को तुमने बोर्किन के सिर पर लाद दिया, मगर अब मैं जानती हूँ – किसके हैं वे काम...

इवनोफ़ – सारा, ख़ामोश, चली जाओ, वरना मेरी ज़बान से बुरे अल्फ़ाज़ निकल जाएँगे! मेरा वैसे ही तुमसे कुछ भयानक, अपमानजनक कहने का जी कर रहा है... (चिल्लाता है) चुप, यहूदन!...

आन्ना पित्रोव्ना – चुप नहीं रहूँगी... बहुत देर तक मुझे धोखा देते रहे जिससे मैं चुप रह सकूँ...

इवनोफ़ – तो तुम चुप नहीं रहोगी? (अपने आप से संघर्ष करता है) भगवान के लिए...

आन्ना पित्रोव्ना – अब जाओ और लेबेद्येवा को धोखा दो...

इवनोफ़ – तो जान लो, कि तुम... जल्दी ही मरने वाली हो... मुझे डॉक्टर ने बताया कि तुम जल्दी ही मर जाओगी...

आन्ना पित्रोव्ना (बैठ जाती है, मरी हुई आवाज़ में) – कब कहा उसने?

(अंतराल)

इवनोफ़ (अपना सिर पकड़ते हुए) – आह, कैसा गुनहगार हूँ मैं! हे भगवान, कितना बड़ा गुनहगार हूँ! (हिचकियाँ लेता है)

(परदा)

(तीसरे और चौथे अंक के बीच

लगभग एक वर्ष का समय बीत चुका है)

 


 

चौथा अंक

 

[ल्येबिद्यिफ़ के घर का एक ड्राइंग रूम. सामने की ओर आर्क, जो मेहमानख़ाने को हॉल से अलग करता था, दाएँ और बाएँ – दरवाज़े, पुरानी तांबे की मूर्तियाँ, परिवार की तस्वीरें. त्यौहारों जैसी सजावट, पियानो, उस पर वॉयलिन, पास में एक छोटी वॉयलिन खड़ी है. पूरे अंक के दौरान हॉल में मेहमान घूमते हैं,

बॉल नृत्य की पोशाकें पहने.]

I

ल्वोफ़ (प्रवेश करता है, घड़ी देखता है) – चार बज चुके. शायद अभी ‘ब्लेसिंग्स’ शुरू हो जाएँ... ब्लेसिंग्स देंगे और शादी के लिए ले जाएँगे. ये है, ईमानदारी और सच्चाई का समारोह! सारा को लूट नहीं पाया, उसे सताया और कब्र में लिटा दिया, अब दूसरी ढूँढ़ ली. इसके सामने भी नाटक करता रहेगा, जब तक कि इसे भी लूट नहीं लेता और लूटने के बाद इसे भी वहीं कहीं लिटा देगा, जहाँ बेचारी सारा पड़ी है. पुरानी कुलाकों की कहानी...

(अंतराल)

ख़ुशी के सातवें आसमान पर है, ख़ूब जियेगा बुढ़ापे तक, और मरेगा सुकून भरे ज़मीर के साथ. नहीं, मैं तुझे बाहर निकालूँगा, तेरी पोल खोलूँगा! जब मैं तेरे चेहरे से यह घिनौना नक़ाब उठाऊँगा और जब सब जान जाएँगे कि तू कैसी चिड़िया है, तो तू सातवें आसमान से सिर के बल नीचे ऐसे गड्ढे में गिरेगा कि जहाँ से घोर शैतानी ताक़त भी तुझे बाहर नहीं निकाल सकेगी! मैं ईमानदार आदमी हूँ, मेरा फर्ज़ है कि अंधों की आँखें खोलूँ. अपना ये फर्ज़ पूरा करूँगा और कल ही इस नासपीटे कस्बे से निकल जाऊँगा! (सोचता है) मगर क्या करूँ? क्या ल्येबिद्यिफ़ से बात करूँ – बेकार की मेहनत होगी. उसे द्वन्द्व-युद्ध के लिए बुलाऊँ? कोई स्कैंडल खड़ा करूँ? हे भगवान, मैं परेशान हो रहा हूँ, बच्चे की तरह, और सोचने की ताक़त खो चुका हूँ. क्या करूँ? द्वन्द्व युद्ध?

II

कसीख़ (प्रवेश करता है, प्रसन्नता से ल्वोफ़ से) – कल मैंने चिड़ी पर छोटा-सा ‘शो’ लगाया और बड़ा ले लिया, सिर्फ़ इस बराबानफ़ ने फिर से मेरी बोलती बन्द कर दी! खेल रहे हैं... मैं बोला : बिना ट्रम्प के. वह – पास. दो चिड़ी. वह – पास. मैं दो ईंट... तीन चिड़ी... और मानिये, यक़ीन कीजिये : मैं ‘शो’ डिक्लेयर करता हूँ, और वह इक्का नहीं दिखाता. अगर उस कमीने ने इक्का दिखाया होता तो मैं बड़ी शर्त लगाता बिना ट्रम्प के...

ल्वोफ़ – माफ़ कीजिए, मैं ताश नहीं खेलता और इसलिये आपकी इस ख़ुशी में शामिल नहीं हो सकता. क्या जल्दी ही ‘ब्लेसिंग्स’ देने वाले हैं?

कसीख़ – जल्दी ही होना चाहिए. ज़्यूज़्यूष्का को होश में ला रहे हैं. स्टर्जन की तरह दहाड़ें मार रही है, दहेज का अफ़सोस है.

ल्वोफ़ – और बेटी का नहीं?

कसीख़ – दहेज का. हाँ, और थोड़ा अपमान भी लग रहा है. शादी कर रहा है, मतलब कर्ज़ नहीं चुकाएगा. दामाद के गिरवी-पेपर्स कोर्ट में तो नहीं न ले जाएगी.

III

बबाकिना (कोट उतारे हुए, बड़े अंदाज़ से स्टेज से गुज़रती है, ल्वोफ़ और कसीख़ को पार करते हुए; कसीख़ मुँह पर हाथ रखकर खाँसता है, वह मुड़कर देखती है) बेवकूफ़ी है!

(कसीख़ उँगली से उसकी कमर छूता है और खिलखिलाता है)

जंगली! (चली जाती है)

कसीख़ (खिलखिलाता है) – पूरी तरह बरबाद हो गई ये औरत! जब तक काऊंट का टाइटल नहीं मिला था – औरत औरत की तरह थी, मगर अब पास नहीं आने देती. (चिढ़ाता है) जंगली!

ल्वोफ़ (परेशानी से) – सुनिये, मुझे सच-सच बताइये : आप इवनोफ़ के बारे में क्या सोचते हैं?

कसीख़ – किसी काम का नहीं है, खेलता है – मोची जैसा. पिछले साल, उपवास के दिनों में, ऐसा हुआ. हम बैठे हुए खेल रहे हैं : मैं, काऊंट, बोर्किन और वह. मैं हार मानता हूँ...

ल्वोफ़ (टोकते हुए) – क्या वह अच्छा आदमी है?

कसीख़ – वो... चालाक आदमी है! चालू, आग और पानी से गुज़रा है. वो और काऊंट – बढ़िया जोड़ी है. सूँघकर पता लगा लेते हैं कि कहाँ क्या गड़बड़ है. यहूदन से टकरा गया, बढ़िया मशरूम खाए, और अब ज़्यूज़्यूष्का के संदूकों पर हाथ साफ़ करने वाला है. मैं शर्त लगाता हूँ, मुझ पर तीन बार भगवान की मार पड़े, अगर साल भर में वह ज़्यूज़्यूष्का को कौड़ी-कौड़ी का मोहताज न बना दे, वो ज़्यूज़्यूष्का को, और काऊंट बबाकिना को. पैसा ले लेंगे और आराम से रहेंगे. डॉक्टर, आज आप इतने परेशान क्यों लग रहे हैं? चेहरे की रौनक ही चली गई है.

ल्वोफ़ – कुछ नहीं, यूँ ही. कल ज़रा ज़्यादा पी ली थी.

IV

ल्येबिद्यिफ़ (साषा के साथ आता है) – यहाँ बातें करेंगे. (ल्वोफ़ और कसीख़ से) आप लोग जाओ, यारों, हॉल में महिलाओं के पास. हमें कोई ख़ास बात करनी है.

कसीख़ (साषा के पास से गुज़रते हुए, जोश में उँगलियाँ चटखाता है) तस्वीर! ट्रम्प की बेगम!

ल्येबिद्यिफ़ – चले, चलो, बाबा आदम, निकलो!

(ल्वोफ़ और कसीख़ चले जाते हैं)

बैठो, षूरच्का, ऐसे... (बैठता है और चारों ओर देखता है) ध्यान से सुनो और पूरी श्रद्धा से सुनो. बात ऐसी है : तुम्हारी माँ ने मुझे तुमसे यह कहने के लिए कहा है... समझ रही हो न? मैं अपनी तरफ़ से कुछ भी नहीं कहूँगा, बल्कि ये माँ ने कहलवाया है.

साषा – पापा, संक्षेप में!

ल्येबिद्यिफ़ – तुम्हें दहेज में पन्द्रह हज़ार चाँदी के रूबल्स दे रहे हैं... तो... देखो, बाद में कोई बात न हो! रुको, चुप रहो! ये तो सिर्फ़ फूल हैं, मगर इस बात को ध्यान में रखते हुए कि निकलाय अलेक्सेयेविच को तुम्हारी माँ को नौ हज़ार देने हैं, तो तुम्हारे दहेज में से इसे काट लिया जाएगा... तो, और फिर, इसके अलावा...

साषा – ये सब तुम मुझसे क्यों कह रहे हो?

ल्येबिद्यिफ़ – माँ ने कहा है!

साषा – मुझे अकेली छोड़ दो! अगर तुम्हारे दिल में थोड़ी-सी भी इज़्ज़त होती मेरे लिये और अपने लिये, तो तुम मुझसे इस तरह की बात नहीं करते. नहीं चाहिये मुझे आपका दहेज! मैंने न तो माँगा था और न ही माँगूँगी!

ल्येबिद्यिफ़ – तुम मुझ पर क्यों बरस रही हो? गोगल की नीतिकथा में तो दो चूहों ने पहले सूँघा और फिर चले गए, और तुम, आज़ाद ख़याल, बग़ैर सूँघे, टूट पड़ी.

साषा – आप मुझे अकेली छोड़ दें, मेरे कानों को अपने आधे-पौने कोपेक के हिसाब से अपमानित न करें.

ल्येबिद्यिफ़ (ग़ुस्से में) – थू! आप सब ऐसा करते हैं कि - या तो मैं अपने आपको चाकू मार लूँ, या किसी आदमी को मार दूँ! वो दिन-दिन भर रोती-बिलखती रहती है, चुटकियाँ काटती है, पीछे पड़ जाती है, एक-एक कोपेक गिनती रहती है, और ये – होशियार, दयालु, शैतान ले जाए, आज़ाद ख़याल, अपने सगे बाप को भी समझ नहीं सकती! मैं इसके कानों का अपमान कर रहा हूँ! हाँ, पहले, यहाँ आकर तुम्हारे कानों का अपमान करने से पहले, मेरे वहाँ (दरवाज़े की ओर इशारा करता है) टुकड़े-टुकड़े कर दिये गए, हाथ-पैर काट दिये गए. वह समझ नहीं सकती! दिमाग़ ख़राब कर दिया और जड़ से काट दिया... ओह, तुम! (दरवाज़े की ओर जाता है और रुक जाता है) अच्छा नहीं लगता मुझे, तुम्हारी कोई भी चीज़ मुझे अच्छी नहीं लगती!

साषा – क्या अच्छा नहीं लगता तुम्हें?

ल्येबिद्यिफ़ – कुछ भी अच्छा नहीं लगता! कुछ भी!

साषा – ‘कुछ भी’ मतलब?

ल्येबिद्यिफ़ – तो मैं तुम्हारे सामने बैठ जाऊँगा और बताता रहूँगा. मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता, और तुम्हारी शादी तो मैं देखना भी नहीं चाहता! (साषा के पास आकर प्यार से) तुम मुझे माफ़ करना, षूरच्का, हो सकता है तुम्हारी शादी एक ज़हीन, पाक-साफ़, उत्कृष्ट, सिद्धांतों वाली हो, मगर उसमें कुछ तो कमी है, कुछ तो कमी है! वह दूसरी शादियों जैसी नहीं है. तुम - जवान, ताज़ा-तरीन, पाक-साफ़, जैसे काँच, ख़ूबसूरत हो और वह – विधुर, निढाल, थका-माँदा. और मैं उसे समझ नहीं पाता. भगवान उसे बचाए. (बेटी को चूमता है) षूरच्का, माफ़ करना, मगर कोई चीज़ है जो बिल्कुल साफ़-सुथरी नहीं है. लोग काफ़ी सारी बातें करते हैं. जैसे कि उसकी वो, सारा, मर गई, फिर अचानक न जाने क्यों वह तुमसे शादी करना चाहता है... (ज़िन्दादिली से) ख़ैर, मैं औरत हूँ, औरत. एकदम टुच्चा बन गया, जैसे पुरानी घंटियों वाली स्कर्ट. मेरी बात न सुनो. किसी की भी बात मत सुनो, सिर्फ़ अपनी आवाज़ सुनो.

साषा – पापा, मैं ख़ुद भी महसूस कर रही हूँ कि सब कुछ वैसा नहीं है... वैसा नहीं है, वैसा नहीं है. काश, तुम जानते कि मुझे कितनी मुश्किल हो रही है! बर्दाश्त से बाहर! मुझे यह स्वीकार करने में भी अटपटा और डरावना लगता है. पापा, डियर, तुम मेरा जोश बढ़ाओ, भगवान के लिए... सिखाओ, क्या करना चाहिए.

ल्येबिद्यिफ़ – क्या बात है? क्या है?

साषा – इतना डर लगता है, जैसा पहले कभी नहीं लगता था! (इधर-उधर देखती है) मुझे ऐसा लगता है कि मैं उसे समझ नहीं पा रही और कभी भी समझ नहीं पाऊँगी. पूरे समय, जब तक मैं उसकी मंगेतर थी, वह एक बार भी नहीं मुस्कुराया, एक बार भी उसने सीधे मेरी आँखों में नहीं देखा, हमेशा शिकायतें, पछतावा किसी बात का, किसी गुनाह की ओर इशारा, कँपकँपाना... मैं थक चुकी हूँ. ऐसे भी पल आते हैं जब मुझे ऐसा लगता है कि मैं... मैं उसे उतनी शिद्दत से प्यार नहीं करती, जैसा करना चाहिए. और जब वह हमारे यहाँ आता है या मुझसे बातें करता है तो मुझे उकताहट होने लगती है. इन सबका क्या मतलब है, पापा? भयानक है!

ल्येबिद्यिफ़ – मेरी लाड़ली, मेरी इकलौती बच्ची, बूढ़े बाप की बात मान ले. उसे मना कर दे!

साषा (घबराते हुए) – ये क्या कह रहे हो, क्या कह रहे हो?

ल्येबिद्यिफ़ – सही है, षूरच्का. एक स्कैंडल हो जाएगा, पूरा कस्बा खुसुर-फुसुर करने लगेगा, मगर ज़िन्दगी भर के लिए अपने आपको मार डालने से बेहतर है स्कैंडल का मुक़ाबला करना.

साषा – ऐसा न कहो, ऐसा न कहो, पापा! मैं सुनना भी नहीं चाहती. उदास, निराशा भरे विचारों से लड़ना होगा, वह अच्छा है, अभागा है, अबूझ इन्सान है, मैं उसे प्यार करूँगी, उसे समझूँगी, उसे अपने पैरों पर खड़ा करूँगी. मैं अपना कर्तव्य निभाऊँगी. तय कर लिया!

ल्येबिद्यिफ़ – ये कर्तव्य नहीं, पागलपन है.

साषा – बस. मैंने तुम्हारे सामने वह स्वीकार किया है, जिसके बारे में मैं ख़ुद भी यक़ीन करना नहीं चाहती थी. किसी से न कहना, भूल जाएँगे.

ल्येबिद्यिफ़ – कुछ भी समझ में नहीं आ रहा. या तो मैं बुढ़ापे के कारण सठिया गया हूँ, या तो तुम सब लोग बहुत अक्लमन्द हो गए हो. बस मैं, चाहे तो मुझे मार डालो, कुछ नहीं समझ पा रहा.


 

V

षाबिल्स्की (प्रवेश करते हुए) – सबको शैतान उठा ले, और मुझे भी! बकवास! बहुत हो गया!

ल्येबिद्यिफ़ – तुझे क्या हुआ?

षाबिल्स्की – नहीं, सच में कह रहा हूँ, चाहे जो भी हो, अपने लिये कोई ओछापन, कमीनापन करना चाहिए, ताकि न सिर्फ़ मुझे, बल्कि सबको घृणास्पद लगे. और मैं करूँगा, वादा करता हूँ! मैंने बोर्किन से भी कह दिया है कि वह आज डिक्लेयर कर दे कि मैं मंगेतर हूँ. (हँसता है) सब कमीने हैं, और मैं भी कमीना बन जाऊँगा.

ल्येबिद्यिफ़ – बेज़ार कर दिया तूने मुझे! सुनो, मत्वेय, तू इतना बोल रहा है कि तुझे, माफ़ करना ऐसा कहने के लिए, पीले घर में (पागलख़ाने) ले जाएँगे.

षाबिल्स्की – तो पीला घर किसी सफ़ेद या लाल घर से किस बात में कम है? मेहरबानी करो, चाहो तो मुझे फ़ौरन वहाँ ले चलो. मेहरबानी करो. सब कमीने हैं, छोटे हैं, ओछे हैं, बेकार हैं, मैं ख़ुद भी नीच हूँ, अपने एक भी लब्ज़ पे भरोसा नहीं करता...

ल्येबिद्यिफ़ – जानते हो, भाई? मुँह में हशीश रखो, जलाओ और लोगों पर धुआँ छोड़ो. इससे भी ज़्यादा अच्छा : अपनी टोपी उठाओ और घर चले जाओ. यहाँ शादी है, सब लोग ख़ुशी मना रहे हैं, और तू काँव-काँव, कौए जैसा. हाँ, सच है...

(षाबिल्स्की पियानो की तरफ़ झुकता है और सिसकियाँ भरने लगता है)

बाप रे!... मत्वेय!... काऊण्ट!... क्या हुआ? मत्यूषा, प्यारे, मेरे अपने... मेरे फ़रिश्ते... मैंने तुम्हारा अपमान कर दिया?... ओह, मुझे माफ़ करो, बूढ़े कुत्ते को... शराबी को माफ़ करो... पानी पी लो...

षाबिल्स्की – ज़रूरत नहीं है. (सिर उठाता है)

ल्येबिद्यिफ़ – रो क्यों रहे हो?

षाबिल्स्की – कुछ नहीं, यूँ ही...

ल्येबिद्यिफ़ – नहीं, मत्यूषा, झूठ मत बोलो... किसलिये? क्या कारण है?

षाबिल्स्की – इस वॉयलिन की ओर देखा... और यहूदन की याद आ गई...

ल्येबिद्यिफ़ – ओह, क्या वक़्त निकाला है उसे याद करने का! भगवान उसे जन्नत नसीब करे, चिर शांति, मगर याद करने का वक़्त नहीं है ये...

षाबिल्स्की – हम दोनों युगल-गीत बजाया करते... बहुत बढ़िया, बहुत ऊँचे स्तर की औरत थी!

(साषा सिसकियाँ भरने लगती है)

ल्येबिद्यिफ़ – अब और क्या हो गया तुझे? दूँगा एक! हे भगवान, दोनों रो रहे हैं, और मैं... मैं... कम से कम यहाँ से तो जाओ, मेहमान देख लेंगे!

षाबिल्स्की – पाषा, जब सूरज चमकता है तो क़ब्रिस्तान में भी अच्छा लगता है. जब उम्मीद होती है, तो बुढ़ापे में भी अच्छा लगता है, मगर मेरे लिए तो कोई उम्मीद ही नहीं है, एक भी नहीं!

ल्येबिद्यिफ़ – हाँ, वाक़ई में तुम्हारी हालत बुरी है... न तो बच्चे हैं, न दौलत, न ही कोई काम... मगर क्या किया जा सकता है! (साषा से) और तुम क्यों रो रही हो?

षाबिल्स्की – पाषा, मुझे उधार दो. उस दुनिया में हिसाब कर लेंगे. मैं पैरिस जाऊँगा, बीबी की क़ब्र देखूँगा. अपनी ज़िन्दगी में मैंने बहुत कुछ दिया है, अपनी इस्टेट का आधा हिस्सा बाँट दिया, इसीलिये मुझे माँगने का हक़ है. ऊपर से मैं अपने दोस्त से ही माँग रहा हूँ...

ल्येबिद्यिफ़ (परेशानी से) – प्यारे, मेरे पास एक भी कोपेक नहीं है! मगर अच्छा, अच्छा! मतलब मैं वादा तो नहीं करता, मगर समझ रहे हो न... बढ़िया, बढ़िया!

(एक किनारे) हैरान कर दिया है!


 

VI

बबाकिना (प्रवेश करती है) – मेरा हीरो कहाँ है? काऊण्ट, आप मुझे अकेली कैसे छोड़ सकते हैं? ऊ... बोरिंग! (काऊण्ट को पंखे से हाथ पर मारती है)

षाबिल्स्की (तैश में) – मुझे अकेला छोड़ दीजिए! मुझे आपसे नफ़रत है!

बबाकिना (भौंचक्की होकर) – क्या?... हाँ?...

षाबिल्स्की – दूर हटो!

बबाकिना (कुर्सी में गिर जाती है) – आह! (रोती है)

ज़िनईदा साविष्ना (रोते हुए आती है) – कोई आया है... लगता है, दूल्हे का बेस्ट मैन, ब्लेसिंग्स का वक़्त हो गया... (कराहती है)

साषा (मनाते हुए) – मम्मा!

ल्येबिद्यिफ़ – ओह, सब दहाड़ें मार रहे हैं! कोरस! इस नमी को निकालना पड़ेगा! मत्वेय!... मार्फ़ा ईगोरोव्ना!... ऐसे तो, मैं भी... मैं रो पड़ूँगा... (रोता है) हे भगवान!

ज़िनईदा साविष्ना – अगर तुम्हें माँ की ज़रूरत नहीं है, अगर उसकी बात नहीं माननी है... तो मैं तुम्हारे लिए इतना ख़ुशी का काम कर दूँगी, ब्लेसिंग्स दे दूँगी...

(इवनोफ़ आता है, वह फ्रॉक कोट और दस्तानों में है)

VII

ल्येबिद्यिफ़ – बस इन्हीं की कमी थी! क्या बात है!

साषा – तुम क्यों आए हो?

इवनोफ़ – माफ़ी चाहता हूँ, महाशय, मुझे साषा से अकेले में बात करने की इजाज़त दें.

ल्येबिद्यिफ़ – ये कोई तरीक़ा नहीं है कि शादी से पहले दुल्हन के यहाँ आओ! तुम्हारा चर्च में जाने का समय हो गया है!

इवनोफ़ – पाषा, प्लीज़...

(ल्येबिद्यिफ़ कंधे उचकाता है;

वह, जिनाईदा साविष्ना, काऊण्ट और बबाकिना चले जाते हैं)

VIII

साषा (गंभीरता से) – तुम्हें क्या चाहिये?

इवनोफ़ – मैं ग़ुस्से से पागल हो रहा हूँ, मगर मैं शांति से बात कर सकता हूँ... सुनो. अभी मैं शादी के लिए तैयार हो रहा था, अपने आप को आईने में देखा, और मेरी कनपटी पर... सफेदी. षूरा, ज़रूरत नहीं है! अभी तक देर नहीं हुई है, इस बेमतलब की कॉमेडी को रोकना होगा... तुम जवान हो, पवित्र हो, तुम्हारे सामने ज़िन्दगी पड़ी है, और मैं...

साषा – ये कोई नई बात नहीं है, हज़ार बार सुन चुकी हूँ और उकता गई हूँ! चर्च में जाओ, लोगों को रोककर न रखो!

इवनोफ़ – मैं अब घर जाऊँगा और तुम अपने लोगों से कह दो कि शादी नहीं होगी. किसी तरह उन्हें समझा देना. अक्ल से काम लेने का वक़्त आ गया है. मैंने हैमलेट का रोल कर लिया, और तुमने एक ऊँचे दर्जे की लड़की का – और बस, बहुत हो गया.

साषा (भड़कते हुए) – ये कैसा लहज़ा है? मैं कुछ भी नहीं सुनूँगी.

इवनोफ़ – मगर मैं बोल रहा हूँ और बोलूँगा.

साषा – तुम क्यों आए हो? तुम्हारा आर्तनाद एक चिढ़ाते हुए से अपमान में बदल रहा है.

इवनोफ़ – नहीं, मैं नहीं कर रहा आर्तनाद! अपमान? हाँ, मैं चिढ़ाते हुए अपमानित कर रहा हूँ. और अगर स्वयं का अपमान करना, हज़ार गुना प्रभावशाली ढंग से और पूरी दुनिया को ठहाके लगाने पर मजबूर करना संभव होता तो मैं यह भी करता! देखा मैंने अपने आपको आईने में – और मेरा ज़मीर ही टूट गया! मैं अपने आप पर ही हँसने लगा और शर्म से क़रीब-क़रीब पागल ही हो गया. (हँसता है) निराशा! महान पीड़ा! सुप्त दुःख! बस, अब कविताएँ लिखना ही बाक़ी है. आर्तनाद, क़िस्मत का रोना रोना, अपनी पीड़ा लोगों को देना, अहसास करना कि जीवन की ऊर्जा हमेशा के लिए चुक गई है, कि मुझे ज़ंग लग गई है, मैं अपना जीवन जी चुका हूँ, कि एक निर्बलता के क्षण को मैं समर्पित हो गया और कानों तक इस घृणित निराशा में डूब गया, - इसे स्वीकार करना, जब सूरज प्रखरता से चमक रहा है, जब चींटी भी एक बोझ ले जाते हुए अपने आप पर ख़ुश है, - नहीं, मैं आपका आज्ञाकारी सेवक! यह देखना कि कैसे कुछ आपको नीम-हक़ीम समझते हैं, दूसरे आपसे सहानुभूति दिखाते हैं, तीसरे मदद का हाथ बढ़ाते हैं, चौथे, - यह सबसे बुरी बात है, - बड़ी प्रसन्नता से आप की आहों को सुनते हैं, आप की ओर देखते हैं, जैसे आप दूसरे मोहम्मद हों, और इंतज़ार करते हैं कि आप उनके लिए नये धर्म की घोषणा बस करने ही वाले हैं... नहीं, भगवान का करम, मुझमें अभी भी आत्माभिमान और अंतरात्मा शेष हैं! मैं यहाँ आ रहा था, अपने आप पर हँस रहा था, और मुझे ऐसा लगा कि मुझ पर पंछी हँस रहे हैं, पेड़ हँस रहे हैं...

साषा – यह कटुता नहीं, बल्कि पागलपन है.

इवनोफ़ – क्या तुम ऐसा सोचती हो? नहीं, मैं पागल नहीं हूँ. अब मैं चीज़ों को उनके असली रूप में देख रहा हूँ और मेरे विचार भी उतने ही साफ़-सुथरे हैं जितनी तुम्हारी अंतरात्मा. हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं, मगर हमारी शादी नहीं हो सकती! मैं ख़ुद चाहे जितना जोश में आ जाऊँ, चाहे जितना उदास हो जाऊँ, मगर दूसरों को ख़त्म करने का मुझे कोई हक़ नहीं है! अपने अंतर्नाद से, अपनी भुनभुनाहट से मैंने अपनी पत्नी के जीवन के अंतिम वर्ष को ज़हर बना दिया. जब से तुम मेरी मंगेतर बनी हो, तुम मुस्कुराना भूल गई और पाँच साल बड़ी लगने लगी. तुम्हारे पापा, जिनके लिए ज़िन्दगी में हर चीज़ स्पष्ट थी, मेरी मेहरबानी से लोगों को समझना-पहचानना भूल गए हैं. चाहे मैं किसी मीटिंग में जाऊँ या किसी के घर, या शिकार पर, कभी भी क्यों न जाऊँ, हर जगह अपने साथ उकताहट ले जाता हूँ, अलसाहट, अप्रसन्नता ले जाता हूँ. रुको, मुझे मत टोको! मैं धूर्त हूँ, जंगली हूँ, मगर माफ़ करना, यह कटुता मेरा दम घोंटती है, और मैं किसी और तरह से बात कर ही नहीं सकता. मैंने कभी झूठ नहीं बोला, ज़िन्दगी पर तोहमत नहीं लगाई, मगर सदा असन्तुष्ट होने के कारण मैं क़िस्मत पर भुनभुनाता हूँ, शिकायत करता हूँ, और हर व्यक्ति मेरी बात सुनते हुए, ज़िन्दगी के प्रति इस नफ़रत से संसर्गित हो जाता है और वह भी शिकायत करने लगता है. और कैसा लहज़ा! जैसे कि मैं ज़िन्दा रहकर प्रकृति पर कोई एहसान कर रहा हूँ. शैतान मुझे ले जाए!

साषा – ठहरो... जो कुछ तुमने अभी कहा, उसका नतीजा यह निकलता है कि तुम्हें अपने अंतर्नाद से, अपनी भुनभुनाहट से उकताहट हो गई है और नया जीवन शुरू करने का वक़्त आ गया है!... और ये बढ़िया बात है!

इवनोफ़ – मुझे कुछ भी बढ़िया नज़र नहीं आता. और कहाँ का नया जीवन? मैं ख़त्म हो चुका हूँ – वापस न आने के लिए! हम दोनों को यह समझ लेना चाहिए. नया जीवन!

साषा – निकलाय, होश में आओ! कहाँ से नज़र आ रहा है कि तुम ख़त्म हो चुके हो? कैसा सनकीपन है ये? नहीं. न तो मैं कुछ कहना चाहती हूँ, न ही कुछ सुनना... चर्च में जाओ!

इवनोफ़ – ख़त्म हो गया!

साषा – ऐसे मत चिल्लाओ, मेहमान सुनेंगे!

इवनोफ़ – अगर एक समझदार, पढ़ा-लिखा और तन्दुरुस्त आदमी बिना किसी ज़ाहिर वजह के क़िस्मत का रोना रोने लगे और ढलान से नीचे लुढ़कने लगे, तो वह बिना किसी रोक-टोक के लुढ़कता जाएगा, और उसका बचना मुश्किल है! ओह, कहाँ है मेरा सहारा? किसमें? शराब मैं पी नहीं सकता – शराब से सिर में दर्द होने लगता है; बुरी कविताएँ लिखना आता नहीं; अपनी आत्मा की अकर्मण्यता के लिए प्रार्थना करना और उसमें कोई महान चीज़ देखना – नहीं कर सकता. अकर्मण्यता आख़िर अकर्मण्यता ही है, कमज़ोरी कमज़ोरी ही है, - अन्य कोई नाम मैं उन्हें दे ही नहीं सकता. ख़त्म हो गया, ख़त्म हो गया – इस बारे में बहस हो ही नहीं सकती! (इधर-उधर देखता है) हमें डिस्टर्ब कर सकते हैं. सुनो, अगर तुम मुझे प्यार करती हो तो मेरी मदद करो. इसी क्षण, फ़ौरन् मुझसे इनकार कर दो! जल्दी...

साषा – आह, निकलाय, काश तुम जानते कि तुमने मुझे कितना थका दिया! कितना सताया है तुमने मेरी रूह को! मेरे भले, अक्लमन्द इन्सान, ख़ुद ही फ़ैसला करो : क्या ऐसा इम्तिहान लिया जा सकता है? कि हर दिन इम्तिहान, एक से बढ़कर एक मुश्किल इम्तिहान... मुझे तो सकारात्मक प्रेम की चाह थी, मगर यह तो दुखदायी प्यार है!

इवनोफ़ – और जब तुम मेरी बीबी बनोगी, तो इम्तिहान और भी कठिन होते जाएँगे. मना कर दो ना! समझो : यह तुम्हारे भीतर का प्यार नहीं, बल्कि पाक-साफ़ स्वभाव का ज़िद्दीपन बोल रहा है! तुम इस उद्देश्य को समर्पित हो गई हो कि चाहे कुछ भी हो जाए, तुम मेरे भीतर के इन्सान को पुनर्जीवित करोगी, उसकी रक्षा करोगी, तुम्हें यह झूठी तारीफ़ पसन्द आ रही थी कि तुम जीतने वाली हो... अब तुम पीछे हटने को तैयार हो, मगर एक झूठा अहसास तुम्हारा रास्ता रोक रहा है. समझो!

साषा – कैसा अजीब, कैसा जंगली तर्क है तुम्हारा! क्या मैं तुमसे इनकार कर सकती हूँ? कैसे इनकार करूँगी? तुम्हारी न तो माँ है, न बहन, न ही कोई दोस्त... तुम कंगाल हो चुके हो, तुम्हारी जायदाद उड़ा दी, तुम पर सब तरफ़ से तोहमत लगेगी...

इवनोफ़ – बेवकूफ़ी की मैंने, जो यहाँ आ गया. मुझे वही करना चाहिए था जो मैं चाहता था...

(ल्येबिद्यिफ़ आता है)

IX

साषा (भागकर पापा के पास जाती है) – पापा, भगवान के लिए, ये पागल की तरह भागता हुआ आया और मुझे तंग कर रहा है! यह माँग कर रहा है कि मैं इससे इनकार कर दूँ, मुझे ख़त्म नहीं करना चाहता. इससे कह दो कि मुझे इसकी महानता नहीं चाहिए! मुझे मालूम है कि मैं क्या कर रही हूँ.

ल्येबिद्यिफ़ – कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ... कैसी महानता?

इवनोफ़ – शादी नहीं होगी!

साषा – होगी! पापा, इससे कह दो कि शादी होगी!

ल्येबिद्यिफ़ – रुको, रुको!... तुम शादी क्यों नहीं करना चाहते?

इवनोफ़ – मैं उसे समझा चुका हूँ कि क्यों नहीं चाहता, मगर वह समझना ही नहीं चाहती.

ल्येबिद्यिफ़ – नहीं, तुम उसे नहीं, मुझे समझाओ, और ऐसे समझाओ कि मैं समझ जाऊँ! आह! निकलाय अलेक्सेयेविच! भगवान ही तुम्हारा इन्साफ़ करेगा! हमारी ज़िन्दगी में तुम ऐसा तूफ़ान लाए हो, जैसे मैं किसी अजायबघर में रहता हूँ; देखता हूँ मगर समझ कुछ भी नहीं पाता... बस, सज़ा है... तो क्या हुक्म देते हो मुझ बुड्ढे को, तुम्हारे साथ क्या करूँ? क्या तुम्हें द्वन्द्व युद्ध के लिए बुलाऊँ?

इवनोफ़ – किसी भी तरह के द्वन्द्व युद्ध की ज़रूरत नहीं है. सिर्फ़ सिर कंधों पर रखकर रूसी भाषा समझने की ज़रूरत है.

साषा (परेशानी में स्टेज पर घूमती है) – यह भयानक है, भयानक! बिल्कुल बच्चों जैसा!

ल्येबिद्यिफ़ – बस हाथ झटकना बाकी है, और आगे कुछ नहीं. सुनो! निकलाय! तुम्हारे हिसाब से ये सब बहुत अक्लमन्दी की, बारीक़ी की, मनोविज्ञान के सभी नियमों के अनुकूल बात है, मगर मेरे हिसाब से ये स्कैण्डल है, दुर्भाग्यपूर्ण है. मुझ बूढ़े की बात सुनो, आख़िरी बार! मैं तुमसे ये कह रहा हूँ. अपने दिमाग़ को शांत करो! चीज़ों की ओर साधारण भाव से देखो, जैसे सब देखते हैं! इस दुनिया में हर चीज़ आसान है. छत सफ़ेद है, जूते काले हैं, शक्कर मीठी है. तुम साषा से प्यार करते हो और वह तुमसे प्यार करती है. अगर प्यार करते हो – तो रुक जाओ, प्यार नहीं करते – तो चले जाओ, बुरा नहीं मानेंगे. देखो, कितना आसान है! तुम दोनों तंदुरुस्त हो, होशियार हो, संवेदनशील हो, और भगवान की दया से अच्छा खाते-पहनते हो... तुम्हें और क्या चाहिए? धन नहीं है? कोई बात नहीं! धन से सुख थोड़े ही मिलता है... बेशक, मैं समझता हूँ... तुम्हारी जायदाद गिरवी पड़ी है... सूद चुकाने के लिए कुछ नहीं है, मगर मैं – बाप हूँ, मैं समझता हूँ... माँ चाहे जो कर ले, भगवान उसे माफ़ करे; धन नहीं देगी – कोई ज़रूरत नहीं! षूर्का कहती है कि उसे दहेज की ज़रूरत नहीं! सिद्धांत, शोपेनहावर... ये सब बकवास है... मेरे पास बैंक में दस हज़ार हैं. (इधर-उधर देखता है) उनके बारे में घर का एक भी कुत्ता नहीं जानता... दादी के हैं... वे तुम दोनों के लिए... ले लो, सिर्फ़ वादा पैसों से बेहतर है : दो हज़ार मत्वेय को दे देना...

(हॉल में मेहमान एकत्रित होने लगते हैं)


 

X

ल्येबिद्यिफ़ – कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ...

इवनोफ़ – सुनो, बेचारे... तुम्हें यह समझाना कि मैं कौन हूँ – ईमानदार या कमीना, तन्दुरुस्त या पागल, यह मैं नहीं करूँगा. तुम्हें समझा नहीं सकता. मैं जवान था, जोशीला था, ईमानदार, समझदार था; प्यार किया, नफ़रत की और विश्वास भी ऐसे नहीं किया जैसे सब करते हैं, काम किया और उम्मीद की दस के बराबर, दीवार से सिर टकराया, मिलों से जूझता रहा; अपनी ताक़त का अंदाज़ा लगाए बग़ैर, बिना अनुमान लगाए, ज़िन्दगी को जाने बग़ैर, मैं अपने आप पर बोझ लादता रहा जिससे अचानक मेरी पीठ चरमरा गई और नसें खिंच गईं; मैं सिर्फ़ जवानी के बलबूते पर ही अपने आपको घिसता गया, नशा छा गया मुझ पर, जोश में आ गया, काम करता रहा; सीमाओं को नहीं जाना. और बोलो : क्या कोई और पर्याय था? क्योंकि हम लोग कम हैं, और काम इतना ज़्यादा है, बहुत ज़्यादा! हे भगवान, कितना ज़्यादा! और देखो, कितना कठोर प्रतिशोध ले रही है ज़िन्दगी मुझसे, जिससे मैं संघर्ष करता रहा! टूट गया मैं! तीस साल की आयु में ही हैंगओवर का शिकार हो गया, बुढ़ा गया, ड्रेसिंग गाऊन पहन लिया. भारी सिर लिये, अलसाई आत्मा लिये, थका-माँदा, जरा-जर्जर, टूटा-फूटा, विश्वासरहित, बिना प्यार के, बिना उद्देश्य के, परछाईं की तरह, मैं लोगों के बीच डोलता हूँ और नहीं जानता : मैं कौन हूँ, किसलिए जीता हूँ, क्या चाहता हूँ? और मुझे लगता है कि प्यार – बकवास है, आकर्षण कृत्रिम है, कि मेहनत करने में कोई मतलब नहीं है, कि गीत और जोशीले भाषण – निकृष्ट और पुराने हो चुके हैं, और हर जगह मैं अपने साथ पीड़ा लिए फिरता हूँ, ठंडी उकताहट, अप्रसन्नता, तिरस्कार जीवन के प्रति... खत्म हो चुका हूँ वापस न आने के लिए! तुम्हारे सामने खड़ा है वह आदमी जो पैंतीस सालों में ही थक चुका है, निराश हो चुका है, अपनी छोटी-मोटी जीत के बोझ तले दब गया है; वह शर्म से जल रहा है, अपनी कमज़ोरी पर झल्ला रहा है... ओह, मेरे भीतर का स्वाभिमान कैसे चोट पहुँचा रहा है, पागलपन किस तरह मेरा गला घोंट रहा है! (लड़खड़ाते हुए) आह, मैंने अपने आपको कितना सताया है! लड़खड़ाने भी लगा हूँ... कमज़ोर हो गया हूँ. मत्वेय कहाँ है? कहो, मुझे घर ले जा.

(हॉल में आवाज़ : दूल्हे का बेस्टमैन आ गया)

 

XI

षाबिल्स्की (अंदर आते हुए) – दूसरों के, घिसे-पिटे फ्रॉक-कोट में... बिना दस्तानों के... और इसके लिए कितनी व्यंग्यपूर्ण नज़रें, बेवकूफ़ी भरे ताने, ओछी मुस्कुराहटें... घृणित लोग हैं!

बोर्किन (जल्दी से गुलदस्ते के साथ आता है; वह फ्रॉक-कोट में है, बेस्ट मैन का फूल लगाए है) – उफ़! कहाँ है वह? (इवनोफ़ से) आपका चर्च में काफ़ी देर से इंतज़ार हो रहा है, और आप यहाँ फ़लसफ़ा झाड़ रहे हैं. पूरे कॉमेडियन! हे भगवान, कॉमेडियन! आपको दुल्हन के साथ नहीं, बल्कि अलग से जाना है, मेरे साथ, दुल्हन के लिए मैं चर्च से आऊँगा. क्या आप ये बात नहीं समझते? बिल्कुल पक्के कॉमेडियन!

ल्वोफ़ (प्रवेश करता है; इवनोफ़ से) – आह, आप यहाँ हैं?

(जोर से) निकलाय अलेक्सेयेविच इवनोफ़, सबके सामने घोषणा करता हूँ कि आप कमीने हैं!

इवनोफ़ – बहुत-बहुत धन्यवाद!

(एकदम गड़बड़ होने लगती है)

बोर्किन (ल्वोफ़ से) – प्रिय महाशय, ये बड़ा ओछापन है! मैं आपको द्वन्द्व युद्ध के लिए पुकारता हूँ!

ल्वोफ़ – बोर्किन महोदय, आपसे लड़ना तो दूर, आपसे बात करना भी मैं अपमानजनक मानता हूँ! और इवनोफ़ महोदय मुझसे द्वन्द्व युद्ध कर सकते हैं, जब वे चाहें.

षाबिल्स्की – प्रिय महोदय, मैं आपसे लड़ूँगा!...

साषा (ल्वोफ़ से) – किसलिए? क्यों आपने उसका अपमान किया? महाशय, इजाज़त दीजिए, वह मुझे बताए : किसलिए?

ल्वोफ़ – अलेक्सान्द्रा पाव्लव्ना, मैंने यूँ ही, खाली-पीली, अपमान नहीं किया. मैं यहाँ एक ईमानदार आदमी की तरह आया हूँ जिससे आपकी आँखें खोल सकूँ, और प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरी बात सुनें.

साषा – आप कहेंगे क्या? कि आप ईमानदार आदमी है, ये तो पूरी दुनिया जानती है! आप मुझे सच्ची अंतरात्मा से बताइये : क्या आप अपने आपको समझते हैं, या नहीं? अभी आप यहाँ आए ईमानदार बनकर और उसका भयानक अपमान कर दिया, और मुझे क़रीब-क़रीब मार ही डाला; पहले, जब आप उसका पीछा करते थे, परछाईं की तरह, और उसे जीने नहीं देते थे, आपको यक़ीन था कि आप अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं, कि आप ईमानदार इन्सान हैं. आपने उसकी निजी ज़िन्दगी में दखल दिया, उसे बुरा-भला कहा, उसे कठघरे में खड़ा किया; जहाँ-जहाँ भी संभव था, मुझे और मेरे सभी परिचितों को बेनाम चिट्ठियाँ भेजते रहे, - और इस दौरान आप यही सोचते रहे कि आप ईमानदार आदमी हैं. यह सोचकर कि यह ईमानदारी का काम है, आपने, डॉक्टर, उसकी बेचारी बीमार बीबी को भी नहीं बख़्शा और अपने संदेहों से उस बेचारी को चैन नहीं लेने दिया. और आपने चाहे कितनी ही भयानक नीचता का काम क्यों न किया हो, आपको बस यही लगता रहा कि आप असाधारण रूप से ईमानदार और प्रगतिशील व्यक्ति हैं!

इवनोफ़ (मुस्कुराते हुए) – ये शादी नहीं, बल्कि पार्लियामेंट चल रही है! शाबाश, शाबाश!...

साषा (ल्वोफ़ से) – अब सोचिये : क्या आप अपने आपको समझते हैं, या नहीं? कुंद, हृदयहीन लोग!

(इवनोफ़ का हाथ पकड़ती है)

यहाँ से चले जाएँगे, निकलाय! पापा, चलें!

इवनोफ़ – कहाँ चलेंगे? रुको, मैं अभी यह सब ख़त्म कर देता हूँ! मेरे भीतर जवानी जाग उठी है, पुराना इवनोफ़ बोल उठा है! (रिवॉल्वर निकालता है)

साषा (चिल्लाती है) – मुझे मालूम है, वह क्या करने जा रहा है! निकलाय, भगवान के लिए!

इवनोफ़ – ढलान पर बड़ी देर तक लुढ़कता रहा, अब रुकना है! अपने सम्मान को पहचानने का वक़्त आ गया है. दूर हटो! थैंक्यू, साषा!

साषा (चिल्लाती है) – निकलाय, भगवान के लिए! पकड़ो!

इवनोफ़ – छोड़ो मुझे!

(एक ओर भागकर जाता है

और अपने आपको गोली मार लेता है)

(पर्दा)

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अनुवादकों का परिचय

 

 

1 डॉ. आ. चारुमति रामदास

सन् 1910 में अंग्रेज़ी तथा विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद, से सेवानिवृत्त.

रूसी साहित्य के हिंदी अनुवाद में सक्रिय. पचास से भी अधिक प्रचुरित पुस्तकों में प्रमुख अनुवाद हैं :

“कसांद्रा दाग़” – चिंगीस आइत्मातफ़ का उपन्यास

“मास्टर और मार्गारीटा” – मिख़ईल बुल्गाकफ़ का उपन्यास

“प्रतिनिधि कहानियाँ”, “प्रेम कहानियाँ” - अलिक्सान्द्र पूष्किन की कहानियाँ

“गाँव” – इवान बूनिन की कहानियाँ

“वड़वानल” (मराठी से हिंदी में) – राजगुरू दत्तात्रेय आगरकर का उपन्यास

फ़िलहाल बच्चों के लिये रूसी बाल-साहिय का अनुवाद कर रही हैं.

 

2 डॉ. कुँवर कांत

 

देवरिया (उत्तर प्रदेश) के मूल निवासी डॉ. कुँवर कांत - जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्ययन के पश्चात हैदराबाद स्थित अंग्रेजी एवँ विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के रूसी अध्ययन विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं. रूसी भाषा तथा साहित्य के शिक्षण के अतिरिक्त रूसी-हिन्दी साहित्यिक अनुवाद में सक्रिय. मुख्य रूप से सोवियत रूसी कहानीकार वसीली षुकषीन की कहानियों का हिन्दी अनुवाद विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित.

 

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[1] सुप्रसिद्ध फ्रेंच नाटककार, नट और कवि मोल्येर (पैदायिशी नाम झ़ां-बतीस्त पोक्लें, 1622-1673) का नाटक "तरत्यूफ़ या ढोंगी" (1664) का प्रधान पात्र.

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