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सोमवार, 24 नवंबर 2014

O, Black Mountain by Marina Tsvetaeva


ओ काले पर्वत
                                           कविता : मरीना त्स्वेताएवा
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

ओ काले पर्वत,
समूची रोशनी खा जाने वाले!
बस – हो गया – आ गया वक़्त
विधाता को टिकट लौटाने का.

करती हूँ इनकार – अपने होने से
लोगों की आपाधापी में,
करती हूँ इनकार जीने से
चौराहे के भेड़ियों के साथ
इनकार करती हूँ – बिसूरने से
मैदानों की शार्कों के साथ
इनकार करती हूँ तैरने से – नीचे
पीठ के बहाव के साथ.
नहीं चाहिए मुझको छेद
कानों के, न ही भविष्यसूचक आँखें
तुम्हारी बदहवास दुनिया को

जवाब है, बस – इनकार.

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