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लेखक: निकलाय गोगल
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
कई सारी गाड़ियाँ, पहियों वाली बड़ी और छोटी गाड़ियां, खड़ी थीं. उस घर के प्रवेश
द्वार के सामने, जहां एक ऐसे अमीर कलाप्रेमी की वस्तुओं की नीलामी हो रही थी, जो अपनी पूरी
ज़िंदगी मीठी नींद में ऊंघते रहते थे, मीठी हवा और क्यूपिड में खोये हुए, जिन्हें
अनचाहे ही संरक्षक का दर्जा मिल गया था, और जो इसके लिए मासूमियत से अपने पूर्वजों द्वारा
संचित, और अक्सर अपने पहले वाले कामों से प्राप्त लाखों खर्च कर देते थे. ऐसे
संरक्षक, जैसा कि ज़ाहिर है, अब नहीं हैं, और हमारी उन्नीसवीं शताब्दी एक बैंकर का उकताने वाला
रूप धारण कर चुकी है, जो सिर्फ़ आंकड़ों के रूप में अपने करोड़ों का आनंद लेती है. लंबा
हॉल विभिन्न प्रकार के हिंस्त्र पक्षियों के समान, लोगों की भीड़ से खचाखच भरा था,
जो गंदे शरीर पर झपट्टा मारते हैं. यहाँ नीले फ्रॉक कोट में ‘गस्तिनी द्वोर’ के रूसी
व्यापारियों का और सेकण्ड हैण्ड वस्तुओं के मार्केट के दुकानदारों का एक पूरा झुंड
था. यहाँ पर उनका अवतार और चेहरे के भाव कुछ ज्यादा दृढ़, मुक्त थे, और उनमें मदद
करने की वह दिखावटी प्रवृत्ति नहीं दिखाई दे रही थी, जो रूसी व्यापारी में स्पष्ट
दिखाई देती है, जब वह अपनी दुकान में खरीदार के सामने होता है. यहां वे कोई दिखावा
नहीं कर रहे थे, बावजूद इसके कि इसी हॉल में बहुत सारे ऐसे कुलीन लोग थे, जिनके
सम्मुख किसी अन्य स्थान पर वे झुक झुक कर धूल साफ़ करने को तैयार थे, जो उनके
अपने ही जूते लाये थे. यहाँ वे पूरी तरह मस्ती में थे, बिना किसी दिखावे के किताबें
और पोर्ट्रेट्स टटोल रहे थे, वस्तु की उत्कृष्टता जानना चाहते थे, और
साहसपूर्वक विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित मूल्य को नकार देते थे.
यहाँ कई ऐसे आगंतुक थे, जो नीलामियों में ज़रूर जाते थे, जो नाश्ते के बदले यहाँ
आना अपना कर्तव्य समझते थे; कुलीन-जानकार थे, जो अपने संग्रह को बढ़ाने का
एक भी मौक़ा नहीं छोड़ते थे और जिनके पास बारह से एक बजे तक कोई और काम नहीं होता
था; और अंत में, वे महान सज्जन, जिनकी ड्रेस और कमीजें बहुत पतली होती हैं, जो
प्रतिदिन बिना किसी स्वार्थ के आते थे, सिर्फ यह देखने के लिए कि ये कैसे समाप्त होगा, कौन
ज़्यादा बोली लगाएगा, कौन कम, कौन किसे पछाडेगा, और किसके पास क्या रहेगा. अनगिनत चित्र बेतरतीबी से
बिखरे हुए थे, उनके साथ ही बीच-बीच में घुसाया गया था फर्नीचर, और बिखरी थीं किताबें, अपने
पूर्व मालिक के मोनोग्राम सहित, जिसके पास, शायद, उन्हें पढ़ने की कोई विशेष जिज्ञासा नहीं थी. चीनी
फूलदान, मेजों के लिए संगमरमर के टेबल बोर्ड, पुराने और नए फर्नीचर के
नमूने घुमावदार रेखाओं के साथ, बाजों के साथ, स्फिंक्स और सिंहों के पंजों के साथ, सोने का
पानी चढ़ाए हुए और बगैर सोने के पानी के, झुम्बर, केन्क्वेट्स – सब कुछ डाल दिया गया था, और उस
क्रम में नहीं था, जैसा दुकानों में होता है, हर चीज़ में कला की अराजकता प्रकट हो रही थी. आम तौर से नीलामी
देखते हुए मन में डरावने भाव प्रकट होते हैं: उसमें हर चीज़ किसी जनाज़े जैसी प्रतीत
होती है. वह हॉल जहां नीलामी होती है, हमेशा उदास लगता है; खिड़कियां, जिनमें
फर्नीचर और तस्वीरें ठूँसे हुए होते है, कृपणता से प्रकाश को भीतर भेजती हैं,
लोगों के चेहरों पर छाई चुप्पी, और नीलामी करने वाले की मातमी आवाज, जो अपना हथौड़ा
खटखटाता रहता है, और गरीबों के लिए मानो अंतिम संस्कार की प्रार्थना गाता है, जो
विचित्र ढंग से कलाओं का स्वागत करते हैं. ये सब, शायद, अजीब सी
अप्रियता की भावना को और अधिक बढ़ाते हैं.
नीलामी, पूरे ज़ोर पर प्रतीत हो रही थी. शरीफ लोगों का एक पूरा झुण्ड, लगातार किसी
बात पर बहस करते हुए, एक साथ आगे
बढ़ रहा था. चारों तरफ़ से आती हुई ‘रूबल, रूबल, रूबल’ की आवाजें, नीलामीकर्ता को बढ़ी हुई कीमत दुहराने का समय ही नहीं दे
रही थीं, जो घोषित मूल्य से चार गुना बढ़ चुका था. आसपास की भीड़ पोर्ट्रेट के बारे
में बहस कर रही थी, जो पेंटिंग की थोड़ी बहुत समझ रखने वालों को रोक नहीं सकता था. कलाकार की
उच्च कोटि की कला उसमें स्पष्ट रूप से झलक रही थी. पोर्ट्रेट को, ज़ाहिर है, कई बार
सुधारा गया था, उसका नवीनीकरण किया गया था, और वह ढीली-ढाली पोषाक में किसी एशियन व्यक्ति के
सांवले नाक नक्श दिखा रहा था, जिसके चेहरे पर असाधारण, विचित्र भाव था; मगर लोगों
को सबसे ज़्यादा उसकी आँखें चकित कर रही थीं, जिनमें असाधारण ऊर्जा थी. जितना
ज़्यादा उनकी ओर देखते, उतनी ही वे हरेक के दिल में पैंठती हुई लगती थीं. इस विचित्रता ने, कलाकार की
इस असाधारण एकाग्रता ने लगभग सभी का ध्यान आकर्षित किया. उसके बारे में दिलचस्पी
लेने वाले अनेक प्रतियोगी पीछे हट गए थे, क्योंकि कीमत असाधारण रूप से ज़्यादा थी. सिर्फ दो
प्रसिद्ध कुलीन व्यक्ति, कलाप्रेमी, जो किसी हालत में उसे हासिल करने का मौक़ा नहीं खोना
चाहते थे. वे जोश में आ गए थे और शायद कीमत को असंभवता की हद तक ले जाते, अगर अचानक
वहां खड़े, पोर्ट्रेट का अवलोकन कर रहे लोगों में से एक न कहता:
“कृपया, मुझे कुछ देर के लिए आपकी बहस को रोकने की इजाज़त दें. शायद, किसी और
से भी ज़्यादा, मेरा इस पोर्ट्रेट पर अधिकार है.”
इन शब्दों ने फ़ौरन सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित किया. यह एक सुडौल व्यक्ति
था,
लगभग पैंतीस साल का, काले घुंघराले बालों वाला. आकर्षक चेहरा, हल्की-सी लापरवाही दर्शाता
हुआ, ऐसी आत्मा को प्रदर्शित कर रहा था, जो बेज़ार करने वाली हर तरह की सामाजिक उथल-पुथल से
अनजान थी; उसकी वेशभूषा में फैशन का कोई दिखावा नहीं था, हर चीज़ उसके भीतर के कलाकार
को प्रदर्शित करती थी. ये, वाकई में, आर्टिस्ट बी. था, जिसे वहां उपस्थित लोगों
में से कई लोग व्यक्तिगत रूप से जानते थे.
“आपको मेरे शब्द चाहे कितने ही अजीब क्यों न लगें,” अपने ऊपर सबका ध्यान
आकर्षित होते देखकर उसने आगे कहा, “मगर यदि आप छोटा सा इतिहास सुनना चाहें, तो हो
सकता है, आप देखेंगे कि मुझे उन्हें कहने का अधिकार था. हर चीज़ मुझे यकीन दिला रही
है, की
यह पोर्ट्रेट वही है, जिसे मैं ढूंढ रहा हूँ.”
लगभग सभी चेहरों पर स्वाभाविक जिज्ञासा झलकने लगी, और खुद नीलामी करने वाला
भी, सुनने के लिए तत्पर, मुंह खोले ऊपर उठे हुए अपने हाथ में हथौड़ा लिए स्तब्ध
रह गया. कहानी के आरंभ में कई लोगों की आंखें अनचाहे ही पोर्ट्रेट की तरफ़ देख लेती
थीं, मगर बाद में, जब कहानी अधिकाधिक रोचक होती गयी, तो सभी की नज़रें सिर्फ
कहानी सुनाने वाले पर टिक गईं.
“आप शहर के उस भाग से तो परिचित हैं, जिसे कलोम्ना कहते हैं.”
उसने शुरुआत की. “वहां पीटर्सबुर्ग के अन्य भागों जैसा कुछ भी नहीं है: यहाँ न तो राजधानी
है, ना
ही प्रांत; लगता है, कि कलोम्ना के रास्तों पर आते ही सुनते हो कि कैसे युवावस्था की इच्छाएँ और
उम्मीदें तुम्हें छोड़ देती हैं. यहाँ भविष्य नहीं झांकता, यहाँ सिर्फ सन्नाटा और
पिछडापन है, जो राजधानी की हलचल से शेष बचा है. यहाँ रहने के लिए आते हैं सेवानिवृत्त
कर्मचारी, विधवाएं, गरीब लोग, जो सीनेट से वाकिफ़ हैं, और इसलिए ज़िंदगी भर यहाँ
अपने आप को कोसते रहते हैं, सम्मानित रसोईये, जो पूरे दिन बाज़ार में बतियाते
रहते हैं, छोटी सी दुकान में किसान के साथ बकवास करते हैं, और हर दिन पांच कोपेक की
कॉफी और चार कोपेक की शक्कर ले लेते हैं, और, उन लोगों की एक पूरी श्रेणी, जिसे एक
शब्द में कहा जा सकता है : राख जैसे, - ऐसे लोग, जो अपनी
पोशाक से, चेहरे से, बालों से, आंखों से एक तरह की धुंधली, राख जैसा व्यक्तित्व प्रदर्शित करते हैं, जैसे कोई
दिन, जब
आसमान में न कोई तूफ़ान हो, न सूरज, बल्कि न ये, ना वो: जैसे कभी तूफ़ान आये, और हर चीज़ से चमक को दूर ले
जाए. इनमें थियेटरों के सेवानिवृत्त कर्मचारी, सेवानिवृत्त कौन्सिलर्स,
सेवानिवृत्त, एक आंख बाहर निकले, फूले हुए होंठ वाले ‘मार्स’ के शागिर्दों को गिना जा
सकता है. ये लोग एकदम निष्क्रिय हैं : किसी भी चीज़ पर ध्यान दिए बिना, खामोश
रहते हैं, किसी भी चीज़ के बारे सोचे बिना. उनके कमरे में ज़्यादा सामान नहीं होता; कभी कभी
सिर्फ शुद्ध रूसी वोद्का की एकाध बोतल होती है, जिसके वह पूरे दिन घूँट
लेते रहते हैं, बिना किसी दिमागी तनाव के, जो किसी भावपूर्ण स्वागत से उत्पन्न होता है, जिसे आम
तौर पर कोई युवा जर्मन कारीगर स्वयं को इतवार को देना पसंद करता है,
मेश्शान्स्काया स्ट्रीट का ये दुस्साहसी, जो रात के बारह बजे के बाद पूरे फुटपाथ पर कब्ज़ा कर
लेता है.
कलोम्ना का जीवन खतरनाक रूप से एकाकी है: कभी-कभार कोई गाड़ी दिखाई दे जाती
है, उस
गाड़ी के अलावा, जिसमें एक्टर लोग जाते हैं, जो अपनी खड़खड़ाहट से, घंटी से, और अपनी
चर्र-चूं से अकेली ही चारों ओर छाई हुई खामोशी को भंग करती है. यहाँ सभी पैदल चलने
वाले हैं; गाड़ीवान अक्सर बिना किसी सवारी के चलता है, अपने छोटे से दाढ़ी वाले घोड़े
के लिए घास खींचते हुए.
पांच रूबल प्रतिमाह के किराए पर, जिसमें सुबह की कॉफी भी शामिल है, क्वार्टर ढूंढ सकते
हैं. बेवाएँ, जिन्हें पेंशन मिलती है, यहाँ सबसे ज़्यादा कुलीन परिवारों की हैं; वे बहुत अच्छा
व्यवहार करती हैं, अक्सर अपने कमरे में खुद ही झाडू लगाती हैं, अपनी
सहेलियों के साथ गोभी और गाय के मांस की महंगी कीमत के बारे में बातें करती हैं;
उनके यहाँ अक्सर एक जवान बेटी होती है, खामोश, बेआवाज़, कभी कभी प्यारी सूरत वाली, एक घिनौना कुत्ता और
उदासी से बजते हुए पेंडुलम वाली दीवार घड़ी. फिर आते हैं एक्टर्स, जिन्हें
उनका वेतन कलोम्ना से बाहर निकलने की
इजाज़त नहीं देता, ये आज़ाद ख़याल लोग हैं, जैसे सभी आर्टिस्ट होते हैं, जो आनंद के
लिए जीते हैं. वे, ड्रेसिंग गाऊन में बैठे-बैठे पिस्तौल ठीक करते रहते हैं, कार्ड
बोर्ड से घरेलू उपयोग की चीज़ें बनाते हैं, कभी किसी दोस्त के साथ
चेकर्स और ताश खेलते हैं, और इस तरह सुबह का वक्त बिताते हैं, शाम को भी लगभग यही
करते हैं, कभी कभी कॉकटेल के साथ. कलोम्ना के इन महानुभावों और कुलीनों के बाद आते
हैं असाधारण रूप से छोटे-मोटे लोग. उनके नाम गिनाना उतना ही मुश्किल है, जितना उन
अनगिनत कीड़ों के जो पुराने सिरके में पैदा हो जाते हैं. इनमें होती हैं बूढ़ी औरतें, जो
प्रार्थना करती हैं; बूढ़ी औरतें जो नशा करती हैं, बूढ़ी औरतें जो प्रार्थना भी
करती हैं और नशा भी करती हैं; बूढ़ी औरतें, जो अगम्य साधनों से जीती
हैं, चीटियों की तरह - अपने साथ पुराने
चीथड़े और अंतर्वस्त्र कलिन्किन ब्रिज से नीलामी-मार्केट तक ढोकर ले जाती हैं, ताकि वहां
उसे पंद्रह कोपेक में बेच दें ; संक्षेप में अक्सर मानवता की अत्यंत अभागी तलछट, जिसकी हालत
सुधारने का कोई भी उपाय कोई भला राजनैतिक अर्थशास्त्री नहीं ढूंढ पाया.
मैं उन्हें इसलिए लाया हूँ, कि आपको दिखा सकूं, कि कैसे अक्सर इन लोगों को
एक अचानक एक बड़ी, अस्थाई मदद की ज़रुरत पड़ती है, क़र्ज़ लेना पड़ता है; और तब
विशेष प्रकार के साहूकार उनके बीच आकर बस जाते हैं, जो छोटी-छोटी रकम उधार देते
हैं,
कोई चीज़ गिरवी रखवाकर और अधिक ब्याज लेकर. ये छोटे छोटे सूदखोर,बड़े
साहूकारों की अपेक्षा अधिक असंवेदनशील होते हैं, क्योंकि गरीबी, और फटे
पुराने चीथड़ों में बड़े होते हैं, जिन्हें कोई अमीर सूदखोर नहीं देख सकता, जिसका काम
सिर्फ गाड़ियों में आने वालों के साथ होता है. और इसलिए उनकी आत्मा से मानवता की हर
भावना बहुत जल्दी दूर हो जाती है. ऐसे सूदखोरों में एक था...मगर आपको बताने में
कोई हर्ज नहीं है, कि जिस घटना के बारे में मैं आपको बताने जा रहा हूँ, वह पिछली
शताब्दी से संबंधित है, स्वर्गीय साम्राज्ञी कैथरीन द्वितीय के शासन काल की. आप
खुद ही समझ सकते हैं, कि कलोम्ना की ज़िंदगी और उसके अवतार को काफ़ी हद तक बदलना था. तो, इन
सूदखोरों के बीच एक था – सभी दृष्टियों से असाधारण, जो काफ़ी पहले शहर के इस भाग
में आकर बस गया था. वह चौड़ी एशियन वेशभूषा में चलता था; चेहरे का गहरा रंग उसके
दक्षिणी मूल को दर्शाता था, मगर वह किस देश का था : भारतीय, ग्रीक, पर्शियन, इस बारे
में शायद कोई भी नहीं बता सकता था. ऊंचा, लगभग असाधारण ऊंचाई, सांवला, धंसा हुआ
चेहरा और उसका अनाकलनीय रूप से भयंकर रंग, बड़ी-बड़ी, असाधारण
रूप से दहकती आंखें, लटकती हुई घनी भौंहें उसे राजधानी के सभी राख जैसे निवासियों से तीव्रता
से अलग करती थीं. उसका घर लकड़ी से बने हुए अन्य छोटे-छोटे घरों जैसा नहीं था. ये
पत्थर का बना हुआ था, उन घरों की भांति जो कभी गेनोआ के व्यापारी बहुतायत से बनाते
थे – अनियमित, असमान खिड़कियों वाले, लोहे के शटर्स और बोल्ट्स वाले. यह सूदखोर अन्य
सूदखोरों से इस बात में अलग था, कि वह हरेक को उसकी इच्छानुसार धनराशि प्रदान कर
सकता था, गरीब बुढ़िया से लेकर दरबार के खर्चीले कुलीन रईस को. उसके घर के सामने
अक्सर चमचमाती गाड़ियाँ दिखाई देतीं, जिनकी खिड़कियों से कभी कभी किसी शानदार सोसाइटी की
महिला का सिर दिखाई देता. अफ़वाह, जैसा कि आम तौर पर होता है, ये फ़ैल गई थी, कि उसके
लोहे के संदूक अनगिनत धनराशि से, बहुमूल्य चीजों से, हीरों से और हर तरह की गिरवी
रखी हुई चीज़ों से भरे हैं, मगर उसमें वह लालच नहीं था, जो अन्य सूदखोरों में होता
है. पैसे वह खुशी से देता था, भुगतान का समय उनकी इच्छानुसार बढ़ाते हुए, मगर किन्हीं विचित्र अंकगणितीय गणनाओं से ब्याज
के प्रतिशित को खूब बढ़ा देता. अफ़वाह तो, कम से कम, ऐसा ही कहती थी. मगर सबसे अजीब बात, जो काफी
लोगों को हैरान किये बिना नहीं रह सकती थी – वह थी उन सबका विचित्र भाग्य, जिन्होंने
उससे धन प्राप्त किया था, वे सब दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से अपना जीवन समाप्त कर देते
थे. या तो यह लोगों की राय थी, अंधविश्वास के हास्यास्पद तर्क हों, या
जानबूझकर फैलाई हुई अफ़वाहें हों – ये पता नहीं चला. मगर कुछ उदाहरण, जो कुछ ही
समय में सबकी आंखों के सामने हुए थे, स्पष्ट और चौंकाने वाले थे.
तत्कालीन कुलीन घरानों में से एक बढ़िया कुलनाम वाले नौजवान ने अपनी ओर
ध्यान आकर्षित किया, जो जवानी में ही सरकारी क्षेत्र में प्रतिष्ठित हो गया था, हर
सच्ची, उदात्त चीज़ का प्रशंसक, जो कला को और मानवीय बुद्धि को उत्पन्न करती है, जो स्वयं
को संरक्षक के रूप में देखता था. जल्दी ही स्वयं साम्राज्ञी ने सुयोग्य रूप से
उसकी योग्यता को पहचान लिया और उसे एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त कर दिया, जो पूरी
तरह उसकी योग्यताओं के अनुरूप था, ऐसा पद, जहां वह विज्ञान और भलाई के
लिए बहुत कुछ कर सके. कुलीन नौजवान ने अपने आप को कलाकारों से, कवियों
से, वैज्ञानिकों से घेर लिया. वह सबको काम देना चाहता था, सब कुछ प्रोत्साहित करना
चाहता था. उसने अपने स्वयं के पैसे से अनेक उपयोगी पुस्तकें प्रकाशित कीं, कई सारे
ऑर्डर्स दिए, प्रोत्साहन पुरस्कारों की घोषणा की, इस पर ढेरों पैसा खर्च किया
और अंत में परेशान हो गया. मगर उदार भावना से भरा, वह अपने काम से पीछे नहीं
हटना चाहता था, हर जगह उधार लेने की कोशिश की, और अंत में मशहूर सूदखोर के पास गया. काफी बड़ी रकम उससे
उधार लेने के बाद, यह आदमी जल्दी ही पूरी तरह बदल गया: वह उत्पीड़क बन गया, विकसित
होती हुई बुद्धि और प्रतिभा को सताने लगा. हर रचना में बुरा पक्ष ढूंढने लगा. हर
शब्द का गलत अर्थ निकालने लगा. तभी, दुर्भाग्य से, फ्रांसीसी क्रान्ति हुई. इसने अचानक उसके हाथ में सभी
के लिए निकृष्ट काम करने का हथियार दे दिया. वह हर चीज़ में एक क्रांतिकारी
प्रवृत्ति देखने लगा, हर चीज़ में उसे छुपे हुए संकेत नज़र आने लगे. वह इस सीमा तक शक्की हो गया
की अपने आप पर भी संदेह करने लगा, भयानक, अन्यायपूर्ण शिकायतें लिखने लगा, उसने कई
सारे लोगों को दुखी कर दिया. ज़ाहिर है, कि उसके इस तरह के कारनामे सिंहासन तक पहुंचे बिना न रह
सके. उदार महारानी घबरा गई और, अपनी आत्मा की महानता के साथ, जो शाही व्यक्तियों का भूषण
है,
उन्होंने वे शब्द कहे, जो भले ही पूरी तरह हम तक न पहुँच पाए, मगर उनका गहरा अर्थ कई
लोगों के हृदयों में अंकित हो गया. साम्राज्ञी ने गौर किया कि आत्मा की उच्च और
उदार भावनाएँ राजतांत्रिक शासन में दबती नहीं हैं, न ही वहां बुद्धि, काव्य और
कला की रचनाओं का अवमान या उत्पीडन किया जाता है, बल्कि इसके विपरीत, कुछ सम्राट
तो उनके संरक्षक भी रह चुके हैं, कि शेक्सपियर, मोल्येर, उनके महान
संरक्षण की छाया में फूले-फले थे, उनके बीच दांते अपनी गणतंत्रवादी मातृभूमि में कोई
स्थान न पा सका, कि वास्तविक प्रतिभाशाली कलाकार शासन और शासकों की महत्ता और सामर्थ्य के
दौर में उत्पन्न होते हैं, न कि विकृत राजनैतिक घटनाओं, और गणतंत्रों के आतंकवाद के
दौरान, जिन्होंने आज तक दुनिया को एक भी कवि नहीं दिया, कि कवियोँ – कलाकारों को
पहचानना चाहिए, क्योंकि सिर्फ वे ही आत्मा में शान्ति और खूबसूरत खामोशी ला सकते हैं, न कि
परेशानी और शिकायतें; कि वैज्ञानिक, कवि और सभी कलाओं के निर्माता सम्राट के मुकुट में हीरे
और मोती होते हैं: उनसे ही महान सम्राट के कालखंड को और अधिक चमक प्राप्त होती है.
संक्षेप में इन शब्दों को कहने वाली साम्राज्ञी उस समय दैवी रूप से दैदीप्यमान थी.
मुझे याद है, कि बूढ़े लोग इस बारे में बिना आंसुओं के नहीं बता सकते थे. इस काम में सभी
ने भाग लिया. हमारे राष्ट्रीय गौरव के सम्मान में इस बात पर गौर करना होगा, कि रूसी
दिल में हमेशा पीड़ितों पक्ष लेने का एक ख़ूबसूरत भाव उपस्थित रहता है. लोगों के
विश्वास को धोखा देने वाले नौजवान को कड़ी सज़ा दी गई और उसे नौकरी से निकाल दिया
गया. मगर सबसे भयानक सज़ा वह अपने देशवासियों के चेहरों पर पढ़ रहा था. यह थी उसके
प्रति दृढ़ और सार्वभौमिक अवमानना की भावना. यह बताना असंभव है कि उसकी गर्वीली
आत्मा कैसे तड़पती रही: गर्व, निराश महत्वाकांक्षा, नष्ट हो रही आशाएं – सभी एक साथ
मिल गए, और भयानक पागलपन और जूनून के दौरों के बीच उसकी जीवन डोर कट गई.
दूसरी चौंकाने वाली घटना भी सबके सामने हुई : सुंदरियों में से, जिनकी
हमारी उत्तरी राजधानी में कमी न थी, एक सुन्दरी सबसे अधिक सुन्दर थी. मानो ये हमारे उत्तर
की सुन्दरता का दोपहर की सुन्दरता से आश्चर्यजनक मेल था, ऐसा हीरा, जो दुनिया
में बिरले ही दिखाई देता है. मेरे पिता ने स्वीकार किया कि अपनी ज़िंदगी में
उन्होंने कोई इतनी सुन्दर चीज़ नहीं देखी थी. लगता था, कि उसमें सभी गुण समा गए
हैं: धन, बुद्धि और आध्यात्मिक आकर्षण. उसके प्रशंसकों की बहुत बड़ी संख्या थी, और
उनमें सबसे अधिक उल्लेखनीय थे राजकुमार आर. सबसे महान, सभी नौजवानों में सबसे अच्छे, सबसे
ज़्यादा सुन्दर, चेहरे से और वीरता में, महान और उदारतापूर्ण आवेगों में, उपन्यासों और महिलाओं
के उच्च आदर्श. हर दृष्टि से ग्रांडिसन. राजकुमार आर. बेहद भावुकता और पागलपन की
हद तक प्यार करता था: वैसा ही उत्कट प्रेम उसे जवाब में मिल रहा था. मगर रिश्तेदारों
को यह प्रस्ताव असमान प्रतीत हुआ. राजकुमार की पैतृक संपत्ति लम्बे समय से उसके
अधिकार में नहीं थी, उसका कुलनाम बदनाम था, और उसकी खस्ता हालत के बारे
में सब जानते थे. अचानक राजकुमार कुछ समय के लिए राजधानी छोड़कर चला गया, शायद
इसलिए कि अपने हालात सुधार सके, और कुछ ही समय में प्रकट हुआ – शान से, और
अविश्वसनीय चमक दमक से घिरा हुआ. शानदार नृत्योत्सव और समारोह उसे महल में प्रसिद्ध
बनाते हैं. सुन्दरी का पिता आशीर्वाद देता है, और शहर में अत्यंत दिलचस्प
शादी का आयोजन होता है. ऐसा परिवर्तन और ऐसी अभूतपूर्व संपत्ति उसके पास कहां से
आई, इस
बारे में शायद कोई नहीं समझा सकता था; मगर चुपके-चुपके लोग कहते थे कि उसने अगम्य
सूदखोर के साथ कोई संबंध बनाया है, और उससे क़र्ज़ लिया है. चाहे जो भी हुआ हो, मगर शादी
पूरे शहर में चर्चा का विषय बनी रही, और दूल्हा और दुल्हन सबकी ईर्ष्या का विषय बन गए. उनका
जोशीला, शाश्वत प्रेम, दोनों के द्वारा लम्बे समय तक सहन की गई पीड़ा, दोनों के उच्च
कोटि के गुणों से सब वाकिफ़ थे. उत्साही महिलाएं पहले से ही उस स्वर्गीय सुख की
कल्पना कर रही थीं, जिसका आनंद युवा दंपत्ति उठाने वाले थे. मगर सब कुछ इसके विपरीत ही हुआ.
एक वर्ष में ही पति में भयानक परिवर्तन हुआ. ईर्ष्या के संदेह ने, असहिष्णुता और असीमित
सनक ने अभी तक भले और सुन्दर चरित्र में ज़हर घोल दिया. वह पत्नी पर अत्याचार करने
लगा,
उसे पीड़ा देने लगा, और जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, ऐसे अमानवीय
अत्याचार करने लगा, मारपीट पर उतर आया. एक ही वर्ष में उस महिला को कोई पहचान भी न सका, जो अभी
हाल ही तक दमकती थी, और विनम्र प्रशंसकों को अपनी ओर आकर्षित करती थी. आखिरकार,
अपने दुर्भाग्य को और अधिक सहन करने में असमर्थ, उसने तलाक के बारे में पहले
बात छेड़ी. पति के सिर पर इस ख़याल से ही जुनून सवार हो गया. आवेग से वह चाकू लेकर
उसके कमरे में घुसा, वह उसे चाकू घोंप ही देता, अगर पकड़ कर शांत न किया गया होता. निराशा और उन्माद के
ज़ोर में उसने चाकू को अपनी ओर मोड़ लिया – और अत्यंत भयानक पीड़ा में अपने जीवन का
अंत कर लिया.
इन दो उदाहरणों के अलावा, जो पूरे समाज के सामने हुई थीं, अन्य अनेक घटनाओं के बारे
में भी लोग बातें करते थे, जो निम्न वर्गों में हुई थीं, जिनका लगभग उतना ही भयानक
अंत हुआ था. कहीं एक ईमानदार, शांत आदमी शराबी बन गया; कहीं व्यापारी के कारकून ने
अपने मालिक को लूट लिया; कहीं गाड़ीवान ने, जो अनेक वर्षों से ईमानदारी
से गाड़ी चला रहा था, एक पैसे के लिए अपनी सवारी को चाकू मार दिया. ऐसा नहीं, कि इस तरह
की घटनाएं, जो कभी कभी बढ़ा चढ़ाकर सुनाई जाती थीं, कलोम्ना के निवासियों के मन
में अनचाहे ही भय पैदा न किया हो. किसी को भी इस आदमी के भीतर किसी शैतानी शक्ति
की उपस्थिति के बारे में संदेह नहीं था. कहते थे, कि वह ऐसी परिस्थितियाँ
उत्पन्न करता था, जिनसे खौफ़ के मारे सिर के बाल खड़े हो जाते और जिन्हें दुर्दैवी व्यक्ति
किसी और को बताने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था, कि उसके पैसों में जलाने की
ताकत है, वे अपने आप गर्म हो जाते हैं, और उन पर कुछ अजीब निशान पैदा हो जाते हैं...मतलब, कई सारी
बेसिरपैर की अफ़वाहें थीं. और उल्लेखनीय बात यह थी, की कलोम्ना की ये सारी
आबादी, बूढ़ी औरतों, छोटे-मोटे क्लर्कों, छोटे मोटे कलाकारों की, एक लब्ज़ में, सभी छोटे लोग, जिनके अभी
हमने नाम लिए हैं, भयानक सूदखोर के पास जाने के बदले बर्दाश्त करने के लिए और चरम परिस्थिति
का इन्तजार करने के लिए तैयार थे; भूख से मर रहीं ऐसी बूढ़ी औरतें भी थीं, जो अपनी
आत्मा को मारने के बदले, शरीर को मारने के लिए सहमत थीं. यदि रास्ते में उससे
मुलाक़ात हो जाती, तो अनचाहे मन में भय का अनुभव होता. पैदल जा रहे व्यक्ति सावधानी
से पीछे मुड़ जाते और बड़ी देर तक पीछे मुड़कर उसकी दूर लुप्त होती असामान्य रूप से
लम्बी आकृति को देखते रहते. उस एक ही आकृति में इतनी असाधारण बातें थीं, कि हर कोई
उसे अलौकिक अस्तित्व मान बैठा था. ये प्रमुख नाक नक्श, इतनी प्रमुखता से दिखाई
देते थे, जैसे किसी इंसान में नहीं होते, चेहरे का झिलमिलाता तांबे जैसा रंग;
अत्यंत घनी भौंहें, असहनीय, डरावनी आंखें, उसके एशियन वस्त्रों की अत्यंत चौड़ी तहें – ऐसा प्रतीत
होता कि सब कुछ ये कह रहा था, कि इस शरीर में विचरण कर रहे जुनून के सामने, अन्य
लोगों के जुनून बिल्कुल फीके थे. मेरे पिता तो जब भी उससे मिलते, हर बार
निश्चल खड़े रह जाते, और हर बार ये शब्द कहे बिना नहीं रह पाते, “शैतान, एकदम असली
शैतान!” मगर मुझे अपने पिता से फ़ौरन आपका परिचय करवाना होगा, जो
इत्तेफाक से, इस किस्से के असली पात्र हैं. मेरे पिता अनेक दृष्टियों से अद्भुत व्यक्ति
थे. वो ऐसे कलाकार थे, जो बिरले ही होते हैं, ऐसे आश्चर्यों में से एक जो केवल रूस के अनछुए गर्भ से ही
निकलते हैं, कलाकार, स्वयंशिक्षित, उन्होंने खुद ही अपनी आत्मा में, बिना किसी
स्कूल के और शिक्षकों के, नियम और क़ानून ढूंढें थे, जिनके मन में सिर्फ
परिपूर्णता प्राप्त करने की प्यास थी, और जो, किन्हीं कारणों से, जो शायद उन्हें अकेले को ही
ज्ञात थे, आत्मा द्वारा दिखाई गई राह पर चलते थे, उन प्राकृतिक आश्चर्यों में
से एक, जिनकी अक्सर “नौसिखिया” कहकर उनके समकालीन निंदा करते हैं और जो अपने
अपयशों और निंदा से हतोत्साहित नहीं होते, बल्कि नई ऊर्जा और शक्ति प्राप्त करते
हैं, और अपने अंतर्मन में उन रचनाओं से दूर हो जाते हैं, जिनके लिए उन्हें ‘नौसिखिये’ की पदवी
मिली थी. एक उच्च आतंरिक प्रवृत्ति से वे हर वस्तु में अर्थ को महसूस कर लेते थे;
खुद ही ‘ऐतिहासिक पेंटिंग’ का अर्थ समझ लिया, वह समझ गए थे, कि रफाएल, लिओनार्दो
डी विंची, तित्सियन, करेझियो के केवल ‘सिर’ को ‘ऐतिहासिक पेंटिंग’ कहा जा
सकता है, और क्यों ऐतिहासिक विषय पर चित्रित विशाल चित्र केवल tableau de
genre ही होगा, कलाकार की ‘ऐतिहासिक कलाकृति’ के दावे
के बावजूद. और आतंरिक प्रेरणा तथा उनके अपने दृढ़ विश्वास ने उनके ब्रश को
‘क्रिश्चियन’ विषयों की ओर मोड़ दिया, उच्चता और उच्चता की अंतिम सीढ़ी की ओर. उनके स्वभाव में महत्वाकांक्षा
या चिडचिडापन नहीं था, जो कई कलाकारों के स्वभाव का अविभाज्य गुण होता है. उनका एक दृढ़ चरित्र था - ईमानदार, स्पष्ट
व्यक्तित्व, कुछ असभ्य भी, जिसे बाहर से किसी कठोर कवच से आच्छादित कर दिया गया था, आत्मा में
कुछ गर्व के साथ, जो लोगों के बारे में दया और कठोरता से विचार प्रकट करते थे. “उन्हें
क्यों देखना है,” – वे आम तौर से कहा करते, - “मैं उनके लिए तो काम
नहीं करता हूँ. अपने चित्र मैं मेहमानखाने में नहीं ले जाता, उन्हें
चर्च में रखा जाएगा. जो मुझे समझेंगे – धन्यवाद देंगे, नहीं समझेंगे – फिर भी खुदा
की इबादत तो करेंगे. समाज के किसी आदमी को दोष नहीं दिया जा सकता, कि उसे
चित्रकला की समझ नहीं है; मगर वह ताश के पत्तों के बारे में तो समझता है, अच्छी
शराब के बारे में जानता है, घोड़ों के बारे में समझता है – किसी व्यक्ति को इससे
ज़्यादा जानने की ज़रुरत क्या है? और फिर, गौर फरमाईये, सब कुछ जानने की कोशिश करेगा, तो उससे ज़िंदगी को कोई
फ़ायदा नहीं होगा! हरेक का अपना-अपना शौक होता है, हर व्यक्ति को अपनी मर्जी
से काम करने दो. मेरे ख़याल से, बेहतर वो इंसान है, जो साफ़-साफ़ कह देता है, कि वह कुछ
नहीं जानता, उसके मुकाबले, जो सब कुछ जानने का दिखावा करता है, कहता है, कि उसे वह भी
मालूम है, जिसके बारे में नहीं जानता, और सिर्फ गन्दगी फैलाता है, और सब कुछ बिगाड़ देता है”.
वे थोडे से मूल्य पर काम करते थे, जितना परिवार के भरण-पोषण के लिए और अपना काम करने के
लिए साधनों की परिपूर्ति करने के लिए आवश्यक था. इसके अलावा, वह किसी
भी हालत में औरों की सहायता करने से इनकार नहीं करते थे; किसी गरीब कलाकार को मदद
का हाथ दिया करते, अपने पूर्वजों के सरल, पवित्र विश्वास पर भरोसा करते, और हो सकता
है, कि
इसी वजह से, उसके द्वारा चित्रित चेहरों पर अपने आप ही एक उच्च कोटि की अभिव्यक्ति
प्रकट होती थी, जहां तक प्रतिभाशाली कलाकार नहीं पहुँच पाते थे. और आखिरकार, निरंतर
परिश्रम और स्वयं द्वारा निर्धारित मार्ग से विचलित न होने के कारण उन्हें उन
लोगों से भी सम्मान प्राप्त होने लगा, जो उन्हें नौसिखिया और स्वयंशिक्षित कहते थे. उन्हें लगातार
चर्च से काम मिलता रहता था, और उनका काम किसी और को नहीं दिया जाता था. एक विशिष्ठ
काम ने उन्हें भयानक रूप से व्यस्त रखा
था. अब याद नहीं है, कि उसका विषय क्या था, सिर्फ इतना मालूम है कि
चित्र में ‘अन्धकार की आत्मा’ को दिखाना था. वह बड़ी देर तक सोचते रहे कि उसे कैसा रूप
दे: उन्हें चेहरे पर सभी कठोर, मनुष्य के लिए दमनकारी भाव प्रदर्शित करना था. इन्हीं
विचारों में कभी कभी उसके दिमाग में रहस्यमय सूदखोर का चेहरा तैर जाता, और उन्होंने
अनचाहे ही सोचा: ‘ काश, इसी का प्रतिरूप मैं शैतान में दिखा सकता.’ आप उनके अचरज
का अंदाज़ लगा सकते हैं, जब एक बार, अपनी कार्यशाला में काम करते समय, उन्होंने
दरवाज़े पर दस्तक सुनी, और उसके बाद खतरनाक साहूकार सीधे उनके पास आया. उन्हें भीतर से कंपकंपी का
अनुभव हुआ, जो उनके अकस्मात् पूरे शरीर में फ़ैल गई.
“क्या तुम कलाकार हो?” उसने बिना किसी शिष्टाचार के मेरे पिता से कहा.
“हाँ, कलाकार हूँ,” पिता ने अविश्वास से कहा, इंतज़ार करते हुए कि आगे क्या होने वाला है.
“अच्छी बात है. मेरा पोर्ट्रेट बनाओ. मैं, हो सकता है, जल्दी ही
मरने वाला हूँ, मेरे बच्चे नहीं हैं: मगर मैं मरना नहीं चाहता, पूरी तरह, मैं जीना
चाहता हूँ. क्या तुम ऐसा पोर्ट्रेट बना सकते हो जो बिल्कुल जीवित जैसा प्रतीत हो?”
मेरे पिता ने सोचा, ‘इससे अच्छा और क्या हो सकता है? – वह खुद
ही मेरे चित्र में शैतान होने की विनती कर रहा है’. उन्होंने वादा किया.
उन्होंने समय और कीमत तय की, और दूसरे ही दिन, पैलेट और ब्रश लेकर मेरे
पिता उसके यहाँ पहुँच गए. ऊंचा आँगन, कुत्ते, लोहे के दरवाज़े और शटर्स, धनुषाकार खिड़कियां, संदूक, प्राचीन
कालीनों से ढंके हुए, और अंत में, बेशक, खुद असाधारण मालिक, उनके सामने निश्चल बैठा हुआ, इस सब ने उन पर विचित्र
प्रभाव डाला. खिड़कियां, जैसे जानबूझकर नीचे से इस तरह सामान से ठसाठस भरी हुई
थीं, कि
सिर्फ रोशनदान से ही प्रकाश दे रही थीं. ‘शैतान ले जाए, अब उसका चेहरा कितना दमक
रहा है!’ उन्होंने अपने आप से कहा, और लालच से चित्र बनाने लगे, मानो डर रहे हों, कि ये
खुशगवार रोशनी लुप्त न हो जाए. ‘कैसी ताकत
है!’ उन्होने फिर मन ही मन दुहराया. ‘अगर ये अभी जैसा है, मैं उसका आधा भी बनाता हूँ, तो वह
मेरे सभी शैतानों और देवदूतों को मार डालेगा; वे उसके सामने पीले पड़ जायेंगे. कैसी
शैतानी ताकत है! अगर मैं प्रकृति के प्रति और अधिक ईमानदारी दिखाऊंगा, तो बस, अभी वह
मेरे कैनवास से उछलकर बाहर आयेगा. कैसे असाधारण नाक नक्श हैं!’ – वह निरंतर दुहराते
रहे, अपने जोश को बढाते हुए, और उन्होंने खुद ही देखा कि कैनवास पर कुछ विशेषताएं
प्रकट होती जा रही हैं. मगर जैसे जैसे वह उनके निकट जाने लगे, उतनी ही
अधिक घुटन, अस्वस्थता की भावना महसूस होने लगी, जो खुद उन्हें ही समझ में नहीं आ रही
थी. मगर, इसके बावजूद, उन्होंने प्रत्येक अगोचर लक्षण और भाव का सटीकता से अनुमोदन करने का
निश्चय किया. सबसे पहले उन्होंने आंखों को पूर्ण करना आरंभ किया. इन आंखों में कितनी
शक्ति थी, ऐसा लग रहा था, कि उन्हें हूबहू प्रस्तुत करने के बारे में, जैसे वे
वास्तव में थीं, विचार भी करना असंभव लग रहा था. मगर
उन्होंने चाहे जो भी हो, उनकी छोटी से छोटी विशेषता और छटा ढूँढने का, उनके रहस्य
तक पहुँचने का निश्चय कर लिया...मगर जैसे ही उन्होंने अपने ब्रश से उनकी गहराई में
जाना आरंभ किया, उसकी आत्मा में ऐसी विचित्र घृणा उत्पन्न हुई, ऐसा अगम्य बोझ महसूस होने
लगा, कि
कुछ देर के लिए ब्रश को फेंक देना पडा और कुछ देर बाद नए सिरे से शुरुआत करनी पडी.
अंत में वह और अधिक बर्दाश्त नहीं कर पाये, उन्हें महसूस हुआ कि ये
आंखें उनकी आत्मा में चुभ गई हैं और उन्होंने एक अबूझ खतरे की भावना पैदा कर दी
है. दूसरे दिन, तीसरे दिन ये और भी ज्यादा थी. उन्हें डर लगने लगा. उन्होंने ब्रश फेंक दिया और साफ़ साफ़ कह
दिया कि वह उसे देखकर चित्र नहीं बना सकते . देखना चाहिए था कि इन शब्दों को सुनकर
विचित्र सूदखोर कैसे बदल गया. वह उनके पैरों पर गिर पडा और यह कहते हुए उनसे
पोर्ट्रेट पूरा करने की विनती करने लगा, कि इस पोर्ट्रेट पर उसका भविष्य और दुनिया में उसका
अस्तित्व निर्भर करता है, कि उन्होंने अपने ब्रश से उसके सजीव नाक नक्श को स्पर्श
किया है, यदि वह ईमानदारी से उन्हें प्रदर्शित करता है, तो उसका जीवन अलौकिक शक्ति
से पोर्टेट में सुरक्षित हो जाएगा, कि इस पोर्ट्रेट की बदौलत वह पूरी तरह नहीं मरेगा, कि उसका
दुनिया में रहना ज़रूरी है. मेरे पिता इन शब्दों को सुनकर भयभीत हो गए: वे उन्हें
इतने अजीब और खौफ़नाक प्रतीत हुए कि उन्होंने ब्रश और पैलेट फेंक दी और सिर के बल
कमरे से भाग गए.
उसके बारे में विचार उन्हें पूरे दिन और पूरी रात परेशान करता रहा, और सुबह उन्हें
सूदखोर से पोर्ट्रेट प्राप्त हुआ, जिसे उसके घर में काम करने वाली इकलौती नौकरानी लाई थी, उसने
सूचित किया, की मालिक को पोर्ट्रेट की ज़रुरत नहीं है, इसके लिए वह कुछ नहीं देगा, और उसे
वापस भेज रहा है. उसी दिन शाम को उन्हें पता चला कि सूदखोर मर गया है, और उसके
धर्म के संस्कारों के अनुसार उसे दफ़नाने जा रहे हैं. ये सब उन्हें अवर्णनीय रूप से विचित्र लगा. इस बीच, उनके
चरित्र में उल्लेखनीय रूप से परिवर्तन दिखाई देने लगा : वे हमेशा अशांत, चिंताग्रस्त रहने लगे, जिसका कारण
खुद भी न समझ पाये, और जल्दी ही उन्होंने ऐसा काम कर दिया, जिसकी उनसे किसी को उम्मीद
नहीं थी. पिछले कुछ समय से उनके एक शिष्य की रचनाओं की तरफ़ विद्वानों और प्रशंसकों
के एक छोटे से समूह का ध्यान आकर्षित होने लगा था. मेरे पिता ने हमेशा से उसके
भीतर की प्रतिभा को पहचाना था, और उनके मन में उसके प्रति विशेष लगाव था. अचानक उन्हें
उससे ईर्ष्या महसूस होने लगी. उसके काम के प्रति सबकी रूचि और उसकी चर्चा उन्हें
असह्य होने लगी. आखिरकार, उसकी ईर्ष्या को और बढाने वाली खबर उन्हें मिली कि उनके
शिष्य को पुनर्निर्मित संपन्न चर्च से चित्र बनाने का प्रस्ताव प्राप्त हुआ है. इस
खबर ने तो मानो सभी बांध तोड़ दिए. ‘नहीं, मैं इस दूध पीते बच्चे को जीतने नहीं दूंगा!’ उन्होंने कहा.
‘बहुत जल्दी सोची तूने, भाई, बूढों को मिट्टी में मिलाने की बात! खुदा की मेहेरबानी
से,
अभी मुझमें ताकत है. हम भी देखेंगे कि कौन किसको मिट्टी में मिलाता है.’ और सच्चे
मन के और ईमानदार व्यक्ति ने षडयंत्र तथा कुटिलता से, जिनसे वह अब तक घृणा करता था, आखिरकार इस
चित्र की एक प्रतियोगिता आयोजित की, जिसमें अन्य चित्रकार भी अपनी-अपनी रचनाओं के आधार पर
प्रवेश ले सकेंगे. इसके बाद वह अपने कमरे में बंद हो गये और पूरे जोश से अपने ब्रश
से काम करने लगे. ऐसा लगता था कि अपनी पूरी शक्ति को, स्वयं अपने आप को वह यहाँ
केन्द्रित करना चाहते थे. और सचमुच, उनकी बेहतरीन कृतियों में से एक प्रकट हुई. किसी को भी
इसमें संदेह नहीं था, कि उन्हें प्रथम स्थान नहीं मिलेगा. चित्रों को प्रस्तुत किया गया, और अन्य
सभी चित्र उसके सामने ऐसे लग रहे थे, जैसे दिन के सामने रात हो. तभी उपस्थित सदस्यों में से
एक ने, अगर मैं गलत नहीं हूँ, तो वह आध्यात्मिक व्यक्ति था, ऐसी
टिप्पणी की, जिसने सबको चौंका दिया, “ कलाकार के चित्र में, निःसंदेह, बहुत
प्रतिभा है,” उसने कहा, “मगर चेहरों पर पवित्रता नहीं है; बल्कि, इसके विपरीत, आंखों में
कुछ-कुछ शैतानियत है, मानो कोई अशुद्ध भावना कलाकार के हाथ को निर्देशित कर रही थी.” अचानक सबने
देखा और इन शब्दों की सत्यता पर अविश्वास न कर सके. मेरे पिता अपने चित्र की तरफ़
भागे, जिससे खुद इस अपमानजनक टिप्पणी की जांच कर सकें, और उन्होंने भयपूर्वक देखा,
कि उन्होंने लगभग सभी चित्रों पर सूदखोर की आंखें बना दी हैं. वे ऐसी विनाशपूर्वक
और शैतानी प्रतीत हो रही थीं, कि वे खुद भी अचानक थरथरा गए. चित्र को अस्वीकार कर
दिया गया, और उन्हें अवर्णनीय झुंझलाहट से सुनना पड़ा कि प्रथम स्थान उनके शिष्य को
प्राप्त हुआ है. जैसे तैश में वे घर लौटे, उसका वर्णन करना असंभव है.
उन्होंने मेरी माँ को करीब-करीब मार ही डाला, बच्चों को भगा दिया, अपने ब्रश
और ईज़ल तोड़ दिए, दीवार से सूदखोर की तस्वीर खींची, एक चाकू माँगा और भट्टी में आग
जलाने की आज्ञा दी, तस्वीर के टुकडे- टुकडे करके उसे भट्टी में झोंकने के इरादे से. तभी अचानक
कमरे में आते हुए मित्र ने उसे देखा, जो उनके ही जैसा चित्रकार था, हंसमुख, हमेशा खुश
रहता था, और अप्राप्य इच्छाओं के पीछे नहीं भागता था, जो भी काम सामने आता, वह खुशी
से करता, तथा खाना खाता और नृत्य करता था.
“ये तुम क्या कर रहे हो, क्या जलाने जा रहे हो?” उसने कहा और पोर्ट्रेट की
तरफ़ गया. “खुदा के लिये, ये तुम्हारे सबसे बेहतरीन कामों में से एक है. ये
सूदखोर है, जो हाल ही में मर गया है: हाँ, ये सभी दृष्टियों से अत्यंत परिपूर्ण काम है. तुमने
सिर्फ उसकी भौंह पर नहीं, बल्कि सीधे आंखों पर वार किया है. ज़िंदगी में आंखें कभी
इस तरह नहीं देखतीं, जैसी तुम्हारे पोर्ट्रेट में देख रही हैं.”
“और मैं देखूंगा, कि वे आग में कैसी दिखाई देती हैं,” पिता
पोर्ट्रेट को भट्टी में फेंकने के लिए आगे बढ़े.
“खुदा के लिए, रुक जाओ!” मित्र ने उन्हें पकड़ते हुए कहा. “अगर वह तुम्हारी आंखों में
इतनी चुभती है, तो बेहतर है, इसे मुझे दे दो.”
पिता पहले तो विरोध करते रहे, मगर अंत में राज़ी हो गए, और अपनी प्राप्ति से बेहद
खुश होकर हंसमुख मित्र पोर्ट्रेट को घसीटते हुए अपने साथ ले गया.
उसके जाते ही मेरे पिता ने अचानक शान्ति का अनुभव किया. जैसे पोर्ट्रेट के
साथ साथ उनकी आत्मा से कोई बोझ उतर गया हो. उन्हें खुद ही अपने दुष्ट विचार पर,
अपनी ईर्ष्या पर और अपने स्वभाव में आये प्रत्यक्ष परिवर्तन पर आश्चर्य हुआ. अपने
कृत्य पर विचार करते हुए, उनकी आत्मा दुखी हो गई और आतंरिक दुःख से उन्होंने कहा:
“नहीं, ये खुदा ने ही मुझे सज़ा दी है; मेरा चित्र अपमानित होने योग्य ही था. वह
भाई को बर्बाद करने के लिए ही बना था. ईर्ष्या की शैतानी भावना मेरे ब्रश को
निर्देशित कर रही थी, और शैतानी भावना को उसमें प्रदर्शित होना ही था.’
वह फ़ौरन अपने भूतपूर्व विद्यार्थी को ढूंढने निकल पड़े, कसकर उसका
आलिंगन किया, उससे माफी मांगी और जितना संभव था, उसके साथ रिश्ते सुधारने की
कोशिश की. उनका काम फिर से पहले की तरह चलने लगा, गंभीरता से: मगर अक्सर उसके
चेहरे पर गहरी सोच की भावना दिखाई देने लगी. वह ज़्यादा समय प्रार्थना करने लगे, अक्सर
खामोश रहते और लोगों के बारे में कठोरता से अपनी राय ज़ाहिर नहीं करते; उनके स्वभाव
की कठोरता का स्थान कोमलता ने ले लिया. जल्दी ही एक और घटना ने उन्हें और भी झकझोर
दिया. वह अपने मित्र से बहुत दिनों से नहीं मिले थे, जो उसका पोर्ट्रेट मांग कर
ले गया था. वह उससे मिलने के लिए निकल ही रहे थे, कि अचानक, अप्रत्याशित रूप
से वह ही उनके कमरे में आया. दोनों में कुछ देर बातें हुईं, और तब
उसने कहा:
“भाई, तुम यूं ही नहीं पोर्ट्रेट को भट्टी में झोंकने चले थे. उसे शैतान ले जाए, उसमें कुछ
अजीब बात तो है...मैं चुड़ैलों में विश्वास नहीं करता, मगर, जैसी तुम्हारी
मर्जी : उसमें कोई शैतानी ताकत है...”
“क्या?” मेरे पिता ने कहा.
“वो ऐसे, कि जब से मैंने उसे अपने कमरे में टांगा, मुझे इतनी पीड़ा का अनुभव
होने लगा...जैसे बिल्कुल, किसी को छुरा घोंपना चाहता था. ज़िंदगी भर मैंने नहीं
जाना था कि अनिद्रा क्या होती है, मगर अब तो न सिर्फ अनिद्रा है, बल्कि ऐसे भयानक सपने
आते हैं, क्या ये सपने हैं, या कुछ और : जैसे घर का जिन्न गला घोंट रहा है, और आंखों
के सामने सिर्फ नासपीटा बुढऊ ही दिखाई देता है. एक लब्ज़ में, तुमसे मैं
अपनी हालत बयान नहीं कर सकता. ऐसा मेरे साथ कभी नहीं हुआ था. इतने दिनों से मैं
किसी दीवाने की तरह घूमता रहा: हमेशा भय का अनुभव होता है, किसी अप्रिय घटना का भय लगा
रहता है. ऐसा लगता है, कि मैं किसी से भी खुशगवार और ईमानदार बात नहीं कह सकता: जैसे मेरे पास
कोई जासूस बैठा है. और सिर्फ तभी से, जब मैंने पोर्ट्रेट भतीजे को दिया, जिसने इस
बारे में पूछा था, मुझे ऐसा महसूस हुआ, जैसे अचानक मेरे कन्धों से कोई बोझ उतर गया हो: मुझे
अचानक खुशी महसूस हुई, जैसा तुम देख रहे हो. ओह, भाई, तूने शैतान बना दिया!”
मेरे पिता अत्यंत एकाग्रता से इस कहानी को सुनते रहे, और
आखिरकार उन्होंने पूछ लिया:
“तो पोर्ट्रेट अब तुम्हारे भतीजे के पास है?”
“कहाँ से आया भतीजे के पास! वह उसे बर्दाश्त नहीं कर पाया,” हंसमुख
दोस्त ने कहा, “जान लो, कि सूदखोर की आत्मा उसमें समा गई थी : वह उछलकर फ्रेम से बाहर आ जाता है, कमरे में
घूमता है: और वो सब जो भतीजा बताता है, दिमाग़ की समझ से बाहर था. मैं तो उसे पागल समझ लेता, अगर मैंने
खुद इसे थोड़ा महसूस न किया होता. उसने उसे चित्रों के किसी संग्रहकर्ता को बेच
दिया, मगर वह भी उसे बर्दाश्त न कर पाया और किसी को बेच दिया.”
इस कहानी ने मेरे पिता के मन पर गहरा प्रभाव डाला. वे संदेह में पड़ गए और
आखिरकार उन्हें विश्वास हो गया, कि उनके ब्रश ने शैतान के औज़ार के रूप में काम किया है, कि सूदखोर
के जीवन का कुछ अंश वास्तव में किसी तरह पोर्ट्रेट में घुस गया है और अब वह लोगों
को परेशान कर रहा है, शैतानी भावनाएं जगा रहा है, कलाकार को पथ भ्रष्ट कर रहा है, ईर्ष्या की भयानक
यातनाओं को प्रवृत्त कर रहा था, इत्यादि, इत्यादि. इसके बाद हुई तीन दुर्दैवी घटनाओं – तीन अचानक
मृत्यु की घटनाओं को - पत्नी की, बेटी की
और छोटे पुत्र की – उन्होंने खुदा द्वारा उन्हें दी गई सज़ा समझा, और दुनिया
को छोड़ने का फैसला कर लिया. जैसे ही मैं नौ वर्ष का हुआ, उन्होंने फाईन आर्ट्स
अकादमी में मेरा नाम लिखवा दिया और, अपने क़र्ज़ उतारने के बाद, एक एकांत मॉनेस्ट्री में चले
गए, जहां शीघ्र ही भिक्षु बन गये. वहां जीवन के कठोर अनुशासन से,
मॉनेस्ट्री के सभी नियमों का सतर्कतापूर्वक पालन करते हुए, उन्होंने सभी ‘ब्रदर्स’ को चकित
कर दिया. मॉनेस्ट्री के प्रमुख ने उनके ब्रश के कमाल के बारे में जानकर उनसे चर्च
की प्रमुख प्रतिमा को चित्रित करने की मांग की. मगर नम्र ‘ब्रदर’ ने
साफ़-साफ़ कह दिया कि वह ब्रश हाथ में लेने के लिए अयोग्य था, उसका ब्रश
शापित है, पहले उसे श्रम और महान त्याग से अपनी आत्मा को शुद्ध करना होगा, ताकि ऐसे
काम को शुरू करने योग्य हो सके. उन्होंने ज़बर्दस्ती नहीं की. वह अपने लिए खुद ही, जहां तक
संभव था, मॉनेस्ट्री के जीवन की कठोरता को बढ़ाते रहे. आखिरकार उसे महसूस हुआ कि वह
भी उनके लिए अपर्याप्त और वांछित रूप से कठोर नहीं है. वह मठाधीश के आशीर्वाद से
नितांत अकेले रहने के लिए रेगिस्तान में चले गए. वहां उन्होंने वृक्षों की टहनियों
से अपने लिए एक कुटी बनाई, केवल कंद-मूल खाकर रहते, एक स्थान से दूसरे स्थान तक
बड़े-बड़े पत्थर घसीट कर ले जाते, सूर्योदय से सूर्यास्त तक एक ही जगह आसमान की ओर हाथ
उठाये खडा रहते, और निरंतर प्रार्थना करते. मतलब, ऐसा लगता था कि वह यथासंभव सहनशक्ति प्राप्त करने का, और उस
अप्राप्य आत्मत्याग को ढूँढने का प्रयत्न कर रहे थे, जिनके उदाहरण केवल संतों के
जीवन में ही मिलते हैं. इस प्रकार लम्बे समय तक, कई वर्षों की अवधि में वह
अपने शरीर को कष्ट देते रहे, साथ ही उसे प्रार्थना की शक्ति से सुदृढ़ करते रहे. आखिर
एक दिन वे मॉनेस्ट्री आये और दृढ़तापूर्वक मठाधीश से बोले, “अब मैं तैयार हूँ. अगर
खुदा को मंज़ूर है, तो मैं अपना काम करूंगा”. विषय, जो उन्होंने चुना, वह था ‘येशू का जन्म’. पूरे साल
वह इस पर काम करते रहे, अपनी कुटी को छोड़े बिना, कभी कभी रूखा-सूखा खा लेते, निरंतर
प्रार्थना करते रहते. साल पूरा होते-होते चित्र तैयार हो गया. ये, सचमुच, ब्रश का
कमाल था. ये जानना ज़रूरी है कि न तो ‘ब्रदर्स’ को, ना ही मठाधीश को
चित्रकला के बारे में कोई विशेष जानकारी थी, मगर आकृतियों की असाधारण पवित्रता से
सभी दंग रह गए. शिशु की तरफ़ झुकती हुई ‘परम पवित्र माँ’ के चेहरे पर दिव्य
विनम्रता की भावना, दैवी शिशु की आंखों की गहरी बुद्धिमत्ता, जैसे अभी से दूर की किसी
चीज़ को देख रही हों, दैवी आश्चर्य से चकित त्सारों की गरिमापूर्ण चुप्पी, जो उसके पैरों पर गिर रहे थे, और अंत
में पवित्र, अवर्णनीय खामोशी, जो पूरी तस्वीर का आलिंगन कर रही थी, - सब कुछ सौन्दर्य
की ऐसी समुचित शक्ति और प्रभाव के अनुकूल थी, कि उसका प्रभाव जादुई था.
चर्च का समूचा परिवार नए चित्र के सम्मुख घुटनों पर झुक गए, और मठाधीश ने भावुक
होकर कहा, “नहीं, केवल मानवी कला की सहायता से किसी मनुष्य के लिए ऐसा चित्र बनाना संभव
नहीं है: पवित्र आसमानी ताकत तुम्हारे ब्रश को निर्देशित कर रही थी, और
तुम्हारे काम पर निरंतर स्वर्गीय आशीर्वाद छाया रहा.
इस समय मैंने अकादमी में अपनी पढ़ाई पूरी कर ली, सोने का मैडल प्राप्त किया
और उसके साथ ही इटली जाने की खुशनुमा उम्मीद भी – जो बाईस वर्ष के कलाकार का सबसे
बढ़िया सपना होता है. मुझे सिर्फ अपने पिता से बिदा लेना था, जिनसे जुदा हुए बारह
साल बीत गए थे. स्वीकार करता हूँ, कि उनकी छबि भी कब से मेरी स्मृति से लुप्त हो गई थी. उनके
जीवन की गंभीर पवित्रता के बारे में मैं पहले ही काफी सुन चुका था, और मैं
कल्पना कर रहा था कि एक कठोर व्यक्तित्व वाले बैरागी से मिलूंगा, जो निरंतर उपवास
और जागरण से थका हुआ है , अपनी कुटिया और प्रार्थना के अलावा दुनिया की हर चीज़ से
अनजान है. और मैं कितना चकित हो गया, जब मेरे सामने एक ख़ूबसूरत, लगभग दिव्य वृद्ध खड़ा था!
और उसके चेहरे पर थकावट का नामोनिशान नहीं था: वह स्वर्गीय आभा से दमक रहा था:
सफ़ेद, बर्फ़ जैसी दाढी और वैसे ही रंग के पतले, लगभग हवा जैसे बाल किसी
चित्र की तरह सीने पर और उसकी काली पोशाक की सिलवटों पर बिखरे थे, और उस डोरी पर
भी गिर रहे थे, जो उसकी मॉन्क वाली पोशाक की कमर पर बंधी थी: मगर सबसे ज़्यादा आश्चर्यजनक
बात मेरे लिए उनके मुंह से कला के बारे में ऐसे शब्द और विचार सुनना था, जो, मैं
स्वीकार करता हूँ, कि लम्बे समय तक अपनी आत्मा में संजोये रखूंगा और ईमानदारी से
चाहता हूँ, कि मेरा हर कलाकार बन्धु ऐसा ही करे.
“मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था, मेरे बेटे,” जब मैं आशीर्वाद लेने उनके पास पहुंचा, तो वे
बोले. तुम्हें उस राह पर चलना है, जिस पर आज से तुम्हारी जीवन धारा बहेगी. तुम्हारा रास्ता
साफ़-सुथरा है, उससे न भटकना. तुम्हारे भीतर प्रतिभा है, प्रतिभा भगवान का सबसे
अमूल्य उपहार है – उसे नष्ट न करना. जो भी तुम देखते हो, उसका अन्वेषण करो, अध्ययन
करो, सभी ब्रशों पर विजय प्राप्त करो, मगर हर
चीज़ में आतंरिक विचार ढूंढने की कोशिश करो, और सबसे महत्वपूर्ण बात –
सृष्टि के निर्माण के उच्चतम रहस्य को समझने का प्रयत्न करो. धन्य है वह व्यक्ति, जिसके पास
यह शक्ति है. उसके लिए प्रकृति में कोई वस्तु तुच्छ नहीं है. धन्य है वह, जिसे वह
प्राप्त हुई है. उसके लिए प्रकृति में कोई वस्तु तुच्छ नहीं है. महत्वहीन रचना में
भी कलाकार उतना ही महान है, जितना किसी महान कृतित्व में; उसके लिए प्रकृति में कुछ
भी दयनीय नहीं है, क्योंकि अदृश्य रूप से उसमें से निर्माणकर्ता की सुन्दर आत्मा प्रवाहित
होती है, और दयनीय को भी उच्च अभिव्यक्ति प्राप्त हो जाती है, क्योंकि वह
उसकी आत्मा के शुद्धिकरण से प्रवाहित हुआ है. मनुष्य के लिए एक दैवी, आसमानी
स्वर्ग का संकेत कला में निहित है, और सिर्फ इसीकी बदौलत वह सबसे ऊंची है. और गंभीर शान्ति
दुनिया की हर परेशानी से श्रेष्ठ है, कितनी बार सृजन विनाश से अधिक श्रेष्ठ है; जितनी बार
फ़रिश्ता केवल अपनी आत्मा की उज्ज्वल सरलता की बदौलत शैतान की असंख्य शक्तियों और
गर्वपूर्ण जुनून से ऊपर है, - उतनी ही बार कला की उच्चतम संरचना दुनिया की हर चीज़
से ऊपर है. सब कुछ उसे समर्पित कर दो और पूरे जुनून से उससे प्यार करो: दुनिया की
वासना से परिपूर्ण जुनून से नहीं, बल्कि शांत, स्वर्गीय जुनून से: बगैर इसके मनुष्य धरती से ऊपर नहीं
उठ सकता और आश्वासन की अद्भुत आवाज़ भी नहीं दे सकता. क्योंकि शान्ति के और सबकी
शान्ति के लिए ही कला की श्रेष्ठ रचना धरती पर अवतरित होती है. वह आत्मा के भीतर
हो रहे कोलाहल को तो शांत नहीं कर सकती, परन्तु मुखर प्रार्थना से सदैव ईश्वर की ओर अग्रसर करती
है. मगर कुछ पल होते हैं, अँधेरे पल...”
वह रुके, और मैंने गौर किया कि उनके उजले चहरे पर अचानक कालिमा छा गई है, जैसे उसके
ऊपर से कोई बदल गुज़र गया हो.
“मेरे जीवन में एक घटना हुई है,” उन्होंने कहा, “आज तक मैं नहीं समझ पाया
कि वह अजीब प्रतिमा क्या थी, जिसका मैंने पोर्ट्रेट बनाया था. ये निश्चित ही एक
शैतानी घटना थी. मुझे मालूम है कि दुनिया शैतान के अस्तित्व को नकारती है, और इसलिए
उसके बारे में कुछ नहीं कहूंगा. मगर सिर्फ इतना कहूंगा, कि मैं उसे बेहद नफ़रत से
बना रहा था, उस समय मुझे अपने काम के प्रति किसी प्रकार का लगाव महसूस नहीं हो रहा था.
ज़बर्दस्ती अपने आप को मजबूर कर रहा था और बेमन से, सारी भावनाएं सुन्न करके, प्रकृति
के प्रति ईमानदार होने की कोशिश कर रहा था. यह कला की निर्मिति नहीं थी, और इसलिए
उसे देखते हुए सभी के मन को जो भाव घेर लेते हैं, वे हैं विद्रोह की भावनाएं, चिंता की
भावनाएं, - न कि कलाकार के मन के भाव, क्योंकि कलाकार गंभीर परिस्थिति में भी शांत रहता है. मुझसे
कहा गया, कि यह पोर्ट्रेट अनेक हाथों से गुज़र रहा है, और वेदनापूर्ण प्रभाव को
दूर करता है, जो कलाकार के मन में ईर्ष्या, भाई के प्रति निराशापूर्ण घृणा, दमन और उत्पीडन की दुष्टतापूर्ण
प्यास उत्पन्न करता है. सर्वशक्तिमान प्रभु तुम्हें इस प्यास से बचाए! उनसे ज़्यादा
भयानक कुछ और नहीं है. सभी संभावित उत्पीड़नों को सहन करना बेहतर है, किसी अन्य
व्यक्ति पर उत्पीडन की छाया डालने की बनिस्बत. अपनी आत्मा की शुद्धता को बचाए रखो.
जिसके भीतर प्रतिभा है, उसकी आत्मा सबसे अधिक शुद्ध होना चाहिए. औरों को काफ़ी
कुछ माफ़ किया जा सकता है, मगर उसे माफ़ नहीं किया जा सकता. एक आदमी पर, जो उत्सव
की चमकती पोशाक में घर बाहर निकलता है, पहिये के नीचे से उछलकर कीचड का एक धब्बा गिरना ही काफ़ी
है, और सारे लोग उसे घेर लेते हैं, उसकी ओर उंगलियों से इशारा करते हुए उसके फूहड़पन के
बारे में टिप्पणियां करते हैं, जबकि वे ही लोग अन्य आने जाने वाले लोगों पर पड़े बहुत
सारे धब्बों की ओर ध्यान भी नहीं देते, जो रोज़मर्रा के कपड़ों में होते हैं. क्योंकि रोज़मर्रा के
कपड़ों पर धब्बे दिखाई नहीं देते.”
उन्होंने मुझे आशिर्वाद दिया और मुझे गले लगा लिया. जीवन में मैंने कभी भी इतनी
उच्च कोटि की भावनाओं का अनुभव नहीं किया था. श्रद्धापूर्वक, एक बेटे
की भावना से भी ज़्यादा, मैं उनके सीने से लिपट गया और उनके बिखरे हुए, चांदी
जैसे बालों को चूम लिया. उनकी आंखों में आंसू झिलमिला उठे.
“मेरे बेटे, मेरे एक अनुरोध को पूरा करना,” उन्होंने बिदा लेते समय मुझसे कहा. “हो
सकता है, कि जिस पोर्ट्रेट के बारे में मैंने तुम्हें बताया, वह तुम्हें कहीं दिखाई दे
जाए. तुम उसकी असाधारण आंखों और उनके कृत्रिम भाव से फ़ौरन पहचान लोगे, - हर कीमत
पर उसे नष्ट कर देना...”
“आप लोग खुद ही फैसला कीजिये, क्या मैं ऐसे अनुरोध को पूरा करने की कसम नहीं खाता.
पूरे पंद्रह वर्षों में मुझे ऐसा कोई पोर्ट्रेट नहीं दिखाई दिया, जो कम से
कम,
कुछ ही अंशों में मेरे पिता द्वारा किये गए वर्णन के अनुकूल हो, जब कि अचानक
नीलामी में...”
यहाँ कलाकार ने अपनी बात पूरी किये बिना दीवार पर दृष्टी डाली, ताकि एक
बार और पोर्ट्रेट को देख सके. वैसा ही असाधारण पोर्ट्रेट को नज़रों से खोजते हुए पल
भर में श्रोताओं की भीड़ ने भी किया. मगर उसे पूरी तरह आश्चर्यचकित करते हुए पोर्ट्रेट
दीवार से गायब हो गया था. पूरी भीड़ में अस्पष्ट बुदबुदाहट और शोर फ़ैल गया, और
साफ़-साफ़ सुनाई दिए ये शब्द : “चोरी हो गया”.
कहानी में मगन श्रोताओं की एकाग्रता का फ़ायदा उठाकर कोई उसे खींच कर ले
जाने में सफ़ल हो गया था. और बड़ी देर तक सभी उपस्थित लोग हैरान रह गए, यह न समझ
पाते हुए कि क्या उन्होंने वास्तव में इन असाधारण आँखों को देखा था या यह सिर्फ कोई
सपना था, जो सिर्फ पल भर के लिए, प्राचीन चित्रों को लम्बे समय तक देखने से थकी हुई
आंखों के सामने प्रकट हुआ था.
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